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समस्या न कुत्ते हैं न रोटी है, कोर्ट तक तो हमें हमारा ईगो ले गया था

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 01 जून, 2018 06:23 PM
  • 01 अगस्त, 2017 02:00 PM
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अब जानवरों खासतौर से कुत्तों के प्रति आपका प्रेम, आपको बड़ी मुसीबत में डाल सकता है. जी हां अब दिल्ली हाईकोर्ट ने भी कह दिया है कि, कुत्तों को खाना खिलाते वक़्त यदि कुछ उल्टा सीधा होता है तो उसकी जिम्मेदारी आपकी है.

कुत्ते और मनुष्यों का साथ, कोई आज का नहीं है. कुत्ते और मनुष्य तब से साथ रह रहे हैं, जब से मनुष्य ने अकेले रहने के बजाए समूह में रहकर जीवन जीने का फैसला किया. कह सकते हैं कि आज कुत्ते और मनुष्य दोनों ही एक दूसरे से सहज हैं जिस कारण मनुष्य की आवासीय कॉलोनियों, मुहल्लों, बाजारों के इर्द गिर्द कुत्तों को देखना एक आम बात है.

हम कुछ ऐसा भी कह सकते हैं कि आज मनुष्य और कुत्ता दोनों, एक दूसरे के पूरक हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि जहां एक तरफ कुत्ता मनुष्य को सुरक्षा उपलब्ध कराता है तो वहीं महुष्य भी उसका पेट भर कर तालमेल के इस चक्र को पूरा करता आया है.

अब तक हम घर के आस पास डेरा जमाए कुत्तों पर बात कर रहे थे. अब हम घरों में पले कुत्तों पर बात करेंगे. न जाने ये कुत्तों के प्रति हमारा प्रेम है या फैशन और सोशलाईट बनने का असर, अब लोगों की एक बड़ी संख्या कुत्तों और उनकी देखरेख पर मोटा पैसा खर्च कर रही है. लोग बाकायदा विदेशों से महंगे-महंगे कुत्ते मंगवा रहे हैं, उन्हें महंगा खाना खिला रहे हैं, उनकी देख रेख खुद या फिर नौकरों से करवा रहे हैं, कुत्तों को वर्तमान में ऐसी सुविधाएं मिल रही हैं जिसको देखकर समाज के एक बड़े वर्ग को जलन हो जाए. जब तक सब ठीक रहता है तब तक कोई बात नहीं मगर जैसे ही स्थिति बिगड़ी या फिर लोगों को ऐसा लगा कि अब कुत्ते को कोई ऐसी बीमारी हो गयी है जिसका प्रभाव उनके घरों पर पड़ेगा, लोग इन कुत्तों को कहीं दूर जाकर छोड़ देते हैं.

आज हमारे घर के आस पास घूमते कुत्ते न सिर्फ हमें परेशान कर रहे हैं बल्कि इनके चलते दूसरों को भी परेशानियां उठानी पड़ रही हैं

हमारे समाज में एक वर्ग वो भी है जिन्हें कुत्तों से प्रेम तो बहुत है मगर वो इन्हें अपने घरों में नहीं रखना चाहता. ऐसे लोगों का मानना है कि आप इन्हें अपने पास तो रखिये मगर इनके और अपने बीच...

कुत्ते और मनुष्यों का साथ, कोई आज का नहीं है. कुत्ते और मनुष्य तब से साथ रह रहे हैं, जब से मनुष्य ने अकेले रहने के बजाए समूह में रहकर जीवन जीने का फैसला किया. कह सकते हैं कि आज कुत्ते और मनुष्य दोनों ही एक दूसरे से सहज हैं जिस कारण मनुष्य की आवासीय कॉलोनियों, मुहल्लों, बाजारों के इर्द गिर्द कुत्तों को देखना एक आम बात है.

हम कुछ ऐसा भी कह सकते हैं कि आज मनुष्य और कुत्ता दोनों, एक दूसरे के पूरक हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि जहां एक तरफ कुत्ता मनुष्य को सुरक्षा उपलब्ध कराता है तो वहीं महुष्य भी उसका पेट भर कर तालमेल के इस चक्र को पूरा करता आया है.

अब तक हम घर के आस पास डेरा जमाए कुत्तों पर बात कर रहे थे. अब हम घरों में पले कुत्तों पर बात करेंगे. न जाने ये कुत्तों के प्रति हमारा प्रेम है या फैशन और सोशलाईट बनने का असर, अब लोगों की एक बड़ी संख्या कुत्तों और उनकी देखरेख पर मोटा पैसा खर्च कर रही है. लोग बाकायदा विदेशों से महंगे-महंगे कुत्ते मंगवा रहे हैं, उन्हें महंगा खाना खिला रहे हैं, उनकी देख रेख खुद या फिर नौकरों से करवा रहे हैं, कुत्तों को वर्तमान में ऐसी सुविधाएं मिल रही हैं जिसको देखकर समाज के एक बड़े वर्ग को जलन हो जाए. जब तक सब ठीक रहता है तब तक कोई बात नहीं मगर जैसे ही स्थिति बिगड़ी या फिर लोगों को ऐसा लगा कि अब कुत्ते को कोई ऐसी बीमारी हो गयी है जिसका प्रभाव उनके घरों पर पड़ेगा, लोग इन कुत्तों को कहीं दूर जाकर छोड़ देते हैं.

