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वास्तु में दम हो तो कोर्ट के फैसले पर असर डालकर देखे

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 18 अक्टूबर, 2017 03:07 PM
  • 18 अक्टूबर, 2017 03:07 PM
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दक्षिण का कर्नाटक एक मामला अपनी तरह का अनूठा मामला है. एक ऐसा मामला जिसपर प्रत्येक देशवासी को गंभीरता से नजर रखनी चाहिए, ऐसा इसलिए क्योंकि अंधविश्वास विकास के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है.

सरसों या गन्ने के खेत के बगल में खड़ी दीवार पर लगे वशीकरण में माहिर बाबा बंगाली के विज्ञापन से लेकर लोकल केबल पर आने वाले मशहूर तांत्रिक रघुनन्दन जी महाराज तक सब इस देश के आम आदमी को अच्छे दिन दिखाते हैं. किसी के पास सौतन से छुटकारे का राज छिपा है तो कोई नौकरी में बरकत का नुस्खा अपनी तावीज में दबाए है. कहीं कोई निसंतान दम्पतियों के घर आँगन में बच्चों की लाइन लगवा रहा है तो कहीं कोई काले जादू और सिफ्ली इल्म में माहिर है. हिंदुस्तान आस्था का देश है और हम भारतीय बड़े भोले हैं. ये हमारा भोलापन ही है कि हमारे मुहल्ले की तीसरी गली के चौथे मकान में कब एक नया बाबा पैदा हो जाए और कब हम उसके फॉलोवर बन जाएं हमें पता ही नहीं लगता.

आज जिस तरह लोग अंधविश्वास का शिकार हो रहे हैं वो एक गहरी चिंता का विषय हैकह सकते हैं पूरा देश ढोंगी बाबाओं से पटा पड़ा है जो हमारी भोली भली भावना से खेल रहे हैं और गाहे बगाहे उसे आहत किये जा रहे हैं.ये हमारी बेवकूफी है या फिर नासमझी की हम अपनी मर्जी से इन बाबाओं के बिछाए जाल में फंस रहे हैं और जब हम उनके चंगुल में फंस जाते हैं तो उससे निकलने के लिए कानून और पुलिस का सहारा लेते हैं. शायद आपको ये बात ऐसे न समझ आए. इस बात को समझने के लिए आपको दक्षिण के कर्नाटक का रुख करना होगा.

खबर है कि कर्नाटक के एक व्यक्ति ने एक वास्तु कंपनी को बस इसलिए कोर्ट में घसीटा है क्योंकि वादे से इतर व्यक्ति को न ही मनचाहे परिणाम मिल पाए और न ही उसका बिगड़ा भाग्य ही संवर पाया. जी हां ये बात सुनने में थोड़ी हास्यादपद है मगर यही सच है. हुआ कुछ यूं है कि एक लीगल फर्म में काम करने वाले उत्तर कर्नाटक के महादेव दूडीहल ने उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम का सहारा लिया और एक वास्तु कम्पनी पर मुकदमा किया है.

दो साल पहले महादेव ने कंपनी को अपने घर का वास्तु दोष...

सरसों या गन्ने के खेत के बगल में खड़ी दीवार पर लगे वशीकरण में माहिर बाबा बंगाली के विज्ञापन से लेकर लोकल केबल पर आने वाले मशहूर तांत्रिक रघुनन्दन जी महाराज तक सब इस देश के आम आदमी को अच्छे दिन दिखाते हैं. किसी के पास सौतन से छुटकारे का राज छिपा है तो कोई नौकरी में बरकत का नुस्खा अपनी तावीज में दबाए है. कहीं कोई निसंतान दम्पतियों के घर आँगन में बच्चों की लाइन लगवा रहा है तो कहीं कोई काले जादू और सिफ्ली इल्म में माहिर है. हिंदुस्तान आस्था का देश है और हम भारतीय बड़े भोले हैं. ये हमारा भोलापन ही है कि हमारे मुहल्ले की तीसरी गली के चौथे मकान में कब एक नया बाबा पैदा हो जाए और कब हम उसके फॉलोवर बन जाएं हमें पता ही नहीं लगता.

आज जिस तरह लोग अंधविश्वास का शिकार हो रहे हैं वो एक गहरी चिंता का विषय हैकह सकते हैं पूरा देश ढोंगी बाबाओं से पटा पड़ा है जो हमारी भोली भली भावना से खेल रहे हैं और गाहे बगाहे उसे आहत किये जा रहे हैं.ये हमारी बेवकूफी है या फिर नासमझी की हम अपनी मर्जी से इन बाबाओं के बिछाए जाल में फंस रहे हैं और जब हम उनके चंगुल में फंस जाते हैं तो उससे निकलने के लिए कानून और पुलिस का सहारा लेते हैं. शायद आपको ये बात ऐसे न समझ आए. इस बात को समझने के लिए आपको दक्षिण के कर्नाटक का रुख करना होगा.

खबर है कि कर्नाटक के एक व्यक्ति ने एक वास्तु कंपनी को बस इसलिए कोर्ट में घसीटा है क्योंकि वादे से इतर व्यक्ति को न ही मनचाहे परिणाम मिल पाए और न ही उसका बिगड़ा भाग्य ही संवर पाया. जी हां ये बात सुनने में थोड़ी हास्यादपद है मगर यही सच है. हुआ कुछ यूं है कि एक लीगल फर्म में काम करने वाले उत्तर कर्नाटक के महादेव दूडीहल ने उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम का सहारा लिया और एक वास्तु कम्पनी पर मुकदमा किया है.

दो साल पहले महादेव ने कंपनी को अपने घर का वास्तु दोष दूर करने का सुझाव देने के लिए 11, 600 रुपए दिए थे. पैसा देने की वजह बस इतनी थी कि महादेव की तीनों बेटियों की शादी नहीं हो रही थी. साथ ही कंपनी ने उससे कहा था कि यदि वो अपने घर के वास्तु पर पैसा खर्च करते हैं तो उनकी परेशानी दूर होगी. कंपनी की बात मानकर महादेव ने अपने घर का वास्तु बदला और इसके लिए करीब 5 लाख रुपए खर्च किये.

कह सकते हैं कि धर्म का धंधा करने वालों को न कभी कानून का खौफ़ था न पुलिस का डरज्ञात हो कि इस कम्पनी के बारे में जानकारी महादेव को एक टीवी ऐड से हुई थी और वहीं से नंबर लेकर उन्होंने कम्पनी से संपर्क साधा था. बहरहाल न तो महादेव की बेटियों की शादी ही हुई न ही उनके अच्छे दिन आ सके और फिलहाल मामला कोर्ट में है और भुक्तभोगी को कानून की देवी से फैसले का इंतेजार है.

अंत में इतना ही कि भले ही आज हमारी अदालतों में लाखों मुकदमें लंबित पड़े हों मगर हमें इन्तेजार रहेगा इस मुकदमे का. इन्तेजार भी इसलिए क्योंकि हमें ये देखना है कि अदालत हमारी खुद की बेवकूफी को कैसे संज्ञान में लेती है और इस पर किस तरह का फैसला सुनाती है. साथ ही ये मामला और इस मामले पर आया फैसला इसलिए भी दिलचस्प रहेगा क्योंकि ये एक नजीर होगा. शायद ये फैसला उन लोगों को प्रभावित कर सके जो आज भी तमाम तरह के अंध विश्वासों और आडम्बरों में रहकर अपना जीवन खराब कर रहे हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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