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कांस्‍टेबल समीर भट ने आखिर कश्मीरी हिंदू होने की सजा भुगत ही ली

    • सुरभि सप्रू
    • Updated: 05 जून, 2017 05:22 PM
  • 05 जून, 2017 05:22 PM
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कश्मीर में एक कश्मीरी पंडित कॉन्स्टेबल की हत्या होती है. उसके लापता हुए कई दिन बीत जाते हैं, लेकिन उसके बारे में पुलिस डिपार्टमेंट ट्वीट करता है कि उसने आत्महत्या कर ली है.

मुझे 2017 और 1990 में कोई अंतर आज भी नज़र नहीं आ रहा है.. वो डर वो दहशत वो दरिंदगी मेरी घाटी की मिट्टी को मैला करती ही जा रही है. आज भी कश्मीरी पंडित वहां अपनी सुरक्षा तो छोड़िये अपने अस्तित्व तक को ढूंढता है. कितनी शर्मनाक है ये बात कि अपनी मिट्टी को कई बार कुरेद कर भी फिर वो प्यार नहीं मिल पा रहा जो मिलना चाहिए था. आखिर कश्मीरी हिन्दू समाज कब तक अपने कश्मीर के प्यार से वंचित रहेगा? आज 1990 का वो मातम फिर कानों में चीख-चीख कर इंसाफ की गुहार लगाता है पर सुनेगा कौन? क्योंकि कश्मीर का 2017 तो 1990 का हमशकल निकला. कैसे फिर कश्मीरी हिन्दू समाज वापस जाने की सोचेगा? आखिर कैसे?

समीर भट के परिवार को पता भी नहीं चला कि उनका बेटा लापता हैजम्मू के नगरोटा कैम्प में कांस्टेबल समीर भट जो कश्मीरी पंडित है उसका परिवार रहता है. समाज का एक चेहरा ये भी है कि कई विस्थापित कश्मीरी हिन्दू अब भी कैंप में ही रह रहे हैं, उन्हें सरकारें एक अच्छी छत भी नहीं दे सकीं और ना ही किसी संस्था ने अपना हाथ आगे बढ़ाकर उनकी मदद करने की सोची. 14 मई से श्री रूप किशन भट का लापता पुत्र समीर भट लाख प्रयासों के बाद भी नहीं मिल रहा था. मैंने कई दिनों पहले समीर की तस्वीर को सोशल मीडिया पर वायरल होते हुए देखा पर किसी अखबार और किसी चैनल पर इसकी ख़बर नहीं देखी. अचानक मेरे एक मित्र ने मुझ से इस मुद्दे पर बात की और उन्होंने बताया की समीर के माता-पिता उसे ढूँढने के लिए कश्मीर में हर दफ्तर में भटक रहे हैं और कोई भी उनकी बात नही सुन रहा है. ले देकर बहुत कुछ करने के बाद कांस्टेबल समीर की ख़बर तो चल गई पर बात केवल समाचार तक खत्म नहीं होनी चाहिए, ये मुद्दा तब तक जगाकर रखना होगा जब तक कश्मीरी पंडित समाज अपनी ही मिट्टी पर सुरक्षित नही होगा. जब बात आगे बढ़ी तो मैंने जम्मू-कश्मीर के ट्विटर हैंडल पर देखा कि उन्होंने इसे 'फेक' न्यूज़ का नाम दे दिया है और साथ ही ये लिखा कि समीर के साथ जो कांस्टेबल गया था जिसका नाम एजाज़ अहमद है उसने बताया कि समीर ने आत्महत्या कर ली है.

मुझे 2017 और 1990 में कोई अंतर आज भी नज़र नहीं आ रहा है.. वो डर वो दहशत वो दरिंदगी मेरी घाटी की मिट्टी को मैला करती ही जा रही है. आज भी कश्मीरी पंडित वहां अपनी सुरक्षा तो छोड़िये अपने अस्तित्व तक को ढूंढता है. कितनी शर्मनाक है ये बात कि अपनी मिट्टी को कई बार कुरेद कर भी फिर वो प्यार नहीं मिल पा रहा जो मिलना चाहिए था. आखिर कश्मीरी हिन्दू समाज कब तक अपने कश्मीर के प्यार से वंचित रहेगा? आज 1990 का वो मातम फिर कानों में चीख-चीख कर इंसाफ की गुहार लगाता है पर सुनेगा कौन? क्योंकि कश्मीर का 2017 तो 1990 का हमशकल निकला. कैसे फिर कश्मीरी हिन्दू समाज वापस जाने की सोचेगा? आखिर कैसे?

