• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

ट्रोल करने वालों को मसाबा का रिटर्न गिफ्ट ताउम्र याद रहेगा

    • राठौर विचित्रमणि सिंह
    • Updated: 13 अक्टूबर, 2017 04:45 PM
  • 13 अक्टूबर, 2017 04:45 PM
offline
जिन्हें रक्त शुद्धि और अपने कर्मकांडों पर बड़ा अभिमान है और पटाखों में ही किसी पर्व का सारा उल्लास और जोश दिखायी देता है, वे सोशल मीडिया पर मसाबा को गाली देने लगे, लेकिन मसाबा का रिटर्न गिफ्ट वे शायद ही कभी भूल पायें.

क्या सोशल मीडिया अनसोशल हो गया है? ये सवाल मसाबा गुप्ता की पीड़ा से उपजा है, जिसकी एक तार्किक बात कुछ लोगों को ऐसी चुभी कि वे किसी महिला की न्यूनतम मर्यादा भी भूल गए. मसाबा गुप्ता ने ट्वीट करके दिल्ली में पटाखों पर पाबंदी का समर्थन किया तो इसे दिवाली में खलल मानने वालों ने मसाबा को नाजायज औलाद और ना जाने क्या क्या कहना शुरू कर दिया. ट्रोलर्स ने सोशल मीडिया पर मसाबा का चरित्र इस बात से नापना शुरू किया कि उसके माता पिता कौन हैं और कैसी परिस्थिति में उसका जन्म हुआ? मसाबा वेस्ट इंडीज के दिग्गज क्रिकेटर विवियन रिचर्ड्स और बॉलीवुड अभिनेत्री नीना गुप्ता की बेटी हैं. विवियन और नीना ने शादी नहीं की थी लेकिन 1989 में जब बेटी हुई, तो दोनों में से किसी ने कभी इसे नकारा नहीं कि ये उनकी बेटी नहीं है और ना ही उसकी पहचान को अपनी पहचान से अलग रखा. इसीलिए उस बच्ची का नाम मसाबा गुप्ता रखा. पिता का अंश भी, मां का वंश भी.

मसाबा ने तो बोलती बंद कर दी...

जिन्हें रक्त शुद्धि और अपने कर्मकांडों की पवित्रता का बड़ा अभिमान है, जिनको लगता है कि पटाखों में ही किसी पर्व का सारा उल्लास और जोश है, जिनके लिए दिवाली रोशनी से ज्यादा तड़क-भड़क और असभ्य प्रदर्शन का त्योहार है, उन्होंने सोशल मीडिया पर मसाबा को गाली देना शुरू कर दिया. लेकिन मसाबा इससे विचलित नहीं हुईं. उन्होंने जवाब में लिखा कि उन्हें इस तरह के शब्दों से कोई फर्क नहीं पड़ता बल्कि खुशी होती है कि वो दो बेहतरीन शख्सियतों की संतान हैं और उन्हें अपने माता-पिता पर गर्व है. मसाबा 28 साल की हैं लेकिन उनका कहना है कि जब वो दस साल की थीं, तभी से नाजायज संतान जैसे शब्द सुन रही हैं.

क्या सोशल मीडिया अनसोशल हो गया है? ये सवाल मसाबा गुप्ता की पीड़ा से उपजा है, जिसकी एक तार्किक बात कुछ लोगों को ऐसी चुभी कि वे किसी महिला की न्यूनतम मर्यादा भी भूल गए. मसाबा गुप्ता ने ट्वीट करके दिल्ली में पटाखों पर पाबंदी का समर्थन किया तो इसे दिवाली में खलल मानने वालों ने मसाबा को नाजायज औलाद और ना जाने क्या क्या कहना शुरू कर दिया. ट्रोलर्स ने सोशल मीडिया पर मसाबा का चरित्र इस बात से नापना शुरू किया कि उसके माता पिता कौन हैं और कैसी परिस्थिति में उसका जन्म हुआ? मसाबा वेस्ट इंडीज के दिग्गज क्रिकेटर विवियन रिचर्ड्स और बॉलीवुड अभिनेत्री नीना गुप्ता की बेटी हैं. विवियन और नीना ने शादी नहीं की थी लेकिन 1989 में जब बेटी हुई, तो दोनों में से किसी ने कभी इसे नकारा नहीं कि ये उनकी बेटी नहीं है और ना ही उसकी पहचान को अपनी पहचान से अलग रखा. इसीलिए उस बच्ची का नाम मसाबा गुप्ता रखा. पिता का अंश भी, मां का वंश भी.

मसाबा ने तो बोलती बंद कर दी...

