• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

लड़के की है चाह ? तो महाराष्ट्र सरकार की ये किताब पढ़ें

    • रिम्मी कुमारी
    • Updated: 13 मई, 2017 01:23 PM
  • 13 मई, 2017 01:23 PM
offline
ये अजीब है किंतु किसी रेसिपी की तरह है. किसी आयुर्वेदिक डिश की तरह. पतंजलि जैसी. सवाल यह है कि कोई सरकारी कॉलेज लडका पैदा करने का तरीका क्‍यों सिखा रहा है ?

बच्चा, हर दंपति की चाहत होती है. बच्चा अगर लड़का हो तो सोने पर सुहागा. क्योंकि आज भी ये हमारे समाज की कड़वी सच्चाई है कि चाहें जितनी भी बराबरी की बातें हम कर लें, लोगों में चाहत बेटा पाने की ही होती है. इस बात की तस्दीक खुद देश में बच्चों की संख्या के बीच का अंतर करता है. 2011 की जनगणना के अनुसार हमारे यहां 1000 लड़कों पर 940 लड़िकयां हैं. हालांकि ये आंकड़ा 2001 के 933 से थोड़ा ज्यादा है, लेकिन इतना भी नहीं कि शाबाशी दी जाए.

खैर. इतने के बाद भी घर का चिराग बेटा ही होता है. और महाराष्ट्र सरकार इस चिराग को जलाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ रही. बैचलर ऑफ आयुर्वेद, मेडिसिन एंड सर्जरी के थर्ड ईयर में बेटा पाने के अनगिनत उपाय पढ़ाए जा रहे हैं. लड़का चाहिए तो उत्तर की तरफ मुंह किए हुए बरगद के पेड़ों की दो टहनियों को जमा कर लें. पूरब की तरफ वाली डालियों की टहनियों से भी काम चल जाएगा. लेकिन ये बरगद का पेड़ मजबूत जड़ वाला और स्थायी पेड़ होना चाहिए. उरद दाल के दो दानें लें. सरसों के बीज के साथ इन सारी चीजों को दही में मिला कर पीस लें. फिर इस मिश्रण को खाएं.

चरक संहिता की ठरक

ध्यान रखें ये किसी ढोंगी बाबा का नुस्खा नहीं है जो आतुर दंपतियों की बच्चा ना होने की समस्या का ऐसा बेतुका निदान बताता है. बल्कि ये उपाय महाराष्ट्र के बैचलर ऑफ आयुर्वेद, मेडिसिन एंड सर्जरी के थर्ड ईयर की किताब में बेटा पाने के लिए पढ़ाए जाने वाले कई उपायों में से एक है. किताब में ये टेक्स्ट आयुर्वेद की प्राचीनतम किताब चरक संहिता से ली गई है. चरक संहिता के अनुसार नर भ्रूण पाने की क्रिया को 'पुसान्वन' कहते हैं. और जो भी स्त्री लड़का चाहती है उसे गर्भवती होते ही पुसान्वन विधि का पालन करना चाहिए.

बच्चा, हर दंपति की चाहत होती है. बच्चा अगर लड़का हो तो सोने पर सुहागा. क्योंकि आज भी ये हमारे समाज की कड़वी सच्चाई है कि चाहें जितनी भी बराबरी की बातें हम कर लें, लोगों में चाहत बेटा पाने की ही होती है. इस बात की तस्दीक खुद देश में बच्चों की संख्या के बीच का अंतर करता है. 2011 की जनगणना के अनुसार हमारे यहां 1000 लड़कों पर 940 लड़िकयां हैं. हालांकि ये आंकड़ा 2001 के 933 से थोड़ा ज्यादा है, लेकिन इतना भी नहीं कि शाबाशी दी जाए.

खैर. इतने के बाद भी घर का चिराग बेटा ही होता है. और महाराष्ट्र सरकार इस चिराग को जलाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ रही. बैचलर ऑफ आयुर्वेद, मेडिसिन एंड सर्जरी के थर्ड ईयर में बेटा पाने के अनगिनत उपाय पढ़ाए जा रहे हैं. लड़का चाहिए तो उत्तर की तरफ मुंह किए हुए बरगद के पेड़ों की दो टहनियों को जमा कर लें. पूरब की तरफ वाली डालियों की टहनियों से भी काम चल जाएगा. लेकिन ये बरगद का पेड़ मजबूत जड़ वाला और स्थायी पेड़ होना चाहिए. उरद दाल के दो दानें लें. सरसों के बीज के साथ इन सारी चीजों को दही में मिला कर पीस लें. फिर इस मिश्रण को खाएं.

चरक संहिता की ठरक

ध्यान रखें ये किसी ढोंगी बाबा का नुस्खा नहीं है जो आतुर दंपतियों की बच्चा ना होने की समस्या का ऐसा बेतुका निदान बताता है. बल्कि ये उपाय महाराष्ट्र के बैचलर ऑफ आयुर्वेद, मेडिसिन एंड सर्जरी के थर्ड ईयर की किताब में बेटा पाने के लिए पढ़ाए जाने वाले कई उपायों में से एक है. किताब में ये टेक्स्ट आयुर्वेद की प्राचीनतम किताब चरक संहिता से ली गई है. चरक संहिता के अनुसार नर भ्रूण पाने की क्रिया को 'पुसान्वन' कहते हैं. और जो भी स्त्री लड़का चाहती है उसे गर्भवती होते ही पुसान्वन विधि का पालन करना चाहिए.

चरक संहिता के नाम पर चालबाजी

इस किताब में लड़का पैदा करने के लिए कई तरह के उपाय बताए गए हैं. इनमें से एक तरीका काफी महंगा भी है. इस विधि में 'सोना, चांदी या फिर लोहे की दो छोटी मानव-आकृतियां बनवाएं. उसके बाद उसे भट्ठी में डाल दें. जब ये पिघल जाए तो उसे दूध, दही या फिर पानी में में मिला लें. इसके बाद पुष्प नक्षत्र के पावन समय में इसका सेवन करें.'

महाराष्ट्र सरकार के गुण

अभी हाल ही में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने सुसंस्कारी बच्चे पैदा करने के तरीके बताए थे. हमारी सोच और संस्कृति किस तरीके से कट्टरता की तरफ जा रही है ये शुरूआत भर है. चरक संहिता सदियों पहले की किताब है और भले ही इसे आयुर्वेद का व्याकरण माना जाता हो लेकिन जरूरी नहीं कि वैदिक काल के रीति-रिवाज अब प्रासंगिक हों.

जरूरत सोच बदलने की है, जिसके आसार दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहे. हालांकि लोगों की सोच में बदलाव जरूर हुए हैं लेकिन ये नाकाफी है. जबतक हमारे यहां लड़कों और लड़की के बीच में भेदभाव खत्म नहीं होगा तबतक इस तरह की दकियानूसी सोच को खाद-पानी मिलती रहेगी.

ये भी पढ़ें-

अब RSS की मदद से होंगे परफेक्ट 'संस्‍कारी' बच्चे !

सीबीएसई स्कूलों में अब बच्चों को फीचर नहीं लड़कियों के 'फीगर' बताए जा रहे हैं!

जो धर्म डराए, जो किताब भ्रम पैदा करे, उसे शिद्दत से सुधार की जरूरत!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