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जामा मस्जिद न इमाम बुखारी की है, न मोदी जी की. देश की धरोहर का ख्याल तो सबको रखना है!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 08 जून, 2021 05:29 PM
  • 08 जून, 2021 05:26 PM
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पीएम मोदी को लिखे एक पत्र में दिल्ली स्थित जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध मस्जिद को देखभाल की सख्त जरूरत है. साथ ही अपने पत्र में उन्होंने ये भी बताया है कि 1956 से एएसआई द्वारा समय-समय पर इसकी मरम्मत की जाती है. सवाल ये है कि क्या जामा मस्जिद की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार और अहमद बुखारी की है ?

1656 का दौर था. भारत में मुग़लों की हुकूमत थी. हिंदुस्तान की गद्दी पर शाहजहां विराजमान थे. शाहजहां से पहले और बाद का मुग़ल पीरियड कैसा था? शासन व्यवस्था क्या थी इसपर चर्चा फिर कभी लेकिन जिस कारण शाहजहां और मुग़ल दोनों ही लोकप्रिय हुए उसका एक बड़ा कारण इनकी वास्तुकला थी. शाहजहां ताजमहल के कारण याद किये जाते हैं लेकिन कम ही लोगों को पता होगा कि ये बादशाह शाहजहां ही थे जिन्होंने अपने शासनकाल में दिल्ली स्थित विश्व प्रसिद्ध जामा मस्जिद का निर्माण कराया. लाल पत्थरों और संगमरमर से बनी इस मस्जिद को बनवाने में 6 साल लगे और इसपर खर्च आया था 10 लाख रुपए. खर्च और मस्जिद पर बात इसलिए क्योंकि इन्हीं के मद्देनजर एक बार फिर मस्जिद चर्चा में है. मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. पत्र लिखकर अहमद बुखारी ने पीएम से मस्जिद की जल्द से जल्द मरम्मत कराने के निर्देश देने की गुजारिश की है.

सरकार और एएसआई से पहले खुद देश-दिल्ली के लोगों को जामा मस्जिद के लिए आगे आना चाहिए

ध्यान रहे बीते दिनों दिल्ली में आंधी आई थी जिसने दिल्ली की तमाम ऐतिहासिक धरोहरों की तरह जामा मस्जिद को भी अपनी चपेट में लिया. काफी पुरानी होने के कारण जामा मस्जिद आंधी को नहीं झेल पाई और मस्जिद की मीनार से पत्थर गिरने लगे. माना जा रहा है कि यदि मस्जिद की मरम्मत जल्द से जल्द नहीं हुई तो वो दिन दूर नहीं जब हम इस मस्जिद के बारे में इतिहास की किताबों में पढ़ें.

क्या लिखा है बुखारी ने पीएम मोदी को लिखे अपने पत्र में?

जो खत दिल्ली स्थित जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने पीएम मोदी को लिखा है उसके अनुसार, मस्जिद के कई पत्थर खस्ता हालत में हैं और प्रायः गिर भी जाते हैं. बीते शुक्रवार को भी मस्जिद की इमारत से कुछ...

1656 का दौर था. भारत में मुग़लों की हुकूमत थी. हिंदुस्तान की गद्दी पर शाहजहां विराजमान थे. शाहजहां से पहले और बाद का मुग़ल पीरियड कैसा था? शासन व्यवस्था क्या थी इसपर चर्चा फिर कभी लेकिन जिस कारण शाहजहां और मुग़ल दोनों ही लोकप्रिय हुए उसका एक बड़ा कारण इनकी वास्तुकला थी. शाहजहां ताजमहल के कारण याद किये जाते हैं लेकिन कम ही लोगों को पता होगा कि ये बादशाह शाहजहां ही थे जिन्होंने अपने शासनकाल में दिल्ली स्थित विश्व प्रसिद्ध जामा मस्जिद का निर्माण कराया. लाल पत्थरों और संगमरमर से बनी इस मस्जिद को बनवाने में 6 साल लगे और इसपर खर्च आया था 10 लाख रुपए. खर्च और मस्जिद पर बात इसलिए क्योंकि इन्हीं के मद्देनजर एक बार फिर मस्जिद चर्चा में है. मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. पत्र लिखकर अहमद बुखारी ने पीएम से मस्जिद की जल्द से जल्द मरम्मत कराने के निर्देश देने की गुजारिश की है.

सरकार और एएसआई से पहले खुद देश-दिल्ली के लोगों को जामा मस्जिद के लिए आगे आना चाहिए

ध्यान रहे बीते दिनों दिल्ली में आंधी आई थी जिसने दिल्ली की तमाम ऐतिहासिक धरोहरों की तरह जामा मस्जिद को भी अपनी चपेट में लिया. काफी पुरानी होने के कारण जामा मस्जिद आंधी को नहीं झेल पाई और मस्जिद की मीनार से पत्थर गिरने लगे. माना जा रहा है कि यदि मस्जिद की मरम्मत जल्द से जल्द नहीं हुई तो वो दिन दूर नहीं जब हम इस मस्जिद के बारे में इतिहास की किताबों में पढ़ें.

