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हम सब किसी न किसी रेप स्टोरी का हिस्सा हैं

    • एनी ज़ैदी
    • Updated: 17 अगस्त, 2017 02:46 PM
  • 17 अगस्त, 2017 02:46 PM
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इस रेप स्टोरी में, रेपिस्ट रिटायर हो सकते हैं और जनता के पैसे पर आराम से अपनी बाकी की जिंदगी बसर कर सकते हैं. इनमें से कुछ तो खुद पीड़ितों से जुड़े होते हैं, उनके परिवारों और रिश्तेदारों में से आते हैं.

न तो ये कोई परियों की कहानी है और न ही ये देश के विकास की कहानी है. बल्कि ये रेप की कहानी है, जिसमें हम सभी शरीक हैं.

इस रेप स्टोरी में, आपके शरीर पर पूरा अधिकार आपके पिता का होता है. और उनके बाद आपके बड़े भाई, आपके चाचा और फिर आपके छोटे भाई का होता है. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप महिला हैं, पुरुष या फिर एक ट्रांसजेंडर. सभी के लिए यही सच्चाई है. आपके शरीर को किसके हवाले करना है इसका फैसला पिता, भाई या चाचा ही करते हैं. और उसके बाद इस नए इंसान का आपके तन पर पूरा अधिकार होता है.

कई बार इस कहानी में पैसे का लेन-देन भी होता है. एक महिला के शरीर के नए मालिक को उसके शरीर पर नियंत्रण के अलावा पैसे भी दिए जाते हैं. क्योंकि अब उसे उस शरीर को भोजन देना होगा. उसके रखरखाव की जिम्मेदारी लेनी होगी. उसे कपड़े मुहैया कराने का जिम्मा भी उसी का होगा. क्योंकि उस शरीर के पुराने मालिक ने उसे संभालने की भारी कीमत अदा की होती है. और क्योंकि उसे वो पैसे वापस मिलने की कोई संभावना भी नहीं होती, इसलिए अब वो आपके शरीर की ज़िम्मेदारी नहीं लेना चाहते हैं.

इस रेप स्टोरी में कुछ रेपिस्ट हैं जिनमें से कुछ को कानून और व्यवस्था के रक्षा की जिम्मेदारी मिली होती है. और यहां कुछ पीड़ित भी हैं, लेकिन ये जरूरी है कि उन्हें रेप पीड़ित नहीं कहा जाए. नहीं तो रेप को रोकना होगा. इसलिए ही पीड़ितों को दुश्मन कहा जाता है.

और उनको पीड़ितों का दुश्मन कहना इसलिए जरुरी है क्योंकि तभी तो उनके कपड़े फाड़ने, प्राइवेट पार्ट पर मारने. शरीर में पत्थरों और लकड़ियों को डालने. उनके प्राइवेट पार्ट में बिजली के झटके देने. टूटी हुई हड्डियों को कभी ना जुड़ने देने. दरिंदगी के और भी कई रुप दिखाने जैसे मल-मूत्र पिलाने को जायज ठहराया जाएगा. उसके बाद इस पूरी घटना का वीडियो बना कर रखा जाए ताकि उस शरीर को जीवन भर ये अपमान याद रहे और वो अपनी हद में रहे.

न तो ये कोई परियों की कहानी है और न ही ये देश के विकास की कहानी है. बल्कि ये रेप की कहानी है, जिसमें हम सभी शरीक हैं.

इस रेप स्टोरी में, आपके शरीर पर पूरा अधिकार आपके पिता का होता है. और उनके बाद आपके बड़े भाई, आपके चाचा और फिर आपके छोटे भाई का होता है. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप महिला हैं, पुरुष या फिर एक ट्रांसजेंडर. सभी के लिए यही सच्चाई है. आपके शरीर को किसके हवाले करना है इसका फैसला पिता, भाई या चाचा ही करते हैं. और उसके बाद इस नए इंसान का आपके तन पर पूरा अधिकार होता है.

कई बार इस कहानी में पैसे का लेन-देन भी होता है. एक महिला के शरीर के नए मालिक को उसके शरीर पर नियंत्रण के अलावा पैसे भी दिए जाते हैं. क्योंकि अब उसे उस शरीर को भोजन देना होगा. उसके रखरखाव की जिम्मेदारी लेनी होगी. उसे कपड़े मुहैया कराने का जिम्मा भी उसी का होगा. क्योंकि उस शरीर के पुराने मालिक ने उसे संभालने की भारी कीमत अदा की होती है. और क्योंकि उसे वो पैसे वापस मिलने की कोई संभावना भी नहीं होती, इसलिए अब वो आपके शरीर की ज़िम्मेदारी नहीं लेना चाहते हैं.

इस रेप स्टोरी में कुछ रेपिस्ट हैं जिनमें से कुछ को कानून और व्यवस्था के रक्षा की जिम्मेदारी मिली होती है. और यहां कुछ पीड़ित भी हैं, लेकिन ये जरूरी है कि उन्हें रेप पीड़ित नहीं कहा जाए. नहीं तो रेप को रोकना होगा. इसलिए ही पीड़ितों को दुश्मन कहा जाता है.

