• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

प्रपोज़ डे...जिसपर नजर गड़ाए सजकर बैठा रहा बाजार

    • सहर फातिमा
    • Updated: 08 फरवरी, 2019 07:51 PM
  • 08 फरवरी, 2019 07:51 PM
offline
वैलेंटाइन वीक की शुरुआत हो चुकी है. ऐसे में जब एक भारतीय होने के नाते हम इसका अवलोकन करें तो मिलता है कि हमारे देश में वैलेंटाइन डे और कुछ नहीं बस बाजारवाद को बढ़ावा देने का एक माध्यम है.

प्रगतिशील भारत के जुझारू युवा इस दिन अपने चाहने वालों को प्रोपोज़ करते हैं. भारत के प्रगतिशील होने का यहां पर ज़िक्र इसलिए क्योंकि यही हमारे प्रगतिशील होने का पैमाना है. यही हमें बताता है कि हम अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी को कितना ज्यादा पश्चिमी सभ्यता के हिसाब से जीते हैं. पिछले कुछ सालों से किसी संक्रमण की तरह बढ़ता वैलेंटाइन डे सेलिब्रेशन यूरोपीय देशों की देखा देखी भारत में भी खूब धूम-धाम से मनाया जाने लगा है. जिसकी शुरुआत 7 फरवरी से रोज डे के रूप में होती है. उसके बाद 8 फरवरी प्रोपोज डे के रूप में मनाया जाता है.

भारत जैसे परंपराओं से जकड़े हुए देश में, प्रेमियों के इस पर्व को अब तक उतनी सामाजिक स्वीकृति तो नहीं मिली. अलबत्ता भला हो बाज़ारवाद की पैठ और मॉडर्न दिखने की ललक का, जिसके कारण कई जगहों पर युवाओं को जान पर खेल कर इस पर्व को मनाते हुए देखा जा सकता है. हालाकि कई राज्यों में फरवरी माह के इस दूसरे सप्ताह में काफी सख्ती से अलग अलग राजनीतिक और धार्मिक संगठनों के जरिये इसका विरोध किया जाता है. लेकिन प्रेम चाहे कथित हो या वास्तविक, जोखिमों से कहां डरता है? इसलिए पार्क दर पार्क, रेस्टोरेंट दर रेस्टोरेंट इन संगठनों के जरिये कड़े पहरे लगाने के बाद भी प्रेमी युगल आज के दिन अपने चाहने वालों को प्रोपोज कर ही लेते हैं.

भारत जैसे देश में वैलेंटाइन डे बाजार द्वारा पैसा कमाने का माध्यम भर है

वैलेंटाइन डे के आते ही इस मौके को सेलिब्रेट करने वाले और इसका विरोध करने वाले दोनों ही पक्षों के लोग काफी सक्रीय हो जाते हैं. प्रेमी युगल इस वीक को स्पेशल बनाने के लिए बाजार में मौजूद ऑफर्स का खूब इस्तेमाल करते हैं. जबकि वहीं विरोधी संगठन भी विरोध में कभी कभी हद पार कर देते हैं. पकड़े गए कपल्स को कभी तो मारा पीटा जाता है, कभी...

प्रगतिशील भारत के जुझारू युवा इस दिन अपने चाहने वालों को प्रोपोज़ करते हैं. भारत के प्रगतिशील होने का यहां पर ज़िक्र इसलिए क्योंकि यही हमारे प्रगतिशील होने का पैमाना है. यही हमें बताता है कि हम अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी को कितना ज्यादा पश्चिमी सभ्यता के हिसाब से जीते हैं. पिछले कुछ सालों से किसी संक्रमण की तरह बढ़ता वैलेंटाइन डे सेलिब्रेशन यूरोपीय देशों की देखा देखी भारत में भी खूब धूम-धाम से मनाया जाने लगा है. जिसकी शुरुआत 7 फरवरी से रोज डे के रूप में होती है. उसके बाद 8 फरवरी प्रोपोज डे के रूप में मनाया जाता है.

