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Kathua case verdict से ऊंचा हुआ इंसाफ की देवी का सिर

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 10 जून, 2019 09:16 PM
  • 10 जून, 2019 09:10 PM
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कठुआ मामला जितना जघन्या था उतना ही सांप्रदायिक और राजनीतिक भी. अदालत ने इस मामले पर फैसला देकर बहुत से अपराधियों, दबंगों और राजनीतिज्ञों को एक संदेश देने की कोशिश की है.

जम्मू कश्मीर में रहने वाले बकरवाल समुदाय को आज थोड़ी राहत मिली होगी. पिछले साल जनवरी में Kathua के रसाना गांव में इसी सुमदाय की एक 8 साल की बच्ची ने जो झेला वो न सिर्फ बकरवालों बल्कि हर बच्ची के माता-पिता के लिए खौफनाक था. 8 साल की बच्ची का सामूहिक बलात्कार और फिर हत्या की खबर से पूरा देश स्तब्ध था. लेकिन पठानकोट अदालत ने कठुआ के इस जघन्य अपराध पर फैसला सुना दिया.

उस मासूम ने अपने छोटे से जीवन में ये सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन वो नहीं रहेगी. जब वो अपने शरीर पर हो रहे अत्याचार को झेल रही थी तब शायद उसने इस दुनिया का क्रूरतम सच झेला था. लेकिन उसकी नन्हीं आंखे अपने अपराधियों को सलाखों के पीछे देखे बगैर ही बंद हो गईं. आज गुलाबी सूट पहनी उस बच्ची की आत्मा को थोड़ी राहत जरूर हुई होगी जब अदालत ने उसके अपराधियों को सजा दी.

Kathua rape case पर वैसे तो फांसी की मांग की जा रही थी क्योंकि इस अपराध के लिए कोई और सजा हो ही नहीं सकती थी. लेकिन कानून सबूतों के आधार पर सजा देता है. इसलिए इस मामले के 6 दोषियों में से 3 को उम्र कैद की सजा और 3 को 5-5 साल की सजा हुई है.

इस मामले की खास बात ये रही कि दोषी पाए गए 6 आरोपियों में से 4 वो हैं जिनपर लोग भरोसा करते हैं. यानी ये पुलिसकर्मी हैं. दीपक खजूरिया और सुरेंद्र विशेष पुलिस अधिकारी हैं. तिलक राज हेड कांस्टेबल है और आनंद दत्ता एसआई है. इनन चारों में अपनी वर्दी पर दाग लगाया, जबकि मुख्य आरोपी और मुख्य साजिशकर्ता सांजी राम के अलावा परवेश कुमार रसाना गांव का रहने वाला है.

वर्दी पर लगे ये दाग काफी समय तक चुभेंते रहेंगे

पुलिस महकमे की इज्जत खराब करने वाले इन भ्रष्ट पुलिसकर्मियों का एक दोष नहीं था. इन्होंने गलत चार्चशीट बनाई जिसमें इस मामले का मुख्य आरोप एक नाबालिग को बना दिया, बाकी सब लोगों का नाम ही नहीं दिया. पीड़िता के खून से सने कपड़ों को धोकर अदालत में पेश किया गया. 350 गवाहों की लिस्ट अदालत को दी गई. फर्जी चार्जशीट बनाई गई. पूरे मामले में...

जम्मू कश्मीर में रहने वाले बकरवाल समुदाय को आज थोड़ी राहत मिली होगी. पिछले साल जनवरी में Kathua के रसाना गांव में इसी सुमदाय की एक 8 साल की बच्ची ने जो झेला वो न सिर्फ बकरवालों बल्कि हर बच्ची के माता-पिता के लिए खौफनाक था. 8 साल की बच्ची का सामूहिक बलात्कार और फिर हत्या की खबर से पूरा देश स्तब्ध था. लेकिन पठानकोट अदालत ने कठुआ के इस जघन्य अपराध पर फैसला सुना दिया.

उस मासूम ने अपने छोटे से जीवन में ये सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन वो नहीं रहेगी. जब वो अपने शरीर पर हो रहे अत्याचार को झेल रही थी तब शायद उसने इस दुनिया का क्रूरतम सच झेला था. लेकिन उसकी नन्हीं आंखे अपने अपराधियों को सलाखों के पीछे देखे बगैर ही बंद हो गईं. आज गुलाबी सूट पहनी उस बच्ची की आत्मा को थोड़ी राहत जरूर हुई होगी जब अदालत ने उसके अपराधियों को सजा दी.

