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गांव के गांव लील रही है कोसी नदी!

    • विद्युत प्रभा सिंह
    • Updated: 03 सितम्बर, 2016 02:55 PM
  • 03 सितम्बर, 2016 02:55 PM
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1987 के भयंकर बाढ़ में एक गांव 'सहोड़ा' को कोसी नदी ने पूरी तरह से निगल लिया था. उस गांव के लोगों ने बाद में रेलवे लाइन को अपना ठिकाना बना लिया. लेकिन पिछले और इस साल की बाढ़ ने वहां से भी कई लोगों को विस्थापित होने के लिए मजबूर कर दिया है...

मदरौनी गांव काफी बड़ा गांव था लेकिन कोसी के कटाव के कारण अब ये केवल दक्षिण में स्थित बरौनी-कटिहार मुख्य रेलवे लाइन और उत्तर में स्थित पुरानी रेलवे लाइन के बीच ही सीमित रह गया है. कई लोग विस्थापित हो चुके हैं. तो कई ग्रामवासियों ने अपने नए घर दो रेलवे लाइन के बीच में बना लिया है. करीब दो दशक पहले कोसी नदी करीब 2 किलोमीटर दूर बहती थी. लेकिन आज वो बचे हुए गांव को भी निगलने के कगार पर है.

1987 के भयंकर बाढ़ में एक और गांव 'सहोड़ा' जो मुख्यतः पिछड़ी जाती के लोगों का गांव था, पुरानी रेलवे लाइन से करीब 2 किलोमीटर उत्तर में था. उस गांव को भी कोसी नदी ने पूरी तरह से निगल लिया था और उस गांव के निवासी अब पुरानी रेलवे लाइन पर निवास कर रहे हैं. लेकिन कोसी नदी ने पिछले और इस साल में करीब आधी आबादी को वहां से भी विस्थापित होने के लिए मजबूर कर दिया है.

यह भी पढ़ें- अगर गंगा मैया लालू के आंगन तक आ जाएँ?

कोसी नदी का कटाव ऐसा है कि अभी कोसी नदी बरौनी कटिहार मुख्य रेलवे लाइन से करीब 500 मीटर की दूरी पर बह रही है और किसी भी समय बरौनी कटिहार मुख्य रेलवे लाइन के लिए बड़ा खतरा बन सकती है. पिछले कुछ वर्षों में ग्रामीणों की जानकारी के अनुसार करीब 28 करोड़ की राशी कोसी नदी के कटाव को रोकने में खर्च की जा चुकी है. इसमें काफी बड़ा अंश केंद्र सरकार द्वारा भी दिया गया. लेकिन धरातल पर कोई खास बदलाव नजर नहीं आता है.

 हर साल आता है कोसी का कहर (फाइल फोटो)

ग्रामीणों की जमीन, बाग़-बगीचे, घर,...

मदरौनी गांव काफी बड़ा गांव था लेकिन कोसी के कटाव के कारण अब ये केवल दक्षिण में स्थित बरौनी-कटिहार मुख्य रेलवे लाइन और उत्तर में स्थित पुरानी रेलवे लाइन के बीच ही सीमित रह गया है. कई लोग विस्थापित हो चुके हैं. तो कई ग्रामवासियों ने अपने नए घर दो रेलवे लाइन के बीच में बना लिया है. करीब दो दशक पहले कोसी नदी करीब 2 किलोमीटर दूर बहती थी. लेकिन आज वो बचे हुए गांव को भी निगलने के कगार पर है.

1987 के भयंकर बाढ़ में एक और गांव 'सहोड़ा' जो मुख्यतः पिछड़ी जाती के लोगों का गांव था, पुरानी रेलवे लाइन से करीब 2 किलोमीटर उत्तर में था. उस गांव को भी कोसी नदी ने पूरी तरह से निगल लिया था और उस गांव के निवासी अब पुरानी रेलवे लाइन पर निवास कर रहे हैं. लेकिन कोसी नदी ने पिछले और इस साल में करीब आधी आबादी को वहां से भी विस्थापित होने के लिए मजबूर कर दिया है.

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कोसी नदी का कटाव ऐसा है कि अभी कोसी नदी बरौनी कटिहार मुख्य रेलवे लाइन से करीब 500 मीटर की दूरी पर बह रही है और किसी भी समय बरौनी कटिहार मुख्य रेलवे लाइन के लिए बड़ा खतरा बन सकती है. पिछले कुछ वर्षों में ग्रामीणों की जानकारी के अनुसार करीब 28 करोड़ की राशी कोसी नदी के कटाव को रोकने में खर्च की जा चुकी है. इसमें काफी बड़ा अंश केंद्र सरकार द्वारा भी दिया गया. लेकिन धरातल पर कोई खास बदलाव नजर नहीं आता है.

 हर साल आता है कोसी का कहर (फाइल फोटो)

ग्रामीणों की जमीन, बाग़-बगीचे, घर, इत्यादि पर भयंकर संकट है. अगर तुरंत कोई उचित कार्यवाई नहीं हुई तो मदरौनी गांव का अस्तित्व पूर्णतः समाप्त हो जायेगा.

अभी हाल ये है कि मदरौनी गांव तीन तरफ से पानी में डूबा हुआ है. NH 31 से गांव आने-जाने का भी रास्ता नहीं है. ग्रामीणों की जानकारी के अनुसार कहलगांव और कटारिया को रेल पूल से जोड़ने की परियोजना को मंजूरी मिल चुकी है. लेकिन अगर मदरौनी गांव को कोसी नदी से नहीं बचाया गया तो ये परियोजना कभी आकार नहीं ले पायेगी.

राज्य सरकार पिछले कुछ दिनों से मदरौनी गांव को कोसी नदी के कटाव से बचाने के लिए प्रयासरत हुई है. कुछ अधिकारियों को इस कार्य में उचित कदम नहीं उठाने के कारण राज्य सरकार उन्हें निलंबित भी कर चुकी है. लेकिन इतना काफी नहीं है और समुचित ठोस कदम उठाना होगा.

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28 जुलाई को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हवाई सर्वेक्षण भी किया है. करीब डेढ़ महीने पहले जल संसाधन मंत्रई ललन सिंह ने गांव का दौरा किया और 5 अभियंताओं को कार्य में गड़बड़ी के चलते कार्य मुक्त कर दिया गया. लोकसभा के मौजूदा मानसून सत्र में औरंगाबाद के सांसद सुशील कुमार सिंह ने इस मुद्दो को शून्य काल में उठाया था. लेकिन नतीजा तो अब भी सिफर है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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