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शिकायतकर्ता को थाने में घुसने नहीं देते, राधे मां को कुर्सी दे दी !

    • राम किंकर
    • Updated: 06 अक्टूबर, 2017 07:33 PM
  • 06 अक्टूबर, 2017 07:33 PM
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दिल्ली में कभी भी कोई शिकायत दर्ज करवाने जाइए. हर पुलिस वाला आपको किसी न किसी एप की जानकारी देगा और मुश्किल ही है कि आप SHO से मिल पाएं, लेकिन राधे मां के लिए ये बहुत आसान था....

2007 से क्राइम रिपोर्टिंग कर रहा हूं. विवेक विहार थाने से एक अपशुकन ये जुड़ा है कि वहां पर कोई भी एसएचओ ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाता. 2014 का एक वाक्या याद आता है जब एक रिपोर्टर त्रिलोकपुरी में कर्फ्यू को कवर करने गया था लेकिन तत्कालीन एसएचओ राकेश सांगवान ने पिटाई कर दी जो बाद में निलंबित कर दिए गए थे. 2008 में विवेक विहार थाना जाना हुआ. थाने में दाखिल हो ही रहा था कि गेट पर ही खड़े संतरी ने ज़ोर की आवाज लगाई बेसाख्ता ही पांव ठिठक गए और हाथ में आजतक का माइक आईडी होते हुए भी मुझे दाखिल नहीं होने दिया गया. ठीक से खड़ा हो पाता कि संतरी ने 50 सवाल दाग दिए. जैसे ही रिपोर्टिंग रूम की तरफ मैं बढ़ता वो रोक देता और बार-बार कहता कि आपके पास परमिशन है.

एसएचओ साहब कहां हैं ये सवाल खत्म होते ही वो बोल बैठा इलाके में हैं. यकीन मानिए जब भी संतरी थाने के गेट पर खड़े होकर ये जुमला दुहराए तो समझिए की एसएचओ रेस्ट रूम में आराम कर रहे हैं या फिर किसी अज्ञात जगह पर हैं. अव्वल तो थाने में एसएचओ की लोकेशन कुछ खास मातहतों को पता होती है या फिर ड्यूटी ऑफिसर जो कि हर वक्त रिपोर्टिंग रूम का इंचार्ज होता है. ये हालत रही मेरी जो कि थाने के अंदर सिर्फ इसलिए दाखिल होना चाह रहा था ताकि खबर की सच्चाई का पता लग सके.

खैर, आज राधे मां को देखा तो लगा कि कम से कम वो तो मुझसे सुपरलकी निकली जिसे ना केवल एसएचओ ने अपनी कुर्सी बैठने के लिए दे दी बल्कि शाहदरा जिले के पुलिसकर्मियों ने तो बाकायदा राधे मां के साथ जमकर ठुमके भी लगाए. दिल्ली के किसी थाने में चले जाइए और बोलिए कि शिकायत लेकर आए हैं और एसएचओ से मिलना है तब देखिए आपका क्या हाल होता है. आला अधिकारी सिर्फ और सिर्फ ऑनलाइन एप, लॉस्ट एंड फाउंड एप, वेहिकल थेफ्ट एप जैसी चीजें इजाद करके अपनी पीठ थपथपाते हैं कि उन्होंने बड़ा काम कर दिया. जिन...

2007 से क्राइम रिपोर्टिंग कर रहा हूं. विवेक विहार थाने से एक अपशुकन ये जुड़ा है कि वहां पर कोई भी एसएचओ ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाता. 2014 का एक वाक्या याद आता है जब एक रिपोर्टर त्रिलोकपुरी में कर्फ्यू को कवर करने गया था लेकिन तत्कालीन एसएचओ राकेश सांगवान ने पिटाई कर दी जो बाद में निलंबित कर दिए गए थे. 2008 में विवेक विहार थाना जाना हुआ. थाने में दाखिल हो ही रहा था कि गेट पर ही खड़े संतरी ने ज़ोर की आवाज लगाई बेसाख्ता ही पांव ठिठक गए और हाथ में आजतक का माइक आईडी होते हुए भी मुझे दाखिल नहीं होने दिया गया. ठीक से खड़ा हो पाता कि संतरी ने 50 सवाल दाग दिए. जैसे ही रिपोर्टिंग रूम की तरफ मैं बढ़ता वो रोक देता और बार-बार कहता कि आपके पास परमिशन है.

