• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

'क्‍या कोटे से हो?' -सवर्ण आरक्षण खत्‍म कर देगा हिकारत वाला ये जुमला

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 08 जनवरी, 2019 09:51 PM
  • 08 जनवरी, 2019 09:51 PM
offline
गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देकर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समाज के दो तबकों में चली आ रही तल्‍खी को एक झटके में पाटने का काम किया है. 'कोटा' शब्‍द का इस्‍तेमाल अब तंज कसने केलिए नहीं किया जा सकेगा.

भारत में जातियों का अपना महत्व है. यही महत्व भारत जैसे विशाल लोकतंत्र की राजनीति को न सिर्फ जटिल बनाता है, बल्कि धारदार करता है. क्या शादी-बिआह, क्या सोशल गैदरिंग. यहां बिना जाति पर बात किये सब अधूरा है. अगड़ी जाति, पिछड़ी जाति, दलित, शोषित, वंचित. सच में, जातियों के मद्देनजर भारत देश विविधताओं से भरा पड़ा है. चूंकि अगड़ी जाति बनाम पिछड़ी जाति पर विवाद लम्बे समय से चला आ रहा है. कोटे पर बात अपने आप आकर रुक जाती है और कड़वी हो जाती है. आजादी के बाद संविधान के जरिए दलित-शोषितों को सरकार ने आरक्षण दे दिया. और जिन्‍हें आरक्षण नहीं मिला, उन्‍हें 'कोटे' पर तंज करने का मौका मिला. इस कड़वाहट ने आदिम काल से चले आ रहे उस वाद की आग को हवा दी. क्योंकि आरक्षण के चलते लोग पहले ही बंट चुके थे, राजनेताओं के महान प्रयासों ने लोगों के बीच पनप चुकी खाई को पाटने के बजाए बढ़ाने का काम किया.

सवर्णों को आरक्षण देकर पीएम मोदी ने हम भारतीयों को एक मंच पर लाने का काम किया है

ये आरक्षण का साइड इफेक्ट ही था कि चाहे स्कूल हो या फिर अस्पताल. सचिवालय में बैठे सचिव के कमरे से लेकर एग्जामिनेशन हॉल में किसी प्रतियोगिता का इम्तेहान देते छात्रों तक ऐसे लोगों को एक जुमला मिल गया कि 'अरे इनको किस बात की टेंशन! ये तो कोटे वाले हैं.' इस एक वाक्य 'अरे! ये तो कोटे वाले हैं' कई लोगों के लिए शर्मिंदगी का कारण बना.

अस्पताल में पिछड़ी जाति‍ का कोई डॉक्टर यदि अगड़ी जाति के किसी व्यक्ति का इलाज कर रहा हो और कोई टेक्नीकल दिक्कत हो जाए तब लोग यही कहते कि 'अरे हमने तो पहले ही कहा था ये कोटे वाले भला क्या इलाज कर पाएंगे'. मगर उस वक़्त किसी ने हमारी बात का ध्यान नहीं दिया. अब जब भुगतना पड़ रहा है लोग तरह तरह के कानून समझा रहे हैं' या फिर किसी सरकारी दफ्तर में पिछड़ी...

भारत में जातियों का अपना महत्व है. यही महत्व भारत जैसे विशाल लोकतंत्र की राजनीति को न सिर्फ जटिल बनाता है, बल्कि धारदार करता है. क्या शादी-बिआह, क्या सोशल गैदरिंग. यहां बिना जाति पर बात किये सब अधूरा है. अगड़ी जाति, पिछड़ी जाति, दलित, शोषित, वंचित. सच में, जातियों के मद्देनजर भारत देश विविधताओं से भरा पड़ा है. चूंकि अगड़ी जाति बनाम पिछड़ी जाति पर विवाद लम्बे समय से चला आ रहा है. कोटे पर बात अपने आप आकर रुक जाती है और कड़वी हो जाती है. आजादी के बाद संविधान के जरिए दलित-शोषितों को सरकार ने आरक्षण दे दिया. और जिन्‍हें आरक्षण नहीं मिला, उन्‍हें 'कोटे' पर तंज करने का मौका मिला. इस कड़वाहट ने आदिम काल से चले आ रहे उस वाद की आग को हवा दी. क्योंकि आरक्षण के चलते लोग पहले ही बंट चुके थे, राजनेताओं के महान प्रयासों ने लोगों के बीच पनप चुकी खाई को पाटने के बजाए बढ़ाने का काम किया.

