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कैसे मैंने अपने शरीर से 20 किलो वजन कम किया

    • आईचौक
    • Updated: 18 नवम्बर, 2018 12:07 PM
  • 18 नवम्बर, 2018 12:07 PM
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अपने शरीर के साथ असली जंग तब शुरू होती है जब दिमागी तौर से आप कमजोर हो जाएं. लेकिन एक महिला की कहानी जिसने अपने वजन पर काबू पाकर खुद को पाया ये बताती है कि सोच किस तरह लोगों को बदल सकती है.

ऐसा कितनी बार हुआ है कि आइने के सामने खड़े होकर लगा हो कि ये मोटापा बेहद बदसूरत दिख रहा है. ऐसा कई बार हुआ है मेरे साथ भी. मैं करीब 20 किलो ओवरवेट थी. मुझे पता था कि मैं बदसूरत दिख रही हूं बल्कि मुझे ये यकीन था कि मैं बेहद बदसूरत हूं. कोई भी मुझे ये नहीं समझा सकता था कि ऐसा नहीं है.

हमेशा आपके आस-पास ऐसे दोस्त, रिश्तेदार और लोग होते हैं जो कहते हैं कि , 'तुम्हें वजन कम करने की जरूरत है'. मैं जानती हूं कि ऐसा होता था और मेरा जवाब सभी के लिए एक ही जैसा होता था. 'मुझे पता है पर अपना समय देकर इस समस्या के बारे में बताने के लिए शुक्रिया.'

मैं इन सभी ख्यालों को पीछे छोड़ अपने लुक को अपनाने की कोशिश करती थी, लेकिन जो मैं देखती थी उससे मेरा दिल टूट जाता था. मोटी. मैं मोटी थी.

बढ़ते वजन के साथ-साथ मेरा विश्वास कम होता जा रहा था

मेरे शरीर पर जमा अतिरिक्त चर्बी किसी जंग के निशानों की तरह बन गई थी जो हमेशा मुझे ये याद दिलाती थी कि मैं कितनी उदास थी. मेरे चेहरे, कंधे, कूल्हे, पेट, पैरों में जमा फैट बताता था कि असल में मैं किस हद तक खुद से जंग कर रही थी. मैं सिर्फ डिप्रेशन को दोष नहीं दे सकती थी. मैं जानती थी कि मैंने क्या खाया और खुद को खुली आंखों से आइने के सामने देखने से मैं डरा हुआ और असहाय महसूस करती थी.

हर हफ्ते रोते हुए मैं खुद को दया का पात्र मानती थी, लेकिन इस बार कुछ अलग हुआ. मैं हमेशा चिप्स और चॉकलेट खाने की जगह मैं ऑनलाइन चली गई. कुछ बदला हुआ सा लग रहा था. मैं चाहती थी कि उस पल को कैद कर लूं, लेकिन ऐसा हो नहीं सकता था. मैंने बस सोच लिया कि बहुत हो गया.

कैसे मैंने 20 किलो वजन कम किया?

सिर्फ सोचकर. जी हां, इसे मजाक मत समझिए. मैंने अपना वजन कम करने के बारे में हर वक्त सोचा. किसी चीज़ को पाने की...

ऐसा कितनी बार हुआ है कि आइने के सामने खड़े होकर लगा हो कि ये मोटापा बेहद बदसूरत दिख रहा है. ऐसा कई बार हुआ है मेरे साथ भी. मैं करीब 20 किलो ओवरवेट थी. मुझे पता था कि मैं बदसूरत दिख रही हूं बल्कि मुझे ये यकीन था कि मैं बेहद बदसूरत हूं. कोई भी मुझे ये नहीं समझा सकता था कि ऐसा नहीं है.

