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प्लास्टिक की बॉटल से पानी पीने वालों की जान को खतरा है!

    • आईचौक
    • Updated: 25 जनवरी, 2018 01:40 PM
  • 25 जनवरी, 2018 01:40 PM
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प्लास्टिक की पानी से भरी बॉटल फ्रिज में रखी जाती है, वो कार में बैक सीट पर रखी जाती है, लेकिन क्या किसी को पता है कि इतने ठंडे और गर्म टेम्प्रेचर का उसपर क्या असर होता है?

हिंदुस्तान में कबाड़ से जुगाड़ बनाने की प्रथा बहुत पुरानी है. एक नई टीशर्ट भी कई सालों बाद पोछा बन जाती है और उसे तब तक इस्तेमाल किया जाता है जब तक उससे थोड़ा सा भी काम निकाला जा सकता है. यही हाल होता है पेप्सी, कोका-कोला, कोई और कोल्ड ड्रिंक और पानी की पुरानी प्लास्टिक बॉटल्स का. जब तक बॉटल फूटी नहीं है तब तक उसका इस्तेमाल करिए और उसमें पानी भरकर पीते रहिए.

प्लास्टिक की पानी से भरी बॉटल फ्रिज में रखी जाती है, वो कार में बैक सीट पर रखी जाती है, लेकिन क्या किसी को पता है कि इतने ठंडे और गर्म टेम्प्रेचर का उसपर क्या असर होता है?

कार में रखना खतरनाक...

प्लास्टिक की बॉटल चाहें वो कोल्डड्रिंक की हो या फिर मिनरल वॉटर की इसे एक बार खोलने के बाद दोबारा इस्तेमाल करना काफी खतरनाक साबित हो सकता है. ये सभी पॉलिथिलीन टेरेफथालेट (PET) नाम के एक कैमिकल से बनी होती हैं. अगर टेम्प्रेचर काफी ज्यादा होता है जैसे कार की बैक सीट पर या बैग में रखी हुई बॉटल तो ये कैमिकल्स पानी को अशुद्ध बना देते हैं.

लगभग सभी बॉटल्स एक बार के इस्तेमाल के लिए ही बनी होती हैं और उनमें ये चेतावनी भी दी गई होती है. इनमें BPA (Bisphenol A) नाम का एक कम्पाउंड होता है जो बार-बार इस्तेमाल करने पर कई बीमारियों का कारण बन सकता है. साथ ही रोजाना इस्तेमाल से प्लास्टिक की बॉटल में थोड़े-थोड़े क्रैक बन जाते हैं जिनसे आसानी से बैक्टीरिया बॉटल में घुस सकता है.

कैंसर की कारक?

ग्लिनविल न्यूट्रीशन क्लीनिक की डॉक्टर मेरिलिन ग्लिनविल (Marilyn Glenville) के अनुसार प्लास्टिक की बॉटल का बार-बार इस्तेमाल करना कई तरह की महिला संबंधित समस्याओं का कारक हो सकती है. जैसे PCOS, हार्मोन में समस्या, ब्रेस्ट कैंसर और कई अन्य चीजें.

हिंदुस्तान में कबाड़ से जुगाड़ बनाने की प्रथा बहुत पुरानी है. एक नई टीशर्ट भी कई सालों बाद पोछा बन जाती है और उसे तब तक इस्तेमाल किया जाता है जब तक उससे थोड़ा सा भी काम निकाला जा सकता है. यही हाल होता है पेप्सी, कोका-कोला, कोई और कोल्ड ड्रिंक और पानी की पुरानी प्लास्टिक बॉटल्स का. जब तक बॉटल फूटी नहीं है तब तक उसका इस्तेमाल करिए और उसमें पानी भरकर पीते रहिए.

प्लास्टिक की पानी से भरी बॉटल फ्रिज में रखी जाती है, वो कार में बैक सीट पर रखी जाती है, लेकिन क्या किसी को पता है कि इतने ठंडे और गर्म टेम्प्रेचर का उसपर क्या असर होता है?

कार में रखना खतरनाक...

प्लास्टिक की बॉटल चाहें वो कोल्डड्रिंक की हो या फिर मिनरल वॉटर की इसे एक बार खोलने के बाद दोबारा इस्तेमाल करना काफी खतरनाक साबित हो सकता है. ये सभी पॉलिथिलीन टेरेफथालेट (PET) नाम के एक कैमिकल से बनी होती हैं. अगर टेम्प्रेचर काफी ज्यादा होता है जैसे कार की बैक सीट पर या बैग में रखी हुई बॉटल तो ये कैमिकल्स पानी को अशुद्ध बना देते हैं.

लगभग सभी बॉटल्स एक बार के इस्तेमाल के लिए ही बनी होती हैं और उनमें ये चेतावनी भी दी गई होती है. इनमें BPA (Bisphenol A) नाम का एक कम्पाउंड होता है जो बार-बार इस्तेमाल करने पर कई बीमारियों का कारण बन सकता है. साथ ही रोजाना इस्तेमाल से प्लास्टिक की बॉटल में थोड़े-थोड़े क्रैक बन जाते हैं जिनसे आसानी से बैक्टीरिया बॉटल में घुस सकता है.

कैंसर की कारक?

ग्लिनविल न्यूट्रीशन क्लीनिक की डॉक्टर मेरिलिन ग्लिनविल (Marilyn Glenville) के अनुसार प्लास्टिक की बॉटल का बार-बार इस्तेमाल करना कई तरह की महिला संबंधित समस्याओं का कारक हो सकती है. जैसे PCOS, हार्मोन में समस्या, ब्रेस्ट कैंसर और कई अन्य चीजें.

अगर बॉटल कलर की हुई है जैसे माउंटेन ड्यू आदि की बॉटल, तो इन्हें बिलकुल भी दोबारा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. कलर करने के प्रोसेस में प्लास्टिक में और कैमिकल मिलाए जाते हैं जो यकीनन स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं.

TreadmillReviews.net की रिसर्च और टेस्ट लैब ने माना कि अगर प्लास्टिक की बॉटल को ज्यादा इस्तेमाल किया जाएगा तो उसमें E.coli नाम का एक कीटाणु आ जाता है. स्टेनलेस स्टील और एल्युमीनियम की बॉटल सुरक्षित समझी जाती है, लेकिन ये एक समय के बाद जंग खाने लगती हैं. पीने के पानी के लिए सबसे सुरक्षित कांच की बॉटल होती है.

अगर पानी की बॉटल लगातार नहीं धोते और ये समझते हैं कि पानी ही तो है तो ये भी एक बड़ी गलती है. पानी की बॉटल को लगातार साफ नहीं किया गया तो उसमें कई तरह के कीटाणु आ सकते हैं. भारत जैसे देश में जहां अधिकतर बीमारियां गंदा पानी पीने के कारण होती हैं अगर वहां थोड़ी सावधानी हमें खुद बरतनी होगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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