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कोरोना महामारी के दौरान मुसीबत उन मरीजों पर आई जिन्हें कोरोना नहीं, कुछ और मर्ज हुआ

    • आईचौक
    • Updated: 12 जुलाई, 2021 07:12 PM
  • 12 जुलाई, 2021 07:12 PM
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लगातार बढ़ रहे कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए तकरीबन हर देश में लॉकडाउन लगाया गया. जिसकी वजह से लोगों की मानसिक से लेकर आर्थिक स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ा है. मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग अपनाने जैसी आदतें लोगों में आम हो गई हैं. कहा जा सकता है कि कोरोना वायरस ने लोगों के जीवन को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है.

दुनियाभर में करीब 18 महीनों से तबाही मचा रहे कोरोना वायरस का कहर थमता नजर आ रहा है. लेकिन, इसके बावजूद कोविड-19 के नए वेरिएंट ने लोगों के बीच डर को और ज्यादा बढ़ा दिया है. लगातार बढ़ रहे कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए तकरीबन हर देश में लॉकडाउन लगाया गया. जिसकी वजह से लोगों की मानसिक से लेकर आर्थिक स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ा है. मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग अपनाने जैसी आदतें लोगों में आम हो गई हैं. कहा जा सकता है कि कोरोना वायरस ने लोगों के जीवन को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है. हाल ही में एक अध्ययन सामने आया है, जिसके अनुसार कोरोना महामारी के दौरान अस्पतालों में आने वाले गैर-कोविड मरीजों का मेडिकल (ओपीडी या क्लीनिकल विजिट) और सर्जिकल/ऑपरेशन से होने वाला इलाज बड़े स्तर पर प्रभावित हुआ है. यहां इस बात पर गौर करना भी जरूरी है कि कोरोना महामारी के दौरान तमाम सरकारी अस्पतालों में भी अलग-अलग बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए चलने वाली ओपीडी भी बंद रही थी.

दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के एक अध्ययन ने अस्पताल में गैर-कोविड मरीजों के इलाज पर केंद्रित एक अध्ययन किया. इस अध्ययन में कोरोना महामारी आने के साल और उससे पहले के वर्ष के बीच अस्पतालों में आने वाले गैर-कोविड मरीजों की संख्या और ऑपरेशन कराने वाले मरीजों की संख्या की तुलना की गई है. इस अध्ययन में ये बात निकल कर सामने आई है कि इन दो वर्षों के बीच ओपीडी या क्लीनिकल विजिट करने वाले मरीजों और सर्जिकल कार्य दोनों में 80 प्रतिशत से ज्यादा की कमी देखी गई है.

इस अध्ययन में कोविड महामारी के दौरान और उससे एक वर्ष पहले के साल के 6,77,237 मामलों को शामिल किया है.

अस्पताल ने इस अध्ययन में कोविड महामारी के दौरान और उससे एक वर्ष पहले के साल के 6,77,237 मामलों को शामिल किया है....

दुनियाभर में करीब 18 महीनों से तबाही मचा रहे कोरोना वायरस का कहर थमता नजर आ रहा है. लेकिन, इसके बावजूद कोविड-19 के नए वेरिएंट ने लोगों के बीच डर को और ज्यादा बढ़ा दिया है. लगातार बढ़ रहे कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए तकरीबन हर देश में लॉकडाउन लगाया गया. जिसकी वजह से लोगों की मानसिक से लेकर आर्थिक स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ा है. मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग अपनाने जैसी आदतें लोगों में आम हो गई हैं. कहा जा सकता है कि कोरोना वायरस ने लोगों के जीवन को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है. हाल ही में एक अध्ययन सामने आया है, जिसके अनुसार कोरोना महामारी के दौरान अस्पतालों में आने वाले गैर-कोविड मरीजों का मेडिकल (ओपीडी या क्लीनिकल विजिट) और सर्जिकल/ऑपरेशन से होने वाला इलाज बड़े स्तर पर प्रभावित हुआ है. यहां इस बात पर गौर करना भी जरूरी है कि कोरोना महामारी के दौरान तमाम सरकारी अस्पतालों में भी अलग-अलग बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए चलने वाली ओपीडी भी बंद रही थी.

दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के एक अध्ययन ने अस्पताल में गैर-कोविड मरीजों के इलाज पर केंद्रित एक अध्ययन किया. इस अध्ययन में कोरोना महामारी आने के साल और उससे पहले के वर्ष के बीच अस्पतालों में आने वाले गैर-कोविड मरीजों की संख्या और ऑपरेशन कराने वाले मरीजों की संख्या की तुलना की गई है. इस अध्ययन में ये बात निकल कर सामने आई है कि इन दो वर्षों के बीच ओपीडी या क्लीनिकल विजिट करने वाले मरीजों और सर्जिकल कार्य दोनों में 80 प्रतिशत से ज्यादा की कमी देखी गई है.

इस अध्ययन में कोविड महामारी के दौरान और उससे एक वर्ष पहले के साल के 6,77,237 मामलों को शामिल किया है.

अस्पताल ने इस अध्ययन में कोविड महामारी के दौरान और उससे एक वर्ष पहले के साल के 6,77,237 मामलों को शामिल किया है. अध्ययन में ये बात सामने आई कि कोरोना महामारी के दौरान नए और पुरानी बीमारियों के साथ अस्पताल में आने वाले मरीजों की संख्या के मामलों में 57.65 प्रतिशत की गिरावट आई है. ओपीडी या क्लीनिकल विजिट के मामलों में मरीजों की उपस्थिति में 89 प्रतिशत और सर्जिकल कार्य में 80 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है.

अपोलो हॉस्पिटल्स के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर डॉ. अनुपम सिब्बल ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान सभी तरह के रोगों के बीच सर्जिकल सुविधाओं का काम काफी कम हो गया था. कोविड-19 महामारी का अस्पताल की मेडिकल और सर्जिकल दोनों सुविधाओं पर काफी प्रभाव पड़ा है. कोविड-19 के कारण केवल फेफड़ों और श्वसन संबंधी मामलों में बड़ा उछाल आया. इस दौरान सांस से संबंधित बीमारियों वाले मरीजों में 314.04 प्रतिशत की अकल्पनीय बढ़ोत्तरी सामने आई थी.

अध्ययन के अनुसार, नाजुक हालात वाले मरीजों और आपातकालीन स्थिति में देखभाल से संबंधित मेडिकल और सर्जिकल सुविधाएं अन्य दूसरी सुविधाओं की तुलना में कम प्रभावित हुई थीं. इस दौरान लीवर व किडनी ट्रांसप्लांट और कैंसर के ऑपरेशन पहले की तुलना में लगभग आधे हो गए थे.

अप्रैल 2020 और मार्च 2021 के बीच अस्पताल में इलाज कराने वाले कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 3746 थी. जो इसी समय के दौरान इलाज कराने आने वाले 30,975 मरीजों की संख्या का 12.09 प्रतिशत था. अपोलो हॉस्पिटल्स के प्रबंध निदेशक पी शिवकुमार के अनुसार, कोरोना महामारी के डर की वजह से लोग अपनी स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों की अनदेखी कर सकते हैं, जो हानिकारक हो सकता है. स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को कोरोना के डर के प्रभाव को ध्यान में रखना होगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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