हमेशा आपके आस-पास ऐसे दोस्त, रिश्तेदार और लोग होते हैं जो कहते हैं कि , 'तुम्हें वजन कम करने की जरूरत है'. मैं जानती हूं कि ऐसा होता था और मेरा जवाब सभी के लिए एक ही जैसा होता था. 'मुझे पता है पर अपना समय देकर इस समस्या के बारे में बताने के लिए शुक्रिया.'

मैं इन सभी ख्यालों को पीछे छोड़ अपने लुक को अपनाने की कोशिश करती थी, लेकिन जो मैं देखती थी उससे मेरा दिल टूट जाता था. मोटी. मैं मोटी थी.

बढ़ते वजन के साथ-साथ मेरा विश्वास कम होता जा रहा था

मेरे शरीर पर जमा अतिरिक्त चर्बी किसी जंग के निशानों की तरह बन गई थी जो हमेशा मुझे ये याद दिलाती थी कि मैं कितनी उदास थी. मेरे चेहरे, कंधे, कूल्हे, पेट, पैरों में जमा फैट बताता था कि असल में मैं किस हद तक खुद से जंग कर रही थी. मैं सिर्फ डिप्रेशन को दोष नहीं दे सकती थी. मैं जानती थी कि मैंने क्या खाया और खुद को खुली आंखों से आइने के सामने देखने से मैं डरा हुआ और असहाय महसूस करती थी.

हर हफ्ते रोते हुए मैं खुद को दया का पात्र मानती थी, लेकिन इस बार कुछ अलग हुआ. मैं हमेशा चिप्स और चॉकलेट खाने की जगह मैं ऑनलाइन चली गई. कुछ बदला हुआ सा लग रहा था. मैं चाहती थी कि उस पल को कैद कर लूं, लेकिन ऐसा हो नहीं सकता था. मैंने बस सोच लिया कि बहुत हो गया.

कैसे मैंने 20 किलो वजन कम किया?

सिर्फ सोचकर. जी हां, इसे मजाक मत समझिए. मैंने अपना वजन कम करने के बारे में हर वक्त सोचा. किसी चीज़ को पाने की होड़ इस कदर मेरे दिल में छाई कि उसे पाकर ही दम लिया. मैंने हर जगह रिमाइंडर लगाना शुरू कर दिया. अपने ऑफिस में, अपने फोन में, अपने रूम में यहां तक कि मैंने ये भी सोचा कि मैं एक टैटू बनवा लूं.

दिन के समय मैंने बहुत कम खाना शुरू किया और जितना हो सके उतना चलना शुरू कर दिया. रात के समय मैं घंटों ऑनलाइन रहती और एक के बाद एक सक्सेस स्टोरी पढ़ती. मोटिवेशन कोट्स देखती और वजन कम करने की टिप्स सर्च करती.

तो जितना समय मैंने सोचने के लिए लगाया मेरा वजन कम होता चला गया. ये धीरे-धीरे हुआ. दो किलो एक हफ्ते में, फिर 4 किलो एक महीने में, फिर 8 किलो दो महीने में.

मेरे पढ़ने की आदत ने मेरी सहायता की. इससे मुझे ये अहसास हुआ कि कितनी जल्दी वजन कम किया जा सकता है. साथ ही ये भी समझ आया कि कितनी जल्दी ये वापस चढ़ सकता है. अगर आप सतर्क नहीं हैं तो. मैंने कोई भयानक डायट नहीं की, स्मूथी नहीं पी, वजन कम करने वाला खाना नहीं खाया क्योंकि ये एक लाइफस्टाइल का बदलाव था जो सिर्फ एक समय तक नहीं सीमित रहता.

