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Corona virus in India: आखिर मानव-बम क्यों बन रहे हैं लोग !

    • धीरेंद्र राय
    • Updated: 24 मार्च, 2020 01:40 PM
  • 24 मार्च, 2020 01:40 PM
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कोरोना वायरस (Corona virus outbreak in India) का यही सौभाग्य है कि उसके फैलाव में वही जीव उसकी मदद कर रहा है, जिसके लिए वह मौत का सामान बना हुआ है. चाहे जानबूझकर हो या अनजाने में.

श्रीनगर कलेक्टर शाहिद चौधरी की नींद उड़ गई जब उन्हें पता चला कि विदेश से आने वाले कई शहरियों ने अपनी यात्रा का विवरण नहीं दिया है. खतरा यही था कि इनमें से यदि किसी को भी कोरोना वायरस का इन्फेक्शन हुआ तो इस शहर ही नहीं, दुनिया में बवाल मच जाएगा. तरह-तरह की बातें बनाई जाएंगी. प्रशासनिक अधिकारी मसर्रत शाह के नेतृत्व में ताबड़तोड़ एक टीम बनाई. जिसने उसी फुर्ती से ऐसे 65 लोगों को पकड़रकर quarantine (एकांत) में भेजा गया. इन सभी ने भारत लौटने पर कोरोना वायरस की तयशुदा जांच भी नहीं करवाई है. उम्मीद करिए कि इनमें से कोई कोरोना पॉजिटिव न हो. वरना इनकी बदौलत श्रीनगर में एक अलग ही तरह का आतंक फैल जाएगा. जैसा देश के कई अन्य शहरों में है.

कोरोना वायरस के फैलाव का अध्ययन कर रही वैज्ञानिकों की टीम ने आंखे खोल देने वाली रिपोर्ट दी है. चीन के 375 शहरों में की गई गणना के बाद पता चला कि कोरोना वायरस के हर कनफर्म केस के पीछे 5 से 10 लोग ऐसे रहे जिनके शरीर में ये वायरस था लेकिन वह पकड़ा नहीं गया. यानी ऐसे ज्यादातर मामले में बीमारी का लक्षण नहीं मिला. लेकिन जब ऐसे मरीजों की पहचान हुई तो पता चला है कि सोसायटी में 80 फीसदी संक्रमण का कारण वे ही थे. ऐसे ही संक्रमण से तैयार हुआ है कोरोना वायरस बीमारी का तृतीय चरण. एक ही सोसायटी में वायरस का संक्रमण फैलना. ब्रिटेन, अमेरिका, हांगकांग और चीन के वैज्ञानिकों की ये स्टडी बताती है कि इस बीमारी को महामारी बनाने में वे ही लोग सहायक हैं जो वायरस को अपने भीतर रखकर चुपचाप समाज के सामान्य कामकाज में लगे रहे.

कोरोना संकट से निपटने के लिए सबसे बड़ी चुनौती वेे लोग हैं जो अपनी यात्रा की...

श्रीनगर कलेक्टर शाहिद चौधरी की नींद उड़ गई जब उन्हें पता चला कि विदेश से आने वाले कई शहरियों ने अपनी यात्रा का विवरण नहीं दिया है. खतरा यही था कि इनमें से यदि किसी को भी कोरोना वायरस का इन्फेक्शन हुआ तो इस शहर ही नहीं, दुनिया में बवाल मच जाएगा. तरह-तरह की बातें बनाई जाएंगी. प्रशासनिक अधिकारी मसर्रत शाह के नेतृत्व में ताबड़तोड़ एक टीम बनाई. जिसने उसी फुर्ती से ऐसे 65 लोगों को पकड़रकर quarantine (एकांत) में भेजा गया. इन सभी ने भारत लौटने पर कोरोना वायरस की तयशुदा जांच भी नहीं करवाई है. उम्मीद करिए कि इनमें से कोई कोरोना पॉजिटिव न हो. वरना इनकी बदौलत श्रीनगर में एक अलग ही तरह का आतंक फैल जाएगा. जैसा देश के कई अन्य शहरों में है.

