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क्या हम भारतीय प्यार करना नहीं जानते ?

    • आईचौक
    • Updated: 14 फरवरी, 2017 08:36 PM
  • 14 फरवरी, 2017 08:36 PM
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हमारे यहां प्यार का इजहार खुले-आम नहीं करने की प्रथा रही है. भाई अपनी बहन को पब्लिकली गले नहीं लगा सकता, पति अपनी पत्नी को और बाप अपनी बेटी को. आई लव यू कहना और चूमना तो दूर की बात है.

वैलेंटाइन डे यानि प्यार का दिन. प्यार, मनुहार का ये मौका प्रेमी जोड़ों के लिए खास होता है. अपना प्यार जताने और साथी को स्पेशल फील कराने के लिए ये सबसे सही समय होता है. लेकिन हमारे देश में प्यार के मायने और उसके इजहार करने का तरीका हमेशा से ही अलग रहा है.

अपने आस-पास हमें तीन तरह के लोग दिखते हैं. पहले वो जो खिलाड़ी टाइप के होते हैं. ये बांहें फैलाए हमेशा तैयार खड़े मिलते हैं कि कोई आए और गले से लग जाए. अपने प्यार या अपने अफेयर के बारे में लोगों के सामने बढ़ा-चढ़ाकर बोलना इनका फेवरेट काम होता है. दूसरी कैटेगरी होती है उम्मीदों से भरे लोगों की. इनकी आंखों में चमक होती है और हमेशा कुर्सियों के किनारे पर बैठे अपने साथी का इंतजार कर रहे होते हैं.

प्यार जताना हमारे यहां का चलन नहीं है

तीसरी कैटेगरी होती है शादी करके सेटल हो जाने वाले लोगों की. इन्हें प्यार और अफेयर जैसे शब्दों से बहुत मतलब नहीं होता. ये सीधा शादी करके सेटल होने और उसके बाद आराम की जिंदगी बसर करने के ख्यालों में ही खोए रहते हैं. ये लोग अपनी ही दुनिया में रहते हैं और प्यार के लिए इनकी अपने ही परिभाषा होती है. कुछ के लिए प्यार ही सबकुछ होता है तो कुछ के लिए प्यार एक जिम्मेदारी होती है तो कुछ के लिए प्यार बोझ की श्रेणी में आता है.

इतने के बाद भी क्या हम प्यार की सही परिभाषा जानते हैं. हमारे यहां प्यार का इजहार खुले-आम नहीं करने की प्रथा रही है. भाई अपनी बहन को पब्लिकली गले नहीं लगा सकता, पति अपनी पत्नी को और बाप अपनी बेटी को. आई लव यू कहना और चूमना तो दूर की बात है. हमारे यहां प्यार एक ऐसा शब्द है जिसे हम सात पर्दों के अंदर छुपाकर रखने में ही ज्यादा सहज महसूस करते हैं. हालांकि अब माहौल फिर भी बहुत बदल गया है और लोग थोड़े खुल रहे हैं.  

सही...

वैलेंटाइन डे यानि प्यार का दिन. प्यार, मनुहार का ये मौका प्रेमी जोड़ों के लिए खास होता है. अपना प्यार जताने और साथी को स्पेशल फील कराने के लिए ये सबसे सही समय होता है. लेकिन हमारे देश में प्यार के मायने और उसके इजहार करने का तरीका हमेशा से ही अलग रहा है.

अपने आस-पास हमें तीन तरह के लोग दिखते हैं. पहले वो जो खिलाड़ी टाइप के होते हैं. ये बांहें फैलाए हमेशा तैयार खड़े मिलते हैं कि कोई आए और गले से लग जाए. अपने प्यार या अपने अफेयर के बारे में लोगों के सामने बढ़ा-चढ़ाकर बोलना इनका फेवरेट काम होता है. दूसरी कैटेगरी होती है उम्मीदों से भरे लोगों की. इनकी आंखों में चमक होती है और हमेशा कुर्सियों के किनारे पर बैठे अपने साथी का इंतजार कर रहे होते हैं.

प्यार जताना हमारे यहां का चलन नहीं है

तीसरी कैटेगरी होती है शादी करके सेटल हो जाने वाले लोगों की. इन्हें प्यार और अफेयर जैसे शब्दों से बहुत मतलब नहीं होता. ये सीधा शादी करके सेटल होने और उसके बाद आराम की जिंदगी बसर करने के ख्यालों में ही खोए रहते हैं. ये लोग अपनी ही दुनिया में रहते हैं और प्यार के लिए इनकी अपने ही परिभाषा होती है. कुछ के लिए प्यार ही सबकुछ होता है तो कुछ के लिए प्यार एक जिम्मेदारी होती है तो कुछ के लिए प्यार बोझ की श्रेणी में आता है.

इतने के बाद भी क्या हम प्यार की सही परिभाषा जानते हैं. हमारे यहां प्यार का इजहार खुले-आम नहीं करने की प्रथा रही है. भाई अपनी बहन को पब्लिकली गले नहीं लगा सकता, पति अपनी पत्नी को और बाप अपनी बेटी को. आई लव यू कहना और चूमना तो दूर की बात है. हमारे यहां प्यार एक ऐसा शब्द है जिसे हम सात पर्दों के अंदर छुपाकर रखने में ही ज्यादा सहज महसूस करते हैं. हालांकि अब माहौल फिर भी बहुत बदल गया है और लोग थोड़े खुल रहे हैं.  

