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देखो ओ दीवानों, रोमियो का नाम बदनाम ना करो

    • खुशदीप सहगल
    • Updated: 22 मार्च, 2017 09:01 PM
  • 22 मार्च, 2017 09:01 PM
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सवाल है, ये स्क्वॉड बनाना ही है तो उसे 'एंटी ईव टीजिंग स्क्वॉड' (AETS) नाम देने में क्या परेशानी है ? रोमियो या मजनूं पर ही नामकरण क्यों?

उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ योगी सरकार अस्तित्व में आते ही फॉर्म में आ गई है. बीजेपी के चुनाव घोषणा पत्र में किए वादे के मुताबिक 'एंटी रोमियो स्कवॉड्स' ने जोर-शोर से काम करना भी शुरू कर दिया है. पार्टी का दावा है कि महिलाओं, खास तौर पर स्कूल-कॉलेज जाने वाली लड़कियों से छेड़खानी रोकने की दिशा में ये स्क्वॉड असरदार ढंग से काम करेगा. कुछ इसी तर्ज पर उत्तर प्रदेश में 2005 में 'ऑपरेशन मजनूं' काम करते दिखा था.

अमित शाह ने एंटी रोमिया स्‍क्‍वॉड की बात बीजेपी के घोषणा पत्र में कही थी, और उस वादे को पूरा कर दिया योगी आदित्‍यनाथ.

यहां एक सवाल है, ये स्क्वॉड बनाना ही है तो उसे 'एंटी ईव टीजिंग स्क्वॉड' (AETS) नाम देने में क्या परेशानी है ? रोमियो या मजनूं पर ही नामकरण क्यों? ये सही है जब बीजेपी ने यूपी के लिए चुनाव घोषणा पत्र में लड़कियों को शोहदों की छेड़खानी से बचाने के लिए एंटी रोमियो स्क्वॉड बनाने का वादा किया था, उसके जेहन में शेक्सपीयर का रोमियो कहीं आस-पास भी नहीं होगा. वो रोमियो पात्र जो वर्ष 1597 में ही शेक्सपीयर के कालजयी नाटक 'रोमियो एंड जूलियट' के जरिए अजर-अमर बना हुआ है.

रोमियो एंड जूलियट का क्लाइमेक्स तो ये कहता है कि रोमियो से शादी करने के लिए जूलियट ने अपने घर वालों को धोखा देने के लिए नींद की दवा पी ली थी जिससे कि उसे मृत मानकर मकबरा रूपी तहखाने में डाला जा सके. लेकिन रोमियो को इसके बारे में कुछ नहीं पता था. उसने तो यही सोचा कि जूलियट सच में मर गई. यही सोच कर रोमियो ने जहर पीकर जान दे दी जिससे कि वो भी मरने के बाद तहखाने में जूलियट के साथ रह सके. जब जूलियट को होश आया तो उसे पता चला कि रोमियो मर चुका है तो फिर उसने खुद को भी मार डाला.  

ये तो था शेक्सपीयर का रोमियो जिसकी जूलियट के लिए प्रेम की...

उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ योगी सरकार अस्तित्व में आते ही फॉर्म में आ गई है. बीजेपी के चुनाव घोषणा पत्र में किए वादे के मुताबिक 'एंटी रोमियो स्कवॉड्स' ने जोर-शोर से काम करना भी शुरू कर दिया है. पार्टी का दावा है कि महिलाओं, खास तौर पर स्कूल-कॉलेज जाने वाली लड़कियों से छेड़खानी रोकने की दिशा में ये स्क्वॉड असरदार ढंग से काम करेगा. कुछ इसी तर्ज पर उत्तर प्रदेश में 2005 में 'ऑपरेशन मजनूं' काम करते दिखा था.

अमित शाह ने एंटी रोमिया स्‍क्‍वॉड की बात बीजेपी के घोषणा पत्र में कही थी, और उस वादे को पूरा कर दिया योगी आदित्‍यनाथ.

