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ऐसे हुई थी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत! अंग्रेजों ने की थी साजिश...

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 18 अगस्त, 2018 12:13 PM
  • 22 जनवरी, 2018 05:41 PM
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बोस से जुड़ी कोई भी बात हो उनकी मृत्यु की गुत्थि का जिक्र जरूर होता है. आम थ्योरी कहती है कि बोस की मौत 1945 में एक प्लेन क्रैश में हो गई थी, लेकिन क्या ये सच्चाई है?

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत से जुड़े कई किस्से - कहानियां और गणनाएं की जाती हैं. सच तो ये है कि आज भी किसी को ये नहीं पता कि आखिर नेताजी की मृत्यु कैसे हुई थी? जैसा कि सभी जानते हैं कि नेताजी का जन्मदिन 23 जनवरी 1897 को कटक में हुआ था और मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइवान में हुई.

बोस से जुड़ी कोई भी बात हो उनकी मृत्यु की गुत्थि का जिक्र जरूर होता है. आम थ्योरी कहती है कि बोस की मौत 1945 में एक प्लेन क्रैश में हो गई थी, लेकिन क्या ये सच्चाई है? उसके बाद भी कई लोगों ने ये दावा किया कि उन्होंने बोस को जिंदा देखा है. कुछ का कहना था कि बोस रशिया चले गए थे.

इसी तरह का दावा करती है एक किताब "Bose: The Indian Samurai - Netaji and the INA Military Assessment". ये किताब सबसे पहले 2016 में पब्लिश की गई थी. इस किताब में लिखा गया है बोस प्लेन क्रैश में नहीं मरे थे. ये किताब लिखी है रिटायर्ड मेजर जनरल जी डी बक्शी ने.

किताब कहती है कि नेताजी प्लेन क्रैश में नहीं मरे थे बल्कि ये थ्योरी जापान की इंटेलिजेंस एजेंसियों द्वारा फैलाई गई थी ताकि नेताजी सीधे तौर पर भाग सकें. नेताजी इसके बाद सोवियत यूनियन भाग गए थे.

किताब के अनुसार सोवियत एम्बेसेडर जो टोकियो में थे उनकी मदद से बोस ने ये प्लान बनाया था. जेकब मलिक ने ही सर्बिया में आज़ाद हिंद सरकार की एम्बेसी सेट करने में मदद की थी.

जनरल बक्शी का कहना है कि उनके पास अखंडनीय सबूत हैं कि नेताजी 18 अगस्त 1945 को प्लेन क्रैश में नहीं मरे थे. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मन बॉम्बर्स से बचने के लिए उस समय की सोवियत सरकार ने अपना बेस सर्बिया में शिफ्ट कर लिया था और जेकब मलिक की मदद से एम्बेसी रशिया में सेट की गई थी.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत से जुड़े कई किस्से - कहानियां और गणनाएं की जाती हैं. सच तो ये है कि आज भी किसी को ये नहीं पता कि आखिर नेताजी की मृत्यु कैसे हुई थी? जैसा कि सभी जानते हैं कि नेताजी का जन्मदिन 23 जनवरी 1897 को कटक में हुआ था और मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइवान में हुई.

बोस से जुड़ी कोई भी बात हो उनकी मृत्यु की गुत्थि का जिक्र जरूर होता है. आम थ्योरी कहती है कि बोस की मौत 1945 में एक प्लेन क्रैश में हो गई थी, लेकिन क्या ये सच्चाई है? उसके बाद भी कई लोगों ने ये दावा किया कि उन्होंने बोस को जिंदा देखा है. कुछ का कहना था कि बोस रशिया चले गए थे.

इसी तरह का दावा करती है एक किताब "Bose: The Indian Samurai - Netaji and the INA Military Assessment". ये किताब सबसे पहले 2016 में पब्लिश की गई थी. इस किताब में लिखा गया है बोस प्लेन क्रैश में नहीं मरे थे. ये किताब लिखी है रिटायर्ड मेजर जनरल जी डी बक्शी ने.

किताब कहती है कि नेताजी प्लेन क्रैश में नहीं मरे थे बल्कि ये थ्योरी जापान की इंटेलिजेंस एजेंसियों द्वारा फैलाई गई थी ताकि नेताजी सीधे तौर पर भाग सकें. नेताजी इसके बाद सोवियत यूनियन भाग गए थे.

किताब के अनुसार सोवियत एम्बेसेडर जो टोकियो में थे उनकी मदद से बोस ने ये प्लान बनाया था. जेकब मलिक ने ही सर्बिया में आज़ाद हिंद सरकार की एम्बेसी सेट करने में मदद की थी.

जनरल बक्शी का कहना है कि उनके पास अखंडनीय सबूत हैं कि नेताजी 18 अगस्त 1945 को प्लेन क्रैश में नहीं मरे थे. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मन बॉम्बर्स से बचने के लिए उस समय की सोवियत सरकार ने अपना बेस सर्बिया में शिफ्ट कर लिया था और जेकब मलिक की मदद से एम्बेसी रशिया में सेट की गई थी.

बोस जब जापान से भागे तो उन्होंने सर्बिया से तीन रेडियो ब्रॉडकास्ट किए और उसी वक्त अंग्रेजों को पता चला कि बोस जिंदा हैं.

किताब के अनुसार ऐसे हुई मौत...

किताब के अनुसार बोस के जिंदा होने के सबूत मिलने पर ही ब्रिटिश सरकार ने सोवियत यूनियन की सरकार से ये विनती की थी कि उन्हें बोस से पूछताछ करने दी जाए. किताब के अनुसार पूछताछ के दौरान ही बोस को टॉर्चर किया गया और उस दौरान उनकी मौत हुई.

2016 में बोस के जन्मदिन के दौरान ही 100 से ज्यादा सीक्रेट फाइलें नरेंद्र मोदी द्वारा सार्वजनिक की गई थीं.

इनमें से दो के अनुसार नेताजी 18 अगस्त 1945 को प्लेन क्रैश में मारे गए थे और तीसरी रिपोर्ट जो जस्टिस एम के मुखर्जी की अध्यक्षता में बनी थी उसके अनुसार बोस जिंदा थे.

सरकार देती है ये जवाब..

पिछले साल एक RTI के जवाब में सरकार ने सीधी साधी थ्योरी बताई थी और कहा था कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु ताइवान के पास एक प्लेन क्रैश में हुई थी. तारीख थी 18 अगस्त 1945.

ये RTI सायक सेन ने फाइल की थी और मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स ने इसका जवाब दिया था.

किताब के अनुसार तो बोस की मृत्यु बाद में हुई थी और प्लेन क्रैश की थ्योरी सिर्फ अंग्रेजों को झांसा देने के लिए थी. बोस को लेकर कई राज़ अब भी बाकी हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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