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छोड़िए जेएनयू और जाट विवाद, आइए क्रिकेट मैच देखते हैं

    • आशुतोष कुमार शुक्ल
    • Updated: 27 फरवरी, 2016 10:25 AM
  • 27 फरवरी, 2016 10:25 AM
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राजनीतिक मुद्दों पर देश में विरोध बढ़ा है लेकिन क्रिकेट पर देश एक है. ये 1983 में भी एक था, 2003 में भी एक था, 2011 में भी और आज भी दरअसल एक ही है.

पिछले 15 दिन से सिर में बहुत दर्द हो रहा है. दवा से भी आराम नहीं है, पता नहीं टीवी चैनल और समाचार के तमाम माध्यमों को ना जाने क्या हो गया है. बार-बार यही एहसास हो रहा है कि ये सिरदर्द जो दवा से भी नहीं जा रहा है उसकी वजह ही ये तमाम गंभीर खबरें हैं. जेएनयू विवाद, जाट आरक्षण, स्मृति ईरानी का भाषण, टीवी चैनलों की दलीलें कुछ और सोचने का मौका ही नहीं दे रही थीं. अचानक एक सुखद खबर मिली, एशिया कप में भारत-पाकिस्तान का मैच है, 27 फरवरी को...

एक पल में ही जैसे सारा सिरदर्द गायब हो गया. भारत-पाकिस्तान का मैच, वॉव यार, मतलब ये सैटर्डे पूरा एक्साइटमेंट से भरा होगा. क्या होगा कल के मैच में ये सोच-सोच कर ही रोमांच का अनुभव हो रहा है. कौन टॉस जीतेगा, क्या भारत की बल्लेबाजी पहले आएगी, पाकिस्तानी बॉलिंग अटैक से कैसे निपटेगा भारत, अरे छोड़ो पहले ये सोचो भारत के टॉप थ्री से कैसे निपटेगा पाकिस्तान और फिर इस बार तो युवी भी टीम में है.

आखिरी बार भारत-पाकिस्तान का मैच ऑस्ट्रेलिया में विश्वकप में हुआ था. क्या मैच था. जितना एक्साइटमेंट स्टेडियम में था उतना ही एक्साइटमेंट हमारे अंदर भी था. शानदार मैच था. भारत ने जीत दर्ज की और पाकिस्तान का भारत को विश्वकप में हराने का सपना, सपना ही रह गया.

सभी खुश थे, बधाइयां दे रहे थे, कोई सिरदर्द नहीं था. आज पूरे देश को सिरदर्द है, उसकी दवा ये मैच है, क्योंकी ये खेल हमें एक करता है, जब हम एक साथ खड़े होते हैं तो ऐसे मुद्दे जो आजकल सुर्खियों में छाए हुए हैं उनका कोई मतलब नहीं बनता है. आज देश के तमाम लोग इन मुद्दों को लेकर बंट गए हैं, कोई साथ है तो कोई विरोध में. स्पष्ट है ऐसे मुद्दे सिर्फ नफरत ही बढ़ाते हैं, खेल हमें एक करते हैं और इसमें क्रिकेट का रोल हमेशा बड़ा रहा है.

राजनीतिक मुद्दों पर देश में विरोध बढ़ा है लेकिन क्रिकेट पर देश एक है. ये 1983 में भी एक था, 2003 में भी एक था, 2011 में भी और आज भी दरअसल एक ही है. देश में धर्म पर तमाम बहस, विवाद-विरोध होते हैं लेकिन क्रिकेट को लेकर हम हमेशा एक...

पिछले 15 दिन से सिर में बहुत दर्द हो रहा है. दवा से भी आराम नहीं है, पता नहीं टीवी चैनल और समाचार के तमाम माध्यमों को ना जाने क्या हो गया है. बार-बार यही एहसास हो रहा है कि ये सिरदर्द जो दवा से भी नहीं जा रहा है उसकी वजह ही ये तमाम गंभीर खबरें हैं. जेएनयू विवाद, जाट आरक्षण, स्मृति ईरानी का भाषण, टीवी चैनलों की दलीलें कुछ और सोचने का मौका ही नहीं दे रही थीं. अचानक एक सुखद खबर मिली, एशिया कप में भारत-पाकिस्तान का मैच है, 27 फरवरी को...

एक पल में ही जैसे सारा सिरदर्द गायब हो गया. भारत-पाकिस्तान का मैच, वॉव यार, मतलब ये सैटर्डे पूरा एक्साइटमेंट से भरा होगा. क्या होगा कल के मैच में ये सोच-सोच कर ही रोमांच का अनुभव हो रहा है. कौन टॉस जीतेगा, क्या भारत की बल्लेबाजी पहले आएगी, पाकिस्तानी बॉलिंग अटैक से कैसे निपटेगा भारत, अरे छोड़ो पहले ये सोचो भारत के टॉप थ्री से कैसे निपटेगा पाकिस्तान और फिर इस बार तो युवी भी टीम में है.

आखिरी बार भारत-पाकिस्तान का मैच ऑस्ट्रेलिया में विश्वकप में हुआ था. क्या मैच था. जितना एक्साइटमेंट स्टेडियम में था उतना ही एक्साइटमेंट हमारे अंदर भी था. शानदार मैच था. भारत ने जीत दर्ज की और पाकिस्तान का भारत को विश्वकप में हराने का सपना, सपना ही रह गया.

सभी खुश थे, बधाइयां दे रहे थे, कोई सिरदर्द नहीं था. आज पूरे देश को सिरदर्द है, उसकी दवा ये मैच है, क्योंकी ये खेल हमें एक करता है, जब हम एक साथ खड़े होते हैं तो ऐसे मुद्दे जो आजकल सुर्खियों में छाए हुए हैं उनका कोई मतलब नहीं बनता है. आज देश के तमाम लोग इन मुद्दों को लेकर बंट गए हैं, कोई साथ है तो कोई विरोध में. स्पष्ट है ऐसे मुद्दे सिर्फ नफरत ही बढ़ाते हैं, खेल हमें एक करते हैं और इसमें क्रिकेट का रोल हमेशा बड़ा रहा है.

राजनीतिक मुद्दों पर देश में विरोध बढ़ा है लेकिन क्रिकेट पर देश एक है. ये 1983 में भी एक था, 2003 में भी एक था, 2011 में भी और आज भी दरअसल एक ही है. देश में धर्म पर तमाम बहस, विवाद-विरोध होते हैं लेकिन क्रिकेट को लेकर हम हमेशा एक रहे हैं. क्रिकेट देश को जोड़ने वाला धर्म है. ये वक्त है तमाम फिजूल के मुद्दों को भुलाकर एक होने का. हमारे पास एक शानदार मौका है, एक दूसरे का हाथ थामिए, दिल से इंडिया-इंडिया बोलिए और तैयार हो जाइए एक होने के लिए.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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