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फेल शिक्षा व्यवस्था से नौकरी की परीक्षा पास करने वाले युवा कैसे निकलेंगे?

    • Shubham Singh Rajput
    • Updated: 01 फरवरी, 2023 09:56 PM
  • 01 फरवरी, 2023 09:54 PM
offline
देश के तमाम युवा जो दिशाहीन हैं और उनका कोई लक्ष्य नहीं है. इसका कारण है हमारी शिक्षा व्यवस्था. सरकार जब तक शिक्षा प्रणाली अपनी व्यवस्था में सही बदलाव नहीं करती तब तक युवाओं के साथ मज़ाक होता रहेगा और वो नौकरी के लिए दर दर की ठोकरें खाते रहेंगे.

लक्ष्य जीवन में किसी का तय नहीं है. आदमी जीवन में करना कुछ चाहता है और हो कुछ जाता हैं. शायद जिंदगी बेहतर देना चाहती हो. जैसे हमारे देश के प्रधान मंत्री मोदी, जो निकले थे साधु बनने और आज प्रधान मंत्री हैं. एपीजे अब्दुल कलाम एयर फोर्स में जाना चाहते थे लेकिन उन्होंने भारत के वैज्ञानिक से राष्ट्रपति तक सफर तय किया. ऐसे बहुत से उदाहरण पड़े है लेकिन मैं इन सब को अपवाद मानता हूं. क्योंकि ये कहानी करोड़ों को प्रेरित जरूर करती है, लेकिन लाखों में से किसी एक के साथ घटती है. और आज का भारतीय युवा भी इन्हीं का शिकार है.और हो भी क्यों न जिसको पता ही नहीं हो कि कक्षा 10 में जानें के बाद आगे करना क्या है.बारहवीं में विज्ञान या मैथ्स लेकर पढ़ाई करता है शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक हर साल 50 % से 60% बच्चे अपना विषय बदल देते हैं. छात्र ऐसा क्यों करते हैं इसके पीछे 2 या 3 कारण हैं.

लक्ष्य तय न होना

आईआईटी-जेईई न निकाल पाने पर

यूपीएससी या सरकारी नौकरी के लालच में

छात्र नौकरियां तभी पा पाएंगे जब उन्हें सही शिक्षा मिलेगी

सरकारी नौकरी का आलम या खुमार इस कदर रहता है . 100 % में से 95% छात्रों ने अपने जीवन में सरकारी नौकरी का पेपर एक बार जरूर दिया होता है . 70 % लोग 4 या 5 साल अपने जीवन का तैयारी के नाम पर गवां देते हैं , नौकरी केवल 1 % लोगों को ही मिलती है. और बाकी लोग अपना लक्ष्य बदल लेते हैं. अब इश्का दोषी किसे माना जाए?मां बाप को, जो दूसरों के बेटे को देख कर अपने बेटे को सरकारी नौकरी के लिए दबाव बनाते या प्रेरित करते हैं, या अपने देश के उस सिस्टम को जो हमें महसूस कराता है कि नौकरी मिलने के बाद 60 साल तक कोई टेंशन नहीं.

दोषी जो भी हो, न्यू यॉर्क टाइम्स एक आंकड़े के...

लक्ष्य जीवन में किसी का तय नहीं है. आदमी जीवन में करना कुछ चाहता है और हो कुछ जाता हैं. शायद जिंदगी बेहतर देना चाहती हो. जैसे हमारे देश के प्रधान मंत्री मोदी, जो निकले थे साधु बनने और आज प्रधान मंत्री हैं. एपीजे अब्दुल कलाम एयर फोर्स में जाना चाहते थे लेकिन उन्होंने भारत के वैज्ञानिक से राष्ट्रपति तक सफर तय किया. ऐसे बहुत से उदाहरण पड़े है लेकिन मैं इन सब को अपवाद मानता हूं. क्योंकि ये कहानी करोड़ों को प्रेरित जरूर करती है, लेकिन लाखों में से किसी एक के साथ घटती है. और आज का भारतीय युवा भी इन्हीं का शिकार है.और हो भी क्यों न जिसको पता ही नहीं हो कि कक्षा 10 में जानें के बाद आगे करना क्या है.बारहवीं में विज्ञान या मैथ्स लेकर पढ़ाई करता है शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक हर साल 50 % से 60% बच्चे अपना विषय बदल देते हैं. छात्र ऐसा क्यों करते हैं इसके पीछे 2 या 3 कारण हैं.

