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गर्व से कहा, हम हैं पूत चमारां दे!

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 08 जुलाई, 2019 04:29 PM
  • 09 अगस्त, 2016 04:40 PM
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देश के दूसरे इलाकों में जहां दलितों से जुड़े जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल पर हंगामा मच जाता है. थाना कचहरी हो जाती है. वहीं पंजाब में ये शान की बात है.

दलितों से जुड़े जातिसूचक शब्‍दों पर हमारे देश में हंगामा बरपा दिया जाता है. ऐसा करके जाति विशेष को नीचा दिखाने का काम सदियों से चला आ रहा है. इसीलिए इसे अपराध माना गया है. किसी को 'चमार' कहेंगे तो जेल भी जाना पड़ सकता है. लोगों के व्यवहार से इस जाति के लोग शर्मिंदा होते हैं और दुखी भी. लेकिन इस कड़वी सच्चाई से उलट पंजाब एक ऐसा राज्य है जहां लोग चमार होने पर जरा भी शर्मिंदा नहीं हैं. बल्कि उन्हें चमार होने पर गर्व है. और वे गर्व से कहते और गाते हैं.

गर्व से कहते हैं कि हम चमार हैं! कपड़ों पर लिखवाते हैं. (फोटो-जीतेंद्र गुप्ता, आउटलुक)

इस राज्य में चमारों पर पॉप गाने बजते हैं. एक तरफ जाट अपनी शान के कसीदे पढ़ते हैं तो दूसरी ओर चमार अपनी शान बघारते दिखाई देते हैं. कई कारों के शीशों पर लिखा हुआ देखेंगे, ‘पूत चमारा दे’. टीशर्ट के आगे पीछे ऐसे स्टीकर भी मिलेंगे, जिसमें वो शान से कहते हैं कि 'हम चमार हैं'. इस जाति के लोगों का कहना है कि 'ये हमारी पहचान है, बाकी जातियों की तरह ये भी एक जाति है. जिसका इतिहास बहुत अनोखा और गौरवशाली रहा है. इसपर शर्मिंदा होने के बजाए हमें चमार होने पर गर्व है.'

ये भी पढ़ें- महिला पहलवान और पंजाबी लड़की की फाइट देखकर दंग रह जाएंगे

दलितों से जुड़े जातिसूचक शब्‍दों पर हमारे देश में हंगामा बरपा दिया जाता है. ऐसा करके जाति विशेष को नीचा दिखाने का काम सदियों से चला आ रहा है. इसीलिए इसे अपराध माना गया है. किसी को 'चमार' कहेंगे तो जेल भी जाना पड़ सकता है. लोगों के व्यवहार से इस जाति के लोग शर्मिंदा होते हैं और दुखी भी. लेकिन इस कड़वी सच्चाई से उलट पंजाब एक ऐसा राज्य है जहां लोग चमार होने पर जरा भी शर्मिंदा नहीं हैं. बल्कि उन्हें चमार होने पर गर्व है. और वे गर्व से कहते और गाते हैं.

गर्व से कहते हैं कि हम चमार हैं! कपड़ों पर लिखवाते हैं. (फोटो-जीतेंद्र गुप्ता, आउटलुक)

इस राज्य में चमारों पर पॉप गाने बजते हैं. एक तरफ जाट अपनी शान के कसीदे पढ़ते हैं तो दूसरी ओर चमार अपनी शान बघारते दिखाई देते हैं. कई कारों के शीशों पर लिखा हुआ देखेंगे, ‘पूत चमारा दे’. टीशर्ट के आगे पीछे ऐसे स्टीकर भी मिलेंगे, जिसमें वो शान से कहते हैं कि 'हम चमार हैं'. इस जाति के लोगों का कहना है कि 'ये हमारी पहचान है, बाकी जातियों की तरह ये भी एक जाति है. जिसका इतिहास बहुत अनोखा और गौरवशाली रहा है. इसपर शर्मिंदा होने के बजाए हमें चमार होने पर गर्व है.'

