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रेजर बेचने वालों ने महिलाओं के शरीर के बालों पर लगाया था बदसूरत का ठप्‍पा

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 03 नवम्बर, 2019 06:16 PM
  • 03 नवम्बर, 2019 06:16 PM
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क्या आपको भी ये लगता है कि महिलाओं के हाथ-पारों और चेहरे के बालों की वजह से पुरुष उन्हें पसंद नहीं करते? आंखे खोलिए और देखिए कि ये सब किसने भरा है महिलाओं और पुरुषों के दिमागों में.

हम में से शायद काफी लोग अब Movember के बारे में जानते हैं. यानी नवंबर के महीने में पुरुषों को mustaches यानी मूछें बढ़ाने और शेव न करने के लिए प्रेरित किया जाता है. ये अभियान है जिससे पुरुष अपनी सेहत जैसे prostate cancer, testicular cancer, और पुरुष आत्महत्या के प्रति जागरुक हो सकें. एक महीने के इस जागरुकता अभियान में कई रेजर ब्रांड्स भी योगदान देते हैं. फिलहाल तो एक रेजर ब्रांड ने इस अभियान में महिलाओं को भी हिस्सा बनने के लिए कहा है.

एक वीडियो के जरिए ये बताया जा रहा है कि महिलाओं के भी मूछें होती हैं और उन्हें भी इसे छिपाना नहीं चाहिए.

माना कि पुरुषों के इस जागरुकता अभियान में मूछें उगाने को कहा जाता है, उन्हें प्रेरित किया जाता है कि वो इस महीने शेव न करें. लेकिन एक रेजर ब्रांड का महिलाओं को भी इस बात के लिए प्रेरित करना गले नहीं उतरता. खासकर तब जबकि महिलाओं की खूबसूरती के लिए इस समाज ने ही कई मानक तैयार किए हुए हैं. इनमें से महिला शरीर के बाल तो काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. माना जाता है कि महिलाओं के हाथ, पैर, बगल, और चेहरे के बालों का न दिखाई देना ही उनकी खूबसूरती को और बढ़ाता है. समाज हाथ और पैरों के बालों के लिए क्या सोच रखता है वो आप इस बात से समझ सकते हैं कि भारत के कॉन्वेंट स्कूलों में स्कर्ट पहनने वाली छात्राओं के लिए पैरों की वैक्सिंग करवाना जरूरी है. कारण...?? शायद स्कर्ट पहने लड़कियों पर पैरों के बाल अच्छे नहीं लगते.

जब कोई लड़की सोशल मीडिया पर अपने पैरों के बालों की तस्वीर डालती है या फिर बालों वाली बगलें दिखाती है तो उसपर खूब बहस की जाती है. आज रेजर ब्रांड उन्हीं बालों को बढ़ाने के लिए कह रहे हैं जिन्हें कुछ सालों पहले इन्हीं ने भद्दा बताया था.

मेक्सिकन पेंटर frida kahlo उस दौर की हैं जब होटों के बाल...

हम में से शायद काफी लोग अब Movember के बारे में जानते हैं. यानी नवंबर के महीने में पुरुषों को mustaches यानी मूछें बढ़ाने और शेव न करने के लिए प्रेरित किया जाता है. ये अभियान है जिससे पुरुष अपनी सेहत जैसे prostate cancer, testicular cancer, और पुरुष आत्महत्या के प्रति जागरुक हो सकें. एक महीने के इस जागरुकता अभियान में कई रेजर ब्रांड्स भी योगदान देते हैं. फिलहाल तो एक रेजर ब्रांड ने इस अभियान में महिलाओं को भी हिस्सा बनने के लिए कहा है.

एक वीडियो के जरिए ये बताया जा रहा है कि महिलाओं के भी मूछें होती हैं और उन्हें भी इसे छिपाना नहीं चाहिए.

