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तीन तलाक पर बोलने वाले नेता मुस्लिम महिलाओं के गैंगरेप पर क्‍यों चुप थे

    • आईचौक
    • Updated: 12 नवम्बर, 2016 11:16 PM
  • 12 नवम्बर, 2016 11:16 PM
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बैंक की लाइन में खड़े लोग आज अगर साहित्य आजतक की लाइन के बहार खड़े होते तो शायद खुद को तृप्त समझते.

बैंक की लाइन में खड़े लोग आज अगर साहित्य आजतक की लाइन में खड़े होते तो शायद खुद को तृप्त समझते.

अंदर जावेद अख्तर बैठकर लोगों से मुखातिब हैं, और बाहर लोग लंबे लंबे क़दमों से अंदर जाने को बेचैन. देखते ही देखते हॉल भर गया, लेकिन वक्त किसी के लिए नहीं रुकता, जावेद अख्तर अपने विचार व्यक्त करने लगे थे. जो लोग सोच रहे थे की अपने समय पर कहाँ कोई कार्यक्रम शुरू होता है. ऐसे लोग कभी-कभी धोखा खा जाते हैं, यहाँ सब वक़्त पर था. और मुझे आखिर में जगह मिली.

यहाँ आकर ये भी पता चला कि साहित्य प्रेमी सिर्फ कुर्ता जीन्स पहनने वाले ही नहीं, स्कूल की यूनिफार्म पहनने वाले बच्चे भी हैं, मेरे साथ स्कूल के कुछ बच्चे बैठे हैं. शायद स्कूल बंक करके आये हैं. कुछ संजीदा हैं, कुछ दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन सब का एक ही लक्ष्य है, साहित्य के नए मायने जानने हैं.

जावेद अख्‍तर साहित्‍य आजतक में

जावेद साहब अपनी संजीदगी के लिए मशहूर हैं, लेकिन अपने चुटीले अंदाज़ से उन्होंने दर्शको को बांधे रखा.

जावेद अख्‍तर का कहना है कि लोगों की समस्याओं पर राजनेता न बोले और दूसरे बोलें तो ही अच्छा है. मुस्लिम बहनों के तीन तलाक पर इनके दिल में दर्द है, तब इनके दिलों में दर्द क्यों नहीं हुआ जब मुस्लिम बहनों का गैंग रेप हुआ था. तब तो परवाह नहीं की, तब कुछ नहीं बोले. अब तीन तलाक़ पर इनका दिल दुखता है. ये राजनेता सही बात गलत नीयत से करते हैं.

देश बदल रहा है, पर जावेद साहब मज़ाकिया लहज़े में कहते हैं कि 'देश को बदलने की कोशिश की जा रही है, पर मैं भरोसा करता हूं अपने देश पर की ये नहीं बदलेगा'.

उनकी चर्चित शायरी 'शतरंज' के बारे में जब उनसे...

बैंक की लाइन में खड़े लोग आज अगर साहित्य आजतक की लाइन में खड़े होते तो शायद खुद को तृप्त समझते.

अंदर जावेद अख्तर बैठकर लोगों से मुखातिब हैं, और बाहर लोग लंबे लंबे क़दमों से अंदर जाने को बेचैन. देखते ही देखते हॉल भर गया, लेकिन वक्त किसी के लिए नहीं रुकता, जावेद अख्तर अपने विचार व्यक्त करने लगे थे. जो लोग सोच रहे थे की अपने समय पर कहाँ कोई कार्यक्रम शुरू होता है. ऐसे लोग कभी-कभी धोखा खा जाते हैं, यहाँ सब वक़्त पर था. और मुझे आखिर में जगह मिली.

यहाँ आकर ये भी पता चला कि साहित्य प्रेमी सिर्फ कुर्ता जीन्स पहनने वाले ही नहीं, स्कूल की यूनिफार्म पहनने वाले बच्चे भी हैं, मेरे साथ स्कूल के कुछ बच्चे बैठे हैं. शायद स्कूल बंक करके आये हैं. कुछ संजीदा हैं, कुछ दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन सब का एक ही लक्ष्य है, साहित्य के नए मायने जानने हैं.

जावेद अख्‍तर साहित्‍य आजतक में

जावेद साहब अपनी संजीदगी के लिए मशहूर हैं, लेकिन अपने चुटीले अंदाज़ से उन्होंने दर्शको को बांधे रखा.

जावेद अख्‍तर का कहना है कि लोगों की समस्याओं पर राजनेता न बोले और दूसरे बोलें तो ही अच्छा है. मुस्लिम बहनों के तीन तलाक पर इनके दिल में दर्द है, तब इनके दिलों में दर्द क्यों नहीं हुआ जब मुस्लिम बहनों का गैंग रेप हुआ था. तब तो परवाह नहीं की, तब कुछ नहीं बोले. अब तीन तलाक़ पर इनका दिल दुखता है. ये राजनेता सही बात गलत नीयत से करते हैं.

देश बदल रहा है, पर जावेद साहब मज़ाकिया लहज़े में कहते हैं कि 'देश को बदलने की कोशिश की जा रही है, पर मैं भरोसा करता हूं अपने देश पर की ये नहीं बदलेगा'.

उनकी चर्चित शायरी 'शतरंज' के बारे में जब उनसे पूछा गया कि इसमें 'बादशाह' कौन हैं तो उन्होंने एक गहरी बात कही कि अगर ये बता देंगे की बादशाह कौन है तो ये जर्नलिज्म हो जायेगा शायरी नहीं.

शायरी क्या है इस पर उनका मानना है कि Poetry is a dream of language.

शायरी सुनाने के बाद अगर सुनने वाला उसका मतलब पूछे तो इसपर उन्होंने एक और बात समझाई कि 'शायर से मत पूछिए कि क्या मतलब है, वर्ना ये कविता में कमी है.' मतलब ये कि कविता या शायरी तभी मुकम्मल है जब उसके मायने समझ में आ जाएं. अगर सामने वाले को समझ नहीं आई तो ये कविता की कमी है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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