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बगैर कानून तोड़े इन राज्यों में ऐसे मिलती है शराब!

    • आईचौक
    • Updated: 22 जुलाई, 2016 08:13 PM
  • 22 जुलाई, 2016 08:13 PM
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विभिन्न राज्यों में शराब पर प्रतिबंध लगाने के बाद बनी सूरत अलग अलग है. देखिए पाबंदी के बावजूद कैसी कैसी गलियां निकाल दी हैं सरकारों ने, ताकि मयखाने आबाद रहें.

आमिर खान की 'पीके' याद है? एक ही चीज को लेकर हमार समाज में कितनी भिन्न मान्यताएं हैं. ये बात तो तब भी साबित हुई जब बिहार में शराबबंदी लागू हुई. क्योंकि केवल पीने वालों की मुश्किल नहीं बढ़ी धर्म और आस्था से जुड़े लोगों के भीतर भी खलबली मच गई थी. उन कुछ गांवों में जहां सदियों से देवताओं पर प्रसाद के तौर पर दारू चढ़ाने की परंपरा रही है, और चर्चों में भी जहां वाइन का विशेष महत्व होता है.

चर्चों को तब छूट मिली थी लेकिन अब खबर है कि बिहार सरकार ने यहां भी नकेल कस दी है. दरअसल, चर्च के कई आयोजनों में वाइन की जरूरत पड़ती है और इसलिए ये खुद ही वाइन बनाते भी हैं. इसके लिए उनके पास जरूरी लाइसेंस होते हैं. लेकिन बिहार सरकार ने अब इसे रद्द कर दिया है. संभव है कि चर्च के लोगों को अब वाइन के बिना ही अपने संस्कार करने होंगे.

यह भी पढ़ें- बिहार में शराबबंदी किस हद तक और कब तक?

बिहार सरकार ने तो शराबबंदी लागू कर दी लेकिन क्या वाकई शराब बंद हुआ. देश में बिहार के अलावा गुजरात, और नागालैंड भी ऐसे राज्य हैं जहां पूर्णशराब बंदी है और फिर महाराष्ट्र में भी विशेष कानून हैं. केरल भी शराबबंदी को चरणबद्ध तरीके से लागू करने की प्रतिबद्धता जता चुका है. वहां फाइव स्टार होटलों और रेस्तरां में शराब बिक्री पर बैन लग चुका है. लेकिन इन तमाम कानूनों के बावजूद पीने वालों की इच्छा पर कोई लगाम नहीं लगा सका. आईए आपको बताते हैं कि बगैर कानून तोड़े इन राज्यों में कैसे मिलती है शराब...

 कानून कोई भी हो, पीने...

आमिर खान की 'पीके' याद है? एक ही चीज को लेकर हमार समाज में कितनी भिन्न मान्यताएं हैं. ये बात तो तब भी साबित हुई जब बिहार में शराबबंदी लागू हुई. क्योंकि केवल पीने वालों की मुश्किल नहीं बढ़ी धर्म और आस्था से जुड़े लोगों के भीतर भी खलबली मच गई थी. उन कुछ गांवों में जहां सदियों से देवताओं पर प्रसाद के तौर पर दारू चढ़ाने की परंपरा रही है, और चर्चों में भी जहां वाइन का विशेष महत्व होता है.

चर्चों को तब छूट मिली थी लेकिन अब खबर है कि बिहार सरकार ने यहां भी नकेल कस दी है. दरअसल, चर्च के कई आयोजनों में वाइन की जरूरत पड़ती है और इसलिए ये खुद ही वाइन बनाते भी हैं. इसके लिए उनके पास जरूरी लाइसेंस होते हैं. लेकिन बिहार सरकार ने अब इसे रद्द कर दिया है. संभव है कि चर्च के लोगों को अब वाइन के बिना ही अपने संस्कार करने होंगे.

यह भी पढ़ें- बिहार में शराबबंदी किस हद तक और कब तक?

बिहार सरकार ने तो शराबबंदी लागू कर दी लेकिन क्या वाकई शराब बंद हुआ. देश में बिहार के अलावा गुजरात, और नागालैंड भी ऐसे राज्य हैं जहां पूर्णशराब बंदी है और फिर महाराष्ट्र में भी विशेष कानून हैं. केरल भी शराबबंदी को चरणबद्ध तरीके से लागू करने की प्रतिबद्धता जता चुका है. वहां फाइव स्टार होटलों और रेस्तरां में शराब बिक्री पर बैन लग चुका है. लेकिन इन तमाम कानूनों के बावजूद पीने वालों की इच्छा पर कोई लगाम नहीं लगा सका. आईए आपको बताते हैं कि बगैर कानून तोड़े इन राज्यों में कैसे मिलती है शराब...

