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समाज

मर्द नहीं इंसान भी हैं आप, ख़ुशियों में दिल खोल कर मुस्कुरा लें और दर्द में रो लें

    • अनु रॉय
    • Updated: 19 नवम्बर, 2020 02:56 PM
  • 19 नवम्बर, 2020 02:56 PM
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International Men’s Day पर हमें उन तमाम लड़कों और पुरुषों का शुक्रिया कहना चाहिए जिन्होंने जिंदगी की जटिल राहों में कभी न कभी हमारी मदद की और बताया कि हर अंजान पुरुष बुरा हरगिज़ नहीं होता.

गुज़रता हुआ यह पल International Men’s Day के आख़िर का हिस्सा है. इस गुज़रते आख़िरी पलों में मैं सबसे पहले शुक्रिया उन अजनबी लड़कों का कहना चाहतीं हूं, जिन्होंने किसी भी बुरे वक़्त में मेरा साथ दिया बिना किसी स्वार्थ के. चाहे वो कोचिंग से वापिसी के दौरान, साइकिल की चेन में मेरे दुपट्टा का उलझ जाना हो और किसी अजनबी का रुककर मेरे दुपट्टे को उस चेन से आज़ाद करवा देना रहा हो. या किसी धुंध वाली जाड़े की सुबह को अखाड़ाघाट पुल पर मेरे साइकिल का पंक्चर हो जाना और फिर किसी का रुक, मेरी साइकिल को ठीक होने के लिए दुकान तक पहुँचा देने की गयी मदद रही हो. किसी दिन ट्रैफ़िक में फंसने के दौरान किसी अंकल का बांहों का अहाता बना, उस भीड़ को पार करवा देना रहा हो.

हर बार एक न एक अजनबी पुरुष ने बिना किसी स्वार्थ मदद की है. उन सारी मदद के लिए शुक्रिया. आपलोगों के होने से इस दुनिया की ख़ूबसूरती बरक़रार है. नहीं ऐसा बिलकुल भी नहीं कि सभी पुरुष बलात्कारी या धोखेबाज़ होते हैं और सभी के सभी पर्फ़ेक्ट्ली अच्छे. बिलकुल वैसे ही जैसे सभी स्त्रियां बुरी नहीं होती और सभी की सभी दूध की धुलीं भी नहीं होती.

पुरुष दिवस पर आए सभी पुरुषों का शुक्रिया

मैं जानती हूं कि आपको भी धोखा मिलता है रिश्तों में, प्रेम में. आप पर भी लगाए जाते हैं झूठे आक्षेप. आप को भी बेवजह किया जाता है कठघरे में खड़ा. उस पर से आपको तो बचपन से सीखाया जाता है कि मर्द को दर्द नहीं होता. मर्द रोते नहीं. हर बात पर रिएक्ट मत करो. मर्द बनों. लेकिन कैसा मर्द? ये आपको कोई नहीं बतलाता. आपको वही सदियों पुराने रास्ते पर छोड़ दिया जाता भटकने के लिए. आपको तराशने की कोशिश ही नहीं की जाती.

फिर भला हम कैसे उम्मीद पाल लेते हैं आपसे पर्फ़ेक्शन की! जानते...

गुज़रता हुआ यह पल International Men’s Day के आख़िर का हिस्सा है. इस गुज़रते आख़िरी पलों में मैं सबसे पहले शुक्रिया उन अजनबी लड़कों का कहना चाहतीं हूं, जिन्होंने किसी भी बुरे वक़्त में मेरा साथ दिया बिना किसी स्वार्थ के. चाहे वो कोचिंग से वापिसी के दौरान, साइकिल की चेन में मेरे दुपट्टा का उलझ जाना हो और किसी अजनबी का रुककर मेरे दुपट्टे को उस चेन से आज़ाद करवा देना रहा हो. या किसी धुंध वाली जाड़े की सुबह को अखाड़ाघाट पुल पर मेरे साइकिल का पंक्चर हो जाना और फिर किसी का रुक, मेरी साइकिल को ठीक होने के लिए दुकान तक पहुँचा देने की गयी मदद रही हो. किसी दिन ट्रैफ़िक में फंसने के दौरान किसी अंकल का बांहों का अहाता बना, उस भीड़ को पार करवा देना रहा हो.

