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जेडे की हत्या का ही ये मामला नहीं, दायरा इससे भी बड़ा है?

    • अनिल कुमार
    • Updated: 02 मई, 2018 04:49 PM
  • 02 मई, 2018 04:49 PM
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पहले जे डे फिर गौरी लंकेश. इन हत्याओं के बाद सवाल उठता है कि पत्रकारों की सुरक्षा कब और कैसे होगी. इस पर न अभी तक कोई पुख्ता कानून ही है और न ही कोई स्पष्ट पॉलि‍सी.

देश का चौथा खंभा कहते हैं पत्रकारिता को. लेकिन इस चौथे खंबे को हिलाने वाले हर जगह हैं. गौरी लंकेश की बैंगलोर में सरेआम हत्या इसका उदाहरण है. अंडरवर्ल्ड से धमकी के बाद मुंबई के जेडे हत्याकांड में आरोपियों को सजा मिलने में इतनी देर यही दर्शाती है कि देश में पत्रकार सुरक्षित नहीं हैं. और जब पत्रकार सुरक्षित नहीं हैं तो पत्रकारिता कहां से सुरक्षित रहेगी.वरिष्ठ पत्रकार जेडे हत्याकांड में मकोका कोर्ट ने छोटा राजन को दोषी करार देकर पत्रकार जिग्ना वोरा और पॉलसन जोसेफ को बरी कर दिया.

वरिष्ठ पत्रकार जेडे की 11 जून 2011 को हत्या कर दी गई थी. तीन साल बाद वर्ष 2015 में मकोका अदालत ने वोरा समेत करीब 10 आरोपियों पर आरोप तय किए थे. इसके बाद छोटा राजन की गिरफ्तारी हुई. जिसके बाद सीबीआई ने इस मामले की फिर से गहराई से जांच शुरू की.

जिस तरह आज पत्रकारों की हत्या हो रही है वो साफ दर्शाता है कि अपराधियों का बिल्कुल भी कानून का खौफ नहीं है

गौरी लंकेश या वरिष्ट पत्रकार जेडे की हत्या का ही ये मुद्दा नहीं है जबकि दर्जनों ऐसे पत्रकार हैं जिनकी हत्या सरेआम कर दी गई लेकिन सुरक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए. आइये जानें कौन थे वो पत्रकार जिनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई.

1- मई माह के दौरान वर्ष 2015 में मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले की कवरेज करने गए आजतक के विशेष संवादाता अक्षय सिंह की संदिग्ध मौत होना, जिसे संभावित हत्या बताया गया था.

2- 13 मई 2016 को सीवान में हिंदी दैनिक हिंदुस्तान के पत्रकार राजदेव रंजन की गोली मारकर हत्या.

3- जून 2015 में मध्य प्रदेश में बालाघाट जिले में पत्रकार संदीप कोठारी को किडनेप कर मार डाला गया.

4- आंध्र प्रदेश के वरिष्ठ...

देश का चौथा खंभा कहते हैं पत्रकारिता को. लेकिन इस चौथे खंबे को हिलाने वाले हर जगह हैं. गौरी लंकेश की बैंगलोर में सरेआम हत्या इसका उदाहरण है. अंडरवर्ल्ड से धमकी के बाद मुंबई के जेडे हत्याकांड में आरोपियों को सजा मिलने में इतनी देर यही दर्शाती है कि देश में पत्रकार सुरक्षित नहीं हैं. और जब पत्रकार सुरक्षित नहीं हैं तो पत्रकारिता कहां से सुरक्षित रहेगी.वरिष्ठ पत्रकार जेडे हत्याकांड में मकोका कोर्ट ने छोटा राजन को दोषी करार देकर पत्रकार जिग्ना वोरा और पॉलसन जोसेफ को बरी कर दिया.

वरिष्ठ पत्रकार जेडे की 11 जून 2011 को हत्या कर दी गई थी. तीन साल बाद वर्ष 2015 में मकोका अदालत ने वोरा समेत करीब 10 आरोपियों पर आरोप तय किए थे. इसके बाद छोटा राजन की गिरफ्तारी हुई. जिसके बाद सीबीआई ने इस मामले की फिर से गहराई से जांच शुरू की.

जिस तरह आज पत्रकारों की हत्या हो रही है वो साफ दर्शाता है कि अपराधियों का बिल्कुल भी कानून का खौफ नहीं है

गौरी लंकेश या वरिष्ट पत्रकार जेडे की हत्या का ही ये मुद्दा नहीं है जबकि दर्जनों ऐसे पत्रकार हैं जिनकी हत्या सरेआम कर दी गई लेकिन सुरक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए. आइये जानें कौन थे वो पत्रकार जिनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई.

1- मई माह के दौरान वर्ष 2015 में मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले की कवरेज करने गए आजतक के विशेष संवादाता अक्षय सिंह की संदिग्ध मौत होना, जिसे संभावित हत्या बताया गया था.

2- 13 मई 2016 को सीवान में हिंदी दैनिक हिंदुस्तान के पत्रकार राजदेव रंजन की गोली मारकर हत्या.

3- जून 2015 में मध्य प्रदेश में बालाघाट जिले में पत्रकार संदीप कोठारी को किडनेप कर मार डाला गया.

4- आंध्र प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार एमवीएन शंकर की हत्या. शंकर की हत्या 26 नवंबर 2014 को कर दी गई.वह तेल माफियाओं पर खबर लिख रहे थे.

5- पत्रकार साई रेड्डी की छत्तीसगढ़ में नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में संदिग्ध हथियारबंद लोगों ने हत्या कर दी थी.

6- महाराष्ट्र के पत्रकार और लेखक नरेंद्र दाभोलकर की हत्या. इन्हें 20 अगस्त 2013 के दिन बदमाशों ने गोलियों से भून डाला.

पत्रकारों की सुरक्षा कब और कैसे होगी. इस पर न अभी तक कोई पुख्ता कानून ही है और न ही कोई स्पष्ट पॉलीसी. इसी का नतीजा पत्रकारों की हत्याओं के रूप में सामने आ रहा है. अभी हाल ही में भिंड में पत्रकार संदीप शर्मा की हत्या हुई. जिसके बाद पत्रकारों और मीडिया संस्थानों पर हमलों के खिलाफ सुरक्षा का दायरा खींचने का मुद्दा जोर पकड़ रहा है.

ज्ञात हो कि गत वर्ष 2017 में महाराष्ट्र राज्य पहला ऐसा राज्य बना था जिसने पत्रकारों की सुरक्षा का एक विधेयक सदन में पास किया था. जिसके तहत मीडिया संस्थानों और पत्रकारों पर हमले गैरजमानती अपराध की श्रेणी में आ गए हैं. अब अन्य राज्यों में इस तरह की मांग उठ रही है. मध्य प्रदेश में भी तमाम संगठन सुरक्षा के कानून की मांग कर रहे हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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