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डॉ योगेश प्रवीण सहित उन सभी की 'मौत' एक 'हत्या' है, जो मेडिकल सुविधाओं के अभाव में मर रहे हैं!

    • मुकेश कुमार गजेंद्र
    • Updated: 13 अप्रिल, 2021 09:06 PM
  • 13 अप्रिल, 2021 09:06 PM
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कोरोना की पहली लहर में शानदार काम करके अपनी पीठ थपथपाने वाली यूपी सरकार की स्वास्थ्य सेवाएं दूसरी लहर में धराशाई हो चुकी हैं. सूबे के सुदूर इलाकों की बात तो छोड़िए सरकार की नाक के नीचे राजधानी लखनऊ में सिस्टम की नाकामियों की वजह से लोग दम तोड़ रहे हैं.

मशहूर इतिहासकार पद्मश्री डॉ. योगेश प्रवीण का 82 वर्ष की उम्र में सोमवार को निधन हो गया. उनको तेज बुखार था, सांस लेने में तकलीफ हो रही थी, तुरंत एंबुलेंस के लिए सूचना दी गई, लेकिन 2 घंटे बीतने के बाद भी जब सरकारी एंबुलेंस नहीं आई, तो परिजन प्राइवेट गाड़ी से अस्‍पताल लेकर भागे. इस बीच रास्‍ते में ही योगेश प्रवीण की सांसें थम गईं. उनकी मौत के बाद सरकारी सिस्टम की लापरवाही को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्‍सा फूट पड़ा है. लोग सरकार और प्रशासन को उनके निधन का जिम्‍मेदार ठहरा रहे हैं. वैसे भी सरकार, सिस्टम की खामियों और मेडिकल सुविधाओं के अभाव की वजह से होने वाली हर 'मौत', 'हत्या' जैसी है.

पिछले एक साल से कोरोना महामारी को लेकर तैयारियां की जा रही हैं. सरकार तमाम दावे कर रही है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी व्यवस्था को बेहतरीन बताकर पीठ थपथपाई जा रही है. लेकिन असली हालात ये हैं कि मरीजों की संख्या बढ़ने के साथ ही मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर ढह चुका है. अस्पताल में बेड नहीं है, सड़कों पर एंबुलेंस नहीं है, कई शहरों में तो आक्सीजन सिलेंडर तक खत्म हो चुका है. बीमारों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है. मेडिकल सुविधाओं के अभाव में लोग तड़प-तड़प कर मर रहे हैं. श्मशान घाटों पर लाशों का ढ़ेर लगा हुआ है. नंबर लगाकर शवों का दाह संस्कार करना पड़ रहा है. यहां तक की दाह की लकड़ी की भी कालाबाजारी हो रही है.

मशहूर इतिहासकार पद्मश्री डॉ. योगेश प्रवीण लखनऊ शहर की शान कहे जाते थे.

जरा सोचिए, यदि ये हाल सूबे की सरकार की नाक के नीचे राजधानी लखनऊ का है, तो उत्तर प्रदेश में बाकी शहरों-गांवों में क्या हो रहा होगा? वैसे कोरोना की इस सुनामी में यूपी क्या पूरे देश की स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई हैं. इतिहासकार योगेश प्रवीण के निधन के बाद यूपी सरकार...

मशहूर इतिहासकार पद्मश्री डॉ. योगेश प्रवीण का 82 वर्ष की उम्र में सोमवार को निधन हो गया. उनको तेज बुखार था, सांस लेने में तकलीफ हो रही थी, तुरंत एंबुलेंस के लिए सूचना दी गई, लेकिन 2 घंटे बीतने के बाद भी जब सरकारी एंबुलेंस नहीं आई, तो परिजन प्राइवेट गाड़ी से अस्‍पताल लेकर भागे. इस बीच रास्‍ते में ही योगेश प्रवीण की सांसें थम गईं. उनकी मौत के बाद सरकारी सिस्टम की लापरवाही को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्‍सा फूट पड़ा है. लोग सरकार और प्रशासन को उनके निधन का जिम्‍मेदार ठहरा रहे हैं. वैसे भी सरकार, सिस्टम की खामियों और मेडिकल सुविधाओं के अभाव की वजह से होने वाली हर 'मौत', 'हत्या' जैसी है.

