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शश्श्श्श.. मैं भारतीय हूं.. पर GAY हूं..

    • ऑनलाइन एडिक्ट
    • Updated: 16 दिसम्बर, 2017 12:07 PM
  • 16 दिसम्बर, 2017 12:07 PM
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क्वोरा बेवसाइट पर एक आम से सवाल के कई लोगों ने दर्द भरे जवाब दिए हैं. क्या होता है जब कोई भारतीय गे होता है? इस सवाल का जवाब कैसा दिया गया ये भी देख लीजिए...

फिल्म दोस्ताना जब आई थी तब चाहें दो लड़कियां एक साथ घूमें चाहें लड़के उन्हें दोस्ताना शब्द से ही संबोधित किया जाता था. भले ही फिल्म के दोनों हीरो गे नहीं थे, लेकिन फिर भी ये फिल्म काफी बोल्ड टॉपिक पर बनाई गई थी और इसका ट्रैक 'मां द लाडला बिगड़ गया' भी काफी लोकप्रिय हुआ था. गाना तो बहुत ही कैचिंग था, लेकिन ये भारतीय समाज की एक बड़ी गलतफहमी को भी दर्शाता है. गे होने का मतलब लड़के का बिगड़ जाना. देखिए किस तरह के सवाल सोशल मीडिया पर पूछे जाते हैं?

भारत में अगर कोई गे है तो उसके लिए मुश्किलें काफी बढ़ जाती हैं. भारत में कैसा होता है GAY होना? इस सवाल के कई जवाब Quora पर दिए गए हैं.

1. स्कूल में भी बुलाया जाता है छक्का...

एक गुमनाम यूजर ने अपना दर्द Quora पोस्ट पर लिखा है.

पोस्ट में लिखा गया है कि मैं एक 14 साल का लड़का हूं और भारत में गे होना सबसे खराब फीलिंग है. मुझे अभी तक ये नहीं पता कि मेरी सेक्शुएलिटी क्या है?

स्कूल में अभी तक मैं कभी कभी लड़कियों की तरह हरकत करता था. पिछले साल से मेरे दो क्लासमेट्स ने मुझे छक्का बुलाना शुरू कर दिया. और पूरी क्लास में ये बात फैला दी कि मेरे पास मर्दों वाला गुप्तांग नहीं है. अगस्त के महीने तक पूरी क्लास मुझे छक्का कहने लगी और लोग चिढ़ाने लगे. सभी कहते थे कि तेरे पास है क्या? मतलब भी समझ आता था इसका लेकिन कुछ कह नहीं पाता था.

लड़कियां भी इसी तरह की बात करती थीं. मैं अगर फुटबॉल या क्रिकेट खेलना चाहता था...

फिल्म दोस्ताना जब आई थी तब चाहें दो लड़कियां एक साथ घूमें चाहें लड़के उन्हें दोस्ताना शब्द से ही संबोधित किया जाता था. भले ही फिल्म के दोनों हीरो गे नहीं थे, लेकिन फिर भी ये फिल्म काफी बोल्ड टॉपिक पर बनाई गई थी और इसका ट्रैक 'मां द लाडला बिगड़ गया' भी काफी लोकप्रिय हुआ था. गाना तो बहुत ही कैचिंग था, लेकिन ये भारतीय समाज की एक बड़ी गलतफहमी को भी दर्शाता है. गे होने का मतलब लड़के का बिगड़ जाना. देखिए किस तरह के सवाल सोशल मीडिया पर पूछे जाते हैं?

भारत में अगर कोई गे है तो उसके लिए मुश्किलें काफी बढ़ जाती हैं. भारत में कैसा होता है GAY होना? इस सवाल के कई जवाब Quora पर दिए गए हैं.

1. स्कूल में भी बुलाया जाता है छक्का...

एक गुमनाम यूजर ने अपना दर्द Quora पोस्ट पर लिखा है.

पोस्ट में लिखा गया है कि मैं एक 14 साल का लड़का हूं और भारत में गे होना सबसे खराब फीलिंग है. मुझे अभी तक ये नहीं पता कि मेरी सेक्शुएलिटी क्या है?

स्कूल में अभी तक मैं कभी कभी लड़कियों की तरह हरकत करता था. पिछले साल से मेरे दो क्लासमेट्स ने मुझे छक्का बुलाना शुरू कर दिया. और पूरी क्लास में ये बात फैला दी कि मेरे पास मर्दों वाला गुप्तांग नहीं है. अगस्त के महीने तक पूरी क्लास मुझे छक्का कहने लगी और लोग चिढ़ाने लगे. सभी कहते थे कि तेरे पास है क्या? मतलब भी समझ आता था इसका लेकिन कुछ कह नहीं पाता था.

लड़कियां भी इसी तरह की बात करती थीं. मैं अगर फुटबॉल या क्रिकेट खेलना चाहता था तो कोई मुझे खेलने नहीं देता. कुछ लोग मुझे लड़की बोलने लगे थे. कुछ ऐसी हरकतें भी हुईं मेरे साथ जिन्हें यहां बताया नहीं जा सकता. ये सब मुझे अंदर से काफी परेशान करता था. मैं रोता रहता, दुखी रहता, रात में हालत और बिगड़ जाती.

