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समाज

Men's day पर सुनो, मर्द को दर्द भी होता है!

    • प्रीति अज्ञात
    • Updated: 20 नवम्बर, 2019 10:46 AM
  • 19 नवम्बर, 2019 11:09 PM
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स्त्रियों को चाहिए कि वे पुरुष को अपनी हर समस्या का 'समाधान केंद्र' न समझें. आपकी समस्याओं और रोज के बुलेटिन में उलझ वे अपना ग़म बांट ही नहीं पाते कभी. दर्द उन्हें भी होता है, डर उन्हें भी लगता है पर आपकी रोज की हाहाकार ने उन्हें सुपरमैन, बैटमैन और चाचा चौधरी बना डाला है.

ये तो हम जानते ही हैं कि 19 नवंबर को 'अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस' (International men's day) के रुप में विश्वभर में मनाया जाता है. इस विशिष्ट दिवस की संकल्पना पुरुषों के साथ होने वाली असमानता, हिंसा, उत्पीड़न, और शोषण को रोकने के लिए तथा उन्हें समान सामाजिक अधिकार दिलाने के उद्देश्य से की गई थी. प्रत्येक वर्ष इसकी थीम अलग होती है. इस बार है - "Making a difference for Men and Boys."

चूंकि 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' कई वर्षों से चला आ रहा था अतः लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए इस दिवस की मांग उठी थी. अवसाद के मामलों में वृद्धि देखते हुए भारत में 2007 में पहला 'मानसिक स्वास्थ्य कानून' बना तथा इस दिवस को मनाना भी 2007 से ही प्रारम्भ हुआ.

NESCO द्वारा सहयोग प्राप्त इस दिवस को मनाने के मूल में यह है कि घर, परिवार और समाज में उनके सकारात्मक सहयोग को सराहा जाए. उनके भावनात्मक पक्ष पर ध्यान दिया जाए तथा उनकी स्वास्थ्य संबंधी एवं मानसिक परेशानियों पर भी चर्चा हो.

 घर, परिवार और समाज में पुरुषों के सकारात्मक सहयोग को सराहा जाए

स्पष्ट है कि हम हर कार्य की अपेक्षा सरकार से नहीं कर सकते हैं और जब यह पारिवारिक स्तर पर प्रारम्भ हो तभी एक स्वस्थ, संतुलित और ऊर्जावान समाज की सोच सार्थक होगी.

हम अपना सहयोग निम्न प्रकार से दे सकते हैं-

* मांओं को चाहिए कि वे अपने बेटे को रोते हुए देख कभी ये न कहें कि "अरे! लड़का होकर रोता है!" रोने दीजिये उसे. ऐसे ही भावनाएं निकलती हैं और दुःख बह जाता है. हमें उन्हें पाषाण एवं संवेदनहीन नहीं बनाना है कि वे किसी का दर्द समझ ही न सकें कभी.

* घर के कार्यों में भी पूरा सहयोग लें. जिससे बाद में बाहर जाएं तो...

ये तो हम जानते ही हैं कि 19 नवंबर को 'अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस' (International men's day) के रुप में विश्वभर में मनाया जाता है. इस विशिष्ट दिवस की संकल्पना पुरुषों के साथ होने वाली असमानता, हिंसा, उत्पीड़न, और शोषण को रोकने के लिए तथा उन्हें समान सामाजिक अधिकार दिलाने के उद्देश्य से की गई थी. प्रत्येक वर्ष इसकी थीम अलग होती है. इस बार है - "Making a difference for Men and Boys."

चूंकि 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' कई वर्षों से चला आ रहा था अतः लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए इस दिवस की मांग उठी थी. अवसाद के मामलों में वृद्धि देखते हुए भारत में 2007 में पहला 'मानसिक स्वास्थ्य कानून' बना तथा इस दिवस को मनाना भी 2007 से ही प्रारम्भ हुआ.

NESCO द्वारा सहयोग प्राप्त इस दिवस को मनाने के मूल में यह है कि घर, परिवार और समाज में उनके सकारात्मक सहयोग को सराहा जाए. उनके भावनात्मक पक्ष पर ध्यान दिया जाए तथा उनकी स्वास्थ्य संबंधी एवं मानसिक परेशानियों पर भी चर्चा हो.