Kathua rape case पर वैसे तो फांसी की मांग की जा रही थी क्योंकि इस अपराध के लिए कोई और सजा हो ही नहीं सकती थी. लेकिन कानून सबूतों के आधार पर सजा देता है. इसलिए इस मामले के 6 दोषियों में से 3 को उम्र कैद की सजा और 3 को 5-5 साल की सजा हुई है.

इस मामले की खास बात ये रही कि दोषी पाए गए 6 आरोपियों में से 4 वो हैं जिनपर लोग भरोसा करते हैं. यानी ये पुलिसकर्मी हैं. दीपक खजूरिया और सुरेंद्र विशेष पुलिस अधिकारी हैं. तिलक राज हेड कांस्टेबल है और आनंद दत्ता एसआई है. इनन चारों में अपनी वर्दी पर दाग लगाया, जबकि मुख्य आरोपी और मुख्य साजिशकर्ता सांजी राम के अलावा परवेश कुमार रसाना गांव का रहने वाला है.

वर्दी पर लगे ये दाग काफी समय तक चुभेंते रहेंगे

पुलिस महकमे की इज्जत खराब करने वाले इन भ्रष्ट पुलिसकर्मियों का एक दोष नहीं था. इन्होंने गलत चार्चशीट बनाई जिसमें इस मामले का मुख्य आरोप एक नाबालिग को बना दिया, बाकी सब लोगों का नाम ही नहीं दिया. पीड़िता के खून से सने कपड़ों को धोकर अदालत में पेश किया गया. 350 गवाहों की लिस्ट अदालत को दी गई. फर्जी चार्जशीट बनाई गई. पूरे मामले में पुलिसवालों ने थोड़े-थोड़े कर कुल 5 लाख रुपए रिश्वत भी ली.

जब मामला चर्चा में आया और इसपर पूरे देश खड़ा हो गया तो मामले की जांच जम्मू कश्मीर पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंपी गई और क्राइम ब्रांच ने जांच में ये खुलासा किया कि चार्जशीट फर्जी थी, और ये पुलिसवाले मिले हुए थे. इन्होंने सबूत भी मिटाए और रिश्वत भी ली. हालांकि रिश्वत का मामले अदालत में स्टैंड नहीं कर सका क्योंकि पैसों की बरामदगी नहीं हुई थी. इसलिए सबूत मिटाने के आरोप में इन तीन पुलिस वालों यानी तिलक राज, अनंद दत्ता, सुरेंद्र कुमार को 5-5 साल की कैद और 50 हजार जुर्माने की सजा दी गई.

लेकिन वो एक पुलिसवाला अपने साथियों से कहीं आगे था. दीपक खजूरिया स्पेशल पुलिस ऑफिसर है जिसे परवेश कुमार ने फोन करके बताया कि हम एक लड़की को मारने जा रहे हैं. लेकिन दीपक ने उन्हें कहा कि जब वो न आ जाएं मारना मत, क्योंकि वो आखिरी बार फिर रेप करना चाहता था. वहां पहुंचकर दीपक ने बच्ची का रेप किया फिर परवेश कुमार और दीपक ने बच्ची का गला दबाकर उसकी रही सही सांसें भी छीन लीं. बच्ची को जंगल में फैंक दिया गया. मौत सुनिश्चित करने के लिए दीपक ने बच्ची के सिर पर पत्थर से कई वार किए. उसके बाद वहां से भाग गए.

सांजी राम कठुआ मामले का साजिशकर्ता है

दीपक खजूरिया, परवेश कुमार और मुख्य आरोपी और मुख्य साजिशकर्ता सांजी राम को उम्र कैद और एक लाख जुर्माने की सजा दी गई. ये सारा खेल सांजी राम का ही रचा हुआ था. 62 वर्षीय सांजी राम ने यह पूरी साजिश इसलिए रची थी जिससे बकरवाल समुदाय को इलाके से हटाया जा सके. इसने खुद को बुजुर्ग बताते हुए अदालत से रहम की गुजारिश भी की थी कि उसे छोड़ दिया जाए, लेकिन अदालत ने एक बच्ची के बलात्कारी और हत्यारे पर रहम नहीं दिखाया.

