• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

जंगलराज 2.0: थाना, अंचल, प्रखंड, बिहार में सब पर है माफिया की छाया

    • आशीष कुमार ‘अंशु’
    • Updated: 11 जनवरी, 2023 07:12 PM
  • 11 जनवरी, 2023 07:12 PM
offline
शराब माफिया की वजह से बिहार में शराब के नाम पर लोगों को जहर पीला दिया गया. जहर का कच्चा माल स्थानीय थाने से ही उपलब्ध कराया गया लेकिन कार्रवाई के नाम पर ''जो पीएगा वो मरेगा'' वाला सीएम साहब का चर्चित बयान सामने आया है.

बिहार में विकास चाहे रिवर्स गियर पर है लेकिन यहां माफिया कारटेल बनाकर जिस गति से काम कर रहे हैं. उनकी पकड़ सरकार और प्रशासन पर कितनी मजबूत है, इसका प्रमाण प्रदेश सरकार में शामिल नेताओं के बयान और कार्रवाई से स्पष्ट होती है. जब बिहार के सरकार में कृषि मंत्री रहे सुधाकर सिंह ने कहा कि हमारे विभाग में कई चोर लोग हैं और हम उन चोरों के सरदार हैं, हमारे ऊपर भी और कई सरदार मौजूद हैं.

मंत्रीजी की इस साफगोई के बाद नीतीश सरकार उन्हें साथ लेकर कृषि विभाग में भ्रष्टाचार को खत्म करने का कोई अभियान चला सकती थी लेकिन उन्होंने मंत्री को उनके पद से बर्खाश्त कर दिया. शराब माफिया की वजह से बिहार में शराब के नाम पर लोगों को जहर पीला दिया गया. जहर का कच्चा माल स्थानीय थाने से ही उपलब्ध कराया गया लेकिन कार्रवाई के नाम पर ''जो पीएगा वो मरेगा'' वाला सीएम साहब का चर्चित बयान सामने आया.

जब शिक्षा माफिया बिहार स्टाफ सेलेक्शन कमिशन की परीक्षा का पेपर लीक किया तो बिहार सरकार ने माफियाओं पर कार्रवाई के आश्वासन की जगह, प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर जनवरी की इस ठंड में लाठी चार्ज कराया. इतना ही नहीं छात्रों पर एफआईआर और उनकी गिरफ्तारी तक हुई. इस सारे घटनाक्रम पर जदयू के वरिष्ठ नेता ललन सिंह ने कहा, ''पहली बार हुई है क्या लाठीचार्ज. ये सब तो होते ही रहता है. इसका क्या मतलब है? प्रदेश में पहली बार लाठी चार्ज हुई है तो बात हो न.''

बिहार में भ्रष्टाचार अब किसी बीमारी का नाम नहीं रहा. प्रदेश को मानो भ्रष्टाचार की लत लग गई है. इसका परिणाम है कि पीड़ित और अपराधी दोनों को इससे फर्क पड़ना बंद हो गया है. पिछले दिनों बक्सर के सूचना अधिकार कार्यकर्ता शिवप्रकाश राय ने बिहार के सभी पंचायतों के पांच साल का लेखा जोखा मंगाया. हैरानी की बात है कि सरकार से प्राप्त राशि और पंचायत में हुए खर्च को...

बिहार में विकास चाहे रिवर्स गियर पर है लेकिन यहां माफिया कारटेल बनाकर जिस गति से काम कर रहे हैं. उनकी पकड़ सरकार और प्रशासन पर कितनी मजबूत है, इसका प्रमाण प्रदेश सरकार में शामिल नेताओं के बयान और कार्रवाई से स्पष्ट होती है. जब बिहार के सरकार में कृषि मंत्री रहे सुधाकर सिंह ने कहा कि हमारे विभाग में कई चोर लोग हैं और हम उन चोरों के सरदार हैं, हमारे ऊपर भी और कई सरदार मौजूद हैं.

मंत्रीजी की इस साफगोई के बाद नीतीश सरकार उन्हें साथ लेकर कृषि विभाग में भ्रष्टाचार को खत्म करने का कोई अभियान चला सकती थी लेकिन उन्होंने मंत्री को उनके पद से बर्खाश्त कर दिया. शराब माफिया की वजह से बिहार में शराब के नाम पर लोगों को जहर पीला दिया गया. जहर का कच्चा माल स्थानीय थाने से ही उपलब्ध कराया गया लेकिन कार्रवाई के नाम पर ''जो पीएगा वो मरेगा'' वाला सीएम साहब का चर्चित बयान सामने आया.

जब शिक्षा माफिया बिहार स्टाफ सेलेक्शन कमिशन की परीक्षा का पेपर लीक किया तो बिहार सरकार ने माफियाओं पर कार्रवाई के आश्वासन की जगह, प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर जनवरी की इस ठंड में लाठी चार्ज कराया. इतना ही नहीं छात्रों पर एफआईआर और उनकी गिरफ्तारी तक हुई. इस सारे घटनाक्रम पर जदयू के वरिष्ठ नेता ललन सिंह ने कहा, ''पहली बार हुई है क्या लाठीचार्ज. ये सब तो होते ही रहता है. इसका क्या मतलब है? प्रदेश में पहली बार लाठी चार्ज हुई है तो बात हो न.''

