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नोटबंदी का मानसिक असर...

    • आलोक रंजन
    • Updated: 22 नवम्बर, 2016 08:11 PM
  • 22 नवम्बर, 2016 08:11 PM
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नोटबंदी के बाद मनोरोग विशेषज्ञों के पास आने वाले ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ गई हैं जो बेचैनी, तनाव, अवसाद और नींद नहीं पूरी होने की शिकायतें लेकर आ रहे हैं.

देशभर में कैश लेने के लिए बैंक और एटीएम के बाहर लोगों की लंबी-लंबी कतारें लगी हुई हैं. नोटबंदी की घोषणा को करीब दो सप्ताह हो चुके हैं लेकिन लोगों की भीड़ कम होने का नाम ही नहीं ले रही है. कई लोग तो कई बार लाइन में लगे तब जाकर उन्हें कैश मिल पाया. कई तो अभी भी ऐसे हैं जिन्हें सफलता नहीं मिल पायी है. पैसा नहीं पाने या अपने मनमुताबिक नहीं मिल पाने के कारण लोगों में चिड़चिड़ापन, झुंझुलाहट और निराशा देखने को मिल रही हैं.

 नोटबंदी ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया है

नोटबंदी का असर काफी व्यापक हुआ है और इसने लोगों की मानसिक दशा को भी काफी हद तक प्रभावित किया है. समाज के कई वर्ग अभी भी अवसाद और निराशा के दौर से उबर नहीं पाए है. किसी को ये डर सता रहा है की उनके पुराने नोट बदल पाएंगे या नहीं , नए नोट कैसे मिलेंगे, लंबी कतारों से झंझट कब मिलेगी, आने वाले समय में उनके पैसा सुरक्षित है या नहीं इत्यादि.

पिछले कुछ दिनों से कई जगहों से ये रिपोर्ट प्रमुखता से आ रही है की नोटबंदी के बाद मनोरोग विशेषज्ञों के पास आने वाले ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ गई हैं जो बेचैनी, तनाव, अवसाद और नींद नहीं पूरी होने की शिकायतें लेकर आ रहे हैं.

ये भी पढ़ें- नोटबंदी से हो सकता है जनसंख्या विस्फोट !

मानसिक रूप स्वस्थ्य रहना किसी भी नागरिक के लिए निहायत ही जरुरी है. अगर ये सही नहीं तो ये देश के सामाजिक, आर्थिक और...

देशभर में कैश लेने के लिए बैंक और एटीएम के बाहर लोगों की लंबी-लंबी कतारें लगी हुई हैं. नोटबंदी की घोषणा को करीब दो सप्ताह हो चुके हैं लेकिन लोगों की भीड़ कम होने का नाम ही नहीं ले रही है. कई लोग तो कई बार लाइन में लगे तब जाकर उन्हें कैश मिल पाया. कई तो अभी भी ऐसे हैं जिन्हें सफलता नहीं मिल पायी है. पैसा नहीं पाने या अपने मनमुताबिक नहीं मिल पाने के कारण लोगों में चिड़चिड़ापन, झुंझुलाहट और निराशा देखने को मिल रही हैं.

 नोटबंदी ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया है

नोटबंदी का असर काफी व्यापक हुआ है और इसने लोगों की मानसिक दशा को भी काफी हद तक प्रभावित किया है. समाज के कई वर्ग अभी भी अवसाद और निराशा के दौर से उबर नहीं पाए है. किसी को ये डर सता रहा है की उनके पुराने नोट बदल पाएंगे या नहीं , नए नोट कैसे मिलेंगे, लंबी कतारों से झंझट कब मिलेगी, आने वाले समय में उनके पैसा सुरक्षित है या नहीं इत्यादि.

पिछले कुछ दिनों से कई जगहों से ये रिपोर्ट प्रमुखता से आ रही है की नोटबंदी के बाद मनोरोग विशेषज्ञों के पास आने वाले ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ गई हैं जो बेचैनी, तनाव, अवसाद और नींद नहीं पूरी होने की शिकायतें लेकर आ रहे हैं.

ये भी पढ़ें- नोटबंदी से हो सकता है जनसंख्या विस्फोट !

मानसिक रूप स्वस्थ्य रहना किसी भी नागरिक के लिए निहायत ही जरुरी है. अगर ये सही नहीं तो ये देश के सामाजिक, आर्थिक और मानव संसाधनों पर भी असर डालती है. नोटबंदी के दूरगामी परिणाम अभी आने बाकी हैं लेकिन तात्कालिक तौर पर लोगों में बेचैनी और तनाव बढ़ा है. सरकार को इस दिशा में भी सोचने की जरुरत है की कैसे लोगों की इस मनोदशा का निवारण किया जा सके ताकि ये असर तात्कालिक ही रहे परमानेंट नहीं.

अगर इतिहास के पन्नों को उलट कर देखें तो जब-जब लोगों को आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ा हैं तो लोगों में बेचैनी, अवसाद, तनाव और मानसिक परेशानी बढ़ी हैं. प्रथम और दूसरा विश्वयुद्ध हो, अमेरिका का आर्थिक संकट हो, सोवियत यूनियन का विघटन हो, या यूरोपियन यूनियन के एकीकरण के दौरान होने वाली समस्याएं, इन सभी घटनाओ के दौरान वहां के लोगों में मानसिक अवसाद की घटनाओ में काफी वृद्धि हुई थी.

  लोगों में बेचैनी, अवसाद, तनाव और मानसिक परेशानी बढ़ी हैं

हालांकि नोटबंदी के बाद भारत में वो विकराल रूप नहीं हैं जैसा की उपरोक्त घटनाओं के दौरान हुआ था, जब लाखों लोगों की नौकरी चली गई थी, पैसे की तंगी, व्यवसाय का नुकसान आदि ने एक व्यापक वर्ग को प्रभावित किया था और जिसने समाज में कई विसंगतियों और मानसिक रोगों को जन्म दिया था.

नोटबंदी के बाद कई वर्गों को काफी आर्थिक हानि उठानी पड़ रही है. छोटे और थोक व्यापारी, ट्रांसपोर्टर्स आदि कई वर्ग हैं जिनका व्यवसाय में करीब 25 -35 % तक का नुकसान हुआ है. कई को काफी परेशानी उठानी पड़ रही हैं. जाहिर है ऐसी स्थिति में इन लोगों की मानसिक अवस्था क्या होगी जग जाहिर है.

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डिप्रेशन के शिकार लोग मनोवैज्ञानिकों के शरण में जा रहे हैं. कई शहरों चाहे वो मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली जैसे मेट्रो शहर हो या आर्थिक रूप से संपन्न अहमदाबाद या फिर देहरादून, जबलपुर जैसे छोटे शहर, सभी जगहों से नोटबंदी के बाद लोगों में मानसिक तनाव बढ़ने की रिपोर्ट आ रही हैं. हाथ में कैश कम होना लोगों को हर कदम परेशान कर रहा है. नोटबंदी के फायदे या नुकसान लोगों के जीवन में क्या खुशहाली लाते हैं ये तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा लेकिन उनके मानसिक स्थिति में असर अभी से होने लगा है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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