बचपन में मुझे लड़कियों के कपड़े पहनना पसंद था और मैं लड़कियों के साथ खेला भी करता था. मैंने 12 साल की उम्र में पॉर्न देखना शुरू किया. मैंने हमेशा स्ट्रेट पॉर्न देखा, लेकिन हाल ही में गे पॉर्न की तरफ काफी आकर्षित हो गया.

स्कूल में जैसे ही 9वीं क्लास का चयन हुआ सिर्फ मैंने ही फ्रेंच सब्जेक्ट चुना और मेरा सेक्शन अलग कर दिया गया. अभी तक मुझे किसी महिला, लड़की, लड़के या आदमी से प्यार नहीं हुआ है तो मैं ये नहीं बता सकता कि मेरी सेक्शुएलिटी क्या है.

2. दोस्त के कारण आत्महत्या की कोशिश...

एक और गुप्त यूजर ने इस सवाल का उत्तर दिया है. 

मैं कॉलेज के फाइनल इयर में हूं. जब मैं अपनी सेक्शुएलिटी को लेकर सही महसूस करने लगा तब छुपकर मैंने कैम्पस के बाहर लड़कों से मिलना शुरू किया. मैं गे पार्टीज में जाने लगा, डेट पर जाने लगा. पर पता नहीं कैसे मेरे किसी दोस्त को ये पता चल गया. मैं अभी भी नहीं जानता कि वो कौन है.

मुझे किसी अनजान ईमेल आईडी से मेल आने लगे. वो मुझे धमकाने लगा कि वो मेरी असलियत सबके सामने ले आएगा. IIT में होने और एक होनहार स्टूडेंट होने के बाद भी मेरी हालत खराब हो गई मेरे नंबर कम होने लगे, मैं इतना उदास रहने लगा कि डिप्रेशन में चला गया. मैंने सुसाइड करने की भी कोशिश की.

पंखे से लटकने की कोशिश की, लेकिन पंखा टूटा और मेरी गर्दन में जा लगा. कई दिनों तक बोलने, खाने, सोने में तकलीफ हुई तब समझ आया कि मैं क्या कर रहा था.

3. दोहरी जिंदगी का दर्द..

एक और कोरा यूजर ने इस तरह का उत्तर दिया. अपने स्कूल में हुई घटनाओं के बारे में बताते हुए उसने कहा कि जो मर्द थोड़े इमोशनल होते हैं या फिर सेंसिटिव होते हैं उन्हें हंसी का पात्र बना दिया जाता है. मैं स्कूल में मोटा और शांत स्वभाव का हुआ करता था. मेरे ड्रामा क्वीन वाले एटिट्यूड के कारण मुझे बहुत चिढ़ाया जाता था.

मेरे पिता मुझसे नफरत करते थे और मां मुझे आज्ञाकारी और मैच्योर समझती थीं. मुझे लगता था कि मैं क्रिकेट खेलूंगा, वीडियो गेम खेलूंगा तो मैं वैसा नहीं रहूंगा जैसा मैं हूं. मुझे किताबें पढ़ना और घर के अंदर रहना ज्यादा पसंद था.

मैं कई बार अपने साथियों और कभी कभी स्कूल टीचर्स द्वारा भी बेइज्जत किया जाता था. फिर स्कूल में एक नया लड़का आया जिसने सबसे चेतावनी देने के बाद भी मुझसे दोस्ती की. मैं उसके साथ हमेशा रहना चाहता था, लेकिन जब एक खत के जरिए मैंने ये सब उसे बताया तो सब बदल गया. दो साल बाद मैं स्कूल से चला गया और कॉलेज में सबसे पहले मैंने जिम ज्वाइन किया फिर क्रिकेट खेलना, शराब पीना आदि शुरू किया. मैं लोगों के बीच मशहूर हो गया. मेरे एक दोस्त ने मुझमें इंट्रेस्ट भी दिखाया पर ये रिश्ता ज्यादा दिन न चल सका.

मैं अभी भी गे हूं. 5 साल बाद मैं सेन फ्रांसिस्को में हूं और मैं अपने हाईस्कूल कॉन्टैक्ट से दूर हो चुका हूं. कॉलेज वाले सभी मुझे स्ट्रेट समझते हैं. मैं अपने इमोशनल बीते हुए कल से काफी दूर हूं.

ये तो सिर्फ तीन ही जवाब थे, लेकिन कोरा पर इस तरह के उत्तर देने वालों की कमी नहीं है. आज भी कई ऐसे लोग सामने आते हैं जो बताते हैं कि ये अप्राकृतिक है और ऐसे लोग मानसिक रूप से बीमार होते हैं. वो देश जहां प्राइड परेड भी होती है और मिस्टर गे इंडिया जैसा इवेंट भी होता है वहां आम लोगों के लिए होमोसेक्शुएलिटी या तो भूत प्रेत का साया है, या फिर किसी तरह का मानसिक रोग, या तो बुरी संगत. 2017 में भी लोगों को यही लगता है कि होमोसेक्शुएलिटी एक अभिषाप है. क्या कोई ये नहीं जानता कि ये वैज्ञानिक है. पढ़े लिखे लोग भी जब इसे किसी तरह की बीमारी का नाम देते हैं तो सोचकर हंसी आती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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