कोरोना वायरस के फैलाव का अध्ययन कर रही वैज्ञानिकों की टीम ने आंखे खोल देने वाली रिपोर्ट दी है. चीन के 375 शहरों में की गई गणना के बाद पता चला कि कोरोना वायरस के हर कनफर्म केस के पीछे 5 से 10 लोग ऐसे रहे जिनके शरीर में ये वायरस था लेकिन वह पकड़ा नहीं गया. यानी ऐसे ज्यादातर मामले में बीमारी का लक्षण नहीं मिला. लेकिन जब ऐसे मरीजों की पहचान हुई तो पता चला है कि सोसायटी में 80 फीसदी संक्रमण का कारण वे ही थे. ऐसे ही संक्रमण से तैयार हुआ है कोरोना वायरस बीमारी का तृतीय चरण. एक ही सोसायटी में वायरस का संक्रमण फैलना. ब्रिटेन, अमेरिका, हांगकांग और चीन के वैज्ञानिकों की ये स्टडी बताती है कि इस बीमारी को महामारी बनाने में वे ही लोग सहायक हैं जो वायरस को अपने भीतर रखकर चुपचाप समाज के सामान्य कामकाज में लगे रहे.

कोरोना संकट से निपटने के लिए सबसे बड़ी चुनौती वेे लोग हैं जो अपनी यात्रा की जानकारी छुपा रहे हैं

सवाल ये है कि कोरोना वायरस का संक्रमण लेकर समाज में घुलमिल गए इन लोगों को क्या कहा जाए? इन्होंने ऐसा क्यों किया? ये सवाल इसलिए भी जरूरी हो जाते हैं क्योंकि इनसे फैलने वाले संक्रमण के शिकार तो इनके परिजन भी बने हैं. कोरोना वायरस के बारे में यह तो स्पष्ट हो गया है कि इसका फैलाव इंसानों के जरिए ही हो रहा है. यानी यह बीमारी यदि चीन के बाद दुनिया में फैली है तो उसे लोग एक ही ले गए हैं. हवा, पानी या कोई अन्य जानवर नहीं. ऐसे में यदि बीमारी भारत आई है तो विदेश से आने वाले नागरिकों के साथ ही. तो आखिर ये कौन लोग थे जो एयरपोर्ट की स्क्रीनिंग के बावजूद कोरोना वायरस के कैरियर बन गए.

1. इस बीमारी के शुरुआती मामले तो सरकारी की इंतजामों की खामी के कारण भारत में आए. खासतौर पर इटली से आए पर्यटकों का मामला. एयरपोर्ट पर हुई जांच में किसी को बुखार नहीं था, तो सबकुछ ठीकठाक मान लिया गया. इतना ही नहीं, भारत शुरुआत में सिर्फ चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और कुछ ही देशों से आने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग कर रहा था. जबकि संक्रमण कई अन्य देशों में पहुंच चुका था. यानी भारत सरकार इस बीमारी के फैलाव का आंकलन करने में नाकाम रही. और उसने इसे हल्के में लिया.

2. भारत सरकार का फोकस शुरु से उन देशों पर ही रहा जहां कोरोना वायरस का संक्रमण सबसे ज्यादा फैला हुआ था. चीन और इटली से तो भारत सरकार ने खुद अपने नागरिकों को निकला. लेकिन इन दो देशों के अलावा अन्य संक्रमित देशों से आने वाले नागरिकों के साथ एयरपोर्ट पर बेहद लचीलापन दिखाया गया. जैसे कि यदि इन देशों से आने वाले शख्स को बुखार नहीं था, और उसने कह दिया कि वह अपने घर पर ही क्वारंटाइन (15 दिन का एकांत) रहेगा. तो इसे मान लिया गया. और उन्हें जाने दिया गया. घर पहुंचने पर इन लोगों ने सावधानी नहीं बरती. वे पार्टी में भी गए. बाद में जब बीमारी के लक्षण सामने आए तो हाहाकर मच गया.

3. कई देश ऐसे भी थे, जहां इस बीमारी का कोई नामोनिशान नहीं था. उनकी कुछ खास जांच भी नहीं हुई. वे खुद को स्वस्थ मानकर घर चले गए. लेकिन बाद में कोरोना वायरस के लक्षण मिले. ऐसे कई नागरिक खाड़ी देशों से आए हैं. केरल के कासरगोड़ का मामला इसका ताजा उदाहरण है. यहां का रहने वाला अब्दुल कदीर दुबई से आए अपने NRI दोस्त को कोझिकोण एयरपोर्ट से लेकर अपने घर कासरगोड़ आया. यहां आने के बाद दोनों कई कार्यक्रमों में शामल हुए, जिसमें एक शादी औेर दूसरा फुटबॉल मैच भी शामिल है. इस दौरान कदीर के NRI दोस्त की तबीयत बिगड़ने लगी, औेर बाद में वह कोरोना पॉजिटिव निकला. पता चला है कि कासरगोड़ में ही इन दोनों दोस्तों ने एक हजार से ज्यादा लोगों से मुलाकात की है. पुलिस ने कदीर के खिलाफ अपने दोस्त की यात्रा से जुड़ी जानकारी छुपाने का केस दर्ज किया है. कासरगोड़ लॉकडाउन है.

