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नर्सरी एडमिशन के लिए ज्‍योतिष की मदद!

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 18 दिसम्बर, 2018 04:20 PM
  • 18 दिसम्बर, 2018 04:20 PM
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दिल्ली में नर्सरी में एडमिशन कितना अहम है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि यहां सीटों की तुलना में बच्चों की संख्या करीब 4 गुना है. मां-बाप अपने बच्चे का एडमिशन कराने के लिए हर जतन करने को तैयार हैं.

दिल्ली में ठंड का मौसम काफी धुंध भरा रहता है और अगर आपका कोई 3-4 साल का बेटा या बेटी है तो ये मौसम आपके लिए कुछ ज्यादा ही धुंधला हो जाता है. इसकी वजह है नर्सरी में होने वाले एडमिशन. इस बार 15 दिसंबर, शनिवार से दिल्ली के करीब 1700 निजी स्कूलों में नर्सरी में एडमिशन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. दिल्ली में नर्सरी में एडमिशन कितना अहम है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि यहां सीटों की तुलना में बच्चों की संख्या करीब 4 गुना है. मां-बाप अपने बच्चे का एडमिशन कराने के लिए हर जतन करने को तैयार हैं. यही वजह है कि आज कल दिल्ली में मां-बाप सिर्फ स्कूलों के ही नहीं, बल्कि ज्योतिषाचार्यों के भी चक्कर काट रहे हैं. पूजा-पाठ, मंत्र जाप से लेकर टोटके तक सब कुछ आजमाया जा रहा है.

मां-बाप अपने बच्चे का नर्सरी में एडमिशन कराने के लिए हर जतन करने को तैयार हैं.

ज्योतिष का सहारा

अपने बच्चे का नर्सरी में एडमिशन कराने के लिए मां-बाप ज्योतिष का सहारा ले रहे हैं. उनसे मंत्रों और टोटकों के बारे में पूछ रहे हैं. देखिए कुछ सवाल, जो इन दिनों आम हो गए हैं.

- इस बार बच्चे का नर्सरी में एडमिशन हो पाएगा या नहीं?

- बच्चे के नाम और राशि के हिसाब से कौन से स्कूल का फॉर्म खरीदें?

- एडमिशन के लिए घर से क्या खाकर निकलें?

- एडमिशन फॉर्म खरीदने के लिए किस दिशा में चलें कि एडमिशन हो ही जाए?

- जिस बच्चे का नर्सरी में एडमिशन करना है, उसके लिए कौन सा व्रत रखें?

- किस मंत्र का जाप करने से बच्चे का एडमिशन आसानी से हो जाएगा?

और रास्ता भी क्या बचा है?

नर्सरी वो कक्षा है, जिसमें एडमिशन के लिए बच्चे को तैयार भी...

दिल्ली में ठंड का मौसम काफी धुंध भरा रहता है और अगर आपका कोई 3-4 साल का बेटा या बेटी है तो ये मौसम आपके लिए कुछ ज्यादा ही धुंधला हो जाता है. इसकी वजह है नर्सरी में होने वाले एडमिशन. इस बार 15 दिसंबर, शनिवार से दिल्ली के करीब 1700 निजी स्कूलों में नर्सरी में एडमिशन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. दिल्ली में नर्सरी में एडमिशन कितना अहम है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि यहां सीटों की तुलना में बच्चों की संख्या करीब 4 गुना है. मां-बाप अपने बच्चे का एडमिशन कराने के लिए हर जतन करने को तैयार हैं. यही वजह है कि आज कल दिल्ली में मां-बाप सिर्फ स्कूलों के ही नहीं, बल्कि ज्योतिषाचार्यों के भी चक्कर काट रहे हैं. पूजा-पाठ, मंत्र जाप से लेकर टोटके तक सब कुछ आजमाया जा रहा है.

मां-बाप अपने बच्चे का नर्सरी में एडमिशन कराने के लिए हर जतन करने को तैयार हैं.

ज्योतिष का सहारा

अपने बच्चे का नर्सरी में एडमिशन कराने के लिए मां-बाप ज्योतिष का सहारा ले रहे हैं. उनसे मंत्रों और टोटकों के बारे में पूछ रहे हैं. देखिए कुछ सवाल, जो इन दिनों आम हो गए हैं.

- इस बार बच्चे का नर्सरी में एडमिशन हो पाएगा या नहीं?

- बच्चे के नाम और राशि के हिसाब से कौन से स्कूल का फॉर्म खरीदें?

- एडमिशन के लिए घर से क्या खाकर निकलें?

- एडमिशन फॉर्म खरीदने के लिए किस दिशा में चलें कि एडमिशन हो ही जाए?