सांजी राम, दीपक खजूरिया और परवेश कुमार पर 302 के तहत उम्र कैद और 1 लाख जुर्माना, 120 B conspiracy 50 हजार जुर्माना, 376 D 25 साल की सजा 50 हजार जुर्माना, 328 नशे की चीजें देने 10 साल सजा 50 हजार जुर्माना, 363 7 साल कैद, किडनैपिंग, 201, 343 के तहत उम्र कैद की सजा दी गई है. परवेश कुमार पर इनके अलावा 376D/511 धरा भी लगाई गई है. इतनी धाराओं का मतलब ये है कि मरते दम तक ये तीनों जेल से बाहर नहीं आ सकेंगे. विशाल जो सांजी राम का बेटा है, उसे रिहा कर दिया था.

इंसाफ की लड़ाई आसान नहीं थी

बेटी के बलात्कार का मामला किसी के लिए भी बहुत मुश्किल होता है. लेकिन बकरवाल समाज के लिए ये काफी कठिन था. ये समुदाय असल में घुमंतु है, जो भेड़-बकरी चराने का काम करता है .ये लोग अपना जीवनयापन आसमान के नीचे मैदानी और पहाड़ी इलाकों में करते हैं और अपने मवेशियों के साथ रहते हैं. कम में खुश रहने वाले इन लोगों को 1991 में आदिवासी का दर्ज़ा मिला. इनसे नफरत करने वालों ने इनकी बेटी को मोहरा बनाया जिससे ये लोग रसाना गांव से चले जाएं. बच्ची के बलात्कार के बाद दोषियों के मंसूबे काफी हद तक कामयाब भी हुए क्योंकि ये लोग गांव छोड़कर जाने लगे.बच्ची के परिवार वालों ने बच्ची के लिए न्याय की लड़ाई लड़ी. जिसमें उन्हें बहुत से लोगों का साथ मिला और बहुतों ने उन्हें मूर्ख भी बनाया. इंसाफ की लड़ाई के नाम पर पैसा इकट्ठा करने के लिए एक खाता बनाया गया, बाद में खाते से किसी ने पैसा निकाल लिया और परिवार को पता भी नहीं लगा. इस परिवार ने मामले की सुनवाई पर जाने के लिए अपने जानवरों को बेचकर पैसा जुटाया.

फैसले के वक्त भी परिवार अदालत में पहुंचा था. परिवार को राहत तो मिली लेकिन फांसी की उम्मीद कर रहे इस परिवार की उम्मीदें पूरी नहीं हुईं. बच्ची की मां अब भी चाहती है कि बच्ची के दोषियों को फांसी हो.

पीड़ित परिवार के लिए ये लड़ाई आसान नहीं थी

अदालत के फैसले ने न्यायपालिका पर भरोसा और मजबूत किया है

उम्मीद तो यही की जा रही थी कि अदालत इन दोषियों को मौत की सजा देगी लेकिन ये भी कम नहीं, जबकि इन आरोपियों में से 4 लोग पुलिस महकमे से ही थे. इस फैसले ने ये साबित किया है कि एक तरफ अगर पीड़ित बहुत ही निचले तबके से आता है, बेहद गरीब है और न्याय की लड़ाई भी अपने दम पर नहीं लड़ सकता, और दूसरी तरफ आरोपी दबंग हैं और शक्तिशाली भी, तो भी अदालत सिर्फ न्याय करती है. कठुआ मामला जितना जघन्या था उतना ही सांप्रदायिक और राजनीतिक भी. अदालत ने इस मामले पर फैसला देकर बहुत से अपराधियों, दबंगों और राजनीतिज्ञों को एक संदेश देने की कोशिश भी की है कि पीड़ित चाहे महिला हो या नाबालिग, अपराध चाहे बड़ा हो या जघन्य, लेकिन अपराधी अगर पुलिसकर्मी भी रहा तो भी अदालत किसी को नहीं बख्शती. न्याय की देवी की आंकों पर बंधी पट्टी भी यही बताती है कि न्याय की नजर में कोई छोटा बड़ा नहीं, कमजोर-ताकतवर नहीं, कोई जात-पात नहीं, कोई ऊंच नीच नहीं. यहां भी यही हुआ. इससे लोगों का न्यापालिका पर एक बार भरोसा फिर मजबूत हुआ है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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