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दास्तान, जान देकर 'ब्रेस्ट टैक्स' खत्म कराने वाली नानगेली की!

    • आईचौक
    • Updated: 17 जून, 2019 01:14 PM
  • 07 मार्च, 2016 03:07 PM
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केरल में 19वीं सदी में त्रावणकोर के राजा द्वारा निचली जातियों की महिलाओं के खिलाफ लगाए जाने वाले क्रूर ब्रेस्ट टैक्स को खत्म करने के लिए एक महिला ने दी थी प्राणों की आहुति.

समाज में बदलाव लाने और लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए दिए गए बलिदान की कई घटनाएं इतिहास में दर्ज हैं. ऐसी ही एक घटना में केरल में एक क्रूर प्रथा के खात्मे के लिए एक महिला द्वारा दी गई अपने प्राणों की कुर्बानी हमेशा के लिए केरल के इतिहास में दर्ज हो गई है.

यह कुर्बानी केरल में 19वीं सदी में त्रावणकोर के राजा द्वारा निचली जातियों की महिलाओं के खिलाफ लगाए जाने वाले ब्रेस्ट टैक्स के खिलाफ दी गई थी. इस क्रूर टैक्स से न सिर्फ इन महिलाओं को अपमानित किया जाता था बल्कि सम्मानपूर्वक जीने का हक ही उनसे छीन लिया गया. इसी टैक्स के खिलाफ खड़ी हुईं एक महिला नानगेली, जिन्होंने अपने प्राण न्योछावर करके इस प्रथा का विरोध किया और उनका यह साहसिक कदम इस टैक्स के खात्मे की वजह बन गया. आइए जानें 19वीं सदी में केरल में लगने वाले इस ब्रेस्ट टैक्स के बारे में.

निचली जाति की महिलाओं पर लगता था 'ब्रेस्ट टैक्स'

केरल के त्रावणकोर में 19वीं सदी में लगाया जाने वाला ब्रेस्ट टैक्स उस समय निचली जाति के लोगों के साथ किए जाने वाले बेहद ही खराब व्यवहार की बानगी देता है. यह टैक्स त्रावणकोर के राजा द्वारा लगाया जाता था. नियमों के मुताबिक उस समय निचली जाति की महिलाओं को अपने स्तन ढंकने की इजाजत नहीं थी. इसलिए सार्वजनिक जगहों पर अपने स्तनों को ढंकने के लिए राजा द्वारा उन पर ब्रेस्ट टैक्स लगाया जाता था. कहा जाता है कि टैक्स का निर्धारण स्तन के साइज के आधार पर होता था.

यह टैक्स निचली जाति के लोगों को अपमानित करने और उन्हें कर्ज में डुबाए रखने के उद्देश्य से लगाया जाता था. ब्रेस्ट टैक्स के साथ-साथ निचली जाति के लोगों को जूलरी पहनने और पुरुषों को मूंछ रखने के अधिकार पर भी टैक्स लगता था.

समाज में बदलाव लाने और लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए दिए गए बलिदान की कई घटनाएं इतिहास में दर्ज हैं. ऐसी ही एक घटना में केरल में एक क्रूर प्रथा के खात्मे के लिए एक महिला द्वारा दी गई अपने प्राणों की कुर्बानी हमेशा के लिए केरल के इतिहास में दर्ज हो गई है.

यह कुर्बानी केरल में 19वीं सदी में त्रावणकोर के राजा द्वारा निचली जातियों की महिलाओं के खिलाफ लगाए जाने वाले ब्रेस्ट टैक्स के खिलाफ दी गई थी. इस क्रूर टैक्स से न सिर्फ इन महिलाओं को अपमानित किया जाता था बल्कि सम्मानपूर्वक जीने का हक ही उनसे छीन लिया गया. इसी टैक्स के खिलाफ खड़ी हुईं एक महिला नानगेली, जिन्होंने अपने प्राण न्योछावर करके इस प्रथा का विरोध किया और उनका यह साहसिक कदम इस टैक्स के खात्मे की वजह बन गया. आइए जानें 19वीं सदी में केरल में लगने वाले इस ब्रेस्ट टैक्स के बारे में.

