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अब शायद खादी को लोगों के बीच पॉपुलर ही कर दे 'जीएसटी'

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 10 जुलाई, 2017 09:39 PM
  • 10 जुलाई, 2017 09:39 PM
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खादी को जीएसटी के अंतर्गत लाना और उसपर टैक्स लगाना सरकार की एक स्वागत योग्य पहल है, और निश्चित तौर पर खादी को तंगहाली से निकालने के लिए खादी से दूरी बनाए हुए एक आम भारतीय को सरकार का धन्यवाद देना चाहिए.

बात आज सुबह की है, कहीं पढ़ा कि सरकार देश में पहली बार खादी पर भी टैक्स लगा रही है. खबर थी कि अब खादी का कपड़ा खरीदने पर 5 फीसदी जीएसटी और एक हजार से ऊपर मूल्य का रेडीमेड गारमेंट (खादी) खरीदने पर बिल पर 12 प्रतिशत जीएसटी देना होगा. खबर ये भी थी कि सरकार के खादी पर टैक्स लगाने के इस फैसले पर इस कारोबार से जुड़े व्यवसायियों में रोष है और जल्द ही वो इस पर मुद्दे पर प्रदर्शन करेंगे.

इस खबर से मैं न तो विचलित हुआ हूं न अचंभित. ये खबर मेरे लिए एक गहरी सोच का विषय है. सोच का विषय इसलिए क्योंकि अब तक मैंने त्योहारों और शादी ब्याह के अलावा इस देश के आम आदमी को अन्य मौकों पर खादी का इस्तेमाल करते हुए बहुत कम देखा है. अब तक जिस चीज का लोग इस्तेमाल ही नहीं कर रहे थे उस पर यदि सरकार जीएसटी लगा रही है तो फिर कुछ तो बात होगी. हो सकता है खादी पर टैक्स लगा के सरकार इस देश के आम लोगों को ये बताना चाह रही हो कि यदि वो अब तक खादी को मामूली वस्तू समझते थे तो ये और कुछ नहीं बस उनकी भूल थी.

सरकार का खादी पर टैक्स लगाना एक अच्छी पहल है जिसका हमें स्वागत करना चाहिए

वर्तमान में खादी की स्थिति कितनी दयनीय है इसको समझने के लिए आपको एक उदाहरण को समझना होगा. उदाहरण ये कि आप गांधी आश्रम समेत किसी भी ऐसे संस्थान में जाइए जहां खादी बिकती हो वहां लोगों की संख्या आपको इस बात का आभास करा देगी कि वर्तमान में खादी कहां खड़ी है और आम आदमियों के बीच कितनी लोकप्रिय है. कहा जा सकता है कि ऐसी जगहों पर आपको लोगों की गिनी चुनी संख्या और बिलिंग काउंटर पर इक्का दुक्का लोग ही खादी से निर्मित वस्तुओं की बिलिंग कराते मिलेंगे.

गौरतलब है कि आजादी के बाद से लेकर अब तक पूर्व की सरकारों द्वारा खादी को लेकर बड़ी-बड़ी बातें तो की गयीं मगर उसे ऊपर उठाने की दिशा में कोई खास काम नहीं...

बात आज सुबह की है, कहीं पढ़ा कि सरकार देश में पहली बार खादी पर भी टैक्स लगा रही है. खबर थी कि अब खादी का कपड़ा खरीदने पर 5 फीसदी जीएसटी और एक हजार से ऊपर मूल्य का रेडीमेड गारमेंट (खादी) खरीदने पर बिल पर 12 प्रतिशत जीएसटी देना होगा. खबर ये भी थी कि सरकार के खादी पर टैक्स लगाने के इस फैसले पर इस कारोबार से जुड़े व्यवसायियों में रोष है और जल्द ही वो इस पर मुद्दे पर प्रदर्शन करेंगे.

इस खबर से मैं न तो विचलित हुआ हूं न अचंभित. ये खबर मेरे लिए एक गहरी सोच का विषय है. सोच का विषय इसलिए क्योंकि अब तक मैंने त्योहारों और शादी ब्याह के अलावा इस देश के आम आदमी को अन्य मौकों पर खादी का इस्तेमाल करते हुए बहुत कम देखा है. अब तक जिस चीज का लोग इस्तेमाल ही नहीं कर रहे थे उस पर यदि सरकार जीएसटी लगा रही है तो फिर कुछ तो बात होगी. हो सकता है खादी पर टैक्स लगा के सरकार इस देश के आम लोगों को ये बताना चाह रही हो कि यदि वो अब तक खादी को मामूली वस्तू समझते थे तो ये और कुछ नहीं बस उनकी भूल थी.

सरकार का खादी पर टैक्स लगाना एक अच्छी पहल है जिसका हमें स्वागत करना चाहिए

वर्तमान में खादी की स्थिति कितनी दयनीय है इसको समझने के लिए आपको एक उदाहरण को समझना होगा. उदाहरण ये कि आप गांधी आश्रम समेत किसी भी ऐसे संस्थान में जाइए जहां खादी बिकती हो वहां लोगों की संख्या आपको इस बात का आभास करा देगी कि वर्तमान में खादी कहां खड़ी है और आम आदमियों के बीच कितनी लोकप्रिय है. कहा जा सकता है कि ऐसी जगहों पर आपको लोगों की गिनी चुनी संख्या और बिलिंग काउंटर पर इक्का दुक्का लोग ही खादी से निर्मित वस्तुओं की बिलिंग कराते मिलेंगे.

गौरतलब है कि आजादी के बाद से लेकर अब तक पूर्व की सरकारों द्वारा खादी को लेकर बड़ी-बड़ी बातें तो की गयीं मगर उसे ऊपर उठाने की दिशा में कोई खास काम नहीं हुआ था. कह सकते हैं कि पूर्व की सरकारों ने न तो कभी इसके कल्याण की दिशा में काम ही किया न ही इसके प्रचार प्रसार पर कोई बड़े कदम उठाए जिससे खादी जैसी चीज की हालत बद से बदतर होती चली गयी.

खादी की अब तक की स्थिति को देखते और समझते हुए यही कहा जा सकता है कि सरकार का ये फैसला स्वागत योग्य है. हो सकता है सरकार का ये फैसला खादी के अच्छे दिन ला दे और खादी की दुकानों पर भी वो भीड़ दिखे जो अन्य दुकानों पर देखने को मिलती है.

अंत में हम यही कहेंगे कि अगर अब भी खादी से दूरी बनाया हुआ कोई व्यक्ति खादी पर लगने वाले जीएसटी पर अपनी नाक भौं सिकोड़े तो ये बात न सिर्फ हास्यपद है बल्कि ये बताने के लिए भी काफी है कि दरअसल हम खुद कभी खादी को ऊपर ऊपर उठते देखना ही नहीं चाहते.   

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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