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फेसबुकिया फेमिनिस्टों की सतही क्रांतियां किन औरतों का भला करेंगी?

    • अनु रॉय
    • Updated: 27 जुलाई, 2022 08:17 PM
  • 27 जुलाई, 2022 08:16 PM
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फेमिनिज्म पर फेमिनिस्टों के सोशल मीडिया पर अपने तर्क हैं. सभी फेमिनिस्टों को फ़ेस्बुक से निकल कर ज़रा हक़ीक़त की दुनिया में जाना चाहिए. 'आह दीदी'-'वाह दीदी' वाले झुंड से निकल कर उन औरतों से मिलना चाहिए जिनको घर में ही रेप-फ़िज़िकल एब्यूज़, मार-कुटाई का सामना करना पड़ रहा है.

मैं फ़ेसबुक पर फ़ेमिनिस्ट्स की वॉल देखती हूं. सॉरी, जिन्होंने खुद को घोषित किया है कि वो फ़ेमिनिस्ट हैं, उनकी. घंटों स्क्रोल करती हूं, तो इन सभी फ़ेमिनिस्ट की वॉल को देख चन्द अद्भुत जानकारी जुटा पाती हूं, जो कुछ इस प्रकार हैं.

- सिगरेट पीना फ़ेमिनिस्ट होना है.

- सेक्स, वजाईना, ब्रेस्ट लिखना फ़ेमिनिस्ट होना है.

- मर्दों को गालियां देना फ़ेमिनिस्ट होना है.

- शराब पीना फ़ेमिनिस्ट होना है.

- हर भारतीय त्योहार का मज़ाक़ उड़ाना फ़ेमिनिस्ट होना है.

- अंग्रेज़ी की तीन चार लाइन बोलना फ़ेमिनिस्ट होना है.

- मोटा होना, खुद का ख़्याल नहीं रखना और अपने आलस को बॉडी-पॉज़िटिवीटी का नाम देना फ़ेमिनिस्ट होना है.

- सिर्फ़ खुद को फ़ेमिनिस्ट समझना और दूसरी स्त्रियों के फ़ेमिनिज़म को कुछ न समझना फ़ेमिनिस्ट होना है.

काश, काश कि इन फ़ेमिनिस्ट्स को ज़रा आईडीया होता कि हर देश, काल और परिस्थिति के हिसाब से क्रांति और आंदोलन होने चाहिए...

- जिस देश में पहनने को ब्रा नहीं है वहां हैशटैग 'निप्पल फ़्री' आंदोलन का क्या तुक है?

- जिस देश में अब भी आधी लड़कियों को माहवारी के दौरान पैड नहीं मिलते हैं, वहाँ हैशटैग 'ब्लीड फ़्री' आंदोलन क्या क्रांति करेगी?

- जिस देश में अब भी औरतों को सेल्फ़-केयर के बारे में पता नहीं, वहाँ अंडर आर्म वैक्स न करवाकर, उन बालों का फ़ोटो पोस्ट करना कौन सी क्रांति होगी?

- जिस देश में अब भी न जानी कितनी औरतों को मन का खाना या कपड़ा नसीब होता है वहाँ उनके सशक्तिकरण के लिए शराब पीने और सिगरेट फूँकने की आजादी की बात करना कौन सी क्रांति होगी?

इन सभी फ़ेमिनिस्ट को फ़ेसबुक से निकलकर ज़रा हक़ीक़त की...

मैं फ़ेसबुक पर फ़ेमिनिस्ट्स की वॉल देखती हूं. सॉरी, जिन्होंने खुद को घोषित किया है कि वो फ़ेमिनिस्ट हैं, उनकी. घंटों स्क्रोल करती हूं, तो इन सभी फ़ेमिनिस्ट की वॉल को देख चन्द अद्भुत जानकारी जुटा पाती हूं, जो कुछ इस प्रकार हैं.

- सिगरेट पीना फ़ेमिनिस्ट होना है.

- सेक्स, वजाईना, ब्रेस्ट लिखना फ़ेमिनिस्ट होना है.

- मर्दों को गालियां देना फ़ेमिनिस्ट होना है.

- शराब पीना फ़ेमिनिस्ट होना है.

- हर भारतीय त्योहार का मज़ाक़ उड़ाना फ़ेमिनिस्ट होना है.

- अंग्रेज़ी की तीन चार लाइन बोलना फ़ेमिनिस्ट होना है.

- मोटा होना, खुद का ख़्याल नहीं रखना और अपने आलस को बॉडी-पॉज़िटिवीटी का नाम देना फ़ेमिनिस्ट होना है.

- सिर्फ़ खुद को फ़ेमिनिस्ट समझना और दूसरी स्त्रियों के फ़ेमिनिज़म को कुछ न समझना फ़ेमिनिस्ट होना है.

काश, काश कि इन फ़ेमिनिस्ट्स को ज़रा आईडीया होता कि हर देश, काल और परिस्थिति के हिसाब से क्रांति और आंदोलन होने चाहिए...

- जिस देश में पहनने को ब्रा नहीं है वहां हैशटैग 'निप्पल फ़्री' आंदोलन का क्या तुक है?

- जिस देश में अब भी आधी लड़कियों को माहवारी के दौरान पैड नहीं मिलते हैं, वहाँ हैशटैग 'ब्लीड फ़्री' आंदोलन क्या क्रांति करेगी?

- जिस देश में अब भी औरतों को सेल्फ़-केयर के बारे में पता नहीं, वहाँ अंडर आर्म वैक्स न करवाकर, उन बालों का फ़ोटो पोस्ट करना कौन सी क्रांति होगी?

- जिस देश में अब भी न जानी कितनी औरतों को मन का खाना या कपड़ा नसीब होता है वहाँ उनके सशक्तिकरण के लिए शराब पीने और सिगरेट फूँकने की आजादी की बात करना कौन सी क्रांति होगी?

इन सभी फ़ेमिनिस्ट को फ़ेसबुक से निकलकर ज़रा हक़ीक़त की दुनिया में जाना चाहिए. 'आह दीदी'-'वाह दीदी' वाले झुंड से निकल कर उन औरतों से मिलना चाहिए, जिनको घर में ही रेप-फ़िज़िकल एब्यूज़, मार-कुटाई का सामना पड़ रहा है. इन औरतों को मिलकर समझ आता कि बिना वैक्स की हुई टाँगों का फ़ोटो पोस्ट करना, बड़ी बिंदी लगाना, बाल को लाल-नीला रंग लेना फ़ेमिनिस्ट होना नहीं होता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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