• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

ऐसे पुलिसवाले जो सवालों से ही बलात्कार कर देते हैं

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 04 नवम्बर, 2016 03:30 PM
  • 04 नवम्बर, 2016 03:30 PM
offline
पुलिस वाले और उनकी भद्दी पूछताछ. अपराधियों के लिए तो यह समझ आता है. लेकिन रेप की शिकार हुई किसी महिला के साथ ये सब हो तो वह एक और बलात्‍कार से कम नहीं.

ये तो जमाने का दस्तूर है कि अच्छाइयों से ज्यादा बुराइयां पहले नजर आती हैं. अब पुलिसवालों को ही ले लीजिए, भले ही इनका काम लोगों की हिफाजत करना और कानून-व्यवस्था संभालना है, लेकिन रिश्वत लेने और बदतमीजियां करने में ये लोग खासे जाने जाते हैं. लेकिन त्रिशूर के इस मामले में तो पुलिस ने सारी सीमाएं ही लांघ दीं.

डबिंग आर्टिस्ट भाग्यलक्ष्मी की मदद से गैंगरेप की शिकार महिला ने त्रिवेंद्रम में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उसके पति के दोस्तों ने उसके साथ गैंगरेप किया, और जब वो गैंगरेप की शिकायत दर्ज करवाने पुलिस के पास गई तो पुलिसवालों ने कार्रवाई करने के बजाय उससे न सिर्फ बेहूदा और शर्मनाक सवाल किए, बल्कि केस वापस लेने का दबाव भी बनाया.

ये भी पढ़ें- गैंगरेप की शिकार ये महिला क्यों न हो रोल मॉडल !

 प्रेस कान्फ्रेंस में डबिंग आर्टिस्ट भाग्यलक्ष्मी के साथ अपना चेहरा छुपाए पीड़ित महिला और उसका पति

उन्हें पुलिस सुबह से शाम तक पुलिस स्टेशन में बिठाकर रखती थी और शर्मसार करने वाले सवाल पूछती थी. पीड़िता का कहना है कि पुलिस अधिकारियों के इन बेहूदा सवालों ने रेप से कहीं ज्यादा दिए.

'चारों में से सबसे ज्यादा मजा किसने दिया?'

पुलिस ने बड़ी ही बेशर्मी से पीड़िता से ये सवाल किया कि 'चारों रेपिस्ट में से सबसे ज्यादा मजा किसने दिया?'. यहां पुलिसवालों की रुचि ये...

ये तो जमाने का दस्तूर है कि अच्छाइयों से ज्यादा बुराइयां पहले नजर आती हैं. अब पुलिसवालों को ही ले लीजिए, भले ही इनका काम लोगों की हिफाजत करना और कानून-व्यवस्था संभालना है, लेकिन रिश्वत लेने और बदतमीजियां करने में ये लोग खासे जाने जाते हैं. लेकिन त्रिशूर के इस मामले में तो पुलिस ने सारी सीमाएं ही लांघ दीं.

डबिंग आर्टिस्ट भाग्यलक्ष्मी की मदद से गैंगरेप की शिकार महिला ने त्रिवेंद्रम में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उसके पति के दोस्तों ने उसके साथ गैंगरेप किया, और जब वो गैंगरेप की शिकायत दर्ज करवाने पुलिस के पास गई तो पुलिसवालों ने कार्रवाई करने के बजाय उससे न सिर्फ बेहूदा और शर्मनाक सवाल किए, बल्कि केस वापस लेने का दबाव भी बनाया.

ये भी पढ़ें- गैंगरेप की शिकार ये महिला क्यों न हो रोल मॉडल !

 प्रेस कान्फ्रेंस में डबिंग आर्टिस्ट भाग्यलक्ष्मी के साथ अपना चेहरा छुपाए पीड़ित महिला और उसका पति

उन्हें पुलिस सुबह से शाम तक पुलिस स्टेशन में बिठाकर रखती थी और शर्मसार करने वाले सवाल पूछती थी. पीड़िता का कहना है कि पुलिस अधिकारियों के इन बेहूदा सवालों ने रेप से कहीं ज्यादा दिए.

'चारों में से सबसे ज्यादा मजा किसने दिया?'