भारत जैसे परंपराओं से जकड़े हुए देश में, प्रेमियों के इस पर्व को अब तक उतनी सामाजिक स्वीकृति तो नहीं मिली. अलबत्ता भला हो बाज़ारवाद की पैठ और मॉडर्न दिखने की ललक का, जिसके कारण कई जगहों पर युवाओं को जान पर खेल कर इस पर्व को मनाते हुए देखा जा सकता है. हालाकि कई राज्यों में फरवरी माह के इस दूसरे सप्ताह में काफी सख्ती से अलग अलग राजनीतिक और धार्मिक संगठनों के जरिये इसका विरोध किया जाता है. लेकिन प्रेम चाहे कथित हो या वास्तविक, जोखिमों से कहां डरता है? इसलिए पार्क दर पार्क, रेस्टोरेंट दर रेस्टोरेंट इन संगठनों के जरिये कड़े पहरे लगाने के बाद भी प्रेमी युगल आज के दिन अपने चाहने वालों को प्रोपोज कर ही लेते हैं.

भारत जैसे देश में वैलेंटाइन डे बाजार द्वारा पैसा कमाने का माध्यम भर है

वैलेंटाइन डे के आते ही इस मौके को सेलिब्रेट करने वाले और इसका विरोध करने वाले दोनों ही पक्षों के लोग काफी सक्रीय हो जाते हैं. प्रेमी युगल इस वीक को स्पेशल बनाने के लिए बाजार में मौजूद ऑफर्स का खूब इस्तेमाल करते हैं. जबकि वहीं विरोधी संगठन भी विरोध में कभी कभी हद पार कर देते हैं. पकड़े गए कपल्स को कभी तो मारा पीटा जाता है, कभी उनकी शादी करवा दी जाती है या कभी राखी बंधवा कर रिश्ते का मजाक बना दिया जाता है.

ऐसे वक्त में जहां वैलेंटाइन डे सेलिब्रेशन का क्रेज स्कूली बच्चों से लेकर युवाओं और अधेड़ उम्र तक के लोगों में खूब जोर शोर से देखा जाता है. वहां संस्कृति बचाओ जैसी बातें बेईमानी सी लगती हैं. हालाकि बड़े बड़े शहरों में जिस तरह की सेलिब्रेशन होती है वो वाकई में एक सभ्य समाज के लिए बुरा ही होता है. लोग प्रपोज करते हैं. इंकार की सूरत में मामला कभी एसिड अटैक तो कभी रेप तक पहुंच जाता है. ऐसे में वैलेंटाइन डे का विरोध करने के बजाय इसके अलग अलग पहलुओं पर अवेयरनेस लाने की जरूरत है. ताकि प्यार का इजहार करने के नाम पर जगह जगह वल्गैरिटी या वॉयलेंस जैसा माहौल ना बने.

हालाकि जब मैं एक लेखक की नज़र से देखती हूं तो मुझे इस पूरे सेलिब्रेशन में अवसरवाद के अलावा और कुछ नहीं दिखता. फिर गिफ्ट आइटम्स कंपनीज हो या ग्रीटिंग्स कंपनीज, फ्लॉवर्स सेलर हों या फिर होटेल्स और रेस्टोरेंट्स. हर कोई वैलेंटाइन वीक को सिर्फ और सिर्फ कमर्शियलाइज ही कर रहा होता है. और हमें पता भी नहीं चलता कि इस पूरे चकाचौंध वाले इवेंट में हम सिर्फ बाजार वाद के हाथों की कठपुतली भर हैं. और ये कंपनीज हमारे इमोशंस एक्सप्रेस करने के इस मौके को अपने लिए भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती.

कथित प्रेमी भी अब प्रेमी कम अवसरवादी ज्यादा लगते हैं जिन्हें इन सब ताम झाम के बाद अपना मतलब निकाल कर फिर अगले साल नए पार्टनर्स की तलाश ही करनी होती है. बाकी जो अपवाद हैं जो वाकई सच्चे प्रेमी हैं उन्हें किसी वैलेंटाइन डे की जरूरत नहीं पड़ती.वो अपना प्रेम जीते हैं. विशुद्ध प्रेम, जहां सिर्फ प्रेम होता है इस्तेमाल होने की प्रक्रिया नहीं.

ये भी पढ़ें -

Valentine Rose Day: गुलाब को 'खानदानी हरामी' क्यों कहा था निराला ने?

Valentine Day: भारत और पाकिस्तान कितने एक जैसे हैं!

वैलेंटाइन डे पर सिंगल लोग करते हैं ये सारे काम

  


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