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समाज

ये आज़ादी अधूरी है

    • आईचौक
    • Updated: 15 अगस्त, 2015 03:05 PM
  • 15 अगस्त, 2015 03:05 PM
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भारत को स्वतंत्र हुए 69 साल बीत गए. आज भी एक बड़ा सवाल हमारे सामने है कि क्या सच में हम आज़ाद हैं? हमारा देश तो विदेशी हुकूमत से आज़ाद हो गया पर हमारे देश के लोगों की सोच अभी तक आज़ाद नहीं हो सकी है.

भारत को स्वतंत्र हुए 69 साल बीत गए. कितने जोश और जुनून के साथ हर साल आज़ादी का जश्न मनाया जाता है, पर खुद की आज़ादी का जश्न कब मना पाएंगे देशवासी. आज भी एक बड़ा सवाल हमारे सामने है कि क्या सच में हम आज़ाद हैं? हमारा देश तो विदेशी हुकूमत से आज़ाद हो गया पर हमारे देश के लोगों की सोच अभी तक आज़ाद नहीं हो सकी है.

देश की आज़ादी के 69 सालों के बाद भी-

लोग तिरंगे को उल्टा फहरा देते हैं. 16 अगस्त को कागज़ के तिरंगे कचरे में पड़े दिखाई देते हैं. आज भी उन्हें तिरंगे के सम्मान के लिए बताना पड़ता है.

बहुत से लोग स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के बीच अंतर नहीं समझ पाये हैं. ऐसे में लोगों से देश की आज़ादी का इतिहास जानने की उम्मीद कैसे की जा सकती है.

लोगों को स्वतंत्रता दिवस सिर्फ इसलिए पसंद है क्योंकि इस दिन छ्ट्टी होती है. आज के युवा खुश होते हैं कि ऑनलाइन शॉपिंग पर उन्हें अच्छी डील्स मिलती हैं.

हमारे देश में महिलाओं को देवी कहा जाता है, लेकिन लोग अभी तक महिलाओं का सम्मान करना नहीं सीख पाये हैं. महिलाओं पर होने वाली घरेलू हिंसा और शोषण के मामलों से अखबार भरा रहता है, फबतियां आज भी बेबाकी से कसी जाती हैं. महिलाएं अकेले सफर करने से डरती हैं. आज भी महिलाओं की सुरक्षा के लिए अभियान चलाने पड़ रहे हैं.

प्रगतिशील भारत में करीब 18 लाख लोगों को आज भी हाथों से मैला उठाना पड़ता है. सरकार इसके लिए अभियान तो चला रही है लेकिन आज भी इस प्रथा को रोक नही पाई है. हालात ये हैं कि देश में मोबाइल की संख्या ज़्यादा है और शौचालयों की कम.

देश अनाज निर्यात करता है लेकिन देश के किसानों की क़ीमत नहीं समझ पाया है. आज भी देश के किसान कर्ज में डूबे हैं और आये दिन आत्महत्या करते हैं.

सरकारों के हर साल सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाने पड़ते हैं. सड़क हादसों से लोग सबक नहीं लेते. देश के लोग लाल बत्ती पर रुकना पसंद नहीं करते, मौका देखते ही लांघ जाते हैं. इसी दौरान वे दुर्घटना का शिकार भी हो जाते हैं.

लोग ये तो जानते...

भारत को स्वतंत्र हुए 69 साल बीत गए. कितने जोश और जुनून के साथ हर साल आज़ादी का जश्न मनाया जाता है, पर खुद की आज़ादी का जश्न कब मना पाएंगे देशवासी. आज भी एक बड़ा सवाल हमारे सामने है कि क्या सच में हम आज़ाद हैं? हमारा देश तो विदेशी हुकूमत से आज़ाद हो गया पर हमारे देश के लोगों की सोच अभी तक आज़ाद नहीं हो सकी है.

देश की आज़ादी के 69 सालों के बाद भी-

लोग तिरंगे को उल्टा फहरा देते हैं. 16 अगस्त को कागज़ के तिरंगे कचरे में पड़े दिखाई देते हैं. आज भी उन्हें तिरंगे के सम्मान के लिए बताना पड़ता है.

बहुत से लोग स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के बीच अंतर नहीं समझ पाये हैं. ऐसे में लोगों से देश की आज़ादी का इतिहास जानने की उम्मीद कैसे की जा सकती है.

लोगों को स्वतंत्रता दिवस सिर्फ इसलिए पसंद है क्योंकि इस दिन छ्ट्टी होती है. आज के युवा खुश होते हैं कि ऑनलाइन शॉपिंग पर उन्हें अच्छी डील्स मिलती हैं.

हमारे देश में महिलाओं को देवी कहा जाता है, लेकिन लोग अभी तक महिलाओं का सम्मान करना नहीं सीख पाये हैं. महिलाओं पर होने वाली घरेलू हिंसा और शोषण के मामलों से अखबार भरा रहता है, फबतियां आज भी बेबाकी से कसी जाती हैं. महिलाएं अकेले सफर करने से डरती हैं. आज भी महिलाओं की सुरक्षा के लिए अभियान चलाने पड़ रहे हैं.

प्रगतिशील भारत में करीब 18 लाख लोगों को आज भी हाथों से मैला उठाना पड़ता है. सरकार इसके लिए अभियान तो चला रही है लेकिन आज भी इस प्रथा को रोक नही पाई है. हालात ये हैं कि देश में मोबाइल की संख्या ज़्यादा है और शौचालयों की कम.

देश अनाज निर्यात करता है लेकिन देश के किसानों की क़ीमत नहीं समझ पाया है. आज भी देश के किसान कर्ज में डूबे हैं और आये दिन आत्महत्या करते हैं.

सरकारों के हर साल सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाने पड़ते हैं. सड़क हादसों से लोग सबक नहीं लेते. देश के लोग लाल बत्ती पर रुकना पसंद नहीं करते, मौका देखते ही लांघ जाते हैं. इसी दौरान वे दुर्घटना का शिकार भी हो जाते हैं.

लोग ये तो जानते हैं कि घर साफ रखना चाहिए. लेकिन ये नहीं समझ पाते कि कूड़ा कूड़ेदान में फेंकना चाहिए सड़कों पर नहीं. ये समझाने के लिए भी सरकार को सफाई अभियान चलाना पड़ रहा है. विज्ञापन दिखाने पड़ते हैं. पर लोग हैं कि समझते ही नहीं.

यह फेहरिस्त लंबी है. गिनते गिनते पूरा दिन निकल सकता है. ज़रूरत इस बात की है कि हम आज़ादी को सिर्फ एक दिन न मनाकर हर दिन मनाएं. देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाएं. तभी आज़ादी का मतलब सार्थक होगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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