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क्‍या आप जानना चाहते हैं कि सेक्‍स के बारे में भारत क्‍या सोचता है?

    • गायत्री जयरमन
    • Updated: 01 जून, 2016 04:53 PM
  • 01 जून, 2016 04:53 PM
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यह सिर्फ कोई सेक्‍स सर्वे नहीं हुआ है. इंडिया टुडे द्वारा कराए गए सेक्‍स सर्वे से हिंदुस्‍तानी मर्द-औरतों की निजी जिंदगी का ऐसा चेहरा सामने आया है, जिसके मापदंड आपको चौंका देंगे...

मेरे प्यारे पाखंडी हिंदुस्तानी,

तुम जो बसों और मेट्रो में पीछे दिखने वाले शीशों में अपने होंठों के उभार को सहेजते हुए अपने चेहरों पर प्रेम के बाद की चमक के साथ नजर आते हो. तुम जो चट्टान सरीखे मजबूत कंधों और शानदार ऐब्स के लिए जिम में भीड़ लगा देते हो, वही ऐब्स जिन्हें देखकर नए से नए ढंग से अपनी लटें संवारने के लिए सैलूनों में उमड़ पड़ने वाली तुम्हारी संगिनियां उत्तेजित हो उठती हैं. 

तुम जो जिवामी, Masalatoys.com और ThatsPersonal.com सरीखे ई-रिटेलरों के मोबाइल ऐप्स के जरिए गुपचुप फड़कते हुए अंतर्वस्त्रों का ऑर्डर देते हैं. तुम सेक्स के लिए रिश्ते तोड़ देते हो, चरमसुख की आकांक्षा करते हो और कुछ ज्यादा ही जोशो-खरोश पर भी तुम्हें ऐतराज नहीं होता. तुम छुपे रुस्तम हो. तुम जानते हो कि तुम कौन हो. तुम्हारी तादाद भी अच्छी-खासी है.

तुम गुवाहाटी और पटना से लेकर मुंबई तक फैले हो, जिनमें से 75 फीसदी मानते हैं कि रिश्ते में सेक्स बेहद अहम है, तुम में से 64 फीसदी अपनी सेक्स की इच्छा और ताकत को बहुत ऊंचा आंकते हो, तुम में से 71 फीसदी बिस्तर में अपने साथी के प्रदर्शन को 'अच्छा' के दर्जे में रखते हो और तुममें से 55 फीसदी बिस्तर में खिलदड़ और चुलबुलेपन से भरे हो.

तुम अपनी मध्यवर्गीय नैतिकता की ऊंची मीनारों में छिप जाते हो और सेंसर बोर्ड के मुखिया पहलाज निहलानी के फरमानों को चुपचाप कुबूल कर लेते हो कि कितनी उत्तेजना और गुदगुदाहट तुम्हारे लिए बहुत ज्यादा है. तुम्हारी वजह से जेम्स बॉन्ड हमारे सिनेमाहॉलों में मोनिका बेलूची को चूम नहीं सका. इसका ठीकरा क्या तुम उसके सिर पर फोड़ सकते हो? तुम जो मस्तीजादे फिल्म के प्रोमोज पर चीं-चीं करने लगते हो, लेकिन उस 100 करोड़ रु. की फिल्म ग्रैंड मस्ती के साथ तुमने अश्लील कॉमेडी के जुंए को बॉक्स ऑफिस पर जायज बना दिया. तुम जो ऑल इंडिया बकचोद रोस्ट के सेक्सी इशारों और तंज से भरे शो में शुरू से आखिर तक बैठे रहने के लिए दीपिका पादुकोण को 'बेशर्म' कहते हो, लेकिन पूर्व पोर्न स्टार सनी लियोनी को...

