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‘मौत के खत’ को जिंदगी का खत

    • आईचौक
    • Updated: 21 जनवरी, 2016 07:43 PM
  • 21 जनवरी, 2016 07:43 PM
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यह तुम्हें उदास न भी करे, लेकिन इससे मैं जरूर उदास हूं. ऐसा नहीं है कि तुम इस संसार को समझ नहीं पाए, शायद तुम समझे- फिर भी तुम जिस संसार में रहे उसके प्रति तुम्हारी एक ही धारणा ही थी.

नाराज हो?

हालांकि मैनें तुम्हें नहीं छोड़ा था. तुमने ही मुझे छोड़ दिया.

मैं तुम्हारे खालीपन को समझ रहा हूं, तुम्हारे शरीर और आत्मा के बीच की दूरी मैं महसूस कर सकता हूं- और तुम सही हो, यह संसार हर्षविहीन हो सकता है, जहां कोई सच्ची कला न हो, जहां प्यार चोट पहुंचाता हो, जहां आस्था अलग चश्मों की मोहताज है और जहां हमारा नाम ही हमारी पहचान है. तुम इन सब को नकार रहे हो-क्योंकि तुम्हारा कहना है कि तुम अपने अस्तित्व से परेशान थे.

तुम सही हो, और तुम्हारा विश्वास था कि मुझे त्यागने के पर्याप्त कारण तुम्हारे पास हैं.

लेकिन फिर भी, यदि एक पल के लिए तुम ठहरो और धैर्य रखकर सोचो कि इस संसार में कौन कौन सी अनुभूतियां और भावनाएं क्षणिक नहीं हैं? रात ही सुबह को रास्ता देती है- यदि तुम अंधेरे को गले नहीं लगा रहे, यदि तुम दुख और निराशा के गर्त में खड़े होकर अपने पैरों के नीचे रोशनी नहीं देख रहे हो तो भी सुबह जरूर आएगी. भले सुबह का आगमन आपके आखिरी सुप्रभात के साथ क्यों न हो.

यह तुम्हें उदास न भी करे, लेकिन इससे मैं जरूर उदास हूं. ऐसा नहीं है कि तुम इस संसार को समझ नहीं पाए, शायद तुम समझे- फिर भी तुम जिस संसार में रहे उसके प्रति तुम्हारी एक ही धारणा ही थी. यह संसार अंतहीन है, ठीक उस विज्ञान की तरह जिसे तुमने प्यार किया.

तुमने कभी शिकायत नहीं की कि जिंदगी तुम्हारे लिए निष्पक्ष नहीं थी, ऐसा नहीं कि तुमने जिंदगी से कभी अपना हिस्सा नहीं मांगा. और फिर भी मैं तुम्हें बता दूं कि अभी तक किसी को भी क्या मिला है. सांसे. सांसे ही मिली हैं सबको ज़िंदगी से। बाकी सब तुम पर निर्भर है. तुम अपने लिए एक जीवन का निर्माण करना चाहते थे, खुले आसमान में उड़ना चाहते थे और इसके बावजूद तुम्हारा अंत जतिंगा की चिड़िया की तरह हुआ. कहते हैं ना कि पहाड़ों नहीं पत्थर से बचो। माना कि तुम्हारे रास्ते में पत्थर बहुत थे. पर पत्थर ही तो थे। और पत्थर और पहाड़ ही सही जानलेवा नहीं होते. हर साल हजारों लोग निराशा के खिलाफ लड़ाई में हार...

नाराज हो?

हालांकि मैनें तुम्हें नहीं छोड़ा था. तुमने ही मुझे छोड़ दिया.

मैं तुम्हारे खालीपन को समझ रहा हूं, तुम्हारे शरीर और आत्मा के बीच की दूरी मैं महसूस कर सकता हूं- और तुम सही हो, यह संसार हर्षविहीन हो सकता है, जहां कोई सच्ची कला न हो, जहां प्यार चोट पहुंचाता हो, जहां आस्था अलग चश्मों की मोहताज है और जहां हमारा नाम ही हमारी पहचान है. तुम इन सब को नकार रहे हो-क्योंकि तुम्हारा कहना है कि तुम अपने अस्तित्व से परेशान थे.

तुम सही हो, और तुम्हारा विश्वास था कि मुझे त्यागने के पर्याप्त कारण तुम्हारे पास हैं.

लेकिन फिर भी, यदि एक पल के लिए तुम ठहरो और धैर्य रखकर सोचो कि इस संसार में कौन कौन सी अनुभूतियां और भावनाएं क्षणिक नहीं हैं? रात ही सुबह को रास्ता देती है- यदि तुम अंधेरे को गले नहीं लगा रहे, यदि तुम दुख और निराशा के गर्त में खड़े होकर अपने पैरों के नीचे रोशनी नहीं देख रहे हो तो भी सुबह जरूर आएगी. भले सुबह का आगमन आपके आखिरी सुप्रभात के साथ क्यों न हो.

यह तुम्हें उदास न भी करे, लेकिन इससे मैं जरूर उदास हूं. ऐसा नहीं है कि तुम इस संसार को समझ नहीं पाए, शायद तुम समझे- फिर भी तुम जिस संसार में रहे उसके प्रति तुम्हारी एक ही धारणा ही थी. यह संसार अंतहीन है, ठीक उस विज्ञान की तरह जिसे तुमने प्यार किया.

तुमने कभी शिकायत नहीं की कि जिंदगी तुम्हारे लिए निष्पक्ष नहीं थी, ऐसा नहीं कि तुमने जिंदगी से कभी अपना हिस्सा नहीं मांगा. और फिर भी मैं तुम्हें बता दूं कि अभी तक किसी को भी क्या मिला है. सांसे. सांसे ही मिली हैं सबको ज़िंदगी से। बाकी सब तुम पर निर्भर है. तुम अपने लिए एक जीवन का निर्माण करना चाहते थे, खुले आसमान में उड़ना चाहते थे और इसके बावजूद तुम्हारा अंत जतिंगा की चिड़िया की तरह हुआ. कहते हैं ना कि पहाड़ों नहीं पत्थर से बचो। माना कि तुम्हारे रास्ते में पत्थर बहुत थे. पर पत्थर ही तो थे। और पत्थर और पहाड़ ही सही जानलेवा नहीं होते. हर साल हजारों लोग निराशा के खिलाफ लड़ाई में हार मान लेते हैं. मैं उनसे हार जाता हूं.

इस संसार और उसकी उलझनों को भूल जाओ, यदि जीवन हर्षविहीन या महिमाविहीन ही क्यों न हो, मुझे नफरत है इसे अपने उस प्रतिद्वंदी को देने से जो दुख और बीमारी के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. मेरे लिए तुम्हारे कदम का महिमामंडन करना संभव नहीं है. तुम मेरी क्षति हो. तुम अपनी क्षति हो. मैं इस क्षति को कारणों और अलंकारों से कैसे सही ठहराऊं।

तुम्हारी,

जिंदगी

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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