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एक गांव जहां लोगों का अकेलापन गुड़िया दूर करती है

    • आईचौक
    • Updated: 28 अप्रिल, 2019 03:55 PM
  • 28 अप्रिल, 2019 03:53 PM
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जापान में एक ऐसा गांव है जहां एक इंसान के बदले कम से कम 10 इंसनी शक्ल की गुड़िया हैं. ये गुड़िया गली, चौराहे, स्कूल, नदी, किराना दुकान सब जगह दिखेंगी.

जापान के बारे में सोचकर आपको सबसे पहले क्या याद आता है? बुलेट ट्रेन? वेंडिंग मशीन? तकनीक? जापान को हमेशा से ही भविष्य का देश कहा जाता है, उसका एक सीधा सा कारण है कि एशिया में जो तकनीक जापान इस्तेमाल करता है वो कोई अन्य देश नहीं करता. वेंडिंग मशीन से लेकर बुलेट ट्रेन और स्मार्ट पब्लिक टॉयलेट तक जापान में सब कुछ है, लेकिन एक और सच्चाई है जापान की जिसे चकाचौंध छुपा जाती है. वो है जापान की बूढ़ी होती आबादी और खाली होते गांव. जापान की आबादी तेज़ी से बूढ़ी हो रही है और यहां तक कि कई गांव ऐसे हैं जहां सिर्फ गिनती के इंसान बचे हैं.

जापान के सुदूर इलाकों में तो हालात बहुत खराब हैं जहां कई गांवों में सिर्फ बुजुर्ग ही बचे हैं और वो भी तेज़ी से कम हो रहे हैं. ऐसा ही एक गांव है नगोरो (Nagoro). इस गांव में लोगों की संख्या अब सिर्फ 27 रह गई है. जी हां, 27 लोग, लेकिन अगर इस गांव में कोई आकर देखेगा तो उसे सिर्फ खाली घर नहीं दिखेंगे. उसे दिखेंगी कई सारी गुड़िया. जापान के इस पहाड़ी गांव में पहले 300 लोग रहते थे अब उनकी जगह कई सारी गुड़िया ने ले ली है.

इस इलाके में हर गली-नुक्कड़ में इसी तरह से गुड़िया मिल जाएंगी

अकेलापन दूर करने के लिए किया गया था एक्सपेरिमेंट-

सुकिमी अयानो (Tsukimi Ayano) नगोरो में रहती हैं. उनके परिवार ने वो इलाका बहुत पहले छोड़ दिया था, लेकिन जब सुकिमी के पिता अकेले रह गए तो सुकिमी वापस वहां आ गईं. सड़कें खाली, घर खाली, पड़ोस खाली ऐसे में अकेलापन दूर करने के लिए सुकिमी ने एक स्केयरक्रो (बिजूका) बनाया. उसे पिता के कपड़े पहनाकर खेत में खड़ा कर दिया. ये सिर्फ मस्ती के लिए किया गया एक्सपेरिमेंट था और उस बिजूका को देखकर एक मजदूर ने समझा कि सुकिमी के पिता ही खड़े हैं.

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जापान के सुदूर इलाकों में तो हालात बहुत खराब हैं जहां कई गांवों में सिर्फ बुजुर्ग ही बचे हैं और वो भी तेज़ी से कम हो रहे हैं. ऐसा ही एक गांव है नगोरो (Nagoro). इस गांव में लोगों की संख्या अब सिर्फ 27 रह गई है. जी हां, 27 लोग, लेकिन अगर इस गांव में कोई आकर देखेगा तो उसे सिर्फ खाली घर नहीं दिखेंगे. उसे दिखेंगी कई सारी गुड़िया. जापान के इस पहाड़ी गांव में पहले 300 लोग रहते थे अब उनकी जगह कई सारी गुड़िया ने ले ली है.

इस इलाके में हर गली-नुक्कड़ में इसी तरह से गुड़िया मिल जाएंगी

अकेलापन दूर करने के लिए किया गया था एक्सपेरिमेंट-

सुकिमी अयानो (Tsukimi Ayano) नगोरो में रहती हैं. उनके परिवार ने वो इलाका बहुत पहले छोड़ दिया था, लेकिन जब सुकिमी के पिता अकेले रह गए तो सुकिमी वापस वहां आ गईं. सड़कें खाली, घर खाली, पड़ोस खाली ऐसे में अकेलापन दूर करने के लिए सुकिमी ने एक स्केयरक्रो (बिजूका) बनाया. उसे पिता के कपड़े पहनाकर खेत में खड़ा कर दिया. ये सिर्फ मस्ती के लिए किया गया एक्सपेरिमेंट था और उस बिजूका को देखकर एक मजदूर ने समझा कि सुकिमी के पिता ही खड़े हैं.

