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अजब देश, गजब कहानी: लव मैरेज पर 'फतवा' और सूखे की मार झेलते एक किसान की खुदकुशी

    • आईचौक
    • Updated: 26 मार्च, 2016 08:04 PM
  • 26 मार्च, 2016 08:04 PM
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एक देश और दो हालात. इसी देश में एक इलाका है जहां किसान कर्ज के बोझ के चलते अपने ही खेत में फांसी लगा लेता है. पुलिस मौके पर पहुंचती है और शव का पंचनामा भर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया जाता है. तो वहीं एक और मामला है जहां एक लड़के ने अपनी पसंद की लड़की से शादी क्या कर ली...हंगामा मच गया.

यूपी के बुंदेलखंड के ललितपुर जिले में एक गरीब किसान ने सूखे से बर्बाद हुई फसल और कर्ज के बोझ के चलते अपने ही खेत में फांसी लगा ली. देवरान ग्राम में रहने वाले दलित आदिवासी 54 वर्षीय किसान गोविन्द दास सहरिया के पास डेढ़ एकड़ खेत थी. इसी पर वह खेती कर अपना और अपने परिजनों का पालन किया करते थे. पिछले तीन-चार वर्षों में कभी ओलावृष्टि कभी सूखे की मार के चलते गोविन्द दास ने साहूकारों से ब्याज पर पैसा लिया था.

 मृतक किसान का शव

साहूकारों के कर्ज तले गोविंद लगातार दबते जा रहा था. इस बार भी सूखे की मार ने गोविन्द दास की पूरी मेहनत बर्बाद कर दी. आलम ये कि लागत के मुताबिक गेंहू की फसल नहीं हुई.

अपने ही खेत में लगाई फांसी

गोविन्द इस के बाद बुरी तरह टूट गए और अपने खेत में लगे आम के पेड़ से फांसी लगाकर जान दे दी. परिजनों और ग्रामीणों के अनुसार गोविन्द दास के ऊपर करीब डेढ़ लाख रुपये का कर्जा हो गया था जो लगातार बढ़ता ही जा रहा था. सूखे के हालात को देखते हुये गोविंद ने अपने ही खेत पर दो कुए भी खुदवाये, लेकिन इस किसान का दुर्भाग्य देखिए..वो भी सूख गए. लगातार साहूकारों द्वारा तकाजा किये जाने से गोविंद काफी परेशान थे.

 गोविंद के गांव वाले

सूखे की वजह से बर्बाद फसलों और कर्ज के चलते बुंदेलखंड के ललितपुर जिले...

यूपी के बुंदेलखंड के ललितपुर जिले में एक गरीब किसान ने सूखे से बर्बाद हुई फसल और कर्ज के बोझ के चलते अपने ही खेत में फांसी लगा ली. देवरान ग्राम में रहने वाले दलित आदिवासी 54 वर्षीय किसान गोविन्द दास सहरिया के पास डेढ़ एकड़ खेत थी. इसी पर वह खेती कर अपना और अपने परिजनों का पालन किया करते थे. पिछले तीन-चार वर्षों में कभी ओलावृष्टि कभी सूखे की मार के चलते गोविन्द दास ने साहूकारों से ब्याज पर पैसा लिया था.

 मृतक किसान का शव

साहूकारों के कर्ज तले गोविंद लगातार दबते जा रहा था. इस बार भी सूखे की मार ने गोविन्द दास की पूरी मेहनत बर्बाद कर दी. आलम ये कि लागत के मुताबिक गेंहू की फसल नहीं हुई.

अपने ही खेत में लगाई फांसी

गोविन्द इस के बाद बुरी तरह टूट गए और अपने खेत में लगे आम के पेड़ से फांसी लगाकर जान दे दी. परिजनों और ग्रामीणों के अनुसार गोविन्द दास के ऊपर करीब डेढ़ लाख रुपये का कर्जा हो गया था जो लगातार बढ़ता ही जा रहा था. सूखे के हालात को देखते हुये गोविंद ने अपने ही खेत पर दो कुए भी खुदवाये, लेकिन इस किसान का दुर्भाग्य देखिए..वो भी सूख गए. लगातार साहूकारों द्वारा तकाजा किये जाने से गोविंद काफी परेशान थे.

 गोविंद के गांव वाले

सूखे की वजह से बर्बाद फसलों और कर्ज के चलते बुंदेलखंड के ललितपुर जिले में पिछले 25 दिनों में 6 किसानों आत्महत्त्या कर अपनी जान दे चुके हैं.

अब एक दूसरी तस्वीर

महात्मा गांधी ने देश में पंचायत राज का सपना देखा था ताकि विकास की गाड़ी देश के अंतिम आदमी तक पहुंच सके. ये और बात है आज के दौर में जब पंचायतों का जिक्र होता है तो एक दूसरी ही तस्वीर उभरती है. ताजा मामला यूपी के जनपद हापुड़ की पॉश कालोनी कविनगर का है जहां पंचायत का एक तुगलकी फरमान सामने आया. एक युवक ने अपने ही कॉलोनी की लड़की से 22 जनवरी 2016 को कोर्ट मेरिज कर ली थी.

 पति और पत्नी

इसके बाद वह लड़की को अपने घर ले आया. लड़के के घरवालों ने भी लड़की को अपनी बहु के रूप में स्वीकार कर लिया. लेकिन ये बात समाज के ठेकेदारो को अच्छी नहीं लगी. जिसके बाद उन्होंने एक पंचायत बुलाकर लड़के के पिता के साथ भरी पंचायत में मारपीट की और उन्हें लड़का और लड़की दोनों को गोली मारने का फरमान सुनाया.

 पंचायत

साथ ही पंचायत की बात न मानने पर परिवार को जान से मारने की धमकी भी दे दी गई. पीड़ित परिवार ने इस मामले में पुलिस पर लापरवाही का आरोप लगाया. हालांकि मामला मीडिया और पुलिस अधिकारीयों की जानकारी में आने के बाद पंचायत बुलाने वाले समाज के ठेकेदार के होश ठिकाने आ गए. उन्होंने पीड़ित परिवार से माफी मांगी तब जाके दोनों पक्षों के बीच समझौता हुआ और मामला रफा दफा हो गया.

अजब देश की गजब कहानी!

दुर्भाग्यपूर्ण! ये दोनों तस्वीरें हमारे ही देश की हैं. ये विडंबना ही तो है. एक जगह लोग पानी और अन्न के लिए तरस रहे हैं तो एक दूसरा इलाका जिसे कुदरत ने समृद्धि दी है लेकिन वहां बहस का मुद्दा कुछ और है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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