जिन्हें रक्त शुद्धि और अपने कर्मकांडों की पवित्रता का बड़ा अभिमान है, जिनको लगता है कि पटाखों में ही किसी पर्व का सारा उल्लास और जोश है, जिनके लिए दिवाली रोशनी से ज्यादा तड़क-भड़क और असभ्य प्रदर्शन का त्योहार है, उन्होंने सोशल मीडिया पर मसाबा को गाली देना शुरू कर दिया. लेकिन मसाबा इससे विचलित नहीं हुईं. उन्होंने जवाब में लिखा कि उन्हें इस तरह के शब्दों से कोई फर्क नहीं पड़ता बल्कि खुशी होती है कि वो दो बेहतरीन शख्सियतों की संतान हैं और उन्हें अपने माता-पिता पर गर्व है. मसाबा 28 साल की हैं लेकिन उनका कहना है कि जब वो दस साल की थीं, तभी से नाजायज संतान जैसे शब्द सुन रही हैं.

पटाखों के बगैर दिवाली क्यों नहीं?

ये पीड़ा सिर्फ मसाबा की नहीं है बल्कि जो भी सभ्य समाज का हामी होगा, उसे गाली सुनने और उससे बढ़कर गोली खाने तक के लिए तैयार रहना होगा. पटाखों पर पाबंदी क्यों नहीं होनी चाहिए? दिवाली भारत के गरिमापूर्ण उल्लास और उजियारे का त्योहार है. कहते हैं कि भगवान राम जब लंका विजय के बाद अयोध्या लौटे थे तो उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने दीये जलाए थे और तभी से दिवाली की परंपरा शुरू हई. वो खेतिहर समाज की दिवाली थी जिसमें मिट्टी का दीया समाज की खुश-शांति-प्रगति का प्रतीक था. आज दौलत की कब्र पर इठलाती विलासिता का दौर है, जिसमें कानफाड़ू पटाखों के बगैर दिवाली बेरौनक लगती है.

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की एक कविता है. सूरज डूबने जा रहा था. उसने पूछा कि मेरे बाद इस दुनिया को रोशनी कौन देगा? चांद थे, सितारे थे, सभी चुप रहे. मिट्टी का एक छोटा सा दीया बढ़कर आगे आया और कहा - प्रभु, ये वृहत्तर बोझ मेरे कंधे पर. जब अमावस की काली अंधेरी रात होगी, तब दुनिया को रोशनी मैं दिखाऊंगा. वो दीया एक प्रतीक है कि आम आदमी अपने आत्मबल से कैसे समाज का मानस बदल सकता है. लेकिन जिस तरह आम आदमी की आवाज थोड़े से लोगों के उन्मादी शोर में दब रही है या दबायी जा रही है, उसी तरह से दिवाली का दीया आज पटाखों के शोर में बुझता जा रहा है. हमें ये भी खयाल नहीं रहता कि जिन पटाखों को फोड़कर हम अपनी खुशियों का इजहार करते हैं, उन पटाखों के मसाले तैयार करने के लिए ना जाने कितने लाचार-असहाय बच्चों का बचपन उसमें पीसा जाता है.

बचपन में अपने गांव में दिवाली मनाते वक्त हम तो ये जानते भी नहीं थे कि दिवाली के लिए पटाखों की भी जरूरत होती है. बस दीये के उजाले में अगले एक साल भविष्य के उजाले का इंतजार और उम्मीद रहती है. उसकी अगली सुबह फटे-पुराने सूप बजाकर ये मुनादी फिरायी जाती थी कि 'इस्सर पइठं दरिद्दर निकलं' (यानी ईश्वर आएं, समृद्धि लाएं और दरिद्रता खत्म हो). लेकिन दरिद्रता आज तक नहीं मिटी. आज भी गांव उसी गरीबी, भुखमरी, बेबस जिंदगी और बुनियादी सुविधाओं से वंचित होकर हर दिवाली पर हर कोई ये उम्मीद पाले बैठा रहता है कि इस बार दरिद्रता खत्म होगी. ऐसे क्षण में बचपन में ही पढ़ी गोपाल दास नीरज की एक कविता याद आती है -

बहुत बार आई गई यह दिवाली,

मगर तम जहां था, वही पर पड़ा है.

बहुत बार लौ जल-बुझी पर अभी तक,

कफन रात का हर चमन पर पड़ा है.

न फिर सूर्य रूठे, न फिर स्वप्न टूटे,

उषा को जगाओ, निशा को सुलाओ!

दिये से मिटेगा न मन का अंधेरा,

धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ!

ना जाने इंतजार की ये घड़ियां कब खत्म होंगी!

इन्हें भी पढ़ें :

अयोध्या में योगी जो दिवाली मनाएंगे उससे रामलला कितने खुश होंगे !

दिवाली का तो नहीं मालूम, मोदी-राहुल के भाषणों से ये जरूर लगा चुनाव आ गया

फुलझड़ी और अनार की ये बातचीत आपको भी इमोशनल कर देगी

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