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HIV+ महिला के तालाब में आत्महत्या करने से क्या तालाब दूषित हो जाता है?

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 07 दिसम्बर, 2018 11:40 AM
  • 07 दिसम्बर, 2018 11:40 AM
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बेंगलुरु के पास एक गांव में एक 32 एकड़ में फैले तालाब में कूदकर महिला ने जान दे दी. महिला के HIV पॉजिटिव होने की बात जैसे ही लोगों को पता चली गांव में हड़कंप मच गया.

लोगों के दिमाग पर एक अफवाह क्या असर डाल सकती है ये तो मौजूदा भारत में देखा ही जा सकता है. एक के बाद एक हर तरफ ऐसे किस्से सामने आ रहे हैं कि अफवाहों के कारण भीड़ का गुस्सा फूट पड़ा और वो अपने आप ही न्याय के लिए निकल गई. भीड़ अपना इंसाफ खुद करने लगी है और अब तो अपनी सुविधा के हिसाब से अलग-अलग तरह के काम भी.

अब भीड़ की मनमानी का एक और मामला सामने आया है जहां बेंगलुरु के पास मोराब में गांववाले खुद 8 टैंकर लाकर तालाब का पानी खाली करने की कोशिश में लग गए. स्थानीय प्रशासन ने लोगों को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उनकी कोशिशें विफल रहीं.

क्यों किया जा रहा है ये?

दरअसल, इस सबके पीछे एक आत्महत्या है. एक महिला की लाश 6 दिन पहले उसी तालाब में मिली थी. लाश पूरी तरह से सड़ चुकी थी और उसका कुछ हिस्सा मछलियों ने खा लिया था. तालाब में जिस महिला ने डूबकर अपनी जिंदगी खत्म करने की सोची थी असल में वो महिला HIV पॉजिटिव थी.

इसी तालाब में डूबकर महिला ने जान दी थी

गांव वाले इतने डर गए कि उन्हें लगने लगा कि उन्हें भी एड्स हो जाएगा और उसके कारण उन्होंने प्रशासन से मांग करनी शुरू कर दी की तालाब का पूरा पानी खाली कर दिया जाए और दोबारा उस पानी को भरा जाए. प्रशासन की बात न मानने पर गांव वाले खुद टैंकर लेकर आ गए और कहा कि वो इस तालाब का पानी खाली कर देंगे. ये तालाब 15 हज़ार से ज्यादा लोगों को पानी मुहैया करवाता है और अब वो सभी लोग 3 किलोमीटर दूर स्थित मालाप्रभा नहर से पानी लेकर आ रहे हैं.

ये तालाब 36 एकड़ के एरिया में फैला है तो आप सोच सकते हैं कि इसका पानी खाली करना और इसे पूरा भरना कितना बड़ा काम है. ये काम चल रहा है और अभी प्रशासन की तरफ से जो जानकारी आई है उसके मुताबिक इस तालाब को खाली करने में 5 दिन और लगेंगे और 15 दिन उसके ऊपर...

लोगों के दिमाग पर एक अफवाह क्या असर डाल सकती है ये तो मौजूदा भारत में देखा ही जा सकता है. एक के बाद एक हर तरफ ऐसे किस्से सामने आ रहे हैं कि अफवाहों के कारण भीड़ का गुस्सा फूट पड़ा और वो अपने आप ही न्याय के लिए निकल गई. भीड़ अपना इंसाफ खुद करने लगी है और अब तो अपनी सुविधा के हिसाब से अलग-अलग तरह के काम भी.

अब भीड़ की मनमानी का एक और मामला सामने आया है जहां बेंगलुरु के पास मोराब में गांववाले खुद 8 टैंकर लाकर तालाब का पानी खाली करने की कोशिश में लग गए. स्थानीय प्रशासन ने लोगों को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उनकी कोशिशें विफल रहीं.

क्यों किया जा रहा है ये?

दरअसल, इस सबके पीछे एक आत्महत्या है. एक महिला की लाश 6 दिन पहले उसी तालाब में मिली थी. लाश पूरी तरह से सड़ चुकी थी और उसका कुछ हिस्सा मछलियों ने खा लिया था. तालाब में जिस महिला ने डूबकर अपनी जिंदगी खत्म करने की सोची थी असल में वो महिला HIV पॉजिटिव थी.

इसी तालाब में डूबकर महिला ने जान दी थी

गांव वाले इतने डर गए कि उन्हें लगने लगा कि उन्हें भी एड्स हो जाएगा और उसके कारण उन्होंने प्रशासन से मांग करनी शुरू कर दी की तालाब का पूरा पानी खाली कर दिया जाए और दोबारा उस पानी को भरा जाए. प्रशासन की बात न मानने पर गांव वाले खुद टैंकर लेकर आ गए और कहा कि वो इस तालाब का पानी खाली कर देंगे. ये तालाब 15 हज़ार से ज्यादा लोगों को पानी मुहैया करवाता है और अब वो सभी लोग 3 किलोमीटर दूर स्थित मालाप्रभा नहर से पानी लेकर आ रहे हैं.

