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एक डेंगू मरीज के इलाज का खर्च 18 लाख इसलिए होता है...

    • अभिनव राजवंश
    • Updated: 23 नवम्बर, 2017 01:33 PM
  • 23 नवम्बर, 2017 01:33 PM
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प्राइवेट अस्पतालों द्वारा इलाज के नाम पर लोगों को ठगा जाना कोई नई बात नहीं है. इसी क्रम में गुड़गांव के मशहूर फोर्टिस अस्पताल ने जो डेंगू की मरीज 7 साल की बच्‍ची के साथ किया वो ये बताने के लिए काफी है कि अब अस्पताल इलाज को पैसा कमाने का एक आसान माध्यम मानते हैं.

गुड़गांव के मशहूर फोर्टिस अस्पताल में एक बच्ची के डेंगू के इलाज का बिल 18 लाख रुपए आया है. यह राशि मात्र 15 दिनों के इलाज का खर्च था. हालांकि इस भारी-भरकम बिल के बाद भी अस्पताल प्रबंधन बच्ची की जान को बचाने में नाकायाब रहा. अस्पताल ने 15 दिन इलाज के बाद लगभग 20 पन्नो का बिल थमाया था, इस भारी भरकम बिल में महंगी दवाइओं के अलावा 660 सिरिंज, 2700 ग्लव्स भी शामिल हैं. यह घटना यह बताने के लिए काफी है कि किस प्रकार देश के प्राइवेट अस्पताल उत्तम स्वास्थ सेवा के नाम पर लोगों से भारी भरकम वसूली करती हैं. जब गुड़गांव के हालात ऐसे हैं तो देश के बाकि हिस्सों का हाल समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है.

यह कोई पहला मामला नहीं है जब स्वास्थ्य सेवाओं में अंधेरगर्दी की ख़बरें आयी हों. इसी साल जनवरी के महीने में फोर्टिस अस्पताल पर ही आरोप लगे थे कि एक महिला की मौत हो जाने के बाद भी चार दिनों तक उसके इलाज का नाटक किया जाता रहा. एक अन्य मामले में पथरी के एक मरीज को ऑपरेशन से पहले 7 दिन की दवा का बिल कथित रूप से पौने चार लाख रुपये थमा दिए गए थे. इन मामलों से सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता कि देश के नामी गिरामी अस्पताल लोगों की मजबूरी का फायदा उठा करोड़ों का वारा न्यारा करने में लगें हैं.

इलाज के नाम पर अस्पतालों की धन उगाही कोई नई बात नहीं है

हालाँकि यहाँ सवाल यह उठता है कि कोई भी अपने इलाज के लिए निजी अस्पतालों की राह क्यों पकड़ता है? इस सवाल का जवाब हमारे सरकारी अस्पतालों  की ख़राब सेहत से जुड़ा है. अभी कुछ महीनों पहले ही गोरखपुर का बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेजसुर्ख़ियों में था, वजह थी कि इस अस्पताल में ऑक्सीजन के कमी के कारण दर्जनों बच्चों की मौत हो गयी थी.

सरकारी अस्पतालों में लापरवाही से जुड़े ऐसे ही मामले देश भर के अस्पतालों से आते रहते हैं. सरकारी...

गुड़गांव के मशहूर फोर्टिस अस्पताल में एक बच्ची के डेंगू के इलाज का बिल 18 लाख रुपए आया है. यह राशि मात्र 15 दिनों के इलाज का खर्च था. हालांकि इस भारी-भरकम बिल के बाद भी अस्पताल प्रबंधन बच्ची की जान को बचाने में नाकायाब रहा. अस्पताल ने 15 दिन इलाज के बाद लगभग 20 पन्नो का बिल थमाया था, इस भारी भरकम बिल में महंगी दवाइओं के अलावा 660 सिरिंज, 2700 ग्लव्स भी शामिल हैं. यह घटना यह बताने के लिए काफी है कि किस प्रकार देश के प्राइवेट अस्पताल उत्तम स्वास्थ सेवा के नाम पर लोगों से भारी भरकम वसूली करती हैं. जब गुड़गांव के हालात ऐसे हैं तो देश के बाकि हिस्सों का हाल समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है.

यह कोई पहला मामला नहीं है जब स्वास्थ्य सेवाओं में अंधेरगर्दी की ख़बरें आयी हों. इसी साल जनवरी के महीने में फोर्टिस अस्पताल पर ही आरोप लगे थे कि एक महिला की मौत हो जाने के बाद भी चार दिनों तक उसके इलाज का नाटक किया जाता रहा. एक अन्य मामले में पथरी के एक मरीज को ऑपरेशन से पहले 7 दिन की दवा का बिल कथित रूप से पौने चार लाख रुपये थमा दिए गए थे. इन मामलों से सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता कि देश के नामी गिरामी अस्पताल लोगों की मजबूरी का फायदा उठा करोड़ों का वारा न्यारा करने में लगें हैं.

इलाज के नाम पर अस्पतालों की धन उगाही कोई नई बात नहीं है

हालाँकि यहाँ सवाल यह उठता है कि कोई भी अपने इलाज के लिए निजी अस्पतालों की राह क्यों पकड़ता है? इस सवाल का जवाब हमारे सरकारी अस्पतालों  की ख़राब सेहत से जुड़ा है. अभी कुछ महीनों पहले ही गोरखपुर का बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेजसुर्ख़ियों में था, वजह थी कि इस अस्पताल में ऑक्सीजन के कमी के कारण दर्जनों बच्चों की मौत हो गयी थी.

सरकारी अस्पतालों में लापरवाही से जुड़े ऐसे ही मामले देश भर के अस्पतालों से आते रहते हैं. सरकारी अस्पतालों मे भीड़, बेड की कमी, दवाइयों के नाम पर घालमेल और डॉक्टर व अन्य कर्मचारियों की कमी होना आम बात है, और यह कमोबेश देश के ज्यादातर सरकारी अस्पतालों के बारे में कहा जा सकता है.

भारत में डॉक्टरों की भी भारी कमी है, विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रति 1000 लोगो पर 1 डॉक्टर के अनुपात की बात करता है. जबकि भारत में प्रति 1600 लोगों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है. 2016 के इंडियास्पेंड के एक आकड़ें के अनुसार भारत में लगभग 5 लाख डॉक्टरों की कमी है. इन चौकाने वाले आकड़ों के बावजूद कोई भी सरकार स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान देती नजर नहीं आती. 2015 के आकड़ों पर आधारित लांसेट के आकड़ों के अनुसार स्वास्थ्य सेवा उपलब्धता के मामले में भारत 194 देशों में 154 वें स्थान पर है.

भारत में डॉक्टरों की कमी का एक कारण देश में मेडिकल की महंगी पढाई भी है. देश में लगभग आधे लोग प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरी की पढाई करते हैं, और देश में प्राइवेट मेडिकल कॉलेज का खर्च 50 लाख से एक करोड़ तक हो जाता है. ऐसे में यहां से पढ़ने वाले डॉक्टर भी इस पेशे को सेवा से ज्यादा कमाई का ही जरिया मान कर चलते हैं. फोर्टिस अस्पताल का यह मामला उसी स्थिति को दर्शाता है जब अस्पताल प्रबंधन ने पूरा पैसा चुकाने तक, बच्ची का शव तक देने से इंकार कर दिया. अब इस घटना के बाद सरकार इस मामले की जांच कर रही है, बावजूद इसके देश की स्वास्थ्य सेवाओं में अंधेरगर्दी में कोई अंतर आएगा ऐसा लगता नहीं, क्योंकि देश की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए काफी कुछ किया जाना बाकि है.

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