 घर, परिवार और समाज में पुरुषों के सकारात्मक सहयोग को सराहा जाए

स्पष्ट है कि हम हर कार्य की अपेक्षा सरकार से नहीं कर सकते हैं और जब यह पारिवारिक स्तर पर प्रारम्भ हो तभी एक स्वस्थ, संतुलित और ऊर्जावान समाज की सोच सार्थक होगी.

हम अपना सहयोग निम्न प्रकार से दे सकते हैं-

* मांओं को चाहिए कि वे अपने बेटे को रोते हुए देख कभी ये न कहें कि "अरे! लड़का होकर रोता है!" रोने दीजिये उसे. ऐसे ही भावनाएं निकलती हैं और दुःख बह जाता है. हमें उन्हें पाषाण एवं संवेदनहीन नहीं बनाना है कि वे किसी का दर्द समझ ही न सकें कभी.

* घर के कार्यों में भी पूरा सहयोग लें. जिससे बाद में बाहर जाएं तो सब मैनेज कर सकें.

* उन्हें स्वस्थ रहने की सलाह दें, खलीनुमा बनने की नहीं. मजबूत दिखने के चक्कर में कई बार लड़के घातक दवाइयों एवं स्टीरॉइड के फेर में पड़ जाते हैं. ऐसे में जिम वाले इसका पूरा लाभ उठाने में नहीं चूकते.

* स्त्रियों को चाहिए कि वे पुरुष को अपनी हर समस्या का 'समाधान केंद्र' न समझें. कभी उनकी भी सुनें. परेशानियां उनके जीवन में भी उतनी ही हैं. आपकी समस्याओं और रोज के बुलेटिन में उलझ वे अपना ग़म बांट ही नहीं पाते कभी. दर्द उन्हें भी होता है, डर उन्हें भी लगता है पर आपकी रोज की हाहाकार ने उन्हें सुपरमैन, बैटमैन और चाचा चौधरी बना डाला है.

* केवल स्त्रियां ही नहीं, पुरुष भी शारीरिक-मानसिक शोषण, घरेलू हिंसा, उत्पीड़न एवं भेदभाव के शिकार होते हैं. परन्तु हमारे समाज का ढांचा कुछ ऐसा है कि इनके दर्द भरे किस्से दबा दिए जाते हैं या फिर उनका उपहास उड़ाया जाता है. सुना होगा न- 'अरे, कैसा मरद है रे तू? एक लड़की से थप्पड़ खा लिया!', "कहां गई तेरी मर्दानगी!" अरे भई! वो भी मनुष्य ही है कोई बुलेटप्रूफ़ जैकेट नहीं! उसके मस्तिष्क में अपने अनर्गल विचारों का कचरा मत डालिये. पुराने डायलॉग भूलकर समझ लीजिये कि 'मर्द को दर्द भी होता है' अतः उनकी पीड़ा को समझ उस पर प्रेम का मरहम रखिये. तानों का तम्बूरा न बजाइये.

महिलाओं की ही तरह पुरुषों भी शोषण का शिकार होते हैं

* आत्महत्या और हत्या का अनुपात भी इन्हीं का सर्वाधिक है. आखिर यह अवसाद कहां से उपजा है? इनकी कुंठाओं की जड़ों में जाना आवश्यक है और उससे पहले इन्हें समझना जरुरी है. देखिये कहीं आपकी भौतिक अभिलाषाओं का बोझ इन पर भारी तो नहीं पड़ रहा.

* आपके Vacation Plans उनपर लादे नहीं. उनकी छुट्टियों से सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करें. इधर आप घूमने को लेकर झगड़ रहीं हैं और उधर वो बॉस से परेशान है. हां, यदि वे कामचोर हों और हर माह दस छुट्टियां लेकर घर बैठें तो उन्हें देश के विकास का पाठ अवश्य पढ़ाइए.

यूं मैं स्त्रीवादी/पुरुषवादी सोच न रखकर मानववादी सोच की पक्षधर हूं पर जब आप हमें दिल से शुभकामनाएं देते हैं तो हमारा भी कुछ फर्ज बनता है. इसलिए आप सभी को 'पुरुष दिवस' की अपार शुभकामनाएं. एक अच्छे समाज के निर्माण के लिए स्त्री-पुरुष दोनों की ही उपस्थिति और सहयोग के बराबर मायने हैं. फिलहाल ऐसा समाज कल्पना भर है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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