- जिस बच्चे का नर्सरी में एडमिशन करना है, उसके लिए कौन सा व्रत रखें?

- किस मंत्र का जाप करने से बच्चे का एडमिशन आसानी से हो जाएगा?

और रास्ता भी क्या बचा है?

नर्सरी वो कक्षा है, जिसमें एडमिशन के लिए बच्चे को तैयार भी नहीं कराया जा सकता. ना तो इसके लिए कोई कोचिंग करा सकते हैं, ना ही किसी तरह का खास कोर्स. वजह ये है कि ये किसी भी बच्चे का शिक्षा में पहला कदम होता है. यहीं से वो अपनी पढ़ाई शुरू करता है. लेकिन अगर एक ही सीट के कई दावेदार हों, तो किस आधार पर सीट दी जाए. बस इन्हीं सब की वजह से हर साल कभी सरकार नियम बदलती है तो कभी स्कूल. अक्सर ही ऐसा होता है कि बहुत से बच्चों के एडमिशन नहीं हो पाते. ये वो प्वाइंट होता है जब हम किस्मत को कोसना शुरू करते हैं और फिर हमारे पूजा-पाठ, व्रत और टोटके आजमाने के अलावा कोई रास्ता नहीं रहता. कुछ लोग ज्योतिष की शरण में जाते हैं तो कुछ टोटके आजमाना शुरू करते हैं. जब हर जतन करने के बावजूद बच्चे के एडमिशन ना हो पाए तो आखिर रास्ता भी क्या बचता है?

सालों से चल रही है ये कश्मकश

2004 से पहले तक स्कूलों के पास अधिकार था कि वह एडमिशन के लिए माता-पिता का इंटरव्यू ले सकते थे. इसे राकेश अग्रवाल नाम के एक शख्स ने 2004 में अदालत में चुनौती दी. 2007 में एडमिशन में स्क्रीनिंग और इंटरव्यू को खत्म करते हुए अशोक गांगुली कमेटी बनाई. इस कमेटी की सिफारिशों को बाद में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. 2008 में कुछ बदलाव के साथ गांगुली कमेटी की सिफारिशें लागू हुईं, जिसमें स्कूलों को एडमिशन क्राइटेरिया तय करने की छूट मिली. इसके बाद 2013 तक गांगुली कमेटी के आधार पर ही एडमिशन हुए, जिसमें मैनेजमेंट कोटा, स्टाफ कोटा आदि शामिल था.

2013 में ही दिल्ली हाई कोर्ट ने नर्सरी दाखिले को राइट टू एजुकेशन एक्ट से बाहर रखने के आदेश दिए. दिसंबर 2013 में राष्ट्रपति शासन के दौरान नई गाइडलाइंस जारी हुईं और मैनेजमेंट कोटा खत्म कर दिया गया, जिसे फिर से प्राइवेट स्कूलों ने कोर्ट में चुनौती दी. नवंबर 2014 में नई गाइडलाइंस खारिज कर दी गईं और अशोक गांगुली कमेटी की सिफारिशों को ही लागू किया गया. 2015 में आम आदमी पार्टी ने भी मैनेटमेंट कोटा खत्म करने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन हार गई. तब से लेकर अब तक दिल्ली सरकार और स्कूलों के बीच मामला कोर्ट में चल रहा है. कभी फैसला सरकार के हक में जाता है तो कभी स्कूलों के, लेकिन दिक्कत होती है मासूम बच्चों और उनके माता-पिता को.

देश की राजधानी दिल्ली में वर्ल्ड क्लास कॉलेज तो हैं, लेकिन नर्सरी में एडमिशन के लिए प्राइवेट स्कूलों के आगे लगी भीड़ इस शहर की सारी पोल खोल देती है. यहां करीब 1700 प्राइवेट स्कूल हैं, जिनमें करीब 1.25 लाख सीटें नर्सरी के बच्चों के लिए हैं. सरकार भी सिर्फ प्राइवेट कॉलेजों पर नकेल कसने में लगी हुई है. अगर इसके साथ-साथ सरकार नए स्कूल खोले, जो प्राइवेट स्कूलों को टक्कर दे सकें तो बेशक नर्सरी में एडमिशन की दिक्कत से निपटा जा सकता है. हर चार में से एक बच्चे को तो अच्छे स्कूल में नर्सरी में एडमिशन मिल जाता है और ये तय हो जाता है कि अब वह जिंदगी में कुछ बन जाएगा, लेकिन बाकी के 3 बच्चों के लिए जिंदगी बचपन से ही संघर्ष बन जाती है. अब आप खुद ही सोचिए, ऐसे में एक अभिभावक ज्योतिष की दुकान के चक्कर नहीं लगाएगा तो क्या करेगा?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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