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 गाड़ियों और टी-शर्ट पर भी शान से लिखवाते हैं (फोटो-जीतेंद्र गुप्ता, आउटलुक)

पंजाब के ग्रामीण इलाकों में अब भी ऊंची जाति के सिखों का ही बोलबाला है, लेकिन ये भी सच है कि अब पंजाब के दलित किसी से दबते नहीं. जालंधर को चमारों की राजधानी भी कहा जाता है. एनआरआई चमार इस इलाके के लोगों को प्रोत्साहित करते हैं. आर्थिक मदद भी करते हैं. इनके लिए 'मिशन चमार' भी चलाया गया.

पंजाबी म्यूजिक इंडस्ट्री पर भी काबिज हैं चमार गीत

लोग प्रभावित हुए और इसका असर पंजाब की म्यूजिक इंडस्ट्री पर भी पड़ा. चमार शब्द अब आम बोलचाल ही नहीं बल्कि संगीत की धुनों में भी पिरोया जाने लगा. कुछ पंजाबी गायकों ने इस जाति की महिमामंडन के लिए चमार गीत गाने शुरू किए थे. गीत 'पूत चमारां दे' और 'हमर चमार' इस जाति के युवाओं को बहुत पसंद आए. चमार गीतों की डिमांड बढ़ गई और अब चमार गीत पंजाबी म्यूजिक इंडस्ट्री में अलग पहचान रखते हैं.

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 चमार गानों का बढ़ रहा है क्रेज

यूट्यूब गवाह है कि ये चमार गीत पंजाब में लोगों को किस कदर पसंद हैं. यूट्यूब पर चमार सॉग्स खोजेंगे तो हजारों पंजाबी गीत दिखाई देंगे जिनमें चमार जाति के लोगों का स्टाइल, टशन, और हिम्मत को गीतों के जरिए पेश किया जाता है. इनका दम खम केवल पंजाबी गायक ही नहीं गायिकाएं भी अपने गीतों में बयां कर रही हैं.  

हाल ही में 'डेंजरस चमार' नाम का गीत वायरल हुआ है. इसे गिन्नी माही ने गाया है. गिन्नी म्यूजिक ब्रांड 'चमार पॉप' के लिए गाती हैं और चमार गीत गाने वालों में ये एक जाना-माना नाम हैं. 17 साल की उम्र में ही फेसबुक पर इनके 17 हजार फॉलोवर्स हैं. यू-ट्यूब पर इनके गानों को लाखों बार देखा जा चुका है.

2011 की जनगणना के अनुसार देश के बाकी राज्यों की तुलना में पंजाब में दलितों का प्रतिशत सबसे ज्यादा है. पंजाब में कुल जनसंख्या का करीब 32 प्रतिशत हिस्सा अनुसूचित जाति-जनजाति का है, जो रविदासी संप्रदाय से संबंधित हैं. ये लोग 14वीं शताब्दी के गुरू रविदास के अनुयायी हैं जो चमार थे. पिछले 50 सालों में यहां के दलितों अपना कद बढ़ा लिया है. वो पढ़े लिखे, काम के लिए विदेश गए और खुद को आर्थिक रूप से मजबूत किया है. यहां उनके पास बड़े-बड़े घर हैं, और इनके गुरुद्वारे उससे भी ज्यादा शानदार हैं. वो किसी भी तरह बाकी लोगों से अलग नहीं हैं और अपनी जाति पर फख्र करते हैं.

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हमारे समाज में दलितों के साथ पक्षपात सदियों से चला आ रहा है. इससे बचने के लिए जहां कुछ दलित अपना सरनेम बदल लेते हैं. वहीं गर्व से खुद को चमार कहने वाले ये लोग अपने आप में मिसाल हैं. पंजाब के इन दलितों को, दलित या फिर एससी या एसटी कहलाने से परहेज है, वो चाहते हैं कि उन्हें चमार ही कहा जाए. और इसी चाहत में गीत के बोलों में अगर चमार शब्द हो तो उन्हें मधुर लगता है. इन गीतों की धुनों पर नाचते और थिरकते ये चमार कभी फाइटर चमार, कभी डेंजरस चमार, तो कभी बब्बर शेर चमार हैं. इनके जज्बे को सलाम!



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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