पुलिस ने बड़ी ही बेशर्मी से पीड़िता से ये सवाल किया कि 'चारों रेपिस्ट में से सबसे ज्यादा मजा किसने दिया?'. यहां पुलिसवालों की रुचि ये जानने में जरा भी नहीं थी कि महिला के साथ ये सब किसने किया, कब किया, बल्कि रुचि ये जानने में थी कि कैसे किया. वो तो गैंगरेप में भी एक पोर्न फिल्म का मजा ढ़ूंढ रहे थे. पुलिसवाले इतने संवेदनहीन भी हो सकते हैं कि वो बलात्कार की पीड़ा सह चुकी महिला से ये पूछ रहे हैं कि जिन लोगों ने उसके साथ बलात्कार किया, उनमें से किसके साथ सबसे ज्यादा मजा आया. क्या ये सवाल एक बलात्कार पीड़िता से दोबारा बलात्कार करने की कोशिश नहीं है?

ये भी पढ़ें- कर्नाटक की पुलिस ऑफिसर की फेसबुक पोस्ट पर मचा हंगामा, जानिए क्यों?

पुलिस सिर्फ रक्षक नहीं

पुलिस का ये भद्दा सवाल सिर्फ सवाल नहीं, बल्कि भारतीय पुलिस का वो काला चेहरा है जो अक्सर उन्हीं लोगों के सामने आता है जिनका पाला पुलिसवालों से पड़ता है. खासकर दुखी, लाचार और पीड़ित महिलाओं पर कुछ पुलिसवाले इस तरह से पेश आते हैं जैसे उन्हें उनके साथ दोबारा ज्यादती करने का लाइसेंस मिल गया हो. यहां बात किसी एक जगह के पुलिस वालों की नहीं हो रही, बल्कि पूरे देश का यही हाल है. बड़े शहरों को छोड़ दें, तो गांव-कस्बों में तैनात पुलिस वाले इतने करप्ट और असंवेदनशील हैं कि शिकायत करने आई बलात्कार पीड़िता के साथ थाने में न सिर्फ अश्लील हरकतें करते हैं, बल्कि कुछ पुलिसवाले तो बलात्कार पीड़िता के साथ दोबारा बलात्कार करने में भी पीछे नहीं रहते, ऐसे कितने ही मामले सामने आते हैं. अपने डंडे का जोर और अंदर कर देने की धमकी सिर्फ लाचारों पर ही क्यों?

अपने डंडे का जोर और अंदर कर देने की धमकी सिर्फ लाचारों पर ही क्यों?

विश्वास खो रहे हैं पुलिसवाले

आम आदमी पुलिस के पचड़ों में पड़ना नहीं चाहता, खासकर महिलाएं शिकायत करने से बचती हैं. क्योंकि उन्हें पता है कि पुलिसवाले गंदी तरह से बात करेंगे. महिला पुलिस भी हैं, लेकिन वो भी बात कम गालियां ज्यादा देती हैं. आप ज्यादा पढ़े-लिखे हैं तो भी आपकी स्मार्टनेस पुलिसवालों के सामने काम नहीं आती. क्योंकि इन्हें सिर्फ पैसे चाहिए, पीड़ित की बात सुनने के लिए भी और आरोपी के ऊपर से मामला रफा दफा करने के लिए भी. हालत ये है कि अब चोरों में तो पुलिस का डर खत्म हो गया है, डर रही है तो सिर्फ जनता.

तो अगर आप फिल्मों में दिखाए जाने वाले करप्ट पुलिसवालों को लाइटली लेते हैं तो अब सीरियसली लेना शुरू कर दें, क्योंकि ये फिल्मी पुलिसवाले भी असल जिंदगियों से ही प्रेरित हैं. हां जैसा कि सबसे पहले कहा कि अच्छाइयों से ज्यादा बुराइयां नजर आती हैं, तो ऐसा नहीं है कि पूरा डिपार्टमेंट ही करप्ट हो, कुछ इतने ईमानदार हैं कि आपब यकीन नहीं कर पाएंगे, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिनकी वजह से पूरा डिपार्टमेंट बदनाम है.

ये भी पढ़ें- एक वायरल तस्वीर बदल देगी पुलिस के प्रति आपका नजरिया!

वैसे इन करप्ट पुलिसवालों की तबीयत ठीक करने के लिए सरकार कुछ करेगी इसकी संभावना बहुत कम है. आम आदमी बेचारा उम्मीद ही लगा सकता है कि उनकी रक्षा करने वाली पुलिस थोड़ी सी संवेदनशील हो जाए, जिससे लोग कम से कम पुलिस वालों के पास तो खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