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कश्मीर फाइल्स झूठ थी, तो क्या कल मारी गई रजनीबाला भी कल्पना है?

    • अनु रॉय
    • Updated: 01 जून, 2022 04:00 PM
  • 01 जून, 2022 03:52 PM
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दक्षिण कश्मीर के कुलगाम में मजहबी हत्यारों ने एक स्कूल शिक्षिका रजनीबाला को गोलियों से भून दिया. मई महीने की यह सातवीं टारगेटेड किलिंग थी. लेकिन, इन हत्याओं पर उन लिबरलों की बेशर्म चुप्पी कायम है, जो कश्मीर फाइल्स को झूठा बताने के लिए गलाफाड़ चिल्ला रहे थे.

कश्मीर घाटी में हिंदुओं को जिस तरह निशाना बनाया जा रहा है, उसने 1990 के दिनों की याद दिला दी. कहीं, गवर्नमेंट ऑफिस तो कहीं स्कूल टीचर. आतंकियों को हिंदुओं की पहचान भेजी जा रही है, और दरिंदे उनका काम तमाम करने चले आ रहे हैं. लेकिन इन तमाम वारदातों के बीच सबसे खतरनाक है उस 'बुद्धिजीवी' तबके की चुप्पी जो ऐसे आतंकियों को अजीब-अजीब तर्कों से कवर फायर देता आया है.

मोदी सरकार कश्मीरी हिंदुओं के लिए कुछ न कर पा रही है इसलिए उनको घाटी में हर दिन एक-एक कर मार देना जायज़ है? मैं उन लिबरलों से पूछना चाहती हूं कि क्यों नहीं आप और आप जैसे बाक़ी के लोग कश्मीर में हो रही हत्याओं के ख़िलाफ़, उन हत्यारों के ख़िलाफ़ बोल पाते हैं? किस बात से डरते हैं? कहीं ये तो नहीं लगता है कि मुस्लिम कट्टरपंथी नाराज़ हो जाएँगे तो दुकानदारी बंद हो जाएगी? आप हमेशा दूसरों पर कीचड़ उछालते हैं, कभी अपने दामन में लगे दाग को देखने की कोशिश क्यों नहीं करते हैं?

बड़े-बड़े लेखक/कथित इतिहासकार ऐसी मौतों के लिए धारा 370 के हटने को ज़िम्मेदार मानते हैं.

बताइए देश के किस राज्य में हिंदू इस तरह से हर तीसरे दिन किसी अल्प-संख्यक की जान ले रहा है? कितने राज्य ऐसे हैं जहां से हिंदू अमन पसंद लोगों को भागने पर मजबूर कर रहा है? मैं राहुल गांधी से कोई उम्मीद नहीं करूंगी, क्योंकि उनकी पार्टी मुस्लिम अपीजमेंट की पॉलिटिक्स करती आई है. वो अब भी वही करना चाहते हैं, ताकि मुसलमान वोट उन्हें मिलते रहें. खुद को कश्मीरी ब्राह्मण कहने वाले राहुल गांधी घाटी में हिंदुओं की हत्या पर मौन रहते हैं तो उनका स्वार्थ समझा जा सकता है. वे त्रिपुरा को लेकर ये तीखा ट्वीट करते हैं, तो उसका मकसद भी समझा जा सकता है...

कश्मीर घाटी में हिंदुओं को जिस तरह निशाना बनाया जा रहा है, उसने 1990 के दिनों की याद दिला दी. कहीं, गवर्नमेंट ऑफिस तो कहीं स्कूल टीचर. आतंकियों को हिंदुओं की पहचान भेजी जा रही है, और दरिंदे उनका काम तमाम करने चले आ रहे हैं. लेकिन इन तमाम वारदातों के बीच सबसे खतरनाक है उस 'बुद्धिजीवी' तबके की चुप्पी जो ऐसे आतंकियों को अजीब-अजीब तर्कों से कवर फायर देता आया है.

मोदी सरकार कश्मीरी हिंदुओं के लिए कुछ न कर पा रही है इसलिए उनको घाटी में हर दिन एक-एक कर मार देना जायज़ है? मैं उन लिबरलों से पूछना चाहती हूं कि क्यों नहीं आप और आप जैसे बाक़ी के लोग कश्मीर में हो रही हत्याओं के ख़िलाफ़, उन हत्यारों के ख़िलाफ़ बोल पाते हैं? किस बात से डरते हैं? कहीं ये तो नहीं लगता है कि मुस्लिम कट्टरपंथी नाराज़ हो जाएँगे तो दुकानदारी बंद हो जाएगी? आप हमेशा दूसरों पर कीचड़ उछालते हैं, कभी अपने दामन में लगे दाग को देखने की कोशिश क्यों नहीं करते हैं?

