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बरेली में एकजुट हुए हिन्दू - मुसलमान, जो कहा वो सुनकर आपकी आंखें खुल जाएंगी..

    • आईचौक
    • Updated: 17 जून, 2017 05:07 PM
  • 17 जून, 2017 05:07 PM
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उत्तर प्रदेश के बरेली के प्रेमनगर में रहने वाले कुछ हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों ने एक साथ आकर आपसी सहमति से मस्जिदों द्वारा सहरी के समय लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर अपनी शिकायत दर्ज करवाई है.

आज रमजान की 21 तारीख हो गयी है और अगर चाँद पर मौलानाओं ने अपनी 'इल्मी बहस' से पब्लिक को परेशान नहीं करा तो 9 दिन के बाद ईद भी आ जायगी. यूं तो रमजान में सब ठीक ही रहता है मगर एक बात ऐसी है जो समाज के हर व्यक्ति के रोष का कारण रहती है. जी हां सही सुना आपने, हम बात कर रहे हैं सहरी के वक़्त बजने वाले लाउड स्पीकर की जिससे न सिर्फ हिन्दुओं बल्कि मुसलमानों की भी कहीं एसी या कूलर का स्विच ऑन कर, सो रही भावना आहत होती है.

प्रायः ये देखा गया है कि रमजान के दौरान रात दो बजे से ही अलग - अलग मस्जिदों से बजने वाले लाउड स्पीकर लोगों की नींद में बाधा डालते हैं जिससे लोगों को काफी तकलीफ होती है. साथ ही कई बार ये भी देखा गया है कि इसी वजह के चलते दोनों समुदायों के बीच झड़पें भी हुई है जिससे आपसी सौहार्द प्रभावित हुआ है.

खैर, अब हम आपको जो बताने जा रहे हैं उसके बाद हो सकता है कि अब भविष्य में आप ये न सुनें कि लाउड स्पीकर दो समुदायों के बीच टकराव का कारण बना. खबर है कि उत्तर प्रदेश के बरेली के प्रेमनगर में रहने वाले कुछ हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों ने कई मुश्किलों का सामना करते हुए, एक साथ आकर आपसी सहमति से मस्जिदों द्वारा सहरी के समय लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर अपनी शिकायत दर्ज करवाई है. लोगों के अनुसार इलाके में 7 मस्जिदें हैं और सहरी के वक़्त उनकी आवाज से किसी भी व्यक्ति के लिए सोना लगभग असंभव है.

लाउड स्पीकर के विरुद्ध एकजुट हुए हिन्दू, मुसलमान

गौरतलब है कि मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में सहरी के वक़्त बजने वाले लाउडस्पीकर न सिर्फ हिन्दुओं को बल्कि स्वयं मुसलमानों को भी खासा परेशान करते हैं. जिससे लोगों का आम जीवन प्रभावित होता है और उन्हें तकलीफ उठानी पड़ती है. कई बार देखा गया है कि रमजान के महीने में एक मिनट के अन्तराल में ही अलग अलग...

आज रमजान की 21 तारीख हो गयी है और अगर चाँद पर मौलानाओं ने अपनी 'इल्मी बहस' से पब्लिक को परेशान नहीं करा तो 9 दिन के बाद ईद भी आ जायगी. यूं तो रमजान में सब ठीक ही रहता है मगर एक बात ऐसी है जो समाज के हर व्यक्ति के रोष का कारण रहती है. जी हां सही सुना आपने, हम बात कर रहे हैं सहरी के वक़्त बजने वाले लाउड स्पीकर की जिससे न सिर्फ हिन्दुओं बल्कि मुसलमानों की भी कहीं एसी या कूलर का स्विच ऑन कर, सो रही भावना आहत होती है.

प्रायः ये देखा गया है कि रमजान के दौरान रात दो बजे से ही अलग - अलग मस्जिदों से बजने वाले लाउड स्पीकर लोगों की नींद में बाधा डालते हैं जिससे लोगों को काफी तकलीफ होती है. साथ ही कई बार ये भी देखा गया है कि इसी वजह के चलते दोनों समुदायों के बीच झड़पें भी हुई है जिससे आपसी सौहार्द प्रभावित हुआ है.

खैर, अब हम आपको जो बताने जा रहे हैं उसके बाद हो सकता है कि अब भविष्य में आप ये न सुनें कि लाउड स्पीकर दो समुदायों के बीच टकराव का कारण बना. खबर है कि उत्तर प्रदेश के बरेली के प्रेमनगर में रहने वाले कुछ हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों ने कई मुश्किलों का सामना करते हुए, एक साथ आकर आपसी सहमति से मस्जिदों द्वारा सहरी के समय लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर अपनी शिकायत दर्ज करवाई है. लोगों के अनुसार इलाके में 7 मस्जिदें हैं और सहरी के वक़्त उनकी आवाज से किसी भी व्यक्ति के लिए सोना लगभग असंभव है.

लाउड स्पीकर के विरुद्ध एकजुट हुए हिन्दू, मुसलमान

गौरतलब है कि मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में सहरी के वक़्त बजने वाले लाउडस्पीकर न सिर्फ हिन्दुओं को बल्कि स्वयं मुसलमानों को भी खासा परेशान करते हैं. जिससे लोगों का आम जीवन प्रभावित होता है और उन्हें तकलीफ उठानी पड़ती है. कई बार देखा गया है कि रमजान के महीने में एक मिनट के अन्तराल में ही अलग अलग मस्जिदों से इतनी आवाज आती है कि एक व्यक्ति का सोना मुहाल हो जाता है जिसके चलते उसका सारा दिन प्रभावित होता है.

ज्ञात हो कि लाउड स्पीकर के विषय में सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइंस के अनुसार, रात दस से सुबह छह बजे के बीच लाउड स्पीकर का प्रयोग नहीं किया जा सकता. साथ ही लाउड स्पीकर पर संज्ञान लेते हुए आर्टिकल 21 के हवाले से सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शांति से सोना सबका मूलभूत अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने अपनी व्याख्या में यह भी कहा था कि यदि कोई किसी की नींद जानबूझ कर खराब करता है तो इसे मानव अधिकार का उल्लंघन माना जाएगा.

अंत में हम यही कहेंगे कि बरेली के लोगों का ये फैसला एक समझदारी भरा फैसला है जो ये साफ दर्शाता है कि हमें धर्म की अपेक्षा आपकी सौहार्द और कौमी एकता को अधिक महत्त्व देना चाहिए. साथ ही यदि हमारा समाज किसी सामाजिक कुरीति का शिकार है, जिससे आम लोगों को परेशानी हो रही है तो एक साथ आकर ही समस्या का निवारण कर एक बेहतर समाज की अवधारणा को चरितार्थ किया जा सकता है.  

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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