बिहार में भ्रष्टाचार अब किसी बीमारी का नाम नहीं रहा. प्रदेश को मानो भ्रष्टाचार की लत लग गई है. इसका परिणाम है कि पीड़ित और अपराधी दोनों को इससे फर्क पड़ना बंद हो गया है. पिछले दिनों बक्सर के सूचना अधिकार कार्यकर्ता शिवप्रकाश राय ने बिहार के सभी पंचायतों के पांच साल का लेखा जोखा मंगाया. हैरानी की बात है कि सरकार से प्राप्त राशि और पंचायत में हुए खर्च को लेकर जिन जिन पंचायतों में उन्होंने जाकर निरीक्षण किया, एक भी पंचायत उन्हें नहीं मिला जिसने ईमानदारी से सरकार का पैसा खर्च किया हो. पंचायत के कुछ मुखियाओं से बात करने पर जवाब मिला कि यहां प्रखंड विकास पदाधिकारी को खुश किए बिना कोई काम नहीं होता. उन्हें पैसा क्या अपनी जेब से दें? जो पैसा नहीं देगा, उनका पैसा प्रखंड में फंस जाता है.

यदि कोई इस चेन पर विस्तार से काम करे तो बात सरकार के किसी ना किसी मंत्री तक पहुंच जाएगी. जब बिहार में चल रहे हर एक अपराध के पीछे सरकार का ही कोई ना कोई मुलाजिम हिस्सा है फिर कार्रवाई की उम्मीद से किससे की जाए? बिहार में बहार नहीं, भ्रष्टाचार है और नीतीशे कुमार है. ना स्कूल है और ना अस्पताल है. खर्च जाति के सर्वेक्षण पर हो रहा है और बिहार में गरीब परिवारों के पास रोटी का ठीकाना नहीं है. रोजगार के लिए दिल्ली मुम्बई जाइए और जात बताने के लिए बिहार आइए. यही बिहार की राजनीति रह गई है.

बिहार में अभी भी 90 प्रतिशत आबादी ग्रामीण अथवा शहर से बाहर रहती है. यहां शहरी क्षेत्रों के विकास की गति बहुत धीमी है. संस्थागत तरीके से अपराधीकरण को इतना बढ़ावा मिला कि नए उद्योग धंधों के लिए संभावना ही नहीं बन पाई. यहां कारोबार चलाने वालों के पीछे किसी अपराधी या नेता का हाथ होना जरूरी है. या कारोबारी खुद ही कोई बाहुबली हो. होटल और ट्रांसपोर्ट के पूरे कारोबार में ऐसे ही लोग भरे हुए हैं.

भू माफियाओं का धंधा भी जोरों पर है. गुंडे जमीन कब्जा करते हैं. थाना रिपोर्ट नहीं लिखता. सीओ कोर्ट में जाने को कहता है. दलाल औने पौने दाम में जमीन बेचकर पीड़ित को मुसीबत से बचने का रास्ता दिखाता है. यही चल रहा है बिहार में. पीड़ित कोर्ट भी चला जाए तो पच्चीस तीस साल से पहले फैसला नहीं आना. जमीन कब्जा करने के धंधे में सीओ, थाना, दलाल, भू माफिया सबका फायदा है. बिना राजनीतिक संरक्षण के यह संगठित अपराध पूरे बिहार में कैसे फल फूल सकता है? बिहार में जमीन विवाद से जुड़े जितने मामले दर्ज होते हैं, उससे भी अधिक वे मामले हैं जिसमें पीड़ित ने माफिया के सामने घुटने टेक दिए और वह मामला कभी प्रकाश में भी नहीं आया.

बिहार में धारा 107, धारा 144 लगाए जाने का चलन है. यह धारा मानों बिहार पुलिस के लिए वरदान की तरह है. इनके लगाए जाने से आम आदमी के आर्थिक दोहन से अधिक कोई लाभ नहीं दिखता है. इसका फायदा बिहार के वकीलों को मिल जाता है. देखा गया है कि पीड़ित जब अपनी शिकायत लेकर थाने में जाता है, थाना प्रभारी सच्चाई से अवगत होते हुए भी. झट से 107 लगा देता है. इसका सीधा सा मतलब है कि किसी भी मामले में एक अपराधी है और दूसरा पीड़ित. थाना प्रभारी अपनी जान बचाने के लिए दोनों पर कार्रवाई करता है. यह कैसा न्याय है?

इस पूरे मामले का सबसे दुखद पहलू यह है कि दलाल किस्म के लोगों का पूरा दिन ही थाने और कचहरी में बितता है लेकिन कोई गरीब पीड़ित इस चक्रव्यूह में फंस गया तो उसे अपनी दिहाड़ी की मजदूरी छोड़कर थाने और कचहरी के चक्कर लगाने पड़ते हैं. इस बात को पुलिस और दलाल दोनों ही जानते हैं कि मजबूर आदमी थक जाएगा और एक दिन माफिया के सामने घुटने टेक देगा. जमीन से जुड़े मुकदमें न्यायालयों में अनियमित समय तक के लिए चलते हैं और जमीन कब्जा करने वालों को इसमें कोई बड़ी सजा हुई हो. इसका भी बिहार में कोई इतिहास नहीं मिलता.

क्या हम बिहार की सरकार से उम्मीद कर सकते हैं कि वह माफियाओं को जिन कानूनों का लाभ मिल रहा है. बिहार में उनकी फिर से व्याख्या की जाए. जिससे प्रशासनिक पदाधिकारी, थाना, कचहरी में बैठे लोग आम आदमी के मजबूरी का फायदा ना उठा सके. बिहार से दलालों का राज खत्म हो और कानून—न्याय व्यवस्था पर आम आदमी का विश्वास फिर से कायम हो.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