बड़े-बड़े लेखक/कथित इतिहासकार ऐसी मौतों के लिए धारा 370 के हटने को ज़िम्मेदार मानते हैं.

बताइए देश के किस राज्य में हिंदू इस तरह से हर तीसरे दिन किसी अल्प-संख्यक की जान ले रहा है? कितने राज्य ऐसे हैं जहां से हिंदू अमन पसंद लोगों को भागने पर मजबूर कर रहा है? मैं राहुल गांधी से कोई उम्मीद नहीं करूंगी, क्योंकि उनकी पार्टी मुस्लिम अपीजमेंट की पॉलिटिक्स करती आई है. वो अब भी वही करना चाहते हैं, ताकि मुसलमान वोट उन्हें मिलते रहें. खुद को कश्मीरी ब्राह्मण कहने वाले राहुल गांधी घाटी में हिंदुओं की हत्या पर मौन रहते हैं तो उनका स्वार्थ समझा जा सकता है. वे त्रिपुरा को लेकर ये तीखा ट्वीट करते हैं, तो उसका मकसद भी समझा जा सकता है...

लेकिन, वामपंथी-लिबरलों, खासकर इस विचारधारा के साथ पत्रकारिता करने वालों से पूछना चाहती हूं कि आप कहते हैं कि देश में डर का माहौल है तो क्या कश्मीर देश का हिस्सा नहीं है? क्या वहाँ मरने वाले भारत के लोग नहीं हैं? क्या उनका ख़ून यूँ ही बहना चाहिए? सरकार की नाकामी है इसलिए उन मजहबी कट्टरपंथियों का हिंदुओं की जान लेना जायज़ है? औरतों को धोखे से मारना जायज है? ईमान धर्म है या गिरवी रख आए हैं?

और कश्मीर को अपने बाप को जागीर समझने वाले बड़े-बड़े लेखक/कथित इतिहासकार ऐसी मौतों के लिए आप धारा 370 के हटने को ज़िम्मेदार मानते हैं. कभी उसी मुँह से ये क्यों नहीं बोल पाते कि किसी धर्म विशेष के लोगों की फितरत में ख़ून बहाना शामिल हो गया है. वो 1990 के पलायन को अपने हिसाब से सच-झूठ परोस रहे हैं, लेकिन ताजा घटनाओं पर चुप हैं. क्योंकि, यदि उनके मुंह से एक भी शब्द निकला तो 1990 को झूठ भी सामने आ जाएगा.

बडगाम में आतंकियों के हाथों मारे गए राहुल भट्ट की पत्नी मीनाक्षी कहती हैं कि घाटी में हिंदुओं को उनके काम करने वाली जगह पर ही मारा जा रहा है. किसी को सरकारी दफ्तर में तो किसी को स्कूल में. जिन्हें निशाना बनाया गया, उनके आसपास काम करने वालों को आतंकियों ने छुआ तक नहीं. मीनाक्षी की बातों पर गौर किया जाए, तो हालात 1990 से बिल्कुल अलग कतई नहीं हैं. अब कुछ लिबरल अमरीन का उदाहरण देंगे, कि वो तो मुसलमान थी. तो समझ लीजिये, उसके भी गैर-मुस्लिम बर्ताव के लिए ही मारा गया है. फिल्मी गानों पर डांस के वीडियो जो डालती थी. यानी खून के प्यासे आतंकियों को घाटी में इस्लाम के अलावा कुछ बर्दाश्त नहीं. और यहां दिल्ली में लीबिर-लीबिर करते कथित बुद्धिजीवी ये कहते नहीं थकेंगे कि आतंकियों का मजहब नहीं होता. देवबंद की तकरीरों में कश्मीर घाटी की हत्याओं का जिक्र नहीं होगा. हां, कश्मीर फाइल्स को मुसलमानों के खिलाफ प्रोपोगेंडा जरूर बताया जाएगा.

मैं क्षुब्ध हूँ. मोदी जी नाकाम हुए हैं लेकिन उनके साथ आप सब लिबरल भी इन हत्याओं के लिए ज़िम्मेदार हैं, क्योंकि सच बोलने की हिम्मत नहीं बची अब आप सब में भी. शेम! या कौन जाने, इन हत्यारों के साथ कल गलबहियां करते आप ही लोग नजर आएं. उन्हें कश्मीर का गांधीवादी ठहरा दें. उनकी आजादी के नारे तो पर्दे के पीछे से आप भी बुलंद करवाते रहे हैं. कायर कहीं के.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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