माना कि पुरुषों के इस जागरुकता अभियान में मूछें उगाने को कहा जाता है, उन्हें प्रेरित किया जाता है कि वो इस महीने शेव न करें. लेकिन एक रेजर ब्रांड का महिलाओं को भी इस बात के लिए प्रेरित करना गले नहीं उतरता. खासकर तब जबकि महिलाओं की खूबसूरती के लिए इस समाज ने ही कई मानक तैयार किए हुए हैं. इनमें से महिला शरीर के बाल तो काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. माना जाता है कि महिलाओं के हाथ, पैर, बगल, और चेहरे के बालों का न दिखाई देना ही उनकी खूबसूरती को और बढ़ाता है. समाज हाथ और पैरों के बालों के लिए क्या सोच रखता है वो आप इस बात से समझ सकते हैं कि भारत के कॉन्वेंट स्कूलों में स्कर्ट पहनने वाली छात्राओं के लिए पैरों की वैक्सिंग करवाना जरूरी है. कारण...?? शायद स्कर्ट पहने लड़कियों पर पैरों के बाल अच्छे नहीं लगते.

जब कोई लड़की सोशल मीडिया पर अपने पैरों के बालों की तस्वीर डालती है या फिर बालों वाली बगलें दिखाती है तो उसपर खूब बहस की जाती है. आज रेजर ब्रांड उन्हीं बालों को बढ़ाने के लिए कह रहे हैं जिन्हें कुछ सालों पहले इन्हीं ने भद्दा बताया था.

मेक्सिकन पेंटर frida kahlo उस दौर की हैं जब होटों के बाल खूबसूरती की निशानी होते थे

एक सदी पहले महिलाओं को बताया गया कि शरीर के बाल भद्दे हैं

ये वही रेजर ब्रांड्स हैं जिन्होंने अब से करीब 104 साल पहले महिलाओं के लिए रेजर ब्लेड लॉन्च करके उन्हें ये बताने की कोशिश की थी कि महिलाएं शरीर के बालों के बिना ज्यादा खूबसूरत दिखाई देती हैं. 1915 में पहला Female Razor बाजार में उतारा गया था. विकटोरियन एरा में महिलाएं सर से लेकर पांव तक ढकी होती थीं. लेकिन इस काल के बाद जब फैशन का उदय हुआ तो शरीर भी दिखने लगा. और जब शरीर दिखाई दिया तो शरीर के बाल आखों को खटकने लगे.

महिलाओं के लिए पहला रेजर 1915 में बना

1922 में तो बगल और होठों के बालों को embarassment यानी शर्मिंदगी का नाम दिया गया. और बाल साफ करने के लिए hair removing cream बाजार में उतारी गई, जो ये कहती कि रेजर खतरनाक होते हैं, इससे बाल और घने हो जाते हैं.

रेजर के बाद हेर रमूवर क्रीम बाजार में आने लगीं

1930 में बनने वाले विज्ञापनों ने महिलाओं को डराया. उन्हें ये बताने की कोशिश की गई कि होठों के ऊपर बाल होंगे तो उन्हें कोई पसंद नहीं करेगा और वो अकेली रह जाएंगी. चेहरे के बालों की वजह से वो भद्दी दिखाई देंगी. और महिलाएं तभी खुश रहेंगी जब शरीर के बाल नहीं रहेंगे.

हर तरह से महिलाओं के ये समझाने की कोशिशें की जाती रहीं कि शरीर के बाल हटाना कितना जरूरी है

अब तक ये स्थिति बन गई थी कि महिलाओं ने ये स्वीकार कर लिया था कि उनके लिए शरीर के बाल साफ करना वास्तव में जरूरी है, क्योंकि इसी की वजह से वो खूबसूरत लगेंगी. और इसके लिए विज्ञापन कंपनियों ने काफी मेहनत की. समझाया, तस्वीरों के जरिए दिखाया, अकेले हो जाने का डर भी दिखाया और तो और उन्हें शर्मिदगी भी महसूस करवाई गई, तब कहीं जाकर ये संभव हो सका. हालात ये हो गए कि लोग मानने लग गए कि महिलाएं तभी classy और feminine लगेंगी जब वो hairless होंगी. और बालों वाली महिलाएं मर्दाना दिखाई देंगी. लिहाजा महिला शेविंग प्रोडक्ट्स का एक बड़ा बाजार खड़ा हो गया था, अब मार्केट में रेजर, क्रीम के अवाला शेवर भी मार्केट में आचुके थे.