समीर भट के परिवार को पता भी नहीं चला कि उनका बेटा लापता हैजम्मू के नगरोटा कैम्प में कांस्टेबल समीर भट जो कश्मीरी पंडित है उसका परिवार रहता है. समाज का एक चेहरा ये भी है कि कई विस्थापित कश्मीरी हिन्दू अब भी कैंप में ही रह रहे हैं, उन्हें सरकारें एक अच्छी छत भी नहीं दे सकीं और ना ही किसी संस्था ने अपना हाथ आगे बढ़ाकर उनकी मदद करने की सोची. 14 मई से श्री रूप किशन भट का लापता पुत्र समीर भट लाख प्रयासों के बाद भी नहीं मिल रहा था. मैंने कई दिनों पहले समीर की तस्वीर को सोशल मीडिया पर वायरल होते हुए देखा पर किसी अखबार और किसी चैनल पर इसकी ख़बर नहीं देखी. अचानक मेरे एक मित्र ने मुझ से इस मुद्दे पर बात की और उन्होंने बताया की समीर के माता-पिता उसे ढूँढने के लिए कश्मीर में हर दफ्तर में भटक रहे हैं और कोई भी उनकी बात नही सुन रहा है. ले देकर बहुत कुछ करने के बाद कांस्टेबल समीर की ख़बर तो चल गई पर बात केवल समाचार तक खत्म नहीं होनी चाहिए, ये मुद्दा तब तक जगाकर रखना होगा जब तक कश्मीरी पंडित समाज अपनी ही मिट्टी पर सुरक्षित नही होगा. जब बात आगे बढ़ी तो मैंने जम्मू-कश्मीर के ट्विटर हैंडल पर देखा कि उन्होंने इसे 'फेक' न्यूज़ का नाम दे दिया है और साथ ही ये लिखा कि समीर के साथ जो कांस्टेबल गया था जिसका नाम एजाज़ अहमद है उसने बताया कि समीर ने आत्महत्या कर ली है.

पुलिस की ये ट्वीट मेरे दिमाग में शक को जगाकर रखे हुए है क्योंकि कांस्टेबल समीर भट एक एनकाउंटर स्पेशलिस्ट था जिसने कई आतंकवादियों को ढेर किया था. जो ऐसे हौसले से भरे कार्यों को कर सकता है वो भला क्यों आत्महत्या करेगा?? एक पहलू सोचने का ये भी है. रूप किशन भट अपनी पत्नी कुंती भट के साथ के साथ अब भी कश्मीर में भटक रहे हैं और वो खुद अस्थमा से जूझ रहे हैं. सोचिये इस उम्र में एक पिता अपने बेटे को ढूंढ रहा है और हर उस दरवाज़े पर अपनी दुखदायी उँगलियों को जोड़कर मदद मांग रहा है कि उसे उसका बेटा मिल जाए. दुःख की बात है कि अपनी धरती पर एक पिता अपने पुत्र के लिए प्यासा भटक रहा है. यह ख़बर एक कश्मीरी पंडित की अपनी ही घाटी में घायल अस्तित्व की छवि दर्शाती है. डिस्ट्रिक्ट पुलिस के कार्गो कैम्प से लेकर कहाँ-कहाँ नहीं घूम रहे हैं समीर के पिता. बेहद शर्मनाक है ये देखना कि किसी ने भी समीर के पिता तक ये सूचना तक नहीं पहुंचाई कि समीर लापता है. रूप किशन जी 17 मई को समीर की तलाश में श्रीनगर पहुंचे. उनका कहना है कि 14 मई को उन्होंने समीर के BSNL नंबर पर उनकी बात समीर से हुई तो समीर ने उन्हें बताया कि वो अपने दोस्त कांस्टेबल एजाज़ अहमद के साथ है और समीर ने अपने अंकल दलीप भट जो जम्मू-कश्मीर डिस्ट्रिक्ट पुलिस में हेड कांस्टेबल है उन्हें मारुती कार में कुपवाड़ा छोड़ा. उसके बाद समीर के पिता ने रात को 9 बजे फिर समीर के BSNL नंबर पर कॉल किया ना उसमें और ना एयरटेल नंबर पर कोई जवाब मिला.