मेरे शरीर ने भी मेरा साथ दिया. पहले धीरे-धीरे फिर बहुत ज्यादा. मैं पहले हमेशा खाती रहती थी और ऐसा लगता था कि मेरा पेट भरा हुआ है. कभी-कभी चिड़चिड़ापन भी होता था, लेकिन जैसे ही मैंने अपने शरीर को ठीक डायट देना शुरू किया और सब्जियां और फल खाने शुरू किए मेरे शरीर ने अपने आप साथ देना शुरू कर दिया. क्योंकि मैं अच्छा महसूस कर रही थी इसलिए मेरे शरीर को देखकर अब मैं डिप्रेस नहीं होती थी. मेरे रिश्तेदारों और दोस्तों ने मुझसे टिप्स मांगने शुरू कर दिए और मुझे कहने लगे कि मैंने काफी वजन कम कर लिया है पर इस बार मैंने सिर्फ अपनी सुनी.

मैंने वजन कम कर लिया और मैंने अपने शरीर का ख्याल रखना शुरू कर दिया. अब सिर्फ मेरे खाने पीने की आदतें ही नहीं बल्कि मेरा शरीर भी बदल गया है. मेरी इमेज अब अच्छी लगती है. ऐसे कई दिन आते हैं जब मुझे लगता है कि मैं फिर से मोटी हो गई हूं जब्कि ऐसा नहीं है. मैं खुद को उन इंस्टाग्राम मॉडल की तरह देखने लगी हूं जिनके एब्स ऐसे लगते हैं जैसे उन्हें तराशा गया हो.

मैं जानती हूं कि मैं अपने शरीर से धोखा कर रही हूं ये सोचकर कि मैं उनके जैसी हूं, लेकिन मुझे उनके जैसा बनने की कोई जरूरत नहीं है. मैं इतनी दूर आ गई हूं और अब जो जंग बाकी है वो दिमागी है. सच कहूं तो ये जंग हमेशा दिमागी ही होती है. बदलाव हमेशा दिमाग से शुरू होता है.

मैं इसके बारे में लिख क्यों रही हूं? क्योंकि मैं जानती हूं कि बाकी महिलाएं भी ऐसा ही महसूस करती हैं. बूढ़ी, जवान, मोटी, पतली, फिट, एथिलीट कोई भी हो उन्हें अपने शरीर को लेकर शंका होती है. मोटापा हमें एक कर सकता है और जो अंतर दिखता है वो किसी और चीज़ के जैसा नहीं होता.

ऐसा होने के बाद अब मैं सोचने लगी हूं कि क्या वजन कम करने की होड़ जेंडर स्पेसिफिक है? क्या एक जेंडर को इसके बारे में ज्यादा सोचने की परेशानी रहती है या फिर ये दोनों जेंडर के लिए एक जैसा है. अगर किसी एक के लिए ही है तो ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि हम अपने लुक्स को इस बात से जोड़ लेते हैं कि हमें कितना प्यार मिलने वाला है. क्या हम जैसे दिखते हैं उसका असर इसपर भी पड़ता है कि हम कैसा महसूस कर रहे हैं?

क्या हमारी जिंदगी में मौजूद लोग असल में ये सोचते हैं कि हम 5 किलो ज्यादा वजन के साथ जी रहे हैं? कुछ कहेंगे हां ऐसा ही है पर अगर 5 किलो अधिक वजन का मतलब है कि हम अपनी जिंदगी जी सकते हैं, जो जी में आए खा सकते हैं, जो जी में आए पी सकते हैं, वो सब महसूस कर सकते हैं जो हम करना चाहते हैं तो क्या वो 5 किलो अधिक वजन वाकई बुरा है? क्या 5 किलो एक्स्ट्रा वजन असल में हमारा एक्सपीरियंस हमसे छीन सकता है? हमारी खुशी छीन सकता है?

जहां तक मुझे बौद्धिक रूप से इसका उत्तर पता है मैं अपने अंदर की भावनाओं से हर वक्त बहस नहीं कर सकती. वजन कम करना आसान है, लेकिन एक्स्ट्रा बैगेज कम करना मुश्किल.

(ये आर्टिकल Dailyo वेबसाइट के लिए Soven Trehan ने लिखा था.)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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