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एक ह‍थिनी की मौत पर उसके बच्‍चे का 28 घंटे का विलाप

    • आईचौक
    • Updated: 08 जुलाई, 2016 03:20 PM
  • 08 जुलाई, 2016 03:20 PM
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हम नौ महीने मां की कोख में रहते हैं, लेकिन एक हथिनी अपने बच्‍चे को 21 महीने कोख में रखती है. पता नहीं, शायद इसीलिए अपनी मां के गुजर जाने का गम बर्दाश्‍त नहीं कर पाया ये हाथी का बच्‍चा. देखिए ये इमोशनल वीडियो -

मां का साथ अगर बचपन में छूट जाए, तो बच्चे का जीवन कठिनाइयों से भर जाता है. इंसान के बच्चे हों या किसी जानवर के मां, तो सिर्फ मां होती है, जिसके जाने का दुख सिर्फ पीड़ा देता है.

कुछ बेहद भावुक कर देने वाली तस्वीरें सामने आई हैं. ये तस्वीरें एक मृत हथिनी और उसके दो साल के बच्चे की हैं. कोयंबटूर के बोलुवमपट्टी रेंज में 25 साल की एक हथिनी मृत पायी गई. ये हथिनी अपने 2 साल के बच्चे के साथ ही घूमती थी. लेकिन बीमार होने की वजह से एक दिन वो गिर गई और उसकी मौत हो गई.

हर पल मां के साथ-साथ जंगल में घूमने वाला बच्चा मां को जमीन पर पड़ा देख सहम सा गया. जाहिर है, उसके लिए ये असामान्य बात रही होगी. उसने अपनी मां को उठाने के लाख जतन किए, लेकिन मां अपनी जगह से हिली भी नहीं, क्योंकि वो अब उसे छोड़कर जा चुकी थी. मां को हिलता-डुलता न देख बच्चा परेशान हो उठा. वो उससे लिपटा रहा, अपनी सूंड से उसे जगाने की कोशिशें करता रहा.

 मां को उठाने के प्रयास करती रहा बच्चा

वन विभाग वाले परेशान थे कि बच्चे को उसकी मां से कैसे अलग किया जाए. क्योंकि बच्चा किसी को अपनी मां के करीब आने नहीं दे रहा था. वन विभाग बच्चे का ध्यान भटकाने की कोशिशें करता रहा, उसे कुछ खाने के लिए भी दिया लेकिन उसने कुछ नहीं खाया. बच्चा अपनी मां के शरीर पर लोट रहा था. उसे हर तरफ से हिलाने की कोशिशें कर रहा था, कि मां शायद अब उठ जाए, लेकिन दुनिया छोड़कर जा चुकी मां पर अब इस बच्चे के आंसुओं का कोई असर नहीं हुआ. परेशान बच्चा अपनी कोशिशों से थक गया और मां के सीने से लगकर सो गया. इस दृश्य को देखकर वहा मौजूद हर इंसान का दिल रो पड़ा.

मां का साथ अगर बचपन में छूट जाए, तो बच्चे का जीवन कठिनाइयों से भर जाता है. इंसान के बच्चे हों या किसी जानवर के मां, तो सिर्फ मां होती है, जिसके जाने का दुख सिर्फ पीड़ा देता है.

कुछ बेहद भावुक कर देने वाली तस्वीरें सामने आई हैं. ये तस्वीरें एक मृत हथिनी और उसके दो साल के बच्चे की हैं. कोयंबटूर के बोलुवमपट्टी रेंज में 25 साल की एक हथिनी मृत पायी गई. ये हथिनी अपने 2 साल के बच्चे के साथ ही घूमती थी. लेकिन बीमार होने की वजह से एक दिन वो गिर गई और उसकी मौत हो गई.

हर पल मां के साथ-साथ जंगल में घूमने वाला बच्चा मां को जमीन पर पड़ा देख सहम सा गया. जाहिर है, उसके लिए ये असामान्य बात रही होगी. उसने अपनी मां को उठाने के लाख जतन किए, लेकिन मां अपनी जगह से हिली भी नहीं, क्योंकि वो अब उसे छोड़कर जा चुकी थी. मां को हिलता-डुलता न देख बच्चा परेशान हो उठा. वो उससे लिपटा रहा, अपनी सूंड से उसे जगाने की कोशिशें करता रहा.

 मां को उठाने के प्रयास करती रहा बच्चा

वन विभाग वाले परेशान थे कि बच्चे को उसकी मां से कैसे अलग किया जाए. क्योंकि बच्चा किसी को अपनी मां के करीब आने नहीं दे रहा था. वन विभाग बच्चे का ध्यान भटकाने की कोशिशें करता रहा, उसे कुछ खाने के लिए भी दिया लेकिन उसने कुछ नहीं खाया. बच्चा अपनी मां के शरीर पर लोट रहा था. उसे हर तरफ से हिलाने की कोशिशें कर रहा था, कि मां शायद अब उठ जाए, लेकिन दुनिया छोड़कर जा चुकी मां पर अब इस बच्चे के आंसुओं का कोई असर नहीं हुआ. परेशान बच्चा अपनी कोशिशों से थक गया और मां के सीने से लगकर सो गया. इस दृश्य को देखकर वहा मौजूद हर इंसान का दिल रो पड़ा.

बच्चे को मां के शरीर से अलग करने की सारी कोशिशे नाकाम रहीं

बच्चे को मां के शरीर के अलग करने के लिए एक प्रशिक्षित कुमकी की सहायता भी ली गई, लेकिन वो भी काम न आई. आखिरकार 28 घंटो की कोशिशों के बाद वो बच्चा मां के मृत शरीर से अलग हो सका.

फॉर्स्ट ऑफिसर के अनुसार 'हाथियों में सोचने की क्षमता इंसानों की तरह ही होती है. उनकी भावनाएं भी इंसानों की तरह ही होती हैं. वो भी भावुक होके हैं और किसी के मरने पर वो भी इंसानों की तरह ही शोक मनाते हैं. वो तब तक मृत शरीर को छोड़कर नहीं जाते जब तक शरीर से गंध आती रहती है. '

देखिए वीडियो-

बच्चे को मां के शरीर से 3 किलोमीटर दूर ले जाया गया, जहां उसे मां के शरीर की गंध न आए. अब उसे वन के बाकी हाथियों के साथ छोड़ दिया जाएगा. हथिनी को पोस्टमॉर्टम के लिए ले जाया गया, जिसमें पता लगा कि इंटर्नल ब्लीडिंग की वजह से हथिनी की मौत हुई थी.

कोयंबटूर में पिछले 15 दिनों में अलग-अलग हादसों में 5 हाथियों की मौत हो चुकी है. लेकिन इस हथनी की मौत के बाद का नजारा हर किसी की आंखों में आंसू ले आया. बेजुबान है तो क्या, मां तो मां ही होती है, और उसे खोने का दर्द भी सबको एक सा होता है.


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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