अगले दिन सुबह यानि 15 मई को समीर के पिता ने एजाज़ अहमद को समीर के बारे में पता करने के लिए कॉल किया, एजाज़ से बात होने पर उसने बताया कि उसने समीर को डल गेट छोड़ा था पर समीर का नंबर बंद होने पर समीर के पिता की चिंता बढ़ गई. 16 मई को समीर के पिता को एजाज़ ने बताया कि वो जम्मू के लिए निकल चुका है पर समीर के दोनों नंबर बंद थे, जब शाम तक समीर नहीं पहुंचा तो पिता ने फिर समीर को कॉल किया पर नंबर बंद ही था. समीर के अंकल दलीप भट को कॉल करने पर भी कुछ पता नहीं चला.

कश्मीर पुलिस ने इस तरह ट्वीट कर समीर के केस को दबाया

17 मई को रूप किशन भट अपनी पत्नी कुंती भट और बेटे संजय भट के साथ श्रीनगर डिस्ट्रिक्ट पुलिस के कार्गो कैम्प पहुंचे वहां के मुंशी से समीर के बारे में पूछा तो मुंशी ने उन्हें बताया कि समीर 3 दिन से लापता है. सोचिये क्या बीत रही होगी समीर के माता पिता पर, पंडितों की ऐसी हालत है अपनी ही घाटी में कहते हुए तो इस बर्बरता से भरे समाज पर गुस्सा आता है. उन्हें ये विश्वास ही नहीं हो रहा था एजाज़ जो समीर का सबसे प्रिय दोस्त था उसने उनसे झूठ बोला. 17 मई की शाम को शेरगढ़ी थाने में समीर के पिता ने उसके लापता होने की रिपोर्ट लिखवाई और साथ डीजीपी एस.पी.वैद्य से भी मुलाकात की. समीर के पिता का कहना है 6 दिन के बाद पुलिस ने कार्रवाई शुरू की और एक स्टेटमेंट जारी किया और कहा कि समीर ने चोगल, हंदवारा में दारु पीकर पुहरू नदी में छलांग लगादी है फिर 21 मई को पुलिस ने अपने बयान में कहा कि उन्हें समीर की बॉडी नहीं मिली.

ऐसे ही पुलिस के कई बयानों के बाद एजाज़ अहमद को कस्टडी में लिया गया और उसके अलग-अलग बयानों को बाद जिस में समीर को ड्रग एडिक्ट और दारुबाज़ साबित करना भी शामिल है. शक की सुई ये सोचने पर मजबूर करती है कि क्या जम्मू-कश्मीर पुलिस में एक ऐसा कांस्टेबल काम कर सकता है जो दारूबाज़ और ड्रग एडिक्ट हो? और वो जिसने कई आतंकवादियों को ढेर किया हो? तो एजाज़ अहमद ने अपने बयान में ये कबूला कि उसने ही समीर को मारा है पर अब भी इस केस का अंत पूरी तरह से नहीं हुआ है. जिस तरह से JK पुलिस ने ट्विटर पर इसे 'फेक' न्यूज़ कहकर टाल दिया था और बाद में कातिल भी पता लग गया तो समझा जा सकता है कि कश्मीर का प्रशासन भी कहीं आज़ादी के आन्दोलन के साथ तो नहीं??

समीर के पिता ने अब कोर्ट का रास्ता चुना है और उन्हें अब भी इस बात पर विश्वास नहीं है कि उनका बेटा नहीं रहा उनकी मांग है कि इस केस को CBI या NIA को सौंपा जाए. 

महाभारत की कुंती ने भी करन को इसीलिए खोया था क्योंकि करन कौरवों को समझ नहीं पाया और शायद इस कुंती की माँ ने भी अपने करन को इसीलिए खोया क्योंकि वो भी कौरवों के साथ था और उन्हें अपना मित्र समझ बैठा. जब घाटी में कश्मीरी हिन्दू सुरक्षित ही नहीं हैं तो सरकार किस दावे से उन्हें वहां भेजती है? आखिर कब तक ये समाज अपने बच्चों को अपने बूढों को इस तरह मरते हुए देखता रहेगा. सच्चाई तो समीर के साथ बह गई और वो फिर कभी नहीं लौटेगा, हैरानी की बात है कि अब तक समीर का मृत शरीर भी नही मिला है. प्रश्न ये उठता है कि क्या इस समाज को इतिहास के पन्नों पर विस्थापित समाज ही कहा जायेगा या इस इतिहास को बदलने कोई कृष्ण बनकर आएगा?? समीर के माता पिता को उनका पुत्र नहीं दे सकते तो उसके कातिल को सज़ा देने में इतना समय किस बात का लग रहा है?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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