 कानून कोई भी हो, पीने वालों को कौन रोक सका है...

बिहार- मदिरा प्रेमियों को तो बस पीने से मतलब होता है. आप लाख कानून बना दीजिए. तरीका वे खुद खोज लेते हैं. बिहार में खुलेआम शराब बिकनी बंद हो गई तो क्या, महफिलें अब भी यहां जमती हैं. पड़ोसी देश नेपाल और फिर दूसरे राज्यों जैसे यूपी और झारखंड से इनकी पूर्ति होने लगी है. पड़ोस के राज्यों से सटे लोग केवल पीने के लिए दो-तीन घंटे के सफर से नहीं हिचकते. यही नहीं, चोरी-छिपे शराब को राज्य में लाने का खेल भी खूब हो रहा है. एक पूरा नेटवर्क तैयार हो गया है जो आपकी डिमांड पूरी कर देगा. आपको बस अपनी जेब ढिली करने की जरूरत है.

पीने-पिलाने वाले शौकिन लोगों के घरों में स्टॉक भी जमा है. खत्म हुआ तो दूसरी खेप आ जाएगी.

यह भी पढ़ें- नीतीश ने निभाया शराबबंदी का वादा, अब पूरा करने की चुनौती

नागालैंड- इस राज्य में भी 1989 से शराबबंदी लागू है. यहां के कानून के मुताबिक शराबबिक्री से लेकर उसे बनाने, पीने-पिलाने या अखबारों में उसके बारे में विज्ञापन देने पर रोक है. लेकिन विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स की कहानी कुछ और ही सच बयां करती है. पूरे राज्य में गैरकानूनी बार और शराब की दुकानें तक मौजूद हैं. पड़ोसी असम से शराब की तस्करी भी खूब होती है.

गुजरात- देश की आजादी से पहले कई राज्यों में शराब पर बैन था. गुजरात भी इनमें से एक है. तब ये बॉम्बे स्टेट के अंदर आता था. 1960 में अलग होने के बावजूद गुजरात ने शराबबंदी को लागू रखा. लेकिन अब तो यही कहा जाता है कि यहां शराब बहुत आसानी से उपलब्ध है. इतनी आसानी से कि आपके घर भी इसकी डिलिवरी हो जाएगी. बस, ऑर्डर दीजिए.

गुजरात में एक और प्रथा खूब प्रचलन में है. आपके पास अगर परमिट है, मतलब वो मेडिकल सर्टिफिकेट जिसमें कहा जाए कि शराब आपके लिए जरूरी है, तो फिर चांदी ही चांदी. आपकी सारी समस्या हल हो जाएगी. परमिट के लिए कोटा तय है और एक बैन स्टेट में उतना ही मिल जाए, तो क्या बुरा है. ये फर्जीवारा भी वहां खूब होता है.

महाराष्ट्र- यहां की कहानी और भी दिलचस्प है. क्या आपको पता है कि अगर आप मुंबई के किसी पब में शराब पी रहे हैं तो आप एक गैरकानूनी काम कर रहे हैं. बॉम्बे प्रोहिबिश्न एक्ट-1949 के अनुसार शराब पीने के लिए आपके पास सरकारी परमिट होना जरूरी है. लेकिन परमिट के पीछे कौन भागे. तो जाहिर है, अगर आप ज़ाम का मजा ले रहे हैं तो उसका बिल किसी और के नाम पर फाड़ा जा रहा है. इसका मतलब परमिट फर्जी और जिनके नाम पर बने होंगे वो नाम भी फर्जी होंगे.

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कागज पर सब ठीक लगे इसलिए ये सारे जतन किए जाते है. जबकि सच्चाई पुलिस से लेकर प्रशासन को पता न हो, ऐसा मुमकिन नहीं. 1960 में गुजरात और महाराष्ट्र जब अलग हुए तो शराबबंदी संबंधी नियमों में यहां ढील दी गई. 1972 में इस बैन को पूरी तरह से हटा दिया गया और इसकी जगह परमिट सिस्टम को लाया गया. हालांकि, महात्मा गांधी से गहरे रिश्ते के कारण महाराष्ट्र के वर्धा जिले में शराब पर अब भी पूर्ण प्रतिबंध है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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