अपनी गुड़िया के साथ नाचती सुकिमी

इसके बाद एक-एक करके ऐसे कई बिजूका बन गए और अब 27 लोगों के गांव में 300 से ज्यादा बिजूका हैं. ये अब नगोरो गांव का अकेलापन दूर करते हैं. लोग अपनी पसंद के बिजूका बनवाकर अपने घरों में, आंगन में, सड़कों पर, खेतों में खड़े कर देते हैं. इतना ही नहीं, यहां तो कई लोगों ने अपने पसंद के इंसानों की तरह ही इनके साथ बर्ताव करना शुरू कर दिया है.

स्कूल में बच्चों की जगह गुड़िया-

इस गांव में सिर्फ 1 ही स्कूल हुआ करता था जो 2012 में बंद हो गया. अब यहां बड़े-बड़े क्लासरूम हैं और उन क्लासरूम में बैठे हुए हैं बजूका. इस स्कूल के आखिरी दो स्टूडेंट्स ने अपनी ही शक्ल के बिजूका क्लास में बैठाए हैं और बाकी बस अन्य बच्चों की शक्ल के हैं. इतना ही नहीं, एक टीचर जैसी गुड़िया भी है जो क्लास को पढ़ाती हुई दिखती है.

ये है नगोरो का क्लासरूम.

यहां तक कि टेलिफोन पोल के नीचे गपशप करते तीन बिजूका, नदी किनारे मछली पकड़ता बिजूका, बस स्टैंड पर बैठे बिजूका, किराने की दुकान में, सड़क किनारे खड़े बिजूका सब दिख जाएंगे. ये गांव अब टूरिस्ट को लुभाने का काम करता है. पर अगर किसी को बिजूका से डर लगता है तो यहां न ही आए.

इस गांव को गुड़िया का गांव बनाने में 16 साल लग गए. सुकिमी इन बिजूका को बनाने के लिए लड़की, अखबार, इलास्टिक कपड़ों का इस्तेमाल करती हैं. उन्हें ज्यादा इंसानों की तरह दिखाने के लिए उनके होठों पर गुलाबी रंग लगाया जाता है, गालों पर मेकअप किया जाता है, कपड़े पहनाए जाते हैं.

इस गांव का सबसे जवान इंसान भी 55 साल का है और वो हर बार एक नई गुड़िया इसी आशा से बनाती हैं ताकि लोगों को याद रहे कि ये गांव एक समय कितना जिंदादिल था. सुकिमी को एक गुड़िया बनाने में तीन दिन लगते हैं और वो ये काम हमेशा करना चाहती हैं ताकि नगोरो में हमेशा चहल-पहल दिखती रहे.

क्या नगोरो कभी वापस फल-फूल पाएगा?

दरअसल, नगोरो को नगोरो डैम के कारण बसाया गया था जो हाइड्रल पावर प्रोजेक्ट का हिस्सा था. ये डैम 1961 में बन गया था. सुकिमी बताती हैं कि जब वो बच्ची थीं तब इस इलाके में 300 लोग रहते थे. अब ये इलाका खाली हो गया है. उस समय यहां मजदूर, जंगल में काम करने वाले, डैम बनाने वाले इंजीनियर सब रहते थे.

धीरे-धीरे करके लोग यहां से जाने लगे और ये इलाका एकदम खाली हो गया. नगोरो जापान का अकेला ऐसा इलाका नहीं है जहां ये हालात हैं. जापान जो दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है वहां बर्थ रेट काफी कम है, और यहां दुनिया में सबसे ज्यादा जीने वाले इंसान रहते हैं. इस तरह से जापान की अधिकतर आबादी अब बूढ़ी हो चली है.

सुकिमी कहती हैं कि वो इस गांव को पहले की तरह जिंदादिल देखना चाहती हैं, वो हमेशा गुड़िया बनाती रहेंगी.

जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने जापान के ऐसे इलाकों को सुधारने के लिए कई बिलियन येन खर्च करने की प्लानिंग भी की है. ताकुमी फुजीनामी जो जापान रिसर्च इंस्टिट्यूट की अर्थशास्त्री हैं उनका कहना है कि जापान की गिरती जनसंख्या को सुधारने के लिए लोगों को ऐसे इलाकों में जाकर रहना होगा, लेकिन ऐसा बहुत मुश्किल है. ऐसे में ये जरूरी है कि ऐसे इलाकों में जो बचे हुए लोग हैं उनके लिए अच्छे रोज़गार के अवसर पैदा किए जाएं. एक सरकारी रिपोर्ट कहती है कि जापान की 27.7 प्रतिशत आबादी यानी 127 मिलियन का 27 प्रतिशत यानी हर 4 में से 1 इंचान 65 साल या उससे ऊपर की उम्र का है और ये आंकड़ा 2050 तक 37.7 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा.

एक्सपर्ट्स का मानना है कि जापान की 1700 मुनसिपालिटी में से 40% में लोगों की कमी है.

नगोरो को तो फिर भी अब दुनिया जानने लगी है, लेकिन जापान में अकेलेपन से जूझ रहे ऐसे कई गांव हैं जहां की आबादी बूढ़ी है और लोगों के पास बात करने वाले भी नहीं बचे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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