एसएचओ साहब कहां हैं ये सवाल खत्म होते ही वो बोल बैठा इलाके में हैं. यकीन मानिए जब भी संतरी थाने के गेट पर खड़े होकर ये जुमला दुहराए तो समझिए की एसएचओ रेस्ट रूम में आराम कर रहे हैं या फिर किसी अज्ञात जगह पर हैं. अव्वल तो थाने में एसएचओ की लोकेशन कुछ खास मातहतों को पता होती है या फिर ड्यूटी ऑफिसर जो कि हर वक्त रिपोर्टिंग रूम का इंचार्ज होता है. ये हालत रही मेरी जो कि थाने के अंदर सिर्फ इसलिए दाखिल होना चाह रहा था ताकि खबर की सच्चाई का पता लग सके.

खैर, आज राधे मां को देखा तो लगा कि कम से कम वो तो मुझसे सुपरलकी निकली जिसे ना केवल एसएचओ ने अपनी कुर्सी बैठने के लिए दे दी बल्कि शाहदरा जिले के पुलिसकर्मियों ने तो बाकायदा राधे मां के साथ जमकर ठुमके भी लगाए. दिल्ली के किसी थाने में चले जाइए और बोलिए कि शिकायत लेकर आए हैं और एसएचओ से मिलना है तब देखिए आपका क्या हाल होता है. आला अधिकारी सिर्फ और सिर्फ ऑनलाइन एप, लॉस्ट एंड फाउंड एप, वेहिकल थेफ्ट एप जैसी चीजें इजाद करके अपनी पीठ थपथपाते हैं कि उन्होंने बड़ा काम कर दिया. जिन संजय शर्मा को सस्पेंड किया गया वो दिल्ली पुलिस के ही पोस्टर ब्वॉय थे.

मेरी बात जांचने के लिए किसी थाने चले जाइए और दिल्ली पुलिस के पोस्टर पर संजय शर्मा की मुस्कुराती तस्वीर मिल जाएगी जो मुह चिढ़ा रही है और कह रही है थाने के अंदर आना मना है किसी भी तरह की शिकायत ऑनलाइन ही रजिस्टर कराइए. समाज का कितना हिस्सा है जो इंटरनेट का इस्तेमाल करता है. कमोबेश हर थाने में महिला हेल्पडेस्क पर बैठी महिला सिपाही या तो फोन पर बात करती दिखाई देगी और महिला शिकायत करता के पहुंचते ही हेल्प डेस्क पर रखे रजिस्टर में एंट्री करवाएगी, नाम पता फोन नंबर और फिर चलता कर देगी. जानते हैं थाने के किसी गेट पर जो संतरी खड़ा होता है वो थाने का सबसे पीड़ित व्यक्ति होता है अक्सर दंड रूप में किसी की ड्यूटी गेट पर लगाई जाती है.

अगर कोई रिपोर्टर एसएचओ रूम तक मोबाइल, कैमरा या फिर चैनल आईडी के साथ पहुंच गया तो हर एसएचओ रिपोर्टर के जाते ही संतरी को डांट पिलाता है. वो एसएसओ क्या ये नहीं जानता था कि राधे मां पर कई मुकदमें दर्ज है. अदालत और कानून हर बार कहती है कि पुलिस भावना पर नही जाती बल्कि सुबूतों पर काम करती है पर बावर्दी थानाध्यक्ष अगर नतमस्तक हो जाता है तो क्रिमिनल को क्या संदेश जाएगा ये खुद सोचिए. वैसे राधे मां ने थाने मे एसएचओ को आशीर्वाद जरूर दिया होगा लेकिन अपने सोशल मीडिया के पेज़ पर शेयर करते ही इसमें तकनीक का पंख लगा और ये श्राप में बदल गया. तभी तो 6 पुलिसवाले सस्पेंड हो गए...........

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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