क्या लिखा है बुखारी ने पीएम मोदी को लिखे अपने पत्र में?

जो खत दिल्ली स्थित जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने पीएम मोदी को लिखा है उसके अनुसार, मस्जिद के कई पत्थर खस्ता हालत में हैं और प्रायः गिर भी जाते हैं. बीते शुक्रवार को भी मस्जिद की इमारत से कुछ पत्थर नीचे गिरे. कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन के कारणवश मस्जिद आम लोगों के लिए बंद है जिससे किसी प्रकार की कोई दुर्घटना होने से टल गई.

पीएम को लिखे पत्र में बुखारी ने ये भी लिखा कि, इन पत्थरों के गिरने से उनके आसपास के पत्थरों की मजबूती कमजोर हो गई है. किसी हादसे से बचने के लिए फौरन मरम्मत की जरूरत है. पत्र में बुखारी ने ये भी बताया कि,'पहले भी इस तरह के हादसे हुए हैं और उसके बाद एएसआई ने मरम्मत का काम किया है.

पत्र में दिया गया है बजट का हवाला

जाहिर सी बात है कि इतनी बड़ी मस्जिद की मरम्मत कराना शाही इमाम के लिए आसान नहीं है. इसमें काफी खर्च भी आएगा. खत में मस्जिद की मरम्मत के लिए बजट निर्धारित करने की बात कर अहमद बुखारी ने कहा है कि मस्जिद की मरम्मत के लिए स्थायी बजट नहीं होने की वजह से मस्जिद में मरम्मत का काम होने में वक्त लगता है और इसके लिए पत्र लिखना पड़ता है जिसके बाद एस्टीमेट बनता है और बजट मंजूर होता है जिसके बाद ही काम शुरू होता है.

मस्जिद की हालिया स्थिति का वर्णन करते हुए अहमद बुखारी ने कहा है कि, मस्जिद में कुछ जगह के पत्थर इतने खराब हो गए हैं कि हमने उन्हें रस्सियों से बांधकर रोका हुआ है. इसलिए मैंने प्रधानमंत्री को खत लिखा है कि इंजीनियर पूरी इमारत का निरीक्षण करें और जो बहुत ज्यादा जरूरी है उसकी मरम्मत का काम फौरन किया जाए.

बुखारी के अनुसार मस्जिद के तीन गुंबदों में टपका लग गया था जिसका काम करीब आठ महीने पहले ही पूरा हुआ है. पत्र के अनुसार , विशेष मामले के तौर पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण 1956 से मस्जिद में मरम्मत का काम कराता आया है.

मस्जिद देश की धरोहर है ख्याल सबको रखना होगा

इस बात में कोई शक नहीं है कि दिल्ली घूमने आने वाले पर्यटकों की एक बड़ी संख्या जामा मस्जिद जरूर जाती है. जिक्र जामा मस्जिद के आस पास रहने वाले लोगों का हुआ है. तो बताते चलें कि यहां रहने वाले लोगों की आय का एक बहुत बड़ा साधन जामा मस्जिद है. खुद मस्जिद परिसर में ही टिकट के नाम पर ठीक ठाक पैसा भी आता ही है. कुल मिलाकर देखा जाए तो ये सिर्फ जामा मस्जिद ही है जिसकी वजह से यहां रहने वाले लोग मोटी कमाई कर रहे हैं.

सरकार और एएसआई तो जब मरम्मत कराएगी तब कराएगी मगर बड़ा सवाल ये है कि क्या लोग खुद आगे आए? क्या कोई ऐसी कमेटी बनी जिसने निर्माण का भार अपने कांधे पर लिया? सवाल तमाम है जिसका जवाब है नहीं. जामा मस्जिद के आस पास रहने वाले लोगों को इस बात को समझना चाहिए कि मस्जिद और मस्जिद परिसर न तो इमाम बुखारी का है और न ही पीएम मोदी या किसी और का.

जामा मस्जिद देश की धरोहर है और इसका ख्याल हममें से हर एक को रखना है. बेहतर होगा कि सरकार से पहले लोग ख़ुद मदद के लिए आगे आएं और मस्जिद के छोटे मोटे निर्माण के लिए अपना सहयोग करें.

जामा मस्जिद को कुछ हुआ तो नुकसान सबका है.

जैसा कि हम बता चुके हैं जामा मस्जिद पर्यटकों की एक बड़ी संख्या को आकर्षित करती है और यहां के लोगों के लिए आय का स्रोत पर्यटन ही है तो यदि इस मस्जिद को कुछ होता है इससे नुकसान सबका है. अंत में हम बस ये कहते हुए अपनी बातों को विराम देंगे कि किसी और से पहले स्थानीय लोग इस मस्जिद के लिए आगे आएं. कहीं ऐसा न हो जब तक लोग इस मस्जिद या किसी अन्य ऐतिहासिक धरोहर की सुध लें तब तक बहुत देर हो जाए.

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