सवर्णों को आरक्षण देकर पीएम मोदी ने हम भारतीयों को एक मंच पर लाने का काम किया है

ये आरक्षण का साइड इफेक्ट ही था कि चाहे स्कूल हो या फिर अस्पताल. सचिवालय में बैठे सचिव के कमरे से लेकर एग्जामिनेशन हॉल में किसी प्रतियोगिता का इम्तेहान देते छात्रों तक ऐसे लोगों को एक जुमला मिल गया कि 'अरे इनको किस बात की टेंशन! ये तो कोटे वाले हैं.' इस एक वाक्य 'अरे! ये तो कोटे वाले हैं' कई लोगों के लिए शर्मिंदगी का कारण बना.

अस्पताल में पिछड़ी जाति‍ का कोई डॉक्टर यदि अगड़ी जाति के किसी व्यक्ति का इलाज कर रहा हो और कोई टेक्नीकल दिक्कत हो जाए तब लोग यही कहते कि 'अरे हमने तो पहले ही कहा था ये कोटे वाले भला क्या इलाज कर पाएंगे'. मगर उस वक़्त किसी ने हमारी बात का ध्यान नहीं दिया. अब जब भुगतना पड़ रहा है लोग तरह तरह के कानून समझा रहे हैं' या फिर किसी सरकारी दफ्तर में पिछड़ी जाति‍ के किसी अधिकारी को अच्छा काम करने के बावजूद सिर्फ इसलिए ताना सुनना पड़ता कि वो आज जिस कुर्सी पर बैठा है उस तक पहुंचने का एक अहम कारण वो आरक्षण है जो इस देश के संविधान के जरिये उसके दादा परदादा को मिला है.

पूर्व से लेकर वर्तमान तक जहां आरक्षण ने कुछ लोगों को तो लाभ दिया मगर समाज का एक बड़ा वर्ग ऐसा था जिसने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा इसके विरोध या फिर ये कहें कि इसकी आलोचना में निकाला.

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूरदर्शी आदमी हैं और भारत को विश्व गुरु बनाने के चक्कर में 18-18 घंटे काम कर रहे हैं. गुजरे 4 सालों में जैसा प्रधानमंत्री का रुख रहा है यदि उसका अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि कहीं न कहीं उन्हें भी ये बात पता है कि इस देश का तब तक कुछ नहीं हो सकता जब तक सब एक न हो जाएं. यानी देश के प्रधानमंत्री इस बात के पक्षधर हैं कि यदि कोटे के लोटे से आरक्षण की अफीम छलके तो वो किसी एक की न होकर के सबकी हो. शायद उनके ऐसा सोचने के पीछे अहम कारण ये भी हो कि जब देश में रहने वाला प्रत्येक नागरिक भारतीय है. तो फिर अब तक आरक्षण का लाभ केवल कुछ लोग ही क्यों ले रहे थे.

देश के सर्वणों के बीच लगातार अपनी साख खो रही मोदी सरकार ने 2019 के आम चुनाव से ठीक पहले एक बड़ा फैसला लेकर सबको हैरत में डाल दिया है. सरकार आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को आरक्षण देने की वकालत कर रही है. मोदी कैबिनेट ने 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण को मंजूरी दे दी है. बिल लोकसभा में पेश हो चुका है और इस पर बहस का दौर जारी है. ज्ञात हो कि वे सवर्ण परिवार, जिनकी सालाना आय 8 लाख रुपए से कम होगी. वे इस आरक्षण का लाभ उठा सकेंगे.

मोदी सरकार की इस पहल के बाद ये कहा जा सकता है कि अपने इस विचार से न सिर्फ उसने एक बड़ी खाई को पाटने का काम किया है. बल्कि समाज के सभी वर्गों को एक मंच पर एक साथ लाने का काम किया है.

कितना सुखद होगा उस यूनिटी को देखना जब कोई अगड़ी जाति का व्यक्ति किसी पिछड़ी जाति‍ के व्यक्ति को उसे मिल रहे कोटे के सन्दर्भ में टोकेगा और पिछड़ी जाति‍ का व्यक्ति भी निडर होकर बेबाकी भरे अंदाज में कह देगा कि काहे का इतना लोड लेना भाई, अब तो तुम लोग भी आरक्षण वाले हो'. और दोनों एक दूसरे के कंधे पर हाथ रखकर आगे निकल जाएंगे.

ये भी पढ़ें -

मोदी के 'सवर्ण-आरक्षण' में छुपा है हर सवाल का जवाब

सवर्ण आरक्षण: सवर्णों का साधने का चुनावी जुमला या राजनीतिक ब्रह्मास्‍त्र?

मोदी की फिल्म में 'करण थापर' कौन बनेगा?

  


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