यहां एक सवाल है, ये स्क्वॉड बनाना ही है तो उसे 'एंटी ईव टीजिंग स्क्वॉड' (AETS) नाम देने में क्या परेशानी है ? रोमियो या मजनूं पर ही नामकरण क्यों? ये सही है जब बीजेपी ने यूपी के लिए चुनाव घोषणा पत्र में लड़कियों को शोहदों की छेड़खानी से बचाने के लिए एंटी रोमियो स्क्वॉड बनाने का वादा किया था, उसके जेहन में शेक्सपीयर का रोमियो कहीं आस-पास भी नहीं होगा. वो रोमियो पात्र जो वर्ष 1597 में ही शेक्सपीयर के कालजयी नाटक 'रोमियो एंड जूलियट' के जरिए अजर-अमर बना हुआ है.

रोमियो एंड जूलियट का क्लाइमेक्स तो ये कहता है कि रोमियो से शादी करने के लिए जूलियट ने अपने घर वालों को धोखा देने के लिए नींद की दवा पी ली थी जिससे कि उसे मृत मानकर मकबरा रूपी तहखाने में डाला जा सके. लेकिन रोमियो को इसके बारे में कुछ नहीं पता था. उसने तो यही सोचा कि जूलियट सच में मर गई. यही सोच कर रोमियो ने जहर पीकर जान दे दी जिससे कि वो भी मरने के बाद तहखाने में जूलियट के साथ रह सके. जब जूलियट को होश आया तो उसे पता चला कि रोमियो मर चुका है तो फिर उसने खुद को भी मार डाला.  

ये तो था शेक्सपीयर का रोमियो जिसकी जूलियट के लिए प्रेम की भावना निश्चल और पवित्र थी. शेक्सपीयर का रोमियो तो हैमलेट में कहीं शोहदे जैसी हरकत करता नहीं दिखा. ऐसा भी कोई उल्लेख नहीं कि रोमियो ने किसी महिला से कभी कोई छेड़खानी की हो या कभी यौन उत्पीड़न का उस पर इल्जाम लगा हो.

क्‍या वाकई छेड़छाड़ करने वालों तक पहुंचेगा यह प्रयोग ?

रोमियो ही क्यों मजनूं ने भी तो लैला से सिर्फ प्रेम करने का ही तो गुनाह किया था. फिर आज के दौर में छेड़खानी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई को 'ऑपरेशन मजनूं' का नाम क्यों. रांझा का हीर के लिए, महिवाल का सोहनी के लिए, फरहाद का शीरी के लिए और पुन्नू का ससी के लिए प्रेम उतना ही प्रगाढ़ था जितना कि हिंदू पौराणिक पात्रों में मिलता है.

एंटी-इव-टीजिंग के लिए जो भी ऑपरेशन होता है, उसमें अहम ये होता है कि उसे लागू कैसे किया जाता है. पुलिस इस तरह काम नहीं करे कि क्राइम कंट्रोल या मॉरल पुलिसिंग की लकीर ही खत्म हो जाए. मॉरल पुलिसिंग प्रेम की किसी भी अभिव्यक्ति पर हमला कर सकती है. ऐसे में ये सवाल भी उठ सकता है कि इस तरह के ऑपरेशन महिलाओं या लड़कियों के संरक्षण के लिए हैं या उन पर पहरा लगाने के लिए हैं.

इसलिए आग्रह ये है कि लड़कियों या महिलाओं से छेड़छाड़ करने वालों की जैसी भी गत बनाओ, कोई भी ऑपरेशन चलाओ लेकिन रोमियो या मजनूं के नामों की मिट्टी तो पलीत ना की जाए.

एंटी इव टीजिंग स्क्वॉड का नाम रोमियो पर रखने की बात सुन कर उन छात्रों को कैसे लगता होगा जो शेक्सपीयर को पढ़ते हैं. यहां ये नहीं कहा जा सकता कि नाम में क्या रखा है. नाम में ही सब कुछ रखा है साहब...

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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