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अब गुलाबी शर्ट या बैगनी सूट भी आपको दिलवा सकते हैं अदालतों में, तारीख पर तारीख..

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 08 अगस्त, 2017 08:19 PM
  • 08 अगस्त, 2017 08:19 PM
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एक लोकतांत्रिक देश में हमें हमारे संविधान से अधिकार मिले हैं कि हम क्या पहनें. ऐसे में हिमाचल की अदालत का ये अनोखा फरमान हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों पर सवालिया निशान लगाता है.

चाहे सनी देओल की फिल्मों में हों या फिर रियल लाइफ में, हमने अदालतों को बेहद सुस्त ढंग से काम करते देखा है. इसके पीछे की एक सबसे प्रमुख वजह तेजी से बढ़ रही आबादी और जजों की कम संख्या भी है. बात अगर हमारी अदालतों में लंबित पड़े मुकदमों की हो तो ये संख्या हैरत में डालने वाली है. बताया जा रहा है कि भारत में 2 करोड़ 70 लाख मुकदमे लंबित पड़े हुए हैं और आज भी लगभग 4500 खंडपीठ खाली हैं.

हो सकता है उपरोक्त लिखी बातों को पढ़कर आपके मन में विचार कौंधे कि आज अचानक हम अदालत, मुकदमों और खाली पड़ी खंडपीठों के बारे में क्यों बात कर रहे हैं. तो ऐसा इसलिए कि, आज हम आपसे जिस मुद्दे पर बात कर रहे हैं कहीं न कहीं वो आपसे हमसे और हमारे समाज से जुड़ा हुआ है. आज हम आपको जो खबर बताने वाले हैं उसको सुनकर आप निश्चित ही हैरत में पड़ जाएंगे.

अब इस देश की अदालतों के लिए सबसे बड़ी परेशानी लोगों द्वारा पहने गए कपड़े बन गए हैं

खबर हिमाचल प्रदेश से है. जहां अदालत की एक खंडपीठ ने एक महिला को फटकार लगाई है कि उसके कपड़े अदालत की मर्यादा के अनुरूप नहीं हैं. जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. जिस वक्त महिला कोर्ट में आई उस समय उसने चेक की शर्ट और जींस पहन रखी थी. महिला का इस तरह वहां पहुंचना अदालत को नागवार लगा और उसने महिला को मर्यादा के अंतर्गत आने वाले कपड़े पहनकर अदालत आने का आदेश दे दिया. कोर्ट ने महिला से कहा कि, इस तरह के कपड़ों से अदालत की कार्यवाही में व्यवधान पड़ता है और साथ ही मामले की गंभीरता भी समाप्त हो जाती है.

गौरतलब है कि इसी साल झारखंड हाईकोर्ट ने भी राज्य की महिला मुख्य सचिव की रंगीन साड़ी पर अपनी आपत्ति दर्ज कर कहा था कि जब वो अदालत में आएं तो ढंग से आएं, साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार को भी ये आदेश दिया था कि वो एक ऐसी नियमावली का निर्माण करें जिसमें कोर्ट कैसे...

चाहे सनी देओल की फिल्मों में हों या फिर रियल लाइफ में, हमने अदालतों को बेहद सुस्त ढंग से काम करते देखा है. इसके पीछे की एक सबसे प्रमुख वजह तेजी से बढ़ रही आबादी और जजों की कम संख्या भी है. बात अगर हमारी अदालतों में लंबित पड़े मुकदमों की हो तो ये संख्या हैरत में डालने वाली है. बताया जा रहा है कि भारत में 2 करोड़ 70 लाख मुकदमे लंबित पड़े हुए हैं और आज भी लगभग 4500 खंडपीठ खाली हैं.

हो सकता है उपरोक्त लिखी बातों को पढ़कर आपके मन में विचार कौंधे कि आज अचानक हम अदालत, मुकदमों और खाली पड़ी खंडपीठों के बारे में क्यों बात कर रहे हैं. तो ऐसा इसलिए कि, आज हम आपसे जिस मुद्दे पर बात कर रहे हैं कहीं न कहीं वो आपसे हमसे और हमारे समाज से जुड़ा हुआ है. आज हम आपको जो खबर बताने वाले हैं उसको सुनकर आप निश्चित ही हैरत में पड़ जाएंगे.

अब इस देश की अदालतों के लिए सबसे बड़ी परेशानी लोगों द्वारा पहने गए कपड़े बन गए हैं

खबर हिमाचल प्रदेश से है. जहां अदालत की एक खंडपीठ ने एक महिला को फटकार लगाई है कि उसके कपड़े अदालत की मर्यादा के अनुरूप नहीं हैं. जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. जिस वक्त महिला कोर्ट में आई उस समय उसने चेक की शर्ट और जींस पहन रखी थी. महिला का इस तरह वहां पहुंचना अदालत को नागवार लगा और उसने महिला को मर्यादा के अंतर्गत आने वाले कपड़े पहनकर अदालत आने का आदेश दे दिया. कोर्ट ने महिला से कहा कि, इस तरह के कपड़ों से अदालत की कार्यवाही में व्यवधान पड़ता है और साथ ही मामले की गंभीरता भी समाप्त हो जाती है.

गौरतलब है कि इसी साल झारखंड हाईकोर्ट ने भी राज्य की महिला मुख्य सचिव की रंगीन साड़ी पर अपनी आपत्ति दर्ज कर कहा था कि जब वो अदालत में आएं तो ढंग से आएं, साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार को भी ये आदेश दिया था कि वो एक ऐसी नियमावली का निर्माण करें जिसमें कोर्ट कैसे और क्या पहनकर आना है इसकी जानकारी दर्ज हो.

कहा जा सकता है कि अब अदालत के लिए सबसे बड़ी दिक्कत लोगों के रंगीन कपड़े हैं

बहरहाल, ये सभी बातें अपने आप में खासी दिलचस्प हैं. दिलचस्प इसलिए क्योंकि हम एक लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं. एक ऐसा देश जहां हमारा संविधान हमें मौलिक अधिकारों के रूप में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है. एक ऐसा देश जहां हम कैसे भी रह सकते हैं, कुछ भी पहन सकते हैं.

खैर, जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि, ये खबर आपसे और हमसे जुड़ी हुई है. तो कल यदि सिर्फ आपको इसलिए अदालत तारीख दे दे कि आप गुलाबी शर्ट या बैंगनी सूट पहन के कोर्ट आए हैं तो आपको आश्चर्य में पड़ने और बेचैन होने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है. आपको ये मान लेना चाहिए कि रंगीन और फैशनेबल कपड़ों से अदालत का ध्यान भटकता है और कार्यवाही में व्यवधान पड़ता है.

अंत में इतना ही कि अब जब भी आप अदालत का रुख करें तो इस बात का ध्यान रखें कि आपके कपड़े बिल्कुल सादे हों, जिससे ऐसा लगे आप फैसला सुनने आए हैं, किसी पार्टी में नहीं.   

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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