हर बार एक न एक अजनबी पुरुष ने बिना किसी स्वार्थ मदद की है. उन सारी मदद के लिए शुक्रिया. आपलोगों के होने से इस दुनिया की ख़ूबसूरती बरक़रार है. नहीं ऐसा बिलकुल भी नहीं कि सभी पुरुष बलात्कारी या धोखेबाज़ होते हैं और सभी के सभी पर्फ़ेक्ट्ली अच्छे. बिलकुल वैसे ही जैसे सभी स्त्रियां बुरी नहीं होती और सभी की सभी दूध की धुलीं भी नहीं होती.

पुरुष दिवस पर आए सभी पुरुषों का शुक्रिया

मैं जानती हूं कि आपको भी धोखा मिलता है रिश्तों में, प्रेम में. आप पर भी लगाए जाते हैं झूठे आक्षेप. आप को भी बेवजह किया जाता है कठघरे में खड़ा. उस पर से आपको तो बचपन से सीखाया जाता है कि मर्द को दर्द नहीं होता. मर्द रोते नहीं. हर बात पर रिएक्ट मत करो. मर्द बनों. लेकिन कैसा मर्द? ये आपको कोई नहीं बतलाता. आपको वही सदियों पुराने रास्ते पर छोड़ दिया जाता भटकने के लिए. आपको तराशने की कोशिश ही नहीं की जाती.

फिर भला हम कैसे उम्मीद पाल लेते हैं आपसे पर्फ़ेक्शन की! जानते हैं, आपको भी रोने का पूरा हक़ है. दुःखी होने पर मां की छाती से सिर टिका उन्हें दुःख कह देने हक़ है. दिल जो टूटे तो देर रात बहन के पास बैठ, दिल का हाल बयान कर देने का हक़ है. इतना ही नहीं कभी कोई आप पर हाथ उठाए तो ये सोच कर चुप रह जाना ग़लत है कि, 'मर्द हूं. मुझ पर अगर औरत ने हाथ उठाया है और ये बात अगर बाहर आ गयी तो मेरी मर्दाँगी पर सवाल उठेंगे.'

किसी भी जेंडर के लिए हिंसा सहना उतना ही ग़लत है जितना की करना. और हां, आपको भी डिप्रेशन होता होगा. एंग्जाटी होती होगी तो अपने जीवन साथी, अपनी प्रेयसी से शेयर करना, उनसे मदद मांगना आपको कम मर्द नहीं बनाता. शायद आप जानते भी होंगे फिर भी बता रही हूं, दुनिया में 45 साल से कम उम्र में पुरूष ही सबसे ज़्यादा आत्महत्या करते हैं. वजह भी साफ है

आपका पुरुष होना ही. हां न. क्योंकि पुरुषों को दुःखी होने का हक़ नहीं होता. न ही रोने का. हर बात को सहते हुए ज़िंदगी की लड़ाई को जीतने का प्रेशर होता है न, इसीलिए! तो प्लीज़ यूं ख़ुद को किसी भी प्रेशर में मत डालिए. पुरुष से पहले इंसान बनिए. ऐसा इंसान जो दुःख में ज़ोर-ज़ोर से लिपट कर रो ले किसी से. जो दर्द से कराह उठे. जो खुल कर हंसे. जो ज़िंदगी को जीए. कहना तो और भी बहुत कुछ. फ़िलहाल के लिए बस इतना ही. आप सभी के खुशियां भेज रही हूं. मुस्कुराइएगा. मुस्कुराते लड़के प्यारे लगते हैं. क़सम से.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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