पिछले एक साल से कोरोना महामारी को लेकर तैयारियां की जा रही हैं. सरकार तमाम दावे कर रही है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी व्यवस्था को बेहतरीन बताकर पीठ थपथपाई जा रही है. लेकिन असली हालात ये हैं कि मरीजों की संख्या बढ़ने के साथ ही मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर ढह चुका है. अस्पताल में बेड नहीं है, सड़कों पर एंबुलेंस नहीं है, कई शहरों में तो आक्सीजन सिलेंडर तक खत्म हो चुका है. बीमारों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है. मेडिकल सुविधाओं के अभाव में लोग तड़प-तड़प कर मर रहे हैं. श्मशान घाटों पर लाशों का ढ़ेर लगा हुआ है. नंबर लगाकर शवों का दाह संस्कार करना पड़ रहा है. यहां तक की दाह की लकड़ी की भी कालाबाजारी हो रही है.

मशहूर इतिहासकार पद्मश्री डॉ. योगेश प्रवीण लखनऊ शहर की शान कहे जाते थे.

जरा सोचिए, यदि ये हाल सूबे की सरकार की नाक के नीचे राजधानी लखनऊ का है, तो उत्तर प्रदेश में बाकी शहरों-गांवों में क्या हो रहा होगा? वैसे कोरोना की इस सुनामी में यूपी क्या पूरे देश की स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई हैं. इतिहासकार योगेश प्रवीण के निधन के बाद यूपी सरकार के कैबिनेट मंत्री ब्रजेश पाठक को अपने ही सूबे के अपर मुख्य सचिव चिकित्सा और प्रमुख सचिव को पत्र लिखना पड़ा. उनके पत्र में भी लखनऊ की हालत अत्यंत चिंताजनक बताई गई है. यहां तक कि योगेश प्रवीण को एंबुलेंस दिलाने के लिए खुद ब्रजेश पाठक ने सीएमओ को फोन किया, लेकिन एंबुलेंस नहीं आई. आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि सिस्टम कैसे काम कर रहा है.

ब्रजेश पाठक ने लिखा है, 'मेरी विधानसभा क्षेत्र के पद्मश्री साहित्यकार डॉ. योगेश प्रवीण की सोमवार दोपहर अचानक तबीयत बिगड़ी, जिसकी सूचना मिलने पर मैंने स्वयं CMO से फोन पर बात की और उन्हें तत्काल एंबुलेंस मुहैया कराने का अनुरोध किया. लेकिन कई घंटों के उपरांत भी उन्हें एंबुलेंस नहीं मिल पाई और समय से इलाज न मिल पाने के कारण उनका निधन हो गया.' अब इसे दर्द कहें या आरोप, ये बातें विपक्ष के किसी नेता ने नहीं लिखी हैं, बल्कि योगी सरकार के एक जिम्मेदार मंत्री ने लिखी है. उनके मुताबिक तो हार्ट, किडनी, लीवर, कैंसर से ग्रसित रोगियों की स्थिति इससे भी अधिक दयनीय है, उनको उचित इलाज नहीं मिल पा रहा है.

योगी सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री का पत्र सामने आने के बाद सूबे में सियासत भी शुरू हो गई है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कहा कि जिस मुख्यमंत्री से लखनऊ नहीं संभल रहा है उससे उत्तर प्रदेश क्या संभलेगा? लखनऊ के हालात बेहद खौफनाक और चिंताजनक हैं. यूपी सरकार के कानून मंत्री की यह चिट्ठी स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल बयां कर रही है. इतना ही नहीं समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि योगी सरकार की ओर से कोई तैयारी नहीं की गई है. आंकड़े छुपाकर सरकार वाहवाही लूटने की कोशिश कर रही है. कोरोना वैक्सीन की जगह रैबीज लगा दी जाती है. जिम्मेदार लोग बाहर घूम रहे हैं.