और उनको पीड़ितों का दुश्मन कहना इसलिए जरुरी है क्योंकि तभी तो उनके कपड़े फाड़ने, प्राइवेट पार्ट पर मारने. शरीर में पत्थरों और लकड़ियों को डालने. उनके प्राइवेट पार्ट में बिजली के झटके देने. टूटी हुई हड्डियों को कभी ना जुड़ने देने. दरिंदगी के और भी कई रुप दिखाने जैसे मल-मूत्र पिलाने को जायज ठहराया जाएगा. उसके बाद इस पूरी घटना का वीडियो बना कर रखा जाए ताकि उस शरीर को जीवन भर ये अपमान याद रहे और वो अपनी हद में रहे.

ये रेप स्टोरी रोज होती है... बार-बार

इस रेप स्टोरी में, रेपिस्ट रिटायर हो सकते हैं और पेंशन के पैसे पर आराम से अपनी बाकी की जिंदगी बसर करते हैं. वो पेंशन का पैसा जिसमें पीड़ितों की कमाई का हिस्सा भी टैक्स के रुप में काटकर इस्तेमाल किया जाता है. इस रेप स्टोरी में एक कोर्ट भी है जो ये तय करता है कि रेप क्या है और प्यार क्या. भले ही दो शरीर चीख रहे हों, दर्द से कराह रहे हों, भरे गले से चीख-चीख कर ये बता रहे हों कि उनका संबंध प्यार है, बलात्कार नहीं लेकिन फिर भी कानून के ये रखवाले अपने चश्मे के जरिए ही दो लोगों के रिश्ते की परिभाषा तय करेंगे. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता उन शरीरों का क्या कहना है.

इस रेप स्टोरी में एक शरीर को किसी बच्चे का शरीर मानना मना है. क्योंकि उसके पुराने मालिकों ने उससे जल्दी छुटकारा पाने के लिए जो भी मिला उससे बदल लिया था. इस रेप स्टोरी में, रोमांटिक या सेक्सुअल प्रेम का नाम रेप के साथ ही लिखा जाता है. और पारिवार के नाम पर रेप को लड़की की अच्छी किस्मत कहकर वैसे ही परोसा जाता है जैसे धरती मां हमें अनाज, हल्दी, तेल सब देती है.

इस रेप स्टोरी में कानून और राज्य अपने सभी शक्तियों और संसाधनों के बावजूद बलात्कार से बचने का प्रयास करने वाले शरीर को एक सुरक्षित आश्रय दे पाने में असमर्थ होते हैं. इन शरीरों को हमेशा अपने मालिकों को लौटा दिया जाता है. ये पता होने के बावजूद कि या तो वो उसे किसी को दे देंगे या फिर खत्म कर देंगे.

ऐसी कहानियों में, यह भी जरूरी है कि शरीर को पहले से ही ये बता दिया जाए और ये बात उसके दिमाग में डाल दी जाए कि खुद पर उसका सबसे कम कंट्रोल होगा. ये भी बताया जाएगा कि कैसे शरीर के इस्तेमाल करने से उसकी कीमत बढ़ने के बजाए घटती है. इसलिए जबतक किसी और को वो लोग दान न कर दें बचकर रहें.

ऐसी सभी कहानियों में दबाव बनाना ही शान है. जिसमें कुछ शरीरों की इच्छाओं की बेकद्री की गई हो, या उनके पूरे समूह को ही नजरअंदाज कर दिया गया हो. यह उन लोगों की शान और नैतिकता का प्रतीक है जिनके पास किसी का शरीर खरीदने के लिए पैसा है. वो शरीर जो उनकी खिदमत कर सके.

इस कहानी में रेपिस्ट के पास पैसा है. पावर है. वो बिजनेस मैनेज करता है. गुलदस्ते बेचता है. अपार्टमेंट की सुरक्षा करता है. स्टील पिघलाता है. काउंसिल और राज्य के डिपार्टमेंट संभालते हैं. रेपिस्ट जो कर रहे हैं उन्हें वो करने से रोका जाए तो ये मान लिया जाता है कि बिजनेस ठप हो जाएंगे, घरों की रखवाली करने वाला कोई नहीं रहेगा, कारखानों में काम बंद हो जाएंगे और राज्य का कामकाज बंद हो जाएगा.

यह माना जाता है कि पीड़ितों को बदला जा सकता है. क्योंकि आखिर न तो वो कुछ चलाती हैं न ही उनके पास ज्यादा कुछ संपत्ति होती है. उनकी जरुरत सिर्फ नए इंसान पैदा करने के लिए है. लेकिन ये मकसद तो रेप के जरिए भी पूरा किया जा सकता है. तो इस तरह ये कहानी चलती जाती है.

ऐसी कहानियां रोज कही जाती हैं. दुहराई जाती हैं. कभी-कभी ये कहानियां सुनने और कहने वालों को घुटन से भर देती हैं. लेकिन इस तरह की कहानियां कभी खत्म नहीं हुई. और इस तरह एक रेप कल्चर बना जिसके अंदर हम सभी रहते हैं.

( DailyO से साभार)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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