लक्ष्य तय न होना

आईआईटी-जेईई न निकाल पाने पर

यूपीएससी या सरकारी नौकरी के लालच में

छात्र नौकरियां तभी पा पाएंगे जब उन्हें सही शिक्षा मिलेगी

सरकारी नौकरी का आलम या खुमार इस कदर रहता है . 100 % में से 95% छात्रों ने अपने जीवन में सरकारी नौकरी का पेपर एक बार जरूर दिया होता है . 70 % लोग 4 या 5 साल अपने जीवन का तैयारी के नाम पर गवां देते हैं , नौकरी केवल 1 % लोगों को ही मिलती है. और बाकी लोग अपना लक्ष्य बदल लेते हैं. अब इश्का दोषी किसे माना जाए?मां बाप को, जो दूसरों के बेटे को देख कर अपने बेटे को सरकारी नौकरी के लिए दबाव बनाते या प्रेरित करते हैं, या अपने देश के उस सिस्टम को जो हमें महसूस कराता है कि नौकरी मिलने के बाद 60 साल तक कोई टेंशन नहीं.

दोषी जो भी हो, न्यू यॉर्क टाइम्स एक आंकड़े के मुताबित अमेरिका में लोग सरकारी नौकरी से जायदा प्राइवेट नौकरी में जाना चाहते हैंऔर पसंद करते हैं. चीन में, चाइना डिजिटल वेबसाइट के एक आंकड़े के मुताबीत लोग चाइना में नौकरी से जायदा स्टार्टअप में रुचि रखते हैं, बिजनेस करने की कला उन्हें बचपन से ही सिखाई जाती है, और वहां 14 - 15 साल के छात्र पढ़ाई के साथ - साथ कुछ न कुछ अपना खुद का करते हैं, इस लिए शायद चीन की अर्थव्यवस्था भारत से मजबूत है.

लेकिन वहीं भारत के 24 से 28 साल के युवा अगर एक बड़ी संख्या में (60%) से जायदा छात्र केवल छात्र के नाम पर बेरोजगार हैं तो सोचने वाली बात है, शिक्षा को लेकर, की स्कूल में दी गई शिक्षा केवल किताबी तो नहीं है? वरना जब भी नौकरी की बात आती हैं तो अनुभव न होने के कारण ज्यादातर नौकरी मिलती ही नही छात्रों को. एक ये बड़ी समस्या है शिक्षा व्यवस्था की.

हमारे भारत में डिग्रियां तो होती हैं लेकिन अनुभव जीरो और तैयारी के नाम पर आधी उम्र ख़त्म सरकारी नौकरी न मिलने के कारण जो भी मिलता है वो करना पड़ता है. इस लिए अब देखने को मिल रहा है कि आज कल के माता पिता अपने बच्चों पर दबाव नहीं बनाते हैं, कि आपको यही करना है.

अब इसका असर शहरों में दिख रहा है. लेकिन गांव में कब तक पहुंचेगा ये आने वाले दिनों में पता चलेगा, सरकार भी युवाओ को प्रेरित कर रही हैं प्राईवेट नौकरी के लिए. लेकिन जब तक शिक्षा प्रणाली अपनी व्यवस्था में सही बदलाव नहीं करती तब तक युवाओं के साथ मज़ाक होता रहेगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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