कौन थे डॉ. योगेश प्रवीण?

पूरे देश को नवाबी नगरी के इतिहास से रूबरू कराने वाले इतिहासकार योगेश प्रवीण का जन्म 28 अक्टूबर 1938 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के रकाबगंज के पाण्डेयगंज में हुआ था. हिंदी, उर्दू अंग्रेजी, बंगला, अवधि भाषा में महारत योगेश प्रवीण लखनऊ की पहचान माने जाते हैं. उन्होंने करीब दो दर्जन से ज्यादा किताबें लिखी हैं. इनमें दास्तान ए आवाज, साहिबे आलम, कंगन के कटार, दस्ताने लखनऊ बहारें अवध जैसी किताबें आज भी लखनऊ की पहचान बताती हैं. वह विद्यांत हिन्दू डिग्री कॉलेज में प्रवक्ता के रूप में सेवारत थे, साल 2002 में रिटायर हुए थे. साल 2020 में गणतंत्र दिवस की संध्या पर उनको पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया था.

अद्भुत प्रतिभा के धनी थे प्रवीण

करीब 7 साल पहले लखनऊ में एक कार्यक्रम के दौरान मेरी डॉ. योगेश प्रवीण से पहली मुलाकात हुई थी. अपने शहर के लिए उनकी बेपनाह मुहब्बत की पहली झलक मैं पहली मुलाकात में ही देख गया था. वह लखनऊ के लिए जीते थे. यूं कहें कि लखनऊ जीते थे, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. उनकी अद्भुत प्रतिभा, तीक्ष्म स्मरणशक्ति और वाकपटुता गजब की थी. शहर की कहानियां उनकी जुबान पर होती थी. चलते-फिरती किताब क्या पूरे पुस्तकालय थे. इतिहास, कला और संस्कृति की गूढ़ जानकारी, जितनी प्रवीण को थी, शायद ही अब किसी और के पास होगी. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी के पास उनकी किताबें हर वक्त मौजूद रहती थीं.

कोरोना पर यूपी सरकार के दावे

देशभर में जिस रफ्तार से कोरोना फैल रहा है, वह डरा देने वाला है. बीते दिन सोमवार को 1 लाख 60 हजार 694 नए मरीज मिले हैं. वहीं, उत्तर प्रदेश में सोमवार को 13,604 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए. केवल एक दिन में 72 लोगों की मौत हो गई. सूबे में संक्रमितों की संख्या 7 लाख के पार जा चुकी है. केवल राजधानी 4 से 5 हजार कोरोना केस हर दिन मिल रहे हैं. ऐसे में यहां मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर दम तोड़ चुका है. प्राइवेट पैथोलॉजी सेंटर में कोविड-19 बंद करा दी गई है. सरकारी अस्पतालों में कोविड-19 के टेस्ट का रिजल्ट आने में कई दिनों का समय लग रहा है. इलाज के अभाव में लोग दम तोड़ रहे हैं, लेकिन सरकार तमाम दावे कर रही है.

सरकार के दावे के बीच हकीकत

कोरोना कंट्रोल के नाम पर कहा जा रहा है कि हमने कोरोना जांच को बढ़ाने का निर्देश दिया है, ट्रेसिंग पर ध्यान दिया जा रहा है. प्रदेश में वीकेंड लॉकडाउन और नाइट कर्फ्यू लगाया गया है. कई तरह की पाबंदियां बढ़ाई जा रही हैं. वैसे खुद सूबे के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह मान रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में बेड्स की कमी है. उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद नहीं थी कि कोरोना के इतने केस आ जाएंगे, इसको लेकर हम पूरी तरह से तैयार नहीं थे. शुरुआत में हमने काम नहीं किया, इस वजह से अचानक बेड की कमी हो गई, अब एल-2 और एल-3 बेड्स की संख्या अस्पतालों में बढ़ाई जा रही हैं. वेंटिलेटर और आईसीयू बेड्स भी बढ़ाए जा रहे हैं.


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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