4. कोरोना वायरस के गुमनाम वाहकों की चौथी श्रेणी सबसे गंभीर है. वायरस संक्रमण के सबसे गंभीर परिणाम झेल रहे इन देशों से आने ये वो लोग हैं जिन्होंने जानबूझकर अपनी यात्रा का विवरण स्थानीय प्रशासन से छुपाया. श्रीनगर कलेक्टर शाहीद चौधरी बताते हैं कि बांग्लादेश के मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाले श्रीनगर के दो छात्र लौटे. एक हवाई जहाज से आया, दूसरा सड़क मार्ग से. हवाई जहाज से आए छात्र को क्वारंटाइन में भेज दिया गया. जबकि उसका भाई चुपचाप घर चला गया. पड़ोसियों के खबर करने पर उसे क्वारंटाइन किया गया. अब उसमें बीमारी के लक्षण दिख रहे हैं. एक अन्य हैरान कर देने वाला मामला भी श्रीनगर का ही है. जहां अमेरिका से लौटी छात्रा घर न जाकर होटल में रुकने गई. उसने बताया कि वो बांग्लादेश से आई है. रिसेप्शन पर बैठे होटल कर्मचारी ने जिद करके उसका पासपोर्ट मांगा तो झूठ का पर्दाफाश हुआ. ऐसे सभी मामलों की खतरनाक बात ये है कि जब तक इन लोगों में बीमारी के लक्षा सामने आते हैं तब तक ये कई लोगों में वायरस का संक्रमण दे चुके होते हैं.

क्यों छुपाई जा रही है जानकारी?

तमाम हंगामे के बावजूद यदि विदेश से आने वाले लोग सरकारी रडार से बच रहे हैं तो उसके लिए जितने अपराधी वे हैं, उतनी ही दोषी सरकार भी है. कुछ लोगों को लगा है कि उनमें वायरस न हुआ तो भी सरकारी अस्पतालों या सरकारी क्वारंटाइन केंद्रों में उन्हें यह संक्रमण हो जाएगा. विदेश से आए ऐसे कई लोगों ने घर न जाकर होटल में कमरा ले लिया. ताकि उन्हें संक्रमण हो भी, तो उनका परिवार सुरक्षित रहे. और होटल की सुविधा और आराम क्वारंटाइन केंद्रों से बेहतर ही होगा. पूरे होटल को खतरे में डालने वाले इन लोगों ने जरा भी परवाह नहीं की कि यदि वे सरकार की निगरानी में रहते तो इस बीमारी का फैलाव न होता.

कोरोना वायरस का यही सौभाग्य है कि उसके फैलाव में वही जीव उसकी मदद कर रहा है, जिसके लिए वह मौत का सामान बना हुआ है. चाहे जानबूझकर हो या अनजाने में. सरकारी नाकामी से हो या लापरवाही से. सरकार की निगरानी के बाहर हजारों लोग कोरोना वायरस को अपने शरीर में लिए मानव-बम बनकर घूम रहे हैं. ऐसा हर शख्स कम से कम दस से लेकर हजारों लोगों तक इस बीमारी को पहुंचाने का दम रखता है. दक्षिण कोरिया के चर्च की उस नन की तरह जिसे देश में फैले 80 फीसदी संक्रमण का जिम्मेदार माना गया. जी हां, दक्षिण कोरिया के करीब आठ हजार लोगों तक कोरोना वायरस पहुंचने का सफर उसी नन से शुरू हुआ था. इस नन को 'सुपर स्प्रेडर' और 'पेशेंट 31' भी गया. कोरिया सरकार ने जानलेवा आपराधिक लापरवाही बरतने पर इस नन के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया है. ऐसी सख्ती की जरूरत अब भारत में भी है.

महत्वपूर्ण जानकारी: स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन के मुताबिक विदेशों से अब तक करीब 64 हजार नागरिक भारत आए हैं. जिनमें से 8 हजार सरकारी क्वारंटाइन सेंटर्स में और बाकी 56 हजार अपने घरों में क्वारंटाइन हैं. देश को उम्मीद हैे कि ये 56 हजार लोग ईमानदारी सेे अपने आप को अलग थलग रखेंगे. इसके अलावा ऐसे लोगों के नजदीक आए 1 लाख 87 हजार लोगों पर सरकार की नजर है. जो कोरोना वायरस के संभावित मरीज हो सकते हैं.;

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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