समय बदला, फैशन बदला और फैशन के साथ-साथ शरीर और ज्यादा दिखाई देने लगा. और तब सिर्फ बगल और होंठ के बाल नहीं, हाथ-पैर के बाल भी शामिल हो गए थे. अब बालों को साफ करने में वक्त भी ज्यादा लगता और इसलिए 1950-70 तक शेवर को और फास्ट बनाने की होड़ लग गई. ये शेवर शरीर के 40 से 50 प्रतिशत हिस्से को hairless कर सकते थे. महिलाओं में अब हेयरलेस होना रिवाज की तरह अपनाया जा चुका था.

सेक्स अपील से जोड़े जाने लगे शरीर के बाल

1980 तक ये विज्ञापन कंपनिया शरीर के बालों को सेक्स अपील से जोड़ चुकी थीं. महिलाओं को ये संदेश भी दिया जाने लग गया कि शरीर का smooth औप पॉलिश होना पुरुषों को आपकी तरफ आकर्षित करता है. Gillette's ने Just Whistle नाम का रेजर बाजार में उतारा और विज्ञापन में लिखा गया- अगर आप किसी को आकर्षित करना चाहती हैं तो Just Whistle. बिकनी पहने लेटी हुई महिला के ऊपर एक पुरुष की परछांई दिखाई गई, और महिलाएं सब समझ गईं. फिर बिकिनी लाइन भी शेव होने में देर न लगी.

एक सदी के बाद महिलाओं को शरीर के बाल बढ़ाने की सलाह

और आज ये बाजार अपने चरम पर हैं. इन्होंने पूरी दुनिया पर कब्जा किया हुआ है. छोटी-छोटी लड़कियां पार्लर जाकर वैक्सिंग करवाकर अनचाहे बालों से मुक्ति पा लेती हैं और खूबसूरती की तरफ कदम बढ़ाती हैं. देखा जाए तो इन विज्ञापनों ने ही महिलाओं को अच्छा और बुरा समझाया है. शरीर के बाल जो natural हैं, जो किसी में ज्यादा और किसी महिला में कम होते हैं. उसे महिलाओं के डर से जोड़कर भद्दा बताया गया. लेकिन आज समाज बदल रहा है. आज महिलाओं की सोच बदल रही है, आज वो अपने शरीर से प्यार करना सीखने लगी हैं, आज उन्हें अपने सांवला रंग भी सलोना लगता है क्योंकि वो विज्ञापनों की हकीकत भी समझने लगी हैं.

महिलाएं भले ही बदलने लगी हों, लेकिन ये विज्ञापन कंपनिया कभी हार नहीं मानतीं. जिस तरफ का पलड़ा भारी दिखा उधर ही झुक जाती हैं. आज बदलते और जागरुक जमाने की तरफ झुक गईं और महिलाओं को अपने होंठ के बालों को उगाने के लिए प्रेरित कर रही हैं. वही वाल जिन्हें  एक सदी पहले तक भद्दा, अनचाहा और शर्मिंदगी देने वाला बताया गया था. वाह !  

अफसोस ये है कि इन ब्रैंड्स को भी पता है कि जो बीज वो इतने सालों से महिलाओं के दिमागों में बोते आए थे, वो अब फल दे रहा है. इतनी जल्दी तो हर महिला अपने शरीर के बालों से प्यार नहीं करने लग जाएगी. बाजार तो बदस्तूर सजा रहेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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