निचली जाति की महिलाओं पर लगता था 'ब्रेस्ट टैक्स'

केरल के त्रावणकोर में 19वीं सदी में लगाया जाने वाला ब्रेस्ट टैक्स उस समय निचली जाति के लोगों के साथ किए जाने वाले बेहद ही खराब व्यवहार की बानगी देता है. यह टैक्स त्रावणकोर के राजा द्वारा लगाया जाता था. नियमों के मुताबिक उस समय निचली जाति की महिलाओं को अपने स्तन ढंकने की इजाजत नहीं थी. इसलिए सार्वजनिक जगहों पर अपने स्तनों को ढंकने के लिए राजा द्वारा उन पर ब्रेस्ट टैक्स लगाया जाता था. कहा जाता है कि टैक्स का निर्धारण स्तन के साइज के आधार पर होता था.

यह टैक्स निचली जाति के लोगों को अपमानित करने और उन्हें कर्ज में डुबाए रखने के उद्देश्य से लगाया जाता था. ब्रेस्ट टैक्स के साथ-साथ निचली जाति के लोगों को जूलरी पहनने और पुरुषों को मूंछ रखने के अधिकार पर भी टैक्स लगता था.

साभारः अजय शेखर द्वारा नानगेली के त्याग की एक प्रतीकात्मक तस्वीर

नानगेली के बलिदान ने खत्म की ये क्रूर प्रथा:

ब्रेस्ट टैक्स जैसी क्रूर प्रथा को खत्म करने के लिए नानगेली नामक एक दलित महिला के बलिदान ने अहम भूमिका निभाई. नानगेली चेरथाला की निचली जाति की महिला थीं. वह बेहद गरीब परिवार की थीं और इस टैक्स का भुगतान करने में असमर्थ थी. इसलिए ब्रेस्ट टैक्स के खिलाफ विद्रोही तेवर दिखाते हुए नानगेली ने सार्वजनिक जगहों पर अपने स्तनों को न ढंकने से इनकार कर दिया.

जब टैक्स अधिकारकी नानगेली के घर पर ब्रेस्ट टैक्स लेने पहुंचा तो इस टैक्स के विरोध में नानगेली ने वह क्रांतिकारी कदम उठाया जो इस टैक्स के खत्म होने की वजह बनी. उन्होंने अपने दोनों स्तनों को काटकर एक केले के पत्ते पर रखकर उस टैक्स अधिकारी के सामने रख दिया. यह देखकर टैक्स अधिकारी भाग खड़ा हुआ और खून से लथपथ नानगेली ने वहीं दम तोड़ दिया. नानगेली के मौत की खबर जंगल में आग की तरह फैली और लोग इस टैक्स के खिलाफ उठ खड़े हुए.  

साभारः अजय शेखर द्वारा नानगेली के त्याग की एक प्रतीकात्मक तस्वीर

इस टैक्स के विरोध में नानगेली के पति चिरकुंडन ने उनकी चिता में कूदकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली. यह किसी पुरुष के सती होने की पहली ज्ञात घटना थी. नानगेली के इस कदम से लोग ब्रेस्ट टैक्स के खिलाफ उठ खड़े हुए और राजा को यह क्रूर टैक्स समाप्त करना पड़ा. चेरथाला की वह जगह, जहां पर नानगेली और उनके पति चिरकुंडन ने अपने प्राण त्यागे थे, उसे अब उनके सम्मान में मुलाचीपराम्बु (महिलाओं के स्तम की भूमि) के नाम से जाना जाता है. हालांकि स्थानीय लोग अब इस जगह का नाम लेने से झिझकते हैं और अब इसे मनोरमा कवाला (कवाला मतलब जंक्शन) के नाम से जाना जाता है.

वह जगह जहां नानगेली की झोपड़ी थी, वह जगह आज भी अनछुई हैऔर एक तालाब के साथ-साथ चारों तरफ से हरियाली से घिरी हुई है. इस जगह के दोनों तरफ दो बड़े बंगले बन गए हैं.  

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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