मेरे प्यारे पाखंडी हिंदुस्तानी,

तुम जो बसों और मेट्रो में पीछे दिखने वाले शीशों में अपने होंठों के उभार को सहेजते हुए अपने चेहरों पर प्रेम के बाद की चमक के साथ नजर आते हो. तुम जो चट्टान सरीखे मजबूत कंधों और शानदार ऐब्स के लिए जिम में भीड़ लगा देते हो, वही ऐब्स जिन्हें देखकर नए से नए ढंग से अपनी लटें संवारने के लिए सैलूनों में उमड़ पड़ने वाली तुम्हारी संगिनियां उत्तेजित हो उठती हैं. 

तुम जो जिवामी, Masalatoys.com और ThatsPersonal.com सरीखे ई-रिटेलरों के मोबाइल ऐप्स के जरिए गुपचुप फड़कते हुए अंतर्वस्त्रों का ऑर्डर देते हैं. तुम सेक्स के लिए रिश्ते तोड़ देते हो, चरमसुख की आकांक्षा करते हो और कुछ ज्यादा ही जोशो-खरोश पर भी तुम्हें ऐतराज नहीं होता. तुम छुपे रुस्तम हो. तुम जानते हो कि तुम कौन हो. तुम्हारी तादाद भी अच्छी-खासी है.

तुम गुवाहाटी और पटना से लेकर मुंबई तक फैले हो, जिनमें से 75 फीसदी मानते हैं कि रिश्ते में सेक्स बेहद अहम है, तुम में से 64 फीसदी अपनी सेक्स की इच्छा और ताकत को बहुत ऊंचा आंकते हो, तुम में से 71 फीसदी बिस्तर में अपने साथी के प्रदर्शन को 'अच्छा' के दर्जे में रखते हो और तुममें से 55 फीसदी बिस्तर में खिलदड़ और चुलबुलेपन से भरे हो.

तुम अपनी मध्यवर्गीय नैतिकता की ऊंची मीनारों में छिप जाते हो और सेंसर बोर्ड के मुखिया पहलाज निहलानी के फरमानों को चुपचाप कुबूल कर लेते हो कि कितनी उत्तेजना और गुदगुदाहट तुम्हारे लिए बहुत ज्यादा है. तुम्हारी वजह से जेम्स बॉन्ड हमारे सिनेमाहॉलों में मोनिका बेलूची को चूम नहीं सका. इसका ठीकरा क्या तुम उसके सिर पर फोड़ सकते हो? तुम जो मस्तीजादे फिल्म के प्रोमोज पर चीं-चीं करने लगते हो, लेकिन उस 100 करोड़ रु. की फिल्म ग्रैंड मस्ती के साथ तुमने अश्लील कॉमेडी के जुंए को बॉक्स ऑफिस पर जायज बना दिया. तुम जो ऑल इंडिया बकचोद रोस्ट के सेक्सी इशारों और तंज से भरे शो में शुरू से आखिर तक बैठे रहने के लिए दीपिका पादुकोण को 'बेशर्म' कहते हो, लेकिन पूर्व पोर्न स्टार सनी लियोनी को 2015 में लगातार दूसरे साल गूगल पर सबसे ज्यादा सर्च की जाने वाली सेलेब्रिटी बना देते हो.

हिंदुस्तानी सपने के सिनेमाई संस्करण में शाहरुख खान और काजोल 25 साल बाद दिलवाले में दोबारा मिलते हैं और फिर भी एक दूसरे को चूमते नहीं हैं. ऐश्वर्य राय बच्चन अब भी रणबीर कपूर के साथ एक चुंबन दृश्य फिल्माने को राजी नहीं होतीं. मगर हर हिंदुस्तानी चीज से मुहब्बत करने वाला जो भारतीय तबका शहरी जिंदगी की सच्ची सांस्कृतिक क्रांति की पहचान बन गया है, वह भी कुबूल करता है कि उसने ऑस्कर में जीत की दावेदार दो औरतों के इश्क पर बनी ड्रामा फिल्म कैरोल का लंबा संस्करण पहले ही डाउनलोड करके देख लिया है. मानो हिंदुस्तानी फिल्मों का कोई सच्चा आशिक तो ऐसा नहीं करता. और बांद्रा के कांग्रेसी स्टीफन नोरोन्हा ने पिछले साल भले ही 'लिमिट्स विदइन' के गुमनाम चुंबन वाले पोस्टर्स फाड़ डाले हों, मगर तुम भी तो खुद अपने हाथों से उसूलों की किताब की साफ-साफ धज्जियां उड़ा रहे हो.