आज हमारे घर के आस पास घूमते कुत्ते न सिर्फ हमें परेशान कर रहे हैं बल्कि इनके चलते दूसरों को भी परेशानियां उठानी पड़ रही हैं

हमारे समाज में एक वर्ग वो भी है जिन्हें कुत्तों से प्रेम तो बहुत है मगर वो इन्हें अपने घरों में नहीं रखना चाहता. ऐसे लोगों का मानना है कि आप इन्हें अपने पास तो रखिये मगर इनके और अपने बीच उचित दूरी का भी ख्याल रहे. आपने अपने आस पास दोनों ही तरह के लोगों को देखा होगा. एक वो जिन्हें कुत्तों से प्यार है और उन्हें वो पूरी शान और शौकत के साथ अपने-अपने घरों में रखते हैं. दूसरे वो जिन्हें कुत्तों या जानवरों से प्रेम तो बहुत है मगर वो इन्हें अपने घरों में स्थान नहीं देना चाहते.

ऐसे लोग 'दूरी का परिचय' देते हुए भरपूर श्वान सेवा करते हैं. इनकी ये सेवा जहां इन्हें तृप्त करती और संतोष देती है तो वहीं दूसरी ओर इनका ये प्रेम दूसरों के लिए परेशानी का कारण बन जाता है. इस दौरान परेशानी का आलम इतना होता है कि कभी-कभी मामला जब ज्यादा बिगड़ जाता है तो बात थाना पुलिस और कोर्ट कचहरी तक आ जाती है.

इस बात को आप एक खबर से समझ सकते हैं. खबर दिल्ली हाईकोर्ट से जुड़ी है. हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी निजी संपत्ति के एरिया में आवारा कुत्तों को खाना खिलाना या उन्हें पालना परेशानी खड़ी कर सकता है. हाई कोर्ट ने दक्षिणी दिल्ली के दो निवासियों को चेतावनी देते हुए यह सुनिश्चित करने को कहा कि इन कुत्तों के कारण दूसरों को डर या परेशानी न हो. मामला दिल्ली के मालवीय नगर का है जहां रहने वाले एक व्यक्ति ने याचिका दायर की थी कि उनके पड़ोस में रहने वाले दो लोगों ने कुछ आवारा कुत्तों को पाल लिया है. जिसकी वजह से वहां रहने वाले दूसरे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए, अपने आदेश कहा कि कि पड़ोसियों की इजाजत के बगैर दूसरे लोगों के संयुक्त अधिकार वाली किसी प्रॉपर्टी के सार्वजनिक रास्ते पर उन्हें आवारा कुत्तों को रखने की इजाजत नहीं दी जा सकती. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि दोनों व्यक्ति सार्वजनिक रास्ते पर कुत्तों को न तो खिला ही सकते हैं और न ही बांधकर रख सकते हैं.

आवारा कुत्तों पर दिल्ली हाईकोर्ट का जो ये फैसला आया है वो स्वागत योग्य है

कोर्ट ने कहा कि दोनों व्यक्ति यह सुनिश्चित करें कि आवारा कुत्ते उसी प्रॉपर्टी में रहने वाले दूसरे निवासियों और पड़ोसियों को कोई नुकसान न पहुंचाएं. अदालत ने कहा कि आवारा कुत्ते रखने से वहां रहने या आने-जाने वाले वे लोग डरेंगे और परेशान होंगे जो पालतू कुत्ते रखने के आदी नहीं होते हैं.

यदि इस सम्पूर्ण मामले को ध्यान से देखें तो मिलता है कि ये कोई साधारण मामला नहीं है. ऐसे मामले को कोर्ट ले जाना और उस पर फैसला आना खुद-ब-खुद मामले की गंभीरता दर्शाता है. जी हां ये भी सच है. ऐसे मामले मुख्यतः किसी भी व्यक्ति के अहम से जुड़े होते हैं. आप खुद ऐसे दृश्य की कल्पना करके देखिये, जब आप ही के घर के सामने कोई व्यक्ति किसी आवारा कुत्ते पर अपना मोह लुटाते हुए उसे खिला पिला रहा हो और कुत्ता लगातार गंदगी करके या फिर आप या आपके घर आने जाने वाले व्यक्ति पर हमला करके आपकी मुसीबत रोज बढ़ा रहा हो. ऐसी परिस्थितियों में किसी के लिए भी गुस्से का आना स्वाभाविक है.

गौरतलब है कि भारत में हर साल होने वाले सड़क हादसों में आवारा पशुओं खासतौर से कुत्तों के कारण लोगों की एक बड़ी संख्या अकाल मृत्यु को प्राप्त होती है. यदि ग्लोबल एलायंस फॉर रेबीज कंट्रोल की एक रिपोर्ट को सही माना जाए तो किसी अन्य देश के मुकाबले भारत में हर साल 35 % लोग रेबीज से मरते हैं.

आज भले ही पशु प्रेमी या छुट्टा जानवरों के नाम पर आंदोलन और प्रदर्शन करने वाले एनजीओ आवारा जानवरों के हित और अधिकारों की बात करें मगर इस बात को भी नहीं नाकारा जा सकता कि हमारे समाज में छुट्टा और आवारा जानवरों की संख्या एक बड़ी चिंता का विषय है.

अंत में बस इतना ही कि यदि आपको जानवरों से प्रेम और उनके हित की बात करना है तो उसे अपने घर में पनाह दें और उनसे प्रेम करें. लेकिन यदि आप समाज को ये दिखाने के लिए कि आपको जानवरों से बहुत प्यार है आप दूसरों को कष्ट दे रहे हैं तो वाकई ये एक ऐसा कृत्य है जिसके लिए आपकी निंदा होनी चाहिए. कहा ये भी जा सकता है इस मामले का कोर्ट में जाना और कुछ नहीं बस अपने अन्दर छुपे अहम को संतुष्ट करने का एक माध्यम है.         

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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