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मैं अपने बच्चों को बुद्धिजीवी नहीं बनाउंगा

    • प्रवीण झा
    • Updated: 17 मार्च, 2017 09:21 PM
  • 17 मार्च, 2017 09:21 PM
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बुद्धिजीवी. यह शब्‍द गाली बन जाएगा कुछ दिन में. अब मैं बन गया सो बन गया, लेकिन मैं अपने बच्चों को शायद बुद्धिजीवी नहीं बनाऊं.

आमतौर पर जो भी साहित्य, संगीत, कला, दर्शन से किसी भी रूप में जुड़े हैं, या इंटरेस्ट है, मैं उनको बुद्धिजीवी करार देता हूं. बाकी बुद्धि तो हर मानव के पास है ही, इसमें बुद्धिजीवी क्या?

ऐसे लोग बड़े ईमोशनल टाइप होते हैं. उसे मारा तो क्यों मारा? फलां के साथ भेदभाव क्यों, अन्याय क्यों? ऐसे साहित्य बिरले ही मिलें कि कवि कह रहा हो, सारे मुसलमानों को मार दो या भगा दो. हिंदुओ के घर जला दो. राष्ट्रकवियों ने भी नहीं लिखे. अब किसी ने तो खैर लिखा ही होगा, पर 80-90 प्रतिशत लोगों ने नहीं लिखा. वह लिख ही नहीं सकता. वह बुद्धिजीवी रूस में बैठ कर भी स्टालिन की तानाशाही का विरोध ही करेगा और देश से निकाला जाएगा.

मेरे एक सीनीयर सर्जन हैं, उनके मेसैज बड़े भड़काऊ होते हैं. मुसलमानों को काट देना चाहिए. बंगाल में इतने हिंदू मरे. फ्रिक्वेंसी प्रतिदिन चार से पांच मैसेज की है. गांधी को जूते मारो. जान-बूझकर मुझे जरूर भेजते हैं, जब से ये फेसबुक, व्हाट्स-ऐप शुरू हुआ तब से. पश्चिम उत्तर प्रदेश में (कहां, यह नहीं कहुंगा) एक बार मैं उनके क्लिनिक गया, तो वहां एक-दो मुसलमान मरीज, और अंदर गांधी जी की फोटो. उन्होनें मजाक में कहा, "यहां आकर मैं तुम्हारी तरह बुद्धिजीवी बन जाता हूं."

ओसामा बिन लादेन के बेटे और पत्नी की लिखी किताब पढ़ी. उसमें लिखा है कि ओसामा को साहित्य और संगीत का शौक था जब वो जेद्दा में थे, फिर सूडान में कम हुआ. उन्हें लगा कि जब तक इन सब से जुड़ा रहुंगा, मेरा मिशन कमजोर पड़ जाएगा. उन्होनें अपना बुद्धिजीवी कम्पोनेंट उखाड़ फेंका और सफल उग्रवादी बने.

हम एक-एक कर नसीरूद्दीन शाह, ओम पुरी, और अन्यों को गरियाते चले गए. ये बुद्धिजीवी, वो बुद्धिजीवी. अलाउद्दीन खान ने जीवन मैहर देवी के पास गुजार दी, उन्हें बांग्लादेशी मुसलमान करार कर संस्कृति मंत्री ने नकार दिया. कुछ...

आमतौर पर जो भी साहित्य, संगीत, कला, दर्शन से किसी भी रूप में जुड़े हैं, या इंटरेस्ट है, मैं उनको बुद्धिजीवी करार देता हूं. बाकी बुद्धि तो हर मानव के पास है ही, इसमें बुद्धिजीवी क्या?

ऐसे लोग बड़े ईमोशनल टाइप होते हैं. उसे मारा तो क्यों मारा? फलां के साथ भेदभाव क्यों, अन्याय क्यों? ऐसे साहित्य बिरले ही मिलें कि कवि कह रहा हो, सारे मुसलमानों को मार दो या भगा दो. हिंदुओ के घर जला दो. राष्ट्रकवियों ने भी नहीं लिखे. अब किसी ने तो खैर लिखा ही होगा, पर 80-90 प्रतिशत लोगों ने नहीं लिखा. वह लिख ही नहीं सकता. वह बुद्धिजीवी रूस में बैठ कर भी स्टालिन की तानाशाही का विरोध ही करेगा और देश से निकाला जाएगा.

मेरे एक सीनीयर सर्जन हैं, उनके मेसैज बड़े भड़काऊ होते हैं. मुसलमानों को काट देना चाहिए. बंगाल में इतने हिंदू मरे. फ्रिक्वेंसी प्रतिदिन चार से पांच मैसेज की है. गांधी को जूते मारो. जान-बूझकर मुझे जरूर भेजते हैं, जब से ये फेसबुक, व्हाट्स-ऐप शुरू हुआ तब से. पश्चिम उत्तर प्रदेश में (कहां, यह नहीं कहुंगा) एक बार मैं उनके क्लिनिक गया, तो वहां एक-दो मुसलमान मरीज, और अंदर गांधी जी की फोटो. उन्होनें मजाक में कहा, "यहां आकर मैं तुम्हारी तरह बुद्धिजीवी बन जाता हूं."

ओसामा बिन लादेन के बेटे और पत्नी की लिखी किताब पढ़ी. उसमें लिखा है कि ओसामा को साहित्य और संगीत का शौक था जब वो जेद्दा में थे, फिर सूडान में कम हुआ. उन्हें लगा कि जब तक इन सब से जुड़ा रहुंगा, मेरा मिशन कमजोर पड़ जाएगा. उन्होनें अपना बुद्धिजीवी कम्पोनेंट उखाड़ फेंका और सफल उग्रवादी बने.

हम एक-एक कर नसीरूद्दीन शाह, ओम पुरी, और अन्यों को गरियाते चले गए. ये बुद्धिजीवी, वो बुद्धिजीवी. अलाउद्दीन खान ने जीवन मैहर देवी के पास गुजार दी, उन्हें बांग्लादेशी मुसलमान करार कर संस्कृति मंत्री ने नकार दिया. कुछ मुसलमान किसी गायिका के खिलाफ फतवा निकाल रहे हैं. दोनों तरफ से मुहिम छिड़ी है. बाकी क्या रह जाएगा, अंडा?

जो भी पंथ रखें, धर्म का बीड़ा उठाएं, मेरे विचार से साहित्य और संगीत से, कला से जुड़ने की कवायद हो. कोई एक कोना हो, मेरे मित्र के क्लिनिक जैसा, जहां दो मिनट बुद्धिजीवी बन जाएं. नहीं तो, कसम से एक दिन ओसामा बन जाएंगें.

(यह पोस्‍ट सबसे पहले लेखक के फेसबुक वॉल पर प्रकाशित हुई है.)

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