सही मायनों में प्यार हमने कभी देखा नहीं है. हां महसूस जरुर करते हैं. हर समय, हर पल, अपने माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी के आंखों में उनके व्यवहार में. पर खुलकर प्यार जताने और दिखाने की प्रथा हमारे यहां है ही नहीं.

प्यार करना हमें आता भी है?

बल्कि सच्चाई तो ये है कि आज भी हमारे यहां शादियां अरेंजड ही करने की प्रथा है. साथी ही शादी जाति, धर्म, परिवार और एक-दूसरे की सामाजिक और आर्थिक स्थिति देखकर की जाती है. लव मैरिज के कॉन्सेप्ट को अभी भी लोग स्वीकार नहीं कर पाए हैं. इन्हें ही हम जन्मों-जन्मों का साथ मानकर चलते हैं और खुश हों या ना हों पर जीवन भर इसे ढोते रहते हैं या जीते रहते हैं. लेकिन इस रिश्ते में रोमांस की कोई जगह नहीं होती. इसमें सिर्फ कमिटमेंट होती है.

यही वजह है कि हमारे यहां बच्चे रोमांस फ्री माहौल में ही बड़े होते हैं. इनमें से कुछ बच्चे प्यार का मतलब फिर बॉलीवुड फिल्मों में खोजते हैं. बॉलीवुड हमारे समाज में प्यार दिखाने और जताने के तरीकों का आईना है. समय के साथ समाज बदला और समाज के साथ बॉलीवुड के प्रेम का तरीका. पहले प्यार हिंदू-मुस्लिम, अमीर-गरीब के बीच के मुकाबले को दिखाती थी तो अब की फिल्में भावनाओं और उसके पीछे की मंशा पर बनती हैं.

अब के समय में लोग बॉलीवुड से आगे बढ़कर टिंडर, हाइन्ज, शादी.कॉम जैसी जगहों पर प्यार की खोज करते हैं. हर सोशल इवेन्ट में इस आस से जाते हैं कि यहां उन्हें 'वो एक साथी' मिल ही जाए. लेकिन उस 'एक' साथी के साथ दिक्कत है कि वो घंटियां बजाकर या किसी तरह के इशारे देकर नहीं आता. साथ ही अगर वो मेरी मां की तरह नहीं है हो जाती है तो वो मेरे पापा जैसा नहीं है पर भी तौला जाने लगा है.

लेकिन प्यार की आस में बैठे लोगों के लिए इंतजार की घड़ियां चाहे कितनी भी लंबी क्यों ना हो मुस्तैदी से प्यार पाने के इंतजार में बैठे रहते हैं. कुछ लोगों को प्यार मिल भी जाता है और कुछ को नहीं भी मिलता है. हालांकि ज्यादातर लोगों के लिए प्यार का पासा उल्टा ही पड़ जाता है. इस चक्कर में हम कई दिलों को तोड़ते हैं और कई बार अपने दिल को टूटते हुए देखते हैं. ऐसा विरले ही होता है कि हमें जैसा प्यार चाहिए वो मिल जाए.

प्यार को पर्दे के अंदर छुपा कर रखना हमारी संस्कृति का हिस्सा है

नतीजा हम खुद को एक दायरे में सीमित कर लेते हैं. हम कुछ भी महसूस करना बंद कर देते हैं. प्यार करने का तरीका बदल देते हैं. इसके बाद हम टूट कर प्यार नहीं करते बल्कि टुकड़ों में प्यार करते हैं. प्यार अब हमारे लिए एक रोग हो जाता है जो हमारी खुशियों को खा जाता है. जीवन के खेल में हम अब एक खिलाड़ी से ज्यादा कुछ नहीं रह जाते.

लेकिन फिर भी अनंत काल से प्यार के इर्द-गिर्द ही हम अपनी ज़िंदगी को टिकाए चले आ रहे हैं. हम चाहे जो भी करें वो प्यार की वजह से या प्यार के लिए ही करते हैं. पूरी मानव जाति ही प्यार पर निर्भर है. मां अपने बच्चों से प्यार करती है. कपल्स एक-दूसरे से प्यार करते हैं, एक बेटा अपने बीमार पिता की देखभाल करता है या एक गे आदमी किसी अनाथ लड़की को गोद लेता है. ये सारे काम सिर्फ प्यार की ही वजह से हम कर पाते हैं. प्यार पाने के लिए या प्यार को दिखाने के लिए.

जरुरी नहीं कि प्यार को किसी परिभाषा में बांधा ही जाए. प्यार प्यार होता है. हर दायरे से अलग, हर बाउंड्री के पार. प्यार को समझदारी की जरुरत नहीं. अलग-अलग लोगों के लिए प्यार की परिभाषा अलग होती है. जीवन के अलग-अलग पड़ावों पर प्यार की परिभाषा अलग होती है. लेकिन फिर भी प्यार, प्यार ही होता है. समय के साथ प्यार करने के तरीके बदले हैं. हम किसे प्यार करते हैं, क्यों प्यार करते हैं, हर कुछ बदल गया है लेकिन नहीं बदला तो प्यार और उसकी पवित्रता.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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