ये तालाब 36 एकड़ के एरिया में फैला है तो आप सोच सकते हैं कि इसका पानी खाली करना और इसे पूरा भरना कितना बड़ा काम है. ये काम चल रहा है और अभी प्रशासन की तरफ से जो जानकारी आई है उसके मुताबिक इस तालाब को खाली करने में 5 दिन और लगेंगे और 15 दिन उसके ऊपर लगेंगे इसे वापस भरने में. ये तालाब वहां रहने वाले गांववालों और जानवरों के लिए पानी का सबसे अहम सोर्स है.

धारवाड़ जिले के हेल्थ ऑफिसर डॉक्टर राजेंद्र दोडामनी का कहना है कि उन्होंने गांव वालों को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन गांव वाले मानने को तैयार ही नहीं है. HIV का बैक्टीरिया पानी में गया तो भी वो कुछ मिनटों से ज्यादा उसमें रह नहीं सकता. ये बैक्टीरिया सिर्फ शरीर से बनने वाले तरल पदार्थ जैसे खून, दूध, वीर्य आदि से ही फैल सकता है और उसके बाहर ये कुछ मिनटों से ज्यादा नहीं रह सकता. जिस महिला की मौत हुई उसकी लाश मिले हुए ही 6 दिन हो गए हैं और करीब हफ्ते भर पहले उसने आत्महत्या की होगी, लेकिन फिर भी गांव वाले मानने का नाम ही नहीं ले रहे हैं.

शरीर 29 नवंबर को लाश मिली थी और उसी समय गांव वालों के बीच ये बात फैल गई थी कि पानी दूषित हो गया है. गांव वालों ने तब से ही पंचायत और प्रशासन पर जोर डालना शुरू कर दिया था. यहां तक कि पानी की जांच करवाने की प्रशासन की दलील को भी गांव वालों ने नहीं सुना.

क्या मानते हैं गांव वाले?

गांव वालों की दलीलें भी बेहद अलग हैं. गांव के प्रदीप हनिकेरे कहते हैं कि उन्हें कई किलोमीटर दूर से पानी लाना मंजूर है, लेकिन उन्हें ये मंजूर नहीं कि वो उस तालाब का दूषित पानी पिएं, एक और गांव वाले मुट्टाना भावैकट्टी का कहना है कि शरीर बेहद खराब हालत में मिला था ऐसे में हम क्यों दूषित पानी पिएं. एक और गांव वाला कहता है कि अगर तालाब में किसी आम इंसान का शव मिला होता तो कोई बात नहीं थी, लेकिन एक HIV मरीज का शव मिला है और अब ये पानी पीने लायक नहीं है. प्रशासन को गांव वालों की जान बचाने के लिए इस तालाब को खाली करना ही होगा.

गांव वालों की जिद के कारण लाखों लीटर पानी बहाया जा रहा है

गांव की पंचायत के सदस्य लक्ष्मण पाटिल कहते हैं कि गांव वाले बिना सोचे समझे इस बात को मान चुके हैं कि तालाब का पानी खाली करना ही सही है. अभी तक कई लाख लीटर पानी तालाब से निकाला जा चुका है और अभी भी 60% पानी निकालना बाकी है.

ये अज्ञानता है या फिर डर?

इस पूरे मामले में कुछ खास बातें सामने आई हैं. सबसे पहली तो ये कि गांव वालों को ये लगता है कि HIV मरीज अगर पानी में गिरा है तो उन्हें एड्स हो जाएगा. ये सोचना कि HIV पॉजिटिव होने का मतलब है कि एड्स ही हो जाएगा तो ये भी बेहद गलत है. HIV पॉजिटिव होने का मतलब है शरीर में ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस का होना. AIDS का मतलब है कि शरीर में प्रतिरोधक क्षमता इतनी कम हो गई है कि शरीर कई तरह के इन्फेक्शन और कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ नहीं सकता और वो खत्म हो सकता है.

आशा फाउंडेशन की संस्थापक डॉक्टर ग्लोरी एलेक्जैंडर हर रोज़ HIV पॉजिटिव मरीजों के साथ काम करते हैं. उनके हिसाब से ये मामला डर का था अज्ञानता का भी. हमारे देश में HIV पॉजिटिव मरीज को बेहद अलग तरह से देखा जाता है और लोग ये नहीं जानते कि अगर एक HIV पॉजिटिव मरीज मरता है तो उसके साथ ही HIV का वायरस भी मरता है. ऐसे में उस तालाब में किसी भी तरह के इन्फेक्शन का कोई खतरा नहीं है, लेकिन लोग इसे नहीं मानेंगे.

अब कुछ बातें गौर करने वाली हैं-

  • - उस तालाब से कई लोग सीधे पानी लेते थे मतलब वो इसे फिल्टर भी नहीं करते थे. तब कई तरह की बीमारियों की गुंजाइश थी, लेकिन उससे कोई मतलब नहीं.
  • - गांव वालों का कहना है कि अगर कोई और मरता तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता यानी कोई और किसी भी बीमारी वाला उस तालाब में मरा होता तो उन्हें ये नहीं लगता कि कुछ गलत है, लेकिन AIDS का नाम हमारे देश में इतना बदनाम है कि उसके कारण लोग डर गए हैं.
  • - पानी की समस्या वाले देश में इस तरह की भ्रांतियां क्या नतीजा देंगी?

ये सवाल बड़े हैं, लेकिन इनके जवाब हमें तब तक नहीं मिल सकते जब तक लोगों को ऐसी बीमारियों को लेकर जागरुक नहीं किया जाता.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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