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आश्चर्य, रेपिस्ट को फांसी भी नाकाफी!

    • रश्मि सिंह
    • Updated: 14 जून, 2019 07:24 PM
  • 14 जून, 2019 06:44 PM
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जिस हिसाब से आज देश में बलात्कार की वारदात हो रही हैं कानून तो यहां खूब हैं मगर हमने उन्हें शोकेस में रख दिया है. अब वो वक्त आ गया है जब इन कानूनों का इफेक्टिव एग्ज़ीक्यूशन किया जाए.

देश अब बलात्कारियों की पनाहगाह हो चला है. बलात्कार शब्द जितना घिनौना है यह अब उतना ही आम हो गया है और इसका अनुमान हम इस शब्द के अब कानों में पड़ने पर हमारे क्रोध की नपुसंकता से लगा ही सकते हैं. आज देश का कोई भी प्रदेश हर कसबा, मोहल्ला या गली इससे अनछुए नहीं है. हर सुबह तमाम अखबार ऐसे सैकड़ों बलात्कार की खबरें लाते हैं और हमारी अनदेखी का शिकार हो जाते हैं. हर दिन कोई ना कोई संस्कृति, दिव्या, आसिफा, निर्भया बलात्कारियों की दरिंदगी का शिकार होती हैं. और हम बड़ी ही सहजता से उन पर कुछ किलो लानत भेजकर अपने आप को फिलांथ्रोपिस्ट की थपथपी दे देते हैं. मगर, उस लड़की के घाव ना तो आपके फिलांथ्रोपिस्ट होने से भरेंगें और ना ही आपके फेमिनिज़्म के लेक्चर से. उसे आपके मिसोजनिस्ट होने से या आपके 'बायज़ मेक मिस्टेक' कह देने से भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.अक्सर लोगों को कहते सुना होगा कि हम आपकी परेशानी समझ सकते हैं.

आज बलात्कार की खबरें आम हो गयीं हैं जिन्हें हम सुनकर नकार देते हैं

हम जानते हैं आप पर क्या बीत रही है. पर असल मुद्दा ही यही है कि आप नहीं जानते, (यहां मैं लड़कियों को स्पेसीफाई नहीं कर रही, आप लड़के हैं और शारीरिक शोषण का शिकार हुए हैं तो वह भी आम है, शर्माएं नहीं उससे आपकी मर्दानगी कम नहीं होगी.) जब कोई अनचाहा हाथ शरीर के हिस्सों को महज छू जाता है तब मौत का वह एहसास ऐसा लगता है मानों हज़ारों कीड़े शरीर पर चल गये हों. तो बलात्कार क्या है इसका अनुमान मैं या आप सपने में भी नहीं लगा सकते.

बहरहाल, यह तो बात रही सिचुएशन की. अब बात आ जाती है बलात्कार पर बने कानूनों की तो देश में आबादी से अधिक बलात्कार पर कानून हैं पर उसका अफेक्ट कहीं से कहीं तक दिखाई नहीं देता. अब इन लोगों को कौन बताये कि कानून बनाकर उनको शो केस में रखने की नहीं...

देश अब बलात्कारियों की पनाहगाह हो चला है. बलात्कार शब्द जितना घिनौना है यह अब उतना ही आम हो गया है और इसका अनुमान हम इस शब्द के अब कानों में पड़ने पर हमारे क्रोध की नपुसंकता से लगा ही सकते हैं. आज देश का कोई भी प्रदेश हर कसबा, मोहल्ला या गली इससे अनछुए नहीं है. हर सुबह तमाम अखबार ऐसे सैकड़ों बलात्कार की खबरें लाते हैं और हमारी अनदेखी का शिकार हो जाते हैं. हर दिन कोई ना कोई संस्कृति, दिव्या, आसिफा, निर्भया बलात्कारियों की दरिंदगी का शिकार होती हैं. और हम बड़ी ही सहजता से उन पर कुछ किलो लानत भेजकर अपने आप को फिलांथ्रोपिस्ट की थपथपी दे देते हैं. मगर, उस लड़की के घाव ना तो आपके फिलांथ्रोपिस्ट होने से भरेंगें और ना ही आपके फेमिनिज़्म के लेक्चर से. उसे आपके मिसोजनिस्ट होने से या आपके 'बायज़ मेक मिस्टेक' कह देने से भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.अक्सर लोगों को कहते सुना होगा कि हम आपकी परेशानी समझ सकते हैं.

आज बलात्कार की खबरें आम हो गयीं हैं जिन्हें हम सुनकर नकार देते हैं

हम जानते हैं आप पर क्या बीत रही है. पर असल मुद्दा ही यही है कि आप नहीं जानते, (यहां मैं लड़कियों को स्पेसीफाई नहीं कर रही, आप लड़के हैं और शारीरिक शोषण का शिकार हुए हैं तो वह भी आम है, शर्माएं नहीं उससे आपकी मर्दानगी कम नहीं होगी.) जब कोई अनचाहा हाथ शरीर के हिस्सों को महज छू जाता है तब मौत का वह एहसास ऐसा लगता है मानों हज़ारों कीड़े शरीर पर चल गये हों. तो बलात्कार क्या है इसका अनुमान मैं या आप सपने में भी नहीं लगा सकते.

बहरहाल, यह तो बात रही सिचुएशन की. अब बात आ जाती है बलात्कार पर बने कानूनों की तो देश में आबादी से अधिक बलात्कार पर कानून हैं पर उसका अफेक्ट कहीं से कहीं तक दिखाई नहीं देता. अब इन लोगों को कौन बताये कि कानून बनाकर उनको शो केस में रखने की नहीं होती, उसके इफेक्टिव एग्ज़ीक्यूशन की भी होती है.

बलात्कार अब सिर्फ खबरों तक ही सीमित नहीं है. यह हम सबके सिर पर मंडराते खतरे की चेतावनी है. और यह बलात्कारी हमारे ही आस-पास रहते हैं, हमें देखते हैं, नुक्कड़ पर भद्दे कमेन्ट्स करते हैं, कभी सरेआम छूकर बाइक का एक्सीलरेटर बढ़ा लेते हैं, ऐसे जब हिम्मत बढ़ जाती है फिर मौका मिलते ही नोच खाते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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