बेवफाई का मौका देने वाली साइट AshleyMadison.com  पर साइन-इन करने वालों में भारत शिखर पर है और शादी तथा डेटिंग साइटों पर युवक-युवतियां किसी भी गोत्र पर बात नहीं कर रहे हैं. यहां तक कि तुम में से 36 फीसदी ने कौमार्य या कुंआरेपन का लबादा भी उतार फेंका है, जिसे तुमने इज्जत के ढोंग की तरह पहन रखा था और तुम्हें अब इस बात की परवाह नहीं है कि तुम्हारी संगिनियां कुंआरी हैं या नहीं (28.3 फीसदी औरतें असल में नहीं हैं).

तुम खुद अपनी तरफ देखो, जो सेक्स के पहले तजुर्बे को आनंद के तजुर्बे की शुरुआत भर मानते हो. काम में मसरूफ होने के नाते तुमने जो बेशकीमती औसत अपने लिए तय किया है, वह हफ्ते में कुछेक बार 30 मिनट का सेक्स है, जिसे तुममें से 37.7 फीसदी चरम सुख को परम आनंद बताते हो.

तृप्त यौन जिंदगी का नया बुनियादी फलसफा है कभी संतुष्ट न होना, और तुम सब इंटरनेट, टेलीविजन और फिल्मों में और ज्यादा विकल्पों की तलाश में निकल पड़े हो. तुममें से 40.3 फीसदी पोर्न देखते हो, मगर मेट्रो शहरों में बेंगलूरू ही है, जहां ऐसे लोगों की तादाद सबसे ज्यादा 20.9 फीसदी है. सेक्स के दौरान आवाजें निकालने ने तो राष्ट्रीय शक्ल अख्तियार कर ली है, जब तुममें से 38 फीसदी आवाजों से अपने साथी को इशारा करते हो कि तुम्हें उत्तेजित करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है और 57 फीसदी पारंपरिक लाड़-प्यार को तरजीह देते हो, जबकि 4 फीसदी कृत्रिम चीजों का सहारा लेते हो. फिर भी तुममें से ज्यादातर जज्बाती हैं, 34 फीसदी जज्बातों से उत्तेजित होते हैं (हां, तुम, कमजोर दिल वाले भोंदू, तुम).

तुम्हारे सफेद और स्याह पक्षों में भी अब बेहतर तालमेल है, क्योंकि न केवल औरतें पहल कर रही हैं और आदमी बात कर रहे हैं, बल्कि दोनों एक दूसरे को भरपूर सहारा भी दे रहे हैं. सेक्स की वजह से एक दूसरे से दूर रहने वाले जोड़ों में से 74 फीसदी में प्यार बना रहता है. इसे कारगर बनाने के लिए तुम खुद अपने कायदे भी गढ़ रहे हो, प्रदीप और नेहा नैयर की तरह. बेंगलूरू के इस जोड़े को रिश्ते में बंधे चार साल हुए हैं.इतने साल तक सर्वे में शामिल एक चौथाई लोग शादी की सामाजिक स्वीकृति के बगैर आसानी से एक दूसरे के साथ रह रहे थे. तुम्हारे लिए यह अच्छा ही है कि तुम वह सब कर रहे हो, जो अपने संग-साथ को बनाए रखने के लिए जरूरी है और तुमने उसूलों की किताबों को ताक पर रख दिया है.

शुक्रिया अदा करें सोशल मीडिया का और टिंडर तथा ट्रूली मैडली डीपली सरीखे ऐप्स का भी कि जिन्होंने रिश्ते कायम करने को आसान और अनौपचारिक बना दिया है—तुममें से 17.2 फीसदी उन लोगों के साथ मौज-मस्ती कर रहे हो, जिन्हें तुम जानते भी नहीं. 67 फीसदी के साथ हैदराबाद इस फेहरिस्त में अव्वल है. और तुम घर चलाने वाली 3.8 फीसदी गृहणियों, तुमने अपने सदविवाहिता घर के पके खाने और बेदाग गृहस्थी की आड़ में सेक्स के लिए रकम भी चुकाई है.

तुमने प्यार और सेक्स में फर्क करने की बेहद परिपक्व काबिलियत भी हासिल कर ली है, इसलिए सेक्स करना और जरूरतें पूरी करना दो पूरी तरह अलग-अलग बातें हैं—32.1 फीसदी आदमी और 22.9 फीसदी औरतें यह फर्क कर पाती हैं और इन दोनों में कोई घालमेल नहीं करतीं. तकरीबन 20 फीसदी हिंदुस्तान ने कहा है कि उन्हें इससे कोई दिक्कत नहीं है कि उनका पार्टनर रिश्ते से बाहर जाकर कुछ तलाश करता है.

यह वह हकीकत है, जिसे मुंबई में रहने वाली सोनाली गुप्ता जैसी मनोवैज्ञानिक एक छोटी-सी तादाद में जोड़ों के बीच बढ़ती आपसी रजामंदी का समझौता कहती हैं. वे बताती हैं, ''अगर बेवफाई आज रिश्ते टूटने की वजह है भी तो यह रिश्तों के टूटने की अकेली वजह नहीं है, बल्कि बहुत सारी बातों का नतीजा ज्यादा है. कुछ जोड़ों को उनके रिश्ते के भीतर प्रयोग करना ठीक लगता है.''

लिहाजा अगली बार जब आप बाहों में बाहें डालकर लिपटने की हिंदुस्तान की फितरत को बेसुरा और भारतीय संस्कृति के खिलाफ करार दें, तब याद रखें कि 81 फीसदी औरतें और 75 फीसदी पुरुष अपने साथी के साथ ही प्यार का तजुर्बा करते हैं और सिर्फ 7.5 फीसदी धोखा देते हैं. ये कोई छोटी गिनतियां नहीं हैं, ये खुशगवार लोगों का पूरा विशाल हिस्सा है. सो मुंबई के स्कूल के प्रिंसिपल भले भुनभुनाते रहें कि उन्हें क्लास में निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाने पड़ते हैं, पर यह सब ऊपर का ही असर है, जो संतुष्ट पुरुषों और रजामंद औरतों से, अपने साथी के साथ लुत्फ उठाते 56 फीसदी बड़े लोगों से 54 फीसदी जवान वयस्कों में आ रहा है.

और तुम, सेंसरशिप लगाने वालो, नाक-भौं सिकोडऩे वालो, तुम जो शिकायतें करते हो कि ये नौजवान इंटरनेट और टीवी और 35 एमएम के बड़े पर्दे के एक कामुक चुंबन के जरिए आने वाले बाहरी असर से नापाक हो रहे हैं, और कभी इस पर, कभी उस पर पाबंदी की लगातार रट लगाए रहते हो, याद रखो कि तुम अल्पमत में हो, तुममें से 28 फीसदी शादियों से ऊब चुके हो, 16.6 फीसदी अपनी सेक्स जिंदगी से नाखुश हो, तुममें से 43.4 फीसदी पुणे में और 38 फीसदी हैदराबाद में हो, जो सेक्स के बाद अपने बिस्तर पर छत को निहारते हुए लेटे रहते हो. तुम हमारे ऊपर एक मेहरबानी करो, एक कंडोम उठाओ और हिंदुस्तान की इन